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Tag: राकेश कुमार तगाला

अधिकार
लघुकथा

अधिकार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता का रो-रो कर बुरा हाल था।पति को खो देने की पीड़ा ने उसे तोड़ कर रख दिया था। अभी शादी को कुछ ही साल हुए थे। दो छोटे-छोटे फूल से बच्चे थे। जो रोज पापा का इंतजार कर रहे थे। मम्मी, पापा कब आएंगे? उनके मासूम सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे। देखते ही देखते साल गुजर गया था। पर उसकी आँखों के आँसू सूख नहीं रहे थे। वह बुरी तरह से टूट गई थी। उसे अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में लग रहा था। कहने को पति का भरा-पूरा परिवार था। जेठ, देवर सभी थे। पर भाई के मरने के बाद, उसे कोई भी सहारा देने को तैयार नहीं था। उन्हें उसकी चिंता नहीं थी। पूरा परिवार ज़ायदाद के पीछे था। उन्होंने उसका हिस्सा भी हड़प लिया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर, उसे घर से बाहर कर दिया था। वह अपनी माँ के घर पर ही निराशा में दिन तोड़ रही थी। माँ भी अपनी बढ़ती उम्र से परेशान ...
तुम्हारे पत्र
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तुम्हारे पत्र

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गगन का मन आज बहुत उदास था। वह कई साल बाद इस महानगर में लौट रहा था। इस नगर से उसके जीवन की बहुत सी यादें जुड़ी थी। वक्त कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता? गाड़ी बहुत तेज गति से दौड़ रही थी। एक के बाद एक स्टेशन पीछे छूटता जा रहा था। गाड़ी को भी आज अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दी थी। हर स्टेशन पर गाड़ी कुछ देर रुकती। वह मन ही मन सोच रहा था। इतना अधिक भीड़-भड़ाका, धक्का-मुक्की तो सिर्फ भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में ही संभव है। ऐसा नजारा और कहीं देखने को नहीं मिल सकता। गाड़ी फिर अगले स्टेशन के लिए धीरे-धीरे चल पड़ी। पर जल्दी ही गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। हर स्टेशन से कई अजनबी चेहरे गाड़ी में चढ़ते और उतरते। भारत ही संसार का सबसे अनोखा देश है। जहां पर इतनी विभिन्नता पाई जाती हैं। यहाँ पर हर तरह का मौसम पाया जाता हैं। प्राकृतिक सौंदर्य तो द...
मेरा पहला सावन
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मेरा पहला सावन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह पिछले दो दिनों से उदास थी। माँ भी बेटी के कारण परेशान थी। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। क्यों बेटी, क्या बात है? झुमरी की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। यह आंसू खुशी के थे। वह शर्माते-शर्माते बोली, माँ उनकी बहुत याद आ रही हैं। माँ झुमरी की बात सुनकर हँसे बिना ना रह सकी। क्या सचमुच झुमरी? झुमरी आगे कुछ ना बोल सकी। वह चुपचाप दौड़तीं हुई अपने कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। माँ बहुत हैरान थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि उसकी बेटी पागल हो गई हैं। इतने समय बाद अपने घर आई है। पर उसका मन कहीं----। फिर वह खुद के ही माथे पर हाथ मारकर हँस पड़ी। झुमरी शादी के बाद से बहुत खुश रहती थीं। यहाँ आने का तो नाम तक नहीं लेती थीं। ऐसा भी क्या, पति मोह! वह झुमरी के कमरे के पास जाकर खड़ी हो गई। वह उ...
कांटो की चुभन
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कांटो की चुभन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** कुसुम का रो-रो कर बुरा हाल था। सुबह से ही सारा परिवार गम में डूबा हुआ था। पतिदेव मुझें बार-बार समझा रहे थे। अब रोने से कुछ नहीं होगा। जल्दी चलने की तैयारी करो। लंबा सफर है बंटी की तबीयत बिगड़ गई हैं। जल्दी करो गाड़ी आ गई हैं। सफेद रंग की कार देखकर मेरा माथा ठनक रहा था। कहीं कोई अपशगुन तो नहीं हो गया। पता नहीं बंटी को क्या हो गया हैं? परसों ही तो मुझसे मिलकर गया था। उस समय वह बिल्कुल स्वस्थ लग रहा था। रुपयों के लेन-देन को लेकर कुछ कहा-सुनी हो थी इनसे। मुझें दोनों ने ही कुछ भी नहीं बताया था। बंटी से पूछने की हिम्मत नहीं थी। और ये तो कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे। जब इनसे बातचीत करने की कोशिश की तो सिर्फ इतना ही बोले थे। धन-दौलत, पैसा,जमीन-जायदाद बड़ी खराब चीज होती है। किसी के पास ज्यादा हो तो परेशानी, ना हो तो भी परेशानी। आखिर एकाएक...
जीवन के रंग
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जीवन के रंग

