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Tag: रेखा कापसे “होशंगाबादी”

नर्सेस
छंद

नर्सेस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
नववर्ष
कविता

नववर्ष

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** दो हजार बाईस के, कुछ ही दिन है शेष। आया है नववर्ष यह, ले पावन अनिमेष।। (१) शुचि संदल नववर्ष है, दो हजार बाईस। खुशियों की दस्तक रहे, प्रति घंटे चौबीस।। (२) अंतस से शुभकामना, जनमानस मन भाव। आगंतुक नव वर्ष में, संचित प्रीति लगाव।। (३) स्वागत करते है सभी, आनन खिलता हर्ष। मनुज भाव नववर्ष में, हृदय रुचिर उत्कर्ष।। (४) पथ कंटक सब दूर हो, हटे तमस का जाल। संदल शुचि नववर्ष में, खुशियाँ मालामाल।। (५) आया है नव वर्ष शुभ, हर्षित मन के तार। संकल्पित मन भावना, जनहित मन आधार।। (६) सत्य नेक शुचि हो डगर, राग द्वेष छल त्याग। रिश्तों की मनुहार ले, हृदय रहें अनुराग।। (७) शिथिल उदर की तृप्तता, जन मानस की चाह। तन पर सबके हो वसन, आलय अन्न अथाह।। (८) प्रण कर नूतन वर्ष में, अधर मृदुल हो बोल। करुणा दया निदा...
भारत अभिलाषित हिंदी
कविता

भारत अभिलाषित हिंदी

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी भाषा से मिली, हिंद देश पहचान। तनया संस्कृत की कहे, बढ़े जगत में शान।। बढ़े जगत में शान, मनुज मुख सदा विराजे। मिले विश्व सम्मान, हिंद का डंका बाजे।। कुमुद कहे ज्यों होत, सुसज्जित माथे बिंदी। भारत का अभिमान, सरल अभिलाषित हिंदी।। हिंदी भाषा है सरल, कठिन इसे मत मान। मौखिक वाचिक व्याकरण, कथन करें आसान।। कथन करें आसान, छंद साधित अभिलाषा। अलंकार रस छंद, विशेषण युत परिभाषा।। कहे कुमुद शुचि श्रेष्ठ, स्वच्छ तटिनी कालिंदी। जग जीवन आधार, कहे निज भाषा हिंदी।। हिंदी व्यापक रूप में, धरे विश्व में पाँव। अनुपम स्थापित कूप है, विद्वानों की छाँव।। विद्वानों की छाँव, वृहद शाखा विन्यासित। विविध सुत्र आधार, बनें साहित्य सुशासित।। कुमुद लिखे शुभ ग्रंथ, करें शोभित नित बिंदी। सुखद राष्ट्र अभिमान, हृदय में बसती ...
विजयी विश्व तिरंगा
छंद

विजयी विश्व तिरंगा

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मरहठा छंद जग विश्व विजय का, राष्ट्र प्रणय का, अमर तिरंगा शान। परचम लहराये, गौरव गाये, वीरों का बलिदान।। घर-घर हो उत्सव, अमृत महोत्सव, जन-जन उर में गर्व। पचहत्तर वार्षिक, अद्भुत कालिक, आजादी का पर्व।। है अंतस गंगा, सजे तिरंगा, घर -घर ध्वज प्रतिमान। सैनिक बलिदानी,अमर कहानी,जन गण मन शुभ गान ।। शुभ तीन रंग से, नव उमंग से, गौरव गाथा भान। है श्वेत शांति का, हरित क्रांति का, केसरिया बलिदान।। जो नील चक्र है, मध्य वक्र है, नित विकास संचेत। चतुर्विश तीलियाँ, धार्मिक गलियाँ, मनुज गुणी संकेत।। शत गौरव गाथा, टेके माथा, मातृभूमि के अंक। नित रक्त बहाते, प्राण चढ़ाते, राजन् हो या रंक।। मस्जिद गुरुद्वारे, मंदिर सारे, गिरिजाघर के संग। घर-घर लहराये, नभ छू जाये, देशभक्ति के रंग।। जन-जन का सपना, भारत अपना, बने ...
नित्य योग अपनाए
छंद

