Friday, November 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: राजेन्द्र लाहिरी

लफंगे यार
कविता

लफंगे यार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो लफंगे यार, जिनसे मिला मुझे बेइंतहां प्यार, बचपन में साथ खिलाया, जिंदगी में कैसे चलना है बताया, भरोसा तोड़े बिना मुझ पर भरोसा जताया, अपनों के प्रति कैसे सजग रहना है गाली खा-खा कर सिखाया, गाली मेरे अपनों ने ही दिया, यारी के लिए कड़वे शब्दों का घूंट पीया, मेरे बेमकसद जिंदगी में बदलाव लाया, समाज संग अम्बेडकरी मूवमेंट सीखाया, अपने महापुरुषों से मिलाया, हर इंसान में अच्छाई के साथ बुराई भी होता है, वो मेरा यार है और रहेगा फर्क नहीं पड़ता मुझे कि कोई उन्हें लफंगा कह रोता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
वो कौन?
कविता

वो कौन?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वह कौन है जो बोल सकता है पर बोलना नहीं चाहता, तौल सकता है पर तौलना नहीं चाहता, फिजा में प्यार घोल सकता है पर घोलना नहीं चाहता, अच्छे कार्यों के लिए डोल सकता है पर डोलना नहीं चाहता, ज्यादतियों पर खून खौल सकता है पर खौलना नहीं चाहता, जन्म से लेकर मृत्यु तक उलझाते पाखंडी जालों को काट सकता है, पर काटना नहीं चाहता, मोहब्बत के कुछ पल बांट सकता है पर बांटना नहीं चाहता, अच्छे-बुरों को छांट सकता है पर छांटना नहीं चाहता, बिगड़ते पीढ़ी को सुधारने के लिए डांट सकता है पर डांटना नहीं चाहता, दिलों की दूरी को पाट सकता है पर पाटना नहीं चाहता, वो मतलबपरस्त आज का इंसान है, जो बन चुका हैवान है, कपोल कल्पित गाथाओं का उन्हें भान है, पर वो मस्तिष्क के कचरे को ढोकर चलना चाहता है जिसे मिटाने के लिए हमेशा ...
धुन
कविता

धुन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम थिरक रहे हैं उनके भक्ति भरे धुनों पर, हम गर्व कर रहे हैं उनके बनाये नमूनों पर, तांडव, विरह, विवाह, मिलन सारे के सारे धुन उनके, सत्ता, ताकत, धमक है जिनके, हमारे धुन है बेबसी के, मदहोशी के, खामोशी के, लाचारी के, दुत्कारी के, चित्कारी के, मनुहारी के, बदहाली के, कंगाली के, सामाजिक दलाली के, पता नहीं कब रच पाएंगे धुन, समता के, ममता के, टूटती विषमता के, न्याय के, इंसाफ के, अत्याचारियों के पश्चाताप के, सम्मान के, संविधान के, ज्ञान के, विज्ञान के, देश के विधान के, एक-एक अनुच्छेद के संज्ञान के, तैयार करने ही होंगे एक ऐसा धुन जिससे थिरके सारा देश, भूला के सारा द्वेष व क्लेश, जिसमें से न आए धर्म व जातिय गंध की कर्कश आवाज, हमें रचना होगा, सृजना होगा ऐसा साज। परिचय :-...
जकड़न
कविता

जकड़न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ बंधा है, पांव बंधा है और बंधा मस्तिष्क, चुन सकते नहीं प्रेयसी कैसे लड़ाएं इश्क़, हाथ काम तो कर रहे पर किसी और का, पांव थिरक जा रहा किसी के रोकने से, मस्तिष्क दूसरों के डाले डाटा अनुसार चल रहा है, दरअसल यह मानसिक गुलामी के जकड़न का असर है, समाज और समाज के लोगों से दूर रहने का असर है, जिस हथियार के दम पर नौकरी पाया, रुतबा पाया, उसे भूल धुर विरोधी को गले लगाया, सालों साल लोगों को बहकाया, तो समाज की चिंता अब क्यों? अब कोई तवज्जो दे तो क्यों? मनन जरूर कीजिए। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
सम्राट अशोक
कविता