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीरा का रो-रो कर बुरा हाल था। आज होली के दिन,उसके परिवार पर ये कैसी आफत टूट पड़ी थी? पूरे मोहल्ले में इसी परिवार की चर्चा हो रही थी। सभी नीरा को हौसला देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे। पर सब बेकार था। उसने अपना पति खो दिया था। वह उसे बार-बार होली खेलने से रोक रही थीं। पर गगन ने उसकी एक ना सुनी थी। उसे होली खेलने का बहुत शौक था। अब वह उसके सामने खून से लथपथ पड़ा था। उसे लाल गुलाल बहुत पसंद था। हाय! यह लाल रंग। यह गगन को बार-बार उठाने का प्रयास कर रही थी। सास ने उसे खींच कर सीने से लगा लिया। मेरी बेटी मत रो, यह भगवान की मर्जी है। भगवान को हम पर दया क्यों नहीं आई?नीरा रो-रोकर चिल्ला रहीं थीं। माँ का भी रो-रो कर बुरा हाल था। वह भी भगवान से पूछ रही थी? मेरा लाल, मुझसे क्यों छीन लिया? भगवान, मेरे लाल की जगह मुझें उठा लेता। तुझें मुझ विध...
सुंदर अहसास
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सुंदर अहसास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** विनीता रिक्शा में नए घर की तरफ जा रही थी। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था किसी की निगाहें उसका पीछा कर रही है। वह भी चाहती थी कि एक बार पलट कर देख लें। पर पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मान रहा था? वह रिक्शा वाले से बोली, भैया थोड़ा जल्दी करो। मौसम खराब हो रहा है। ऐसा लग रहा है कोई तूफान आने वाला है। नहीं-नहीं, यह बस तेज हवाएं हैं। आप यहां पर नई है ना। इसलिए यहाँ के मौसम से अनजान हैं। यहाँ, मौसम पल-पल बदलता है। मेरा मतलब यह नहीं था। मैडम पहाडों में तो इस तरह की तेज हवाएं चलती रहती हैं। कभी-कभी तेज हवाओं के साथ तेज बौछारें भी हो जाती हैं। तभी तो यहाँ पर दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं। इस शानदार मौसम का आनंद लेते हैं। विनीता, को वह रिक्शावाला कम, गाइड ज्यादा लग रहा था। वह पूरे रास्ते उसे पहाड़ियों के बारे में ही बताता रहा था। उसका सफर भी आराम ...
बेजुबान
लघुकथा