नित्य योग अपनाए

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रोला छंद नित्य करो तुम योग, निरोगी नियमित काया। तन-मन दोनों स्वस्थ, श्वास की निर्मल छाया।। प्रात: प्राणायाम, भ्रामरी शीतल बोधक। नित अनुलोम विलोम, कहाए नाड़ी शोधक।। योगासन शुभ लाभ, विश्व में ख्याति जमाए। भोर काल में योग, रक्त संचरण बढ़ाए।। नियमित कपालभाति, शांति तन-मन में भरता। मुख आभामय ओज, पाच्य उत्तेजन करता।। आसन योग अनेंक, भिन्न मुद्रा से निर्मित। न्यून करे तन भार, वसा को करे नियंत्रित।। चिंता तनाव नष्ट, क्रोध छू-मंतर करता। काया ऊर्जावान, बढ़े प्रतिरोधक क्षमता।। योग लाभ अतिरेक, रखे मानव अनुशासन। प्रात: संध्याकाल, नियम से हो सब आसन।। योगासन पश्चात, स्नान मत तुरंत करना। सर्दी खाँसी शीत, जकड़ लेती है वरना।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घो...
श्वास की निर्मल छाया
कविता

श्वास की निर्मल छाया

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** नित्य करो तुम योग, निरोगी नियमित काया। तन-मन दोनों स्वस्थ, श्वास की निर्मल छाया।। प्रात: प्राणायाम, भ्रामरी शीतल बोधक। नित अनुलोम विलोम, कहाए नाड़ी शोधक।। योगासन शुभ लाभ, विश्व में ख्याति जमाए। भोर काल में योग, रक्त संचरण बढ़ाए।। नियमित कपालभाति, शांति तन-मन में भरता। मुख आभामय ओज, पाच्य उत्तेजन करता।। आसन योग अनेंक, भिन्न मुद्रा से निर्मित। न्यून करे तन भार, वसा को करे नियंत्रित।। चिंता तनाव नष्ट, क्रोध छू-मंतर करता। काया ऊर्जावान, बढ़े प्रतिरोधक क्षमता।। योग लाभ अतिरेक, रखे मानव अनुशासन। प्रात: संध्याकाल, नियम से हो सब आसन।। योगासन पश्चात, स्नान मत तुरंत करना। सर्दी खाँसी शीत, जकड़ लेती है वरना।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
नायक शुभ परिवार का
दोहा

नायक शुभ परिवार का

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुखद निलय की मूल है, पिता धूप में छाँव। नायक शुभ परिवार का, दृढ़ ग्रहस्थ दे पाँव।।(१) नित्य दिवस निशि कर्म कर, पोषक पालनहार। उदर तृप्त परिवार का, प्रमुदित शुभ घर द्वार।। (२) अति कठोर उर आवरण, अंत मृदुल संसार। कठिन परिश्रम से पिता, सुत भविष्य दे तार।। (३) मूक हृदय मधु भाव रख, कर्म करे दिन-रात। विपदा में सुत ढाल बन, प्रलय काल दे मात।।(४) थाम ऊँगली प्रति कदम, साथ चले वो पंथ। उनके काँधे बैठकर, देखे उत्सव ग्रंथ।।(५) पिता डाँट कड़वी लगे, करती औषध कर्म। बुरी आदतें त्यागनें, कुशल निभाए धर्म।।(६) कर्मठता से सींचकर, नींव बनाए दक्ष। यश वैभव सुविधा सभी, पिता प्रदायक वृक्ष।। (७) शीर्ष पिता साया रहे, सकल स्वप्न साकार। खुशियों के विस्तार से, मिटे तमस कटु खार।।(८) रिश्तें सब अपने लगे, पिता रहे जब साथ।...
अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस
गीतिका, छंद

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
युद्ध विभीषिका
छंद

युद्ध विभीषिका

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मनोरम छंद युद्ध भीषणता कहूँ क्या। मौत का तांडव सहूँ क्या।। निज कलम आक्रोश करती। नित मनुज हिय जोश भरती।। हाल सब के अस्त से है। आम जन सब त्रस्त से है।। पीर वो किसको बताए। बन सहारा कौन आए।। रक्त की नदियाँ बहाती। फिर कथा सदिया सुनाती।। रोक लो गर हो सके तो। शांति माला पो तके तो।। विश्व सारे मौन क्यों है। सोच सबकी पौन क्यों है।। क्या समझ अब मर गई है। या किसी से डर गई है।। विश्व संकट तीव्र शंका। भीषिका का वज्र डंका।। एशिया पर डौलता है। वक्त भी अब बोलता है।। शांति की दरकार कर लो। राष्ट्र मिल करतार धर लो।। दूर सारी भ्रांति हो जब। एशिया में शांति हो अब।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित म...
होली
कविता