सम्राट अशोक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिंदुसार के पुत्र आपने एकछत्र साम्राज्य बनाया था, देश तो देश विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था, देख लहू की धार, अपने मन को विचलित पाया था, मन की शांति पाने खातिर बुद्धत्व को अपनाया था, लाखों स्तूप और शिलालेख धम्म के लिए बनाया था, हिंसा त्यागा अहिंसा अपनाया, खुद का मन निर्मल बनाया, आपने ही अथक प्रयत्न कर बुद्ध राह सहेजा था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा को समुद्र पार तभी तो भेजा था, शिक्षा लेने दुनियाभर से हर वर्ष हजारों आते थे, शिक्षा के संग शासन सुमता की बातें लेकर जाते थे, अशोक चक्र और चार शेर चिन्ह को देश ने यूं ही नहीं अपनाया है, विदेशियों ने अपने ग्रंथों में महान अशोक के निर्भीक शासनकाल का गुण गाया है, लड़ना नहीं है हमको अब तो मिलकर एक हो जाना है, अपना राज लाकर फिर से प्रियदर्शी का ...
सुख और दुख
कविता

सुख और दुख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अनुभव और ज्ञान मनुष्य के सुख दुख का कारण है, अब बताइए इसका क्या निवारण है, बंदर को कह दो हाथी, दुखी नहीं होगा उनका कोई साथी, हाथी को कह दो गधा, बिगड़ेगा नहीं चाल रहेगा सधा का सधा, शेर को कह दो सियार, नहीं बदलेगा वो खूंखार, खरगोश को कह दो चीता वो घास ही खायेगा, नहीं कोई खुशी मनाएगा, इन सारे जानवरों को बिल्कुल नहीं पता उनका नाम क्या है, पर इतना जरूर जानते हैं कि उनका काम क्या है, किसी को अपना नाम ज्ञात नहीं, नाम तो इंसानों की देन है, अपने अनुसार खेलता मानवी गेम है, ज्ञान और अनुभव के बिना वो अपनी दुनिया में खुश है, मगर सब कुछ जान कर मोह माया, स्वार्थ में डूबा आदमी नाखुश है, हर जीव जंतु अपने काम से जाने जाते हैं, केवल मनुष्य ही है जो नाम से जाने जाते हैं, तो मनुष्यों दुखी हो जाओ या सुख...
पानी
कविता

पानी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रे बाबा कैसी जिंदगानी है, पानी की भी अजब कहानी है, पानी से ही धोना नहाना, पानी से ही पीना खाना, नहीं करती कभी ओछी हरकत, पानी निःस्वार्थ देती है कुदरत, पर कुछ जातियों में जबरदस्त शक्तियां देखी जाती है जो अन्न को, जल को, यहां तक भगवान को भी अपवित्र कर देते हैं, कइयों की भावनाएं आहत कर उनमें मातम भर देते हैं, इनके आगे कोई नहीं ठहरता, पता नहीं कौन है इनमें शक्ति भरता, सुअर, कुत्ते, बैल जैसे जानवर भी किसी घाट, जलाशय को अपवित्र नहीं कर सकते, पर वाह रे अमानवीय नियम कुछ मानव पानी में अपना पांव नहीं धर सकते, मगर धन्य है वो महामानव, जिसने मनुवादियों के सामने पानी छूने से लेकर पीने तक का अधिकार दिलाया, लोगों को पानी पिलाया, रोते रहें वे जो रहते हैं हरदम रोते, लेकिन इतना जरूर जान लें पानी और खून कभी अ...
हां मैं बुरी हूं
कविता