बेजुबान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटी, काजल तुम बहुत उदास रहने लगी हो। बेटी अब तुम इस घर में कुछ ही दिन की मेहमान हो, बस बीस दिन और। तुम हमेशा-हमेशा के लिए पराई हो जाओगी। माँ, बोले जा रही थी। पर काजल एकदम चुप्पी साधे बैठी थी। वह माँ की बातों से पूरी तरह अनजान थी। अच्छा बेटी, समझदार बनो। उदासी से काम नहीं चलेगा। वह काजल के सिर पर हाथ फेर कर कमरे से बाहर चली गई। जबसे काजल का रिश्ता हुआ है, उसे फुर्सत ही कहाँ थी? शादी से जुड़े कामों में वह बहुत बिजी रहती थी। वह अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। एक-एक समान अपनी पसंद का खरीद रही थीं। चाहें कपड़े हो, आभूषण हो या जरूरत की वस्तुएं। सभी चीजों का चुनाव वह बड़ी तन्मयता से कर रही थीं। हर माँ को इसी तरह की चिंता होती है। तो वह इसमें नया क्या कर रही थी? वह खुद से कह रही थी। वह बीच-बीच में थोड़ा आराम भी कर लि...
निदान
लघुकथा

निदान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** मम्मी, आप इतनी चिंता क्यों कर रही हो? बेटी चिंता क्यों ना करूँ? मम्मी क्या चिंता करने से मेरी शादी हो जाएगी? बेटी, कह तो तुम ठीक रही हो, पर क्या करूँ, माँ हूँ ना? माँ, हो तभी तो कह रही हूँ। तुम चिंता मत करो। जिया की माँ, कहाँ खोई हुई हो? आओ बहन, बैठो। बस बेटी की चिंता खाए जा रही हैं। क्या हुआ एकाएक जिया की चिंता? हाँ, बहन तुम्हारी बेटी नहीं है ना। तुम्हें क्या पता बेटी की चिंता क्या होती हैं? हाँ, बहन, तुम ठीक कह रही हो। बेटों की तो कोई चिंता ही नहीं होती। मैंने अपने बेटे को खूब पढ़ा-लिखा दिया हैं। पिछले दो साल से मेरा बेटा सरकारी नौकरी के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। हमारे पास जमीन-जायजाद भी नहीं है। मैंने तो सारी जिंदगी इस कच्चे मकान में निकाल दी। आगे वह कुछ ना कह सकी। बहन, चिंता ना करो, तुम्हारा बेटा सुमित,बहुत मेहनती हैं। उसे...
इंसानियत
लघुकथा

इंसानियत

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आखिर तुम समझती क्यों नहीं? क्या समझूँ, तुम खुद को बड़े समझदार मानते हो? पत्नी की आँखों में गुस्सा साफ झलक रहा था। क्या किसी की मदद करना गलत हैं? ये मदद करना नहीं होता, सुरेश। ये तो मौत को अपने पास बुलाना होता। जब गाँव का कोई आदमी उसकी लाश को हाथ लगाने को तैयार नहीं था, तो तुम क्यों जिद्द पर अड़े हुए थे। तुम्हें पता है, सुरेश उसकी मौत कोरोना महामारी से हुई। फिर भी तुम.....। क्या तुम्हें डर नहीं लगता? हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं।तुम्हें कुछ हो गया तो। कोरोना छूने से फैलता है। अब बस भी करो, सुजाता। तुम कितनी मतलबी हो? वो एक लाश ही नहीं हैं। कुछ घंटों पहले जीती-जागती औरत थीं। जिसे तुम बार-बार लाश कह रही हो। उसने हमारी कितनी मदद की थीं? वो हमारी क्या लगती थीं? उसनें हमेशा इंसानियत के नाते, हमारी मदद की थीं। ठीक हैं, सुरेश मैं मानती हूँ। पर तुम...
नियति
लघुकथा

नियति

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता बाहर खड़ी आँसू बहा रही थी। सभी उसे मूक दर्शक बने निहार रहे थे। तभी एक कटु आवाज ने जैसे सारा सन्नाटा भंग कर दिया था।गीता, गीता अन्दर आ जाओ, वरना मुझसे बुरा कोई ना होगा। लोकेश उसे खींचते हुए अन्दर ले गया। और जमीन पर पटकते हुए उसे पीटने लगा। बाहर सिर्फ गली-गलोज और चिल्लाने की आवाज आ रही थी। अब तो यह हर रोज का काम हो गया था। पहले छोटी-छोटी बातों पर कह-सुनी होती, फिर हाथापाई होती। बीस साल पहले जब गीता विवाह करके इस घर में आई थी। तब किसने सोचा था कि यह रिश्ता इतना उलझ जाएगा? लोकेश को शराब पीने की बुरी लत तो शादी से पहले ही थी। पर शादी के बाद तो वह पूरी तरह से इस में डूबता जा रहा था। माता-पिता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था। वह अपने परिवार की एक नहीं सुनता था। जब भी कोई उसे समझाने की कोशिश करता, वह चुपचाप सुन लेता। गीता का पत्न...
हमारा लॉकडाउन
लघुकथा