होली

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** कुंडलिया छंद होली शुभ त्यौहार की, प्रचलित कथा महान। नृप हिरण्यकश्यप रहे, हिय अति दुष्ट प्रधान।। हिय अति दुष्ट प्रधान, तनय जन्मा अति ज्ञानी। नाम दिया प्रहलाद, हृदय नारायण ध्यानी।। राजन् उर अति तंग, दिया सुत बहना झोली। भीषण अनल चपेट, बचा सुत जलती होली।। होली के त्यौहार में, मिटता अंतस बैर। खुशियाँ रंग गुलाल ले, करती नभ की सैर।। करती नभ की सैर, हृदय कटु भेद मिटाती। खूब बनें मिष्ठान, मित्र-रिपु गले लगाती।। पिचकारी भर रंग, निकलती जन की टोली। गली-मुहल्ला तंग, मनुज मिल खेले होली।। होली पावन पर्व में, हृदय भरें अनुराग। ढोल मँजीरे साथ ले, मनुज सुनाते फाग।। मनुज सुनाते फाग, नृत्य कर जगत लुभाते। नीला-पीला-लाल, गुलाबी रंग लगाते।। कुमुद हृदय उल्लास, ईश भर देते झोली। जग अनंत अनुराग, लिए आती ...
प्रकृति का श्रृंगार बसंत
छंद

प्रकृति का श्रृंगार बसंत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रोला छंद आया सुखद बसंत, प्रीत रम हृदय जगाए। वसुधा रति श्रृंगार, देख मन अनुपम भाए।। धर पीताम्बर वस्त्र, भगवती ध्यान लगाओ। धन वैभव का साज, सौर्य गुरु ग्रह से पाओ।। बिखरे पतझड़ पात, वात झोंका अलसाये। रम अनुपम मधुमास, अधर मधु मनन लुभाये।। अरुणोदय की थाप, रश्मि की तपन प्रवाहित। नव पल्लव सौगात, कुसुम मकरंद सुवासित।। रक्तिम टेशू पुष्प, बौर अमुआ पर झूले। मीठी कोयल कूक, खेत में सरसो फूले।। प्रेमिल अंत अधीर, मिलन प्रियतम हिय प्यासा। विरह वेदना पीर, मिटे अब दुखद कुहासा।। फीकी पड़ती धुंध, निशा का ठौर सिकुड़ता। रवि किरणों का शौर्य, उत्तरायण तट पड़ता।। यौवन पाते अन्न, कृषक अंतस हर्षाता। प्यारा सुखद बसंत, सभी के मन को भाता।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा प...
दिव्य जोत
छंद

दिव्य जोत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** शुद्ध गीता छंद मापनी- २१२२ २१२२, २१२२ २१२१ चैत मासे शुक्ल प्रतिपद, साथ जलती दिव्य जोत। प्रथम चंद्र दिवस कहे है, साल का नववर्ष होत ।। उस विधाता ने रची थी, काल चक्री सृष्टि आज । विष्णु अवतारी हुए थे, मिलन प्रकृति दृष्टि साज ।। आज है नव वर्ष देखो, दे सदा ही आन बान। कामना मेरी यही हैं, आप पाओ आसमान।। दुःख का साया नहीं हो, सुख बसा हो आस पास। नित्य जीवन आपका हो, प्रेम खुशियाँ भार खास।। पेड़ पाते फूल कलियाँ, मंजरी इस काल चक्र। लौट कर आती बहारे, साल में हर बार वक्र।। दौर ये मधुमास प्यारा, घोलता है प्रेम प्रीत। शुद्ध होती है धरा भी, पूजती गणगौर रीत।। कूक कोयल आम खुशबू, कर रहे सब चित्त चोर। नव फसल का गान करती, मोर बोले बाग जोर।। मस्त मद आनंद आभा, नभ खिली हैं आज भोर। गीत गाते हैं सुहाने, नाचते सब जोर शोर।। परिचय :- रेखा का...
बसंत
कविता

बसंत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुमन सुवास सुरभित उपवन, मन को अतिशय भाया है। तन हर्षित है, मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। माँ भगवती को करूँ नमन, रोली कुमकुम और चंदन। धूप दीप अक्षत अर्पण, हाथ जोड़ करूँ मैं वंदन।। विद्या वाणी सुरों का दान, वरद मुझे दो बनूँ गुणवान। वास करो माँ कंठ मे मेरे, बनूँ मैं जग में सदा महान।। भक्तिमय सकल संसार, बुद्धि भंडार समाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। लहराती गेहूँ की बाली, फूली सरसो पीली वाली। बौर सजे है अमुआ डाली, कोयल कूके है मतवाली।। धरा कर रही है श्रृंगार, बहे बाग में शीत बयार। शीत ऋतु की करे विदाई, दिनकर ने थामी तलवार।। पीली धरणी पीला अंबर, पीत वर्ण ही भाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। रसमय फूलों के मकरंद, तितली भरती अपने रंग। प्रेम प्रीत बरसाती अपना, ले जाती हैं अपने सं...