हां मैं बुरी हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैं बिल्कुल नहीं जीना चाहती तुम्हारी बनाई हुई खोखली परंपराओं के साथ, इंसां तो मैं भी हूं पर तुम्हारे लिए हूं नारी जात, धर्म के नाम पर, समाज के नाम पर, घर की इज्जत के नाम पर, थोप रखे हो गुलामी की दीवार, गाहे बगाहे होती रहती हूं दो चार, हमें घूंघट को कहते हो, खुद स्वच्छंद रहते हो, बुरखा सिर्फ मैं ही क्यों लगाऊं, बंधन में बांध खुद को क्यों सताऊं, घर की इज्जत का ठेका सिर्फ मेरा नहीं है, क्या घर में किसी और का बसेरा नहीं है, आ जाते हो पल पल देने घर के इज्जत की दुहाई, तुम्हारे बेतुके नियम मैंने तो नहीं बनाई, हां मान लो मुझे मैं बुरी हूं पर अब खुद की बॉस हूं, तुम्हारे द्वारा खड़ी की गई है जो गुलामी की दीवार अब उससे आजाद हूं, लंपट मर्द हो मुझमें ही बेहयाई खोजोगे, जब भी सोचोगे मेरे विरोध में सोचोगे, ...
आदर्श
कविता

आदर्श

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उनके लिए वो भद्दे परिपाटी जिसका आज चलन है, पर हम वंचितों का, बहुजनों का आदर्श बंदूक नहीं कलम है, तलवार से भी खतरनाक कलम को ही माना गया है, इसे ही सबसे शक्तिशाली जाना गया है, सत्ता को भी कलम गूंगी कर देती है, शक्तिहीनों में भी ताकत भर देती है, सदियों से चली आ रही व्यवस्था के हम घोर विरोधी हैं, हम बुद्धत्व के संबोधि हैं, भले ही हम हजारों सालों तक कागज कलम से दूर रहे, अपढ़ता का अभिशाप झेलने मजबूर रहे, उनकी बस्तियों से दूर रहे, उनके खंडित करते नियम हमारे लिए नासूर रहे, पर कलम की कसक हम दिलों में पाले थे, शिक्षा के लिए खुद को संभाले थे, तब अंग्रेज आये, वे उन्हें नहीं सुहाए, लेकिन हमें उन्होंने स्कूल की राह दिखाए, पढ़ाए, समता की बात सिखाये, हम शिक्षा का साथ ताउम्र नहीं छोड़ेंगे, कलम उठाएंगे...
फ़रेबी
कविता

फ़रेबी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुझे मालूम है वह फरेबी है, पर मुझ तन्हा के लिए वहीं तो सबसे करीबी है, मकड़जाल से ज्यादा उलझनों वाली रिश्तों का भयानक रूप, मेरे लिए वो जरूर है कुरूप, पर वही है मेरे सिर को छांव देता रोककर कंटीली नुकीली धूप, उसके कारण थोड़े बोल लेता हूं नहीं रहना पड़ता है चुप, उनका लगाव तो देखिए लाखों संभावनाएं के बाद भी सिर्फ मुझसे ही फरेब करता है, मेरे लिए प्यार इतना उनका मुझे छोड़ दुनियादारी से डरता है, कहता है आपको शत्रु की क्या जरूरत जब मैं आपके साथ हूं, कुछ और की चाहत क्यों मैं ही तो जज्बात हूं, देता है दर्द रिश्तों का दिया हुआ, अब मैं हो चुका हूं मर मर के जीया हुआ, अब तो एक जैसा है नफरत और लाड़, अब कोई प्यार जताये या लताड़। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प...
करुणा
कविता

