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अब समझ आ रही है
कविता

अब समझ आ रही है

रामकृष्ण शर्मा गुलाबपुरा भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ऑक्सीजन की कीमत अब समझ आ रही है काटे थे पेड़ धड़ल्ले से अब धड़ल्ले से जान जा रही है बहुत रह लिए शहर अब गांव की याद आ रही है बसाए बेहिसाब सामान अब जिंदगी "बेड'' पर सिमटी जा रही है समझते रहे खुद को शहंशाह अब जीने में भी मुश्किल नज़र आ रही है जिंदगी हाथ में है हमारे अब लापरवाही भारी पड़ती जा रही है परिचय :- रामकृष्ण शर्मा (व्याख्याता) निवासी : गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...