Saturday, September 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: रमेश चौधरी

आजाद की गोली से
कविता

आजाद की गोली से

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** आजाद की गोली से, भगतसिंह की बोली से, भागे थे अंग्रेज... गांधी की राठी से। शत्रीय सीरवी के हल से, राणा की तलवार से, भागे थे अंग्रेज... जनता के अदम्मीय साहस से। रानी लक्ष्मी बाई की वीरता से, ठाकुर कुशाल सिंह की एकता से भागे थे अंग्रेज... बहादुर शाह ज़फ़र की अगवाई से। उधम सिंह के अदम्मिय साहस से, तात्या टोपे के बलिदान से, भागे थे अंग्रेज... मंगल पांडे के विद्रोह से। बिस्मिल और रोशनसिंह के नेतृत्व से, ब्रिटिश खजाना लूट से, भागे थे अंग्रेज... काकोरी काण्ड की बदौलत से। सुगाली माता के आर्शीवाद से, आई माता के परम धैर्य से, भागे थे अंग्रेज... मां भवानी की कृपा से। गर्व है हमे उन वीर माताओं पर, जिसने ऐसे शुरवीरो को जन्म देकर, सींचा है अपने रक्त के बलिदान से, मातृ भूमि की शहादत को। परिचय :- रमेश...
यह जिन्दगी है जनाब
कविता

यह जिन्दगी है जनाब

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** यह जिन्दगी है जनाब, ऐसे ही नहीं महकेगी, इन फूलों की खुशबू से फूलों की खुशबू से, महक सकता है वातावरण पर जिंदगी तो महकेगी इन काटो की सूलो से, यह जिन्दगी है जनाब तन मन को प्रसन्न कर देगे, यह फूलो की सुंदरता पर जिंदगी को प्रसन्न नहीं कर पाएंगे यह फूलो की कोमलता यह जिंदगी है जनाब इसे फूलों की शया से नहीं सवारी जा सकती है, इन्हें तो काटो की शया से सजाना होगा, यह जिन्दगी है जनाब, कभी तो खुशियां समाई नहीं जाती, कभी तो खुशियां मनाई नहीं जाती, यह जिन्दगी है जनाब, झाड़े की रजाई छोड़ के, सूर्य की गर्मी तोड़ के, खड़े हो जावो अपने सपनों पर, जब तक ना झुको तब तक सपने अपने न हो जाएं। यह जिन्दगी है जनाब, कभी अपनों की तनहाई सताएगी कभी इश्क के लम्हें तड़पपाएंगे, यह जिन्दगी है जनाब, यह रीट के ख़्वाब बोहत बड़े है, इसे पाने के लिए बोहत खड़े है, छोड़ दो...
अन्नदाता किसान
कविता

अन्नदाता किसान

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया, मैने पसीने की बूंदों से मिट्टी को सीचा है। में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया, मैने स्वयं को भूखा रक कर छत्तीस कौम के वासियों की जठराग्नि को शांत किया है। में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया, मैने ठाकुरों की सितियासी (८७) प्रकार की लाग-बागो को सहन करके मोती रूपी अन्न को उपजाया है। में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया, मैने लौह पिघलती हुई धूप में बंजर भूमि को स्वर्ग बनाया है। में ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहलाया, मैने सूरज के जगने से पहले खुद को जगाया है। अपने लिए नहीं अपने देश वासियों के लिए अपने देश वासियों के लिए.....। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान) शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
मां पर कविता लिख सकूं
कविता

मां पर कविता लिख सकूं

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** में कवि हूं मेरी कलम में इतनी ताकत है कि, में दुनियां का बखान कर सकूं। परंतु मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं है की में मां का बखान कर सकूं। में कर्जदार हूं मां के उस अमृत का, में कर्जदार हूं मां के उस आंचल का में अपनी कलम से भी नहीं उतार सकता हूं उस कर्ज को। में नमन करता हूं उस मां सुभद्रांगी को, में नमन करता हूं उस मां जेवंताबाई को , में नमन करता हूं उस मां हीराबेन को, जिसने ऐसे शूरवीरों को, जन्म दिया हो। मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं है कि में मां पर कविता लिख सकूं। ...... मां पर कविता लिख सकूं।। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान) शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
गावों की गलियां
कविता