करुणा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छल, कपट, दुष्काम, लोभ,लालच के बीच पंकज की भांति खिलती है करुणा, जो दैदीप्यमान रवि की लाती अरुणा, यह सम्पूर्ण व्यक्तित्व का है सार, नहीं कोई लालच, नहीं कोई व्यापार, जियो और जीने दो, प्रत्येक को समता का रस पीने दो, आचार विचारों में करुणा लाओ, बुद्ध के और करीब आओ, अहम को घटाओ, वहम को मिटाओ, यह त्याग और शील का साथी है, मानवता का प्रेमपूर्ण पाती है, हर क्षण हर काल में है प्रासंगिक, हृदय में जगाती है प्यार अत्यधिक, बुद्ध, कबीर, रैदास, बाबा साहेब थे सब करुणा के वाहक, यूं ही नहीं इनका नाम लिया जाता नाहक, प्रकृति से, स्वकृति से, कर्म से मन से, निःस्वार्थ स्वच्छ तन से, प्रवाहित होती है करुणा, बस खुद में है भाव जगाने की जरूरत, तब चहुँ ओर नजर आएंगे करुणा लिए बुद्ध ही बुद्ध की सूरत। ...
विज्ञान
कविता

विज्ञान

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खरी-खरी कहता है विज्ञान, अफवाहों को, मिथकों को, गलत साबित कर मिटा देता है विज्ञान, मानव की हर जरूरत को आसान बना देता है विज्ञान, तभी तो विज्ञान को बढ़ावा देने की बात करता है हमारा संविधान, इसके बिना हमेशा अधूरा है इंसान, जीवन के हर पल से जुड़ा है विज्ञान, लोक परलोक को गलत साबित करता है, तभी सुदूर ग्रहों पर मानव पांव धरता है, बुध, शुक्र, शनि, बृहस्पति, धरा और चांद, बताओ कहां नहीं पहुंचा विज्ञान, पाखंडों की पोल खोलता, सच्चाई की बोल बोलता, जमीं पर, आसमां पर, जल पर, इससे सुधरा सबका स्तर, मानव की धूर्तता देखिए विज्ञान के द्वारा ही विज्ञान को कोसता है, वर्ना सबको पता है, पाखंड इंसानों को किस कदर नोचता है, फर्जी बाबाओं की ओर भाग रहा इंसानी भीड़ बेकाबू, विज्ञान के घालमेल से जो चलाता है अपना...
नाले में बहती है
कविता

नाले में बहती है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आस्था के नाम पर कब तक दूध बहाओगे, भूख से तड़पते नौनिहालों को क्या कभी नहीं दूध पिलाओगे, दूध जो बह जाती है नालियों में, करुण रुदन की शोर दब जाती है जयकारों और तालियों में, तब नजर आती है मुझे बहती हुई डिग्रियां और तालीम, जो चीख-चीख कर पूछती है क्यों आस्था के चक्कर में बहाते हुए क्षीर उन मासूमों की नजरों में महसूस होने लगता है वो जालिम, हां मैं भी मानता हूं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, मगर लोग क्यों चाहते हैं पाखंडों में डूबे रहना, आंखों में नीर लिए निहारे जा रहा हूं जीवनदायिनी क्षीर को बहते हुए नालियों में, नालियों में। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
चल-चल
कविता

चल-चल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जब मैंने शुरू किया अपनी ओर से कुछ हलचल, तुरंत लोगों ने कहना शुरू किया यहां से चल चल, हां बिल्कुल चलना तो है, इस सड़ांध भरे माहौल से निकलना तो है, अभी तक हमें कोई और चलाता था, पल पल हमारे अहम को चोट पहुंचाता था, ले दे के चलके कुछ आगे आ पाये हैं, कुछ अपनों को सच्चा इतिहास बता पाये हैं, तुम्हारी अगुवाई में अब तक केवल लानत, मनालत, जहालत ही झेलते आये हैं, खुद से खुद को ढंग से नहीं मिला पाये हैं, अब खुद को जान रहे हैं तब भी तुम्हें परेशानी है, ये तुम्हारी सोची समझी साजिश है नहीं कोई अनायास वाली नादानी है, अब जब तक अपनों के अंदर न आ पाये आग, अपने जब तक न जाये जाग, तब तक आप बोलते रहो चल चल, हम अपने हक़ हुक़ूक़ के लिए चलते रहेंगे पल पल, तो जागृति पहल जारी है, ये हमारे भविष्य के लिए तैयारी है। ...
बदलते रिश्ते
कविता

