Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: रामकुमार पटेल ‘सोनादुला’

मेरा नव वर्ष आ गया
कविता

मेरा नव वर्ष आ गया

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा नव वर्ष आ गया अब, सजी धरा विशेष है। सुरेश महेश दिनेश रमेश, हाथ जोड़े शेष है। आदिशक्ति की वंदना करत, प्रसन्नता छाई है। नया वर्ष हिंद की आपको, हृदय से बधाई है। जन जन का जो जन त्राण करे, चाह जन कल्याण हो। मृत चेतन में जो प्राण भरे, चले न शब्द बाण हो। ऐसे सज्जन हेतु यह वर्ष, विशेष मंगलमय हो। शोषित होकर पोषण करते, कृषक वर्ग की जय हो। रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, प्रकृति देख हर्षित है। हिंदू नव वर्ष हमारा तो, सदियों से चर्चित है। भँवरे कोयल स्वागत करते, मधुर गीत सुना रहे। त्रिविध बयार इत्र छिड़क चली, सभी के मन भा रहे। सबको उचित न्याय मिले और, सबका सम भाव बने। सबको समान सम्मान मिले, मन हो नहीं अनमने। रामकुमार के मन में यही, आज बात आई है। हिन्दू नया वर्ष की सबको, हृदय से बधाई है। च...
होली के रंग
छंद

होली के रंग

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (सरसी छंद) कृष्ण-राधा संवाद कृष्ण - लाल रंग मैं डालूँ गोरी, तन-मन कर दूँ लाल। तेरे गोरे गाल लगाऊँ, मल-मल लाल गुलाल। राधा - लाल रंग प्रियतम डालो ना, भय हिय होय हमार। प्लाश सुमन मन आग लगाता, दहके ज्यों अंगार। कृष्ण - हरा रंग डालूँ मैं सजनी, मत करना इनकार। हरा रंग में हरा- हराकर, बरसाऊँ रसधार। राधा - हरा रंग भी नहीं लगाना, हँसत सुआ उड़ जाय। हरा पेड़ अब मुझे हराकर, कसत व्यंग हरषाय। कृष्ण - पीला रंग तुझे रंगाऊँ, मानो मेरी बात। मेरी होली याद रखोगे, काहे हृदय लजात। राधा - पीला- पीला पोत न प्यारे, हल्दी हँसती जाय। सरसों सुमन मगन हो नाचे, मेरा मन मुरझाय। कृष्ण - नीला रंग तुझे रंगाऊँ, सकल तन सराबोर। प्रिये नहीं अब करना ना- ना, हिय में उठत हिलोर। राधा - नीला भी तो भय उपजाए, नीलकंठ खग र...
छत्तीसगढ़ी दोहे
आंचलिक बोली, दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहे

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी दोहे) होरी हे के कहत मा, मन म गुदगुदी छाय। गोरी गुलाल गाल के, सुरता कर मुसकाय।। एक हाँथ गुलाल धरे, दुसर हाँथ पिचकारि। बने रंग गुलाल लगा, गोरी ला पुचकारि।। रंग रसायन जब लगे, होही खजरी रोग। परत रंग तन मन जरय, नहीं प्रेम के जोग।। चिखला गोबर केंरवँछ, जबरन के चुपराय। खेलत होरी मन फटे, तन मईल भर जाय।। परकिरती के रंग ले, रंग बड़े नहि कोय। डारत मन पिरीत बढ़े, खरचा न‌इ तो होय।। परसा लाली फूल ला, पानी मा डबकाय। डारव कतको अंग मा, कभु न जरय खजवाय।। परसा फूले लाल रे, पिंवँरा सरसों फूल। गोरी होरी याद रख, कभु झन जाबे भूल।। होरी अइसन खेल तैं, सब दिन सुरता आय। अवगुन के होरी जरे, कभु गुन जरे न पाय।। तन के भुइयाँ अगुन के, लकरी लाय कुढ़ोय। अगिन लगा ले ग्यान के, हिरदे उज्जर होय।। लाल ...