अनूठा प्रेम
रीमा ठाकुर
झाबुआ (मध्यप्रदेश)
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वो सून्दर सी पालकी "गुलाब के फूलो से सजी हुई थी। उन फूलो की खूश्बू से पूरा वातावरण सुगान्धित था। हवा के झोके अपने होने का अहसास दिला रहे थे। रुपमती का यौवन उसकी स्वरलहरियो" जैसा परिपूर्ण था। उसकी लटे उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रही थी। पालकी को कहारो ने महल के प्रागंण मे उतारा "बहुत सारी दासियो ने पालकी को घेर लिया" पालकी के बाहर पैर रखते ही नूपुर की छुनछुन की आवाज चूडियो की खनक उस प्रागंण मे अपने मीठी अनुराग पैदा करने लगी।
रूपमती पालकी से बाहर आ गई "सारी दासिया उसे अवाक सी देखती रही" उसकी खूबसूरती को नजर न लगे दासी रजला ने" रूपमती के चेहरे को घूघट से ढक दिया। और रूपमती का हाथ पकड महल की ओर बढ गई" बाजबहादुर की धडकने बेताहास धडकने लगी "उसकी कुछ मर्यादा थी। वो राजा था।वो अपनी प्रेयसी को गले नही लगा सकता था। पर उसका मन बार बार...