बदलते रिश्ते

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रंग बदलते खून के रिश्ते देख अब तक की उम्र में रिश्तों को हमने खंगाला है। माना सबको अपने जैसा पर कोई सनकी, कोई लालची, कोई गुरूर वाला है। खंजर छुपा कर रखे हैं ताक में पसीना तो पसीना खून चूसकर मचलने वाला है। रूप रंग पर कभी मत जाना यारों जितना तन उजला उससे ज्यादा ही मन काला है। चीर कर दिखा चुका अपना हृदय पर पिशाचों का मन इतने में कहां भरने वाला है। उन्नति में भभक धधक उठेंगे शोले मशाल ले जलाएंगे अरमां उदर में जाता निवाला है। जब तक देख न लें नेस्तनाबूद होते तानों बानों से उलझा ये रिश्तों का श्याह जाला है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
इस जमाने में
कविता

इस जमाने में

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बहुत जोर लगाना पड़ेगा सदियों से खड़े खंभे को हिलाने में, बस प्रेम ही है एक आधार नफरत के जखीरे को मिटाने में, वजूद मिट जाने का न रख डर बन जा नींव अपने विचारों को सृजाने में, भिगो देना आसान है पर समय लगता है सूखने और सुखाने में, हाड़ मांस सुखा मेहनत किया हूं पेट भरने के लिए नहीं सेंध मारा निजी खजाने में, मेरी बातें उतनी बुरी भी नहीं फिर क्यों घिरा रहता हूं किसी के निशाने में, कोई कुछ भी कहे बोले जी जान लगाया है मैंने कमाने में, क्योंकि मुझे समझ आ गया कि पैसा बहुत जरूरी है इस जमाने में। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
आश्वस्त हूं
कविता

आश्वस्त हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** फांसी ले लूं या दे दो मतलब एक ही है, मेरा आकलन क्या है न पूछो इरादा नेक ही है, शायद मैं अपनी जिम्मेदारी न निभा पाया, अपने जज़्बात किसी को न बता पाया, शायद नजरिये का फ़र्क अजूबा है, मेरे या उनके सोचने का तरीका दूजा है, मैं अपने घर की मजबूत दीवार लग रहा था, पर कोई तो था जिन्हें मैं बीमार लग रहा था, संभाल पाना सबको शायद मेरी औकात नहीं, या हो सकता है अब शायद यह सोचना न पड़े कि अब मुझमें उस तरह की जज्बात नहीं, अब तो अब मैं तब भी खरा सोना था, मेरी जद में हर कोना था, नकार दो मेरा वजूद पर मैं शाश्वत हूं, समझा जाएगा मुझे कभी मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
मज़हब
कविता

मज़हब

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रार मचा रखा जाता है करके बजबज, सभी को लगता है सबसे अच्छा है हमारा मज़हब, लोगों को उकसाया जाता है, लाठियां, तलवारें घुमाया जाता है, मुल्क़ का माहौल बिगाड़ अपना माहौल बनाया जाता है, भड़काता है, उकसाता है, अपनी उस्तादी दिखाता है पचपन, जिसमें पिस जाता है उमंगों से, रंगों से भरा निःस्वार्थ बचपन, लाभ ये ठेकेदार उठा ले जाते हैं देश भर में फैला के खचपच, सभी कहते हैं सबसे अच्छा है हमारा मज़हब, वे भूल जाते हैं कि जरूरतों, परिस्थितियों के हिसाब से तय होता है सबका मजहब, दुख का मज़हब खुशी होता है, घायल का मज़हब इलाज होता है, इंसान का मज़हब इंसानियत होता है, भूखे पेट का मज़हब रोटी होता है, खिलाड़ी का मज़हब खेल होता है, उच्चलशृंखता का मज़हब नकेल होता है, अब बताओ कहां है तुम्हारा मज़हब, बात करने आ जाते है...
ऐसा क्यों…?
कविता