हमारा लॉकडाउन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** पूरा शहर बंद हो गया था। पता नहीं महामारी से कब तक देश में लॉकडाउन रहेगा? वर्षा सब कुछ सुन रही थी पर चुप थी। उसका मन तो कर रहा था। इसे आज ही एहसास हुआ है कि लॉक-डाउन सुबह से चालू हो गया हैं। आज से सभी दुकानें बंद रहेगी। स्कूल, कॉलेज बंद रहेंगे।यात्रायात के सभी साधन बंद रहेंगे। घर में किस तरह रहेगा यह, बंद होकर इसकी अय्याशी जो बंद हो जाएगी। रोज की महफिले, वही दारू पीकर तमाशा करना। जिस महफिल में रोज मजा मारता है वह बंद हो जाएगा। कॉलेज भी बंद हो गया है, वह कर रहा था। बेटे की पढ़ाई का क्या होगा? साल खराब हो जाएगा। वर्षा मन ही मन सोच रही थी वैसे कौन सा बेटा पास हो जाएगा? वह भी तो बाप पर ही गया है। किताबे तो उसे हमेशा दुश्मन दिखाई देती है। मैं ही उसकी किताबों को समेटती रहती हूँ। किताबे तो ज्ञान का भंडार होती हैं। ऐसा ही कहते थे मेरे पिताजी। ...
बेबस
लघुकथा

बेबस

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आज, मेरा चिंटू नज़र नहीं आ रहा हैं, पापा ने ऑफिस से आते ही दीपा से पूछा? दीपा बिना कुछ कहें ही किचन में चलीं गई। वह बड़ा हैरान रह गया! उसे लगाआज जरूर "दाल में कुछ काला है"। दीपा, हाथ में चाय का कप लिए उसके सामने खड़ी हो गई। लो चाय, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। क्या हुआ, दीपा, कुछ कहोगी या नहीं? क्या कहूँ, आप पर तो किसी बात का कोई असर नहीं होता? वह चुपचाप सब सुन रहा था। अच्छा, छोड़ो क्या तुम मेरे साथ पार्क में चल रहीं हो? क्यों, क्या अब मेरी भी नाक कटवानी बाकी हैं? दीपा, क्यों छोटी सी बात को इतना बड़ा बनानें पर तुली हो? छोटी सी बात, सुबह चिंटू को रमेश जी, ने खूब खरी-खोटी सुनाई। तो क्या हुआ, वो हमारे पड़ोसी हैं, अगर बच्चे गलती करेंगे तो... वह इतना ही कह पाया था। दीपा, का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका चेहरा लाल हो गया, वह चिल्ला...
वह गाड़ी वाली लड़की
कहानी

