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Tag: राधेश्याम गोयल “श्याम”

खुला चिट्ठा
कविता

खुला चिट्ठा

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** १४ फरवरी २०१९ पुलवामा आतंकी हमले के बाद, हमारे सैनिकों के द्वारा २६ फरवरी २०१९ सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान पाक सैनिकों को उनके घर में घुसकर मारा, उस समय सेना पर आक्षेप और पाक सैनिकों के मरने के सबूत मांगना तथा चाइना जाकर उनसे हाथ मिलाना ऐसे सभी कार्य जो विपक्ष के द्वारा किए गए, उसी दौरान, विपक्ष के कार्यों का खुला चिट्ठा बगैर किसी का नाम लिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं, ये उन शहीदों को आत्मीय श्रद्धांजली है जो १४ फरवरी २०१९ को पुलवामा में शहीद हो गए। आजादी की नाव डूब रही, देश दोही हत्यारों से, आक्षेप लग रहे नित सेना पर, घर के इन गद्दारों से। नेक इरादे हे नही इनके, हिंदुत्व में फोड़ा पटकाया, राष्ट्र हित के अच्छे कार्यों में हरदम रोड़ा अटकाया। भूखे है सत्ता के सत्ताधर्म निभाना क्या जाने, सीमा पर शहीद हो स...
कलम से प्रहार कर
कविता

कलम से प्रहार कर

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** साहित्य के सम्रांगण में कलम से तू वार कर, भारत के नव प्रांगण में शिक्षा का तू प्रचार कर। हे चाणक्य के वंशज न डर कर न हार कर, देशद्रोही कंटको पर कलम से तू वार कर। सत्य की मशाल से अज्ञान तम को दे मिटा, तेज आंधी तूफ़ान में तू कदम न पीछे हटा चूम ही लेगी सफलता एक दिन तेरे कदम, स्वाभिमान को रख बचा व्यक्तित्व को संवार कर सीमा पर सैनिक अड़े है राष्ट्र रक्षा के लिए, दुश्मनों से हर पल लड़े है राष्ट्र रक्षा के लिए। ऐसे में गद्दार कोई गोपनीयता बेचकर, दो कलम से मौत उसको और चड़ा दो दार पर। कलम के सिफाही हो कलम कभी न बेचना, जुल्म के आगे झुके न, हो सर कलम न सोचना। बिक गई गर लेखनी, यदि चंद सिक्कों के लिए, तो रक्षक भी वतन के होंगे, पस्त एक दिन हारकर। जीती हे पहले भी हमने कितनी ही बाजी हार कर, कवि कलम से जीती बाजी पृ...
बारा मासी गीत
गीत

बारा मासी गीत

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** तुम्हारे बिन मै न जियुंगी दिलों जानी, जैसे मछली बिन पानी। हो पिया जैसे मछली बिन पानी.......तुम्हारे बिन....... चैत्र, बैसाख ऐसे बीते आई याद सुहानी, कोयल, पपिहा की वाणी सुनकर हो गई पानी पानी... तुम्हारे बिन...... जेठ असाड़ बड़ पीपल पूजे, कई मानता मानी, धूं-धूं करके महीने बीते, जैसे काला पानी.......... तुम्हारे बिन....... सावन भादों में बरखा आई, लाई याद पुरानी, झूले पड़ गए नीम पुराने,चहुं और पानी ही पानी....... तुम्हारे बिन........ कुंवार कार्तिक शरद ऋतु आई, ठंडी हुई मनमानी, मेला देखन सब सखी जावे, मै बैठी अनमानी........ तुम्हारे बिन........ अगहन पोष मास जब आए, बड़ गई मन हैरानी, छोटे दिवस रैन भई लंबी, कठिन हुई जिंदगानी........ तुम्हारे बिन........ माघ फागुन बसंत ऋतु आई, रंगो ने चादर तानी, "श्याम" हो...