ऐसा क्यों…?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इतिहास में तुम ही तुम, हर अच्छी बात में तुम ही तुम, हर जगह बजती तेरी धुन, कल्पित गाथाओं में भी तुम, सबके माथाओं में भी तुम, शक्तिशाली भी तुम ही तुम, और बलशाली भी हो तुम, क्या तब और अब तुम ही तुम हो हमें पटल से क्यों कर दिए गुम, हुआ बहुत हमरा भी नाव, लो पढ़ लो भीमा कोरेगांव, पच्चीस हजार कैसे आ गए थे लोटने को पांच सौ के पांव, लिख डाले हो कर कर कुकर्म, देव खुद को कह रहा तेरा ग्रंथ, क्यों भूले हो पाखंड काटने आते रहे हमारे संत, सीरियलों और फिल्मों में भी सदपात्र बनाते रहे हो खुद को, खल चरित्र में दिखा दिखा झुठलाते रहे हमारे वजूद को, कब तक रहोगे पर्दे के पीछे दिखा बता कर लाखों झूठ, तब भी अब भी पल्लवित ही हैं समझते मत रहना हमको ठूंठ, शसक्त हो रहे हम भी अब ये कभी मत जाना भूल, सम की राह में नहीं चलोग...
क्या भर पायेगा सुराख
कविता

क्या भर पायेगा सुराख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पैदा होते ही कराया गया अहसास, कहीं न कहीं है बहुत बड़ा सुराख, उनके हर प्रमुख मौके पर नाचते हम, हमारे मौकों पर कहां से ले आते वे गम, छूने से, घूरने से, परछाई पड़ने से, वैचारिक लड़ाई लड़ने से, वे खड़े रहते हैं भृकुटि ताने, आंख मूंदकर सिर्फ उनकी मानें, गालियां हमें भी सिखाया जाता है हम खामोश रहते हैं, पर वे गाली दे जाते हैं हमें जाति के नाम पर, सदा चोट पहुंचाते हैं हमारे सम्मान पर, क्या हम या हमारी जाति सचमुच घृणा के लायक हैं? या खुद के अहम को संतुष्ट करने हमें मान लेते खलनायक है? कुएं में, घाट में, चक्की में, तरक्की में, विद्यालय में, औषधालय में, कहां नहीं अहसास कराया जाता है छोटे बड़े सुराख? जबकि हम आदी हैं प्रेम बांटने के, सुराख पाटने के। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी ...
बगावत भी जरूरी
कविता

बगावत भी जरूरी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जो बैठा है खाली पेट, बगावत वहां से उठ सकता है, किसान, विद्वान, नादान, अंजान, बेजुबान, सताए स्त्री पुरूष इंसान, मदमस्त सत्ताईयों के सुख चैन लूट सकता है, हाँ मालूम है की सत्ता हमारी हलक से निवाला खींच सकता है, लम्पटों, महामूर्खों, अंधभक्तों की फसल को वाहियात बातों में उलझा सींच सकता है, मत भूलिए की जिसके सीने में वतन के लिए लगावट है, वहीं कर सकता बगावत है, बगावत का, विरोध का डर न हो तो सत्ताधारी बेलगाम, मदमस्त हो जाता है, उनके लिए हर गैरजरूरी काम जरूरी हो जाता है, पर ये नहीं सोचता कि अंदर ही अंदर बहती लावा ज्वालामुखी बन कभी भी फूट सकता है, आसमान की ओर निहारता, लिया बैठा सूखा खेत, बगावत वहां से उठ सकता है, इन नामुरादों की दुनिया लूट सकता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी...
कशमकश का मंजर
कविता