वह गाड़ी वाली लड़की

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीना जी, आज आप बहुत उदास लग रही है। क्या कोई खास कारण है? आपका हँसता हुआ चेहरा, आज मुरझाया हुआ क्यों लग रहा है? मैंने आपको इससे पहले कभी इतना उदास नहीं देखा। क्या आप मुझें अपनी परेशानी बता सकती हैं? अरे, सुरेश जी आप तो यूँ ही इतने परेशान हो रहे हैं। मेरे चेहरे पर लंबे सफर की थकान है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। थोड़ा आराम कर लूँगी। फिर सब ठीक हो जाएगा। क्या हम शाम को मिल सकते हैं, सुरेश जी? जी जरूर, आपकी हर फरमाइश सिर-आंखों पर। अच्छा मैं चलता हूँ, फिर मिलेंगे। वह सुरेश को जाते हुए देखती रही, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया। सुरेश वर्षों से मेरे साथ हैं। यह साथ करीब-करीब बीस साल पुराना है। जब हम कॉलेज में पढ़ते थे। सुरेश हमेशा से ही मस्ती में रहता हैं। उसे तो सिर्फ मजाक करने का बहाना चाहिए। मुझें नहीं लगता वह कभी गंभीर भी होता हैं। म...
सच्ची समाज-सेवा
लघुकथा

सच्ची समाज-सेवा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** संध्या देवी सुबह से समारोह की तैयारी में जुटी थी। आज उनके अनाथालय में वार्षिक सामरोह का आयोजन हो रहा था। हर साल की तरह इस बार भी उनके काम को सराहा जा रहा था। वह अनाथालय को अपना दूसरा घर समझती थी। सारी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उनकी मर्जी के बिना यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनके प्रयासों से ही अनाथालय तरक्की कर रहा था।यहां पर हर तरह का प्रबंध था। चाहे महिलाओं की शिक्षा का सवाल हो या उनके स्वालम्बन का ही। संध्या देवी एक-एक काम पर बारीकी से नजर रखती थी। उन्हें अब भी याद है, जब इस अनाथालय की शुरुआत हुई थी। उस समय यहां छोटी सी जगह थी, दो कच्चे कमरे थे।गाँव के बाहर ही उन्हें छोटी सी जगह दी गई थी। गाँव वाले उनके विरुद्ध थे। क्योंकि अनाथालय को लेकर बाजार काफी गर्म था कि अनाथालय में सेवा के नाम पर गलत काम होते हैं। कुछ लोगों का मानना था कि ...
बस एक रात की बात
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बस एक रात की बात

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साक्षी सड़क के किनारे बने चबूतरे पर बैठी लगातार इधर-उधर देख रही थी, पता नहीं वह किसका इंतजार कर रही थी? पप्पू लगातार उसे देख रहा था, उसे देखकर पप्पू को अतीत की कुछ यादें स्मरण हो आई, जब पप्पू सोलह साल का था, वह घर से भागकर मुंबई जैसे शहर में आ गया था। उसके पास कोई ठोर ठिकाना नहीं था। उसे चारों तरफ इंसान ही इंसान दिखाई दे रहे थे। दिन हो या रात उसे भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी। वह मन ही मन में सोच रहा था, क्या यहाँ रात भी नहीं होती? रात को भी दिन से अधिक चकाचौंध रहती है। पर उसने सुन रखा था कि महानगरों में रात को भी लोग काम करते हैं। उनके के लिए दिन और रात एक समान होते है। पर हमारे गाँव में तो आठ बजे रात हो जाती है। पूरे गाँव में सन्नाटा पसर जाता है। आदमी तक दिखाई नहीं देता। वह अक्सर रात को घर से बाहर निकलने से घबराता था। वैसे भी उसे दाद...
प्रतिज्ञा
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प्रतिज्ञा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** शालिनी घर लौट रही थी। उसकी आँखे नम थी। कितनी खुश थी वह अपनी शादी को लेकर। पर यह शादी उसके जी का जंजाल बन गई थी।रोज का झगड़ा, हाथा-पाई तंग आ गई थी इससे। उसके सारे सपने बिखर गए थे। वह पढ़ाई में कितनी अच्छी थी। सारा कॉलेज उसकी प्रतिभा को लोहा मानता था। किसी विषय पर वाद- विवाद हो। उसे सबसे पहले चुना जाता था। यह सब गुण उसे अपने पापा से ही मिले थे। प्रतिदिन उसे दो घंटे अखबार पढ़ना अनिवार्य था। ध्यान लगाना उसके पूरे परिवार की दिनचर्या में शामिल था। प्रतिदिन अखबार पढ़ना, शुरू में उसे बोर करता था। उसका मन नहीं चाहता था। राजनीतिक खबरें उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। वह राजनीतिक विषय पर कुछ भी बोलने से कतराती थी। पर पापा को राजनीति की खबरें बहुत पसन्द थीं। रोज दफ्तर से आते एक कप चाय पीते और चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता। फिर तो समझो गए तीन-चार घंटे,...
बस एक चाहत
लघुकथा