गावों की गलियां

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** शहर को छोड़ कर आज आया हूं गावों की गलियों में। गलियों की दीवारों को देख कर, बचपन के शरारती दिनों की यादें ताजा हो गई हैं। गलियों को देखकर याद आ गए वो दिन, जब में नंगे पाव भागता था इन गलियों में, शोर मच जाता था इन अरियो में, जब मां डंडा लेकर भागती थी पीछे, कान पकड़कर लाती थी नीचे, जब चलता हूं गलियों में तब आती है महक इन गलियों की तब दिल रोता है जोर से क्यू चला गया मैं गावों की गलियों को छोड़ कर इन शहरों की आबाद गलियों में। शहर को छोड़ कर आज आया हूं गावों की गलियों में। खेतो में लहराती इन फसलों को देखकर मानो स्वर्ग का एसास हो रहा हो, रग बिरंगी उड़ती हुई तितलियां, मानो स्वर्ग की परियों का एसासा करा रही हो आज दिल बोहत खुश है मैने शहरों की आबाद गलियों को छोड़ कर गावों की गलियों में आया हूं। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान)...
में इतिहास हूं
कविता

में इतिहास हूं

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। मैने शूरवीरों के रक्त से, सिचा है इस इतिहास को। में अफवाहों का पुंज नहीं, सत्य घटनाओं का कुंज हूं। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। में उन पड़ावों ओर कोरवो की गाथा का बखान करता हूं। में उन यशोदा के लाल की गीता का बखान करता हूं। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। मैने महान शासक चंद्रगुप्त मौर्य को, राज सिहासन पर बैठते हुए देखा है। मैने सिकंदर को, शुरवीरो की धरती से, वापस लौटते हुए देखा है। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, मे इतिहास हूं। मैने मेवाड़ के शेर से, अकबर को धूल चाटते हुए देखा है। मैने रानी पद्मिनी की चतुराई से, अलाउद्दीन खिलजी की मूर्खता को देखा है। मुझे ऐसे ही नहीं किया जाता, में इतिहास हूं। आजाद की गोली से, गौरो को डरते हुए देखा है। मैने गांधीजी की...
शिक्षा का मन्दिर
कविता

शिक्षा का मन्दिर

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जहा में ज्ञान दिया करती थी, वहा में बेसहारों को साहारा देती रही। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जो चावल में अपने लाडलो को ना खिला सकी, वो मैने बेसाहरो को खिलाया है। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जो शिक्षा के गुरु कहलाते थे, वो कोरोना योद्धा बने अपने लिए नहीं, अपने देश वासियों के लिए। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। मैने अपना कर्तव्य छोड़ा, इस कोरोना को हराने के लिए। तुम भी अपना कर्तव्य निभाओ, इस कोरोना को हराने के लिए। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जहां मैं जंजीरों से बंधी हुई थी, फिर भी में अपने लाडलो को ऑनलाइन शिक्षा देती रही। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बन...
पहली बारिश
कविता

पहली बारिश

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। बारिश की बूंदों से टपकता हुआ वह मोती मानो एक नई उम्मीद लाई है। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। गावों की मिट्टी महक उठी है, शहरों की गलियां चहक उठी है, बच्चो के चेहरे खिल उठे है। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। बूंदों के ऊपर बूंदे इस कदर समा रही है, मानो दरिया बना रही हो। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। अन्नदाता पेनी नजरो से इस कदर मुझे ताक रहा है, मानो मैने उससे बेवफ़ाई की हो। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। कोयल मधुर गीत से कर रही है मेरा आलीगन, मोर नाच कर कर रहा है मेरा स्वागत। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी - पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...