कशमकश का मंजर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति का मस्त मंजर, न आंधी तूफान का डर न पास में समंदर, कुदरत का दिया खाना कुदरत का दिया पानी, स्वछंद जिंदगी की स्वछंद कहानी, नीला आकाश, जंगल की मिठास, मिलजुलकर रहना, जीवन का हर पल उजास, आम, अमरूद, पीपल, पलाश, प्रकृति का बिछौना फैले दूर तक घास, प्राकृतिक निवासी, जंगल के रहवासी, कुछ आक्रांताओं की नजरें अब शांत जंगलों पर पड़ी है, पर्यावरण को दुहने काली नीयत आज खड़ी है, जंगल को बचाने वो हर दम सजग खड़े, कशमकश देखिए बाहरी से तो लड़ लेंगे लेकिन अपनी सरकार से कैसे लड़ें। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
नीयत
कविता

नीयत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** संविधान दिवस आया तो जिम्मेदार लोग दो चार शब्द बोलेंगे, एक जगह कार्यक्रम होगा अतिथि को फूल मालाओं से तोलेंगे, ऐसे समारोहों में सत्तारूढ़ सिर्फ कार्यक्रम कराएंगे, संविधान के बारे में किसी को भी न कुछ सिखाएंगे न पढ़ाएंगे, हक़ अधिकार की बातें हमें खुद जानना होगा, एक एक अनुच्छेद छानना होगा, उनकी नीयत शुरू से खराब है, उनका अलग ख्वाब है, वो लोगों को अंधविश्वास और पाखंड के साये में हरदम रखना चाहते हैं, संविधान की शिक्षा न देकर पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता का सुख चखना चाहते हैं, गलती उनकी नहीं, पर संविधान की शिक्षा हम अपने लोगों को दे सकते हैं, पर क्या सही नीयत से हमने प्रयास किये हैं? कुछ लोग संविधान मिटाने की बात करते हैं, मिथकीय राज लाने की बात करते हैं, उन्हें बताना होगा कि संविधान मिटाना इतना आसान नहीं ह...
मर गया
कविता

मर गया

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पैदा हुआ, उठा बैठा, खेला कूदा, पढ़ा लिखा, पढ़ाया कभी नहीं, परिवार बनाया, खाया पीया, खिलाया कभी नहीं, सोकर जगा, जगाया कभी नहीं, न बोला, न चीखा न चिल्लाया, न हक़ बचाने सामने आया, ताउम्र मृत रहा, बस बेनाम मौत मर गया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डा...
वास्तविकता
कविता

वास्तविकता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** इंसानियत हैवानियत से गलबहियां डाले घूम रहा है गली गली, इंसाफ मुजरा करने को एलान करते करते चली, नैतिकता उल्टियां कर रहे हैं, करुणा और दया खास लोगों के घर सुबह शाम पानी भर रहे हैं, सहयोग नोटों के सहारे स्वसहायता खुल के कर रहे हैं, आस और विश्वास कोने में बैठकर दिन रात सिहर रहे हैं, खेलों में कुर्सियां भाग ले रहे हैं, पदकों के बजाय खुशी खुशी दाग ले रहे हैं, खुशियां पैरों तले कुचला जा रहा, बदमाशियां अश्लील गाने गा रहा, जिससे सबको आस है, कसम से वो खुद निराश है, भीड़ को फैसला करने का हो गया हक़, जिन्हें आत्मविश्वास से डट कर बोलना था वो बोलने से क्यों रहा हिचक, नोट छाप छाप कर विश्वगुरु बनना है, व्यवस्था को पता है किसके आगे कब कब अकड़ना और तनना है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ घोषण...