बस एक चाहत

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************     चित्रा, दीदी मुझें जीजू बड़े अच्छे लगते हैं। अच्छा जी, मुझें तुम्हारे इरादे से ठीक नहीं लग रहे। रीता ने हँसते हुए कहा, दीदी सावधान हो जाओ। मैं जीजू को आप से चुरा लूँगी एक दिन। क्या तुम सच कह रही हो? कमल, तुम्हें इतने पसंद है। दीदी, उनकी हँसी बिल्कुल बच्चों जैसी हैं। कितने शर्मीले है, बोलना तो जैसे उन्हें आता ही नहीं है। रंग-रूप तो सभी को लुभाता है, पर मुझें तो उनका स्वभाव बहुत अच्छा लगता हैं। क्या बात जीजू का बड़ा बारीक अध्ययन हो रहा है? चित्रा बोलती जा रही थी। मैं मूक-दर्शक बनी उसे देख रही थी। वैसे भी दीदी बड़ी शान्त स्वभाव की है। हमेशा हम दोनों एक ही चीज की जिदद करती थी बचपन में, हम दोनों को एक तरह के कपड़े और खिलौने चाहिए थे। वह मुझसे दो साल छोटी थी। मम्मी बताती थी, जब मेरा स्कूल में एडमिशन करवाया गया था, तो उसमें रो-रो कर बुरा...
क्षतिपूर्ति
कहानी

क्षतिपूर्ति

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीतू ऐसा क्या हो गया हैं? जो नौबत यहाँ तक पहुँच गई है। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी, तुम्हारे साथ ऐसा हो सकता है। पति-पत्नी में कहा-सुनी होना कोई बड़ी बात नहीं है। हर घर में ऐसी स्थिति बन जाती है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक-दूसरे को छोड़ने को तैयार हो जाओ। तुम तो पढ़ी-लिखी हो, फिर तुमने समझदारी से काम क्यों नहीं लिया? पति-पत्नी दोनों को ही कुछ बातों को नकार देना चाहिए। इससे रिश्तों में दरार पड़ने से बच जाती है। माँ कहे जा रही थी। गीतू चुपचाप सुन रही थी। आखिर कब तक अपने संबंधों में दरार पड़ने से बचाती। मैं तो हमेशा ही सतर्क रहती थी। झगड़े की हर वजह को उसी समय नकार देती थी। ताकि झगड़ा किसी बड़े कलह का कारण ना बन जाए। वह अपनी माँ की इकलौती संतान थी। पिता जी माँ को अकेला छोड़ कर जा चुके थे। किसी नाचने वाली के चक्कर में। जब मै दस वर्ष की हुई ...
पड़ाव
लघुकथा

पड़ाव

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सरला बुआ आ रही है। बच्चों ने सारा घर सिर पर उठा रखा था। बच्चें हमेशा बुआ का इंतजार भगवान की तरह करते थे। करें भी क्यों ना? बुआ जब भी आती, बच्चों के लिए बहुत सा सामान लेकर आती। खिलौने, कपड़े, किताबें-कापी, पेंसिलें और कलर बॉक्स के डिब्बे। बुआ को हमारे घर की स्थिति का पूरा ज्ञान था। पापा मजदूरी करते थे। वह बड़े दब्बू-किस्म के इंसान थे। अगर उन्हें कोई थोड़ा सा भी झिड़क देता तो घर बैठ जाते थे काम छोड़कर। घर की कमजोर स्थिति भी उनसे छिपी ना थी। पूरा परिवार दया का पात्र था। पर पापा का दब्बूपन किसी से छुपा नहीं था। वह ढीले थे, काम इतना धीरे करते थे कि कोई भी मालिक उनसे खुश नहीं था। माँ उनके बिल्कुल विपरीत थी चुस्त-दुरुस्त। वह घर-घर जाकर सिलाई के कपड़े ले आती थी। बढ़िया सिलाई करती थी। नए-नए डिजाइन बनाती थी। आस पड़ोस के लोग उनके द्वारा सिले कपड़े...
अबला नहीं सबला
लघुकथा

अबला नहीं सबला

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सोनी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वह जोर-जोर से रोए जा रही थी। सभी इसका कारण जानना चाहते थे। पर वह चुपचाप आँसू बहा रही थी। रुखसाना इस दुनिया में होती तो अपनी लाडली को खुद ही संभाल लेती। पर जो चले जाते हैं वह देखने थोड़े ही आते हैं।सब जीते जी का झगड़ा है। मरने वाले का नाता इस संसार से तभी तक रहता है, जब तक तन में प्राण होता है। उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं। मरने वाले की अंतिम यात्रा शुरू हो जाती है। यह सब बातें ग्रन्थों में लिखी है। और संत महात्मा भी ऐसा ही बताते हैं। कल ही एक प्रचारक कह रहा था कि मरने के बाद आत्मा अपनी दूसरी राह पर निकल जाती हैं। यह यात्रा हजारों वर्षों तक चलती रहती हैं। फिर आत्मा का हिसाब-किताब होता है। फिर दोबारा जन्म होता है। मैं भी क्या लेकर बैठ गई? यह धर्म- कर्म की बातें हैं। यह कोई समय है इन बातों को क...
अजर-अमर
लघुकथा

अजर-अमर

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साधु राम नहीं रहे। सोनू का फोन सुबह ही आया था। मैं हैरान रह गया था। क्या बीमार थे, साधु राम जी? मैंने सोनू से पूछा। नहीं ऐसी कोई खास बात तो नहीं थी। आप तो जानते ही हो, सत्तर की उम्र में भी कितने फिट रहते थे? सुबह चार बजे ही सैर के लिए निकल जाते थे। पूरे दो घंटे बाद लौटते थे। इतनी लंबी सैर वही कर सकते थे। तभी तो उनकी रंगत गुलाब सी खिली रहती थी। एक दिन मुझें भी ले गए थे अपने साथ। मैंने तो कान पकड़ लिए थे। इतनी लंबी सैर भी कोई करता है। कहीं रुकने का नाम ही नहीं लेते थे। रुकते भी थे तो नीम की दातुन तोड़ने के लिए। नीम के पत्ते तो ऐसे चबाते थे जैसे बेर खा रहे हो। खूब चबा-चबा कर खाते थे। कड़वाहट का तो नामो निशान भी नहीं था, उनके गुलाबी चेहरे पर। मुझें भी दो-चार पत्ते पकड़ा दिए करते थे चबाने के लिए। ना चाहते हुए भी चबाने पड़ते थे। मेरा मुँह इत...
जिम्मेदारी
कहानी

जिम्मेदारी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** घर पर खुशियों का माहौल था। सभी ओर से बधाई मिल रही थी। रमेश और सुरेश ने अपनी माँ का नाम रोशन कर दिया था। उनकी सफलता का श्रेय उनकी माँ को जाता था। आरती देवी स्वभाव से बड़ी ही शान्त थी। वह बच्चों की सफलता का श्रेय उनकी मेहनत को ही देती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। बच्चे अपनी सफलता पर बेहद खुश थे। प्रतिदिन माँ के चरण छू कर अपने काम शुरू करते थे। आरती भी खुद को धन्य समझती थी।बिना पिता के बच्चे का पालन-पोषण करना कौन सा आसान काम था?वह अपने मालिक जय सिंह का धन्यवाद करती नहीं थकती थी। जयसिंह बड़े आदमी थे। उनका भरा-पूरा परिवार था। सुंदर पत्नी, बाल-बच्चे। वह कई कारखानों के मालिक थे। वह कमजोर तथा गरीबो की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहते थे। आरती का पति भी इनके कारखाने में काम करता था। उसने कभी पति का सुख नहीं देखा था। अपने घर पर भी घोर गरीबी देखी थी।...
बंदिशें
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बंदिशें

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उर्मि, तंग आ गई थी। सभी ने उसका जीना हराम कर रखा था। बात-बात पर टोका-टाकी उसे पसंद नही थी। पर परिवार था कि मानने को तैयार नहीं था। कोई ना कोई बहाना निकाल ही लेता था, उसे परेशान करने का। माँ तो जब देखो समझाने बैठ जाती थी। बेटी बाहर ना जाया करो, यहाँ ना जाया करो। आजकल पहले वाला जमाना नहीं है, लोग लड़कियों को भूखी नजरों से देखते रहते हैं। यहाँ इंसानों के भेष में राक्षस घूम रहे हैं। पर तुम मेरी बात सुनती ही कहाँ हो? एक हमारा जमाना था। क्या मान-सम्मान था, गाँव में लड़कियों का? गाँव की लड़की को सारा गाँव अपनी ही लड़की समझता था। मजाल है कोई किसी लड़की को छेड़ दे। बेटी, मैं तुम्हें बताती हूँ, एक कहानी जरा ध्यान से सुनना। क्योंकि तू हमेशा मेरी बातों को हल्के में लेती है। ठीक है माँ, कहो अपनी रामकथा, उसने चिल्लाकर कहा। यही रवैया तो सुधरना है मुझें ...
वनवास
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वनवास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** अवनी आज अपनी माँ से लगातार सवाल पूछ रही थी। यह अंकल कौन थे? बताओ ना माँ, आखिर कब तक तुम यूं ही घुटती रहोगी? क्या तुम्हें अपनी अवनी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? पापा को गुजरे बीस साल हो गए। कब तक उनकी यादों में खुद को डुबोकर रखोगी? आखिर कुछ तो कहो, माँ। देखो माँ तुम्हारे चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ रही है। कल को मेरी भी शादी हो जाएगी। मुझें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी कि वह अपने अतीत की छाया अपनी बेटी की जिंदगी पर नहीं पड़ने देगी। सब कुछ खत्म हो चुका था, फिर आज राजन क्यों लौट आया था, क्या पड़ी थी उसे? अवनी, माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ, शाम को आकर बात करते हैं। उसने जाते-जाते माँ को गले लगा कर चूम लिया था। मेरी प्यारी माँ नाराज हो अब तक, अच्छा अब मैं कुछ नहीं पूछूंगी? अब तो हँस दो माँ। बेटी का मन रखने के लिए ही सह...
मिलन
कहानी

मिलन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटा, तेरी डाक मेज पर रखी है। पता नहीं यह लड़का क्यों कागज काले करता रहता है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता। डाकिया भी रोज ही घर के चक्कर लगाता रहता है। कल ही तो कह रहा था, माँ जी प्रकाश को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक है। वह बहुत सुन्दर कहानी-कविताएं लिखता है। यह बहुत अच्छी बात है। अच्छा माँ जी अब मैं चलता हूँ। वह डाक में आए पत्रों को खोलकर पढ़ने लगा। ज्यादातर पत्रों में रचनाओं के प्रकाशन की सूचना थी और अति शीघ्र ही पत्रिका की प्रति भेजने का आश्वासन भी था। उसके मन को तृप्ति मिलती थी कि उसके लेखन का प्रयास सफल हो रहा हैं, चाहे धीरे-धीरे ही सही। उसने आखिरी पत्र भी खोल ही लिया।वह हैरान था यह पत्र उसे किसी मिस कविता ने एक सुंदर लेटर पैड पर लिखा था। पत्र में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थीं। उसे मेरी रचनाएँ बहुत पसंद आई थी। खासकर कहानियाँ जो पार...