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Tag: रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’

आम को इमली बताने आ गए
ग़ज़ल

आम को इमली बताने आ गए

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** ज़लज़ला दिल में मचाने आ गए जाम आँखों से पिलाने आ गए आम को इमली बताने आ गए ह़क़ ग़रीबों का चुराने आ गए है नहीं ईमां बचा दिल में ज़रा झूठ के किस्से सुनाने आ गए बेच कर अपने वतन की आन को मूर्ख जनता को बनाने आ गए कब समंदर से बुझी है तिश्नगी लब के साग़र में डुबाने आ गए साग़र-जाम रह न पाए वे हमारे बिन तभी शाम को मिलने मिलाने आ गए क़त्ल करते हो स्वयं ऐ दिलरुबा ख़ून फिर मुझ पर लगाने आ गए माँ के आँचल में पला खुद ईश है हम वहीं सिर को झुकाने आ गए अम्न की बातें न जिनको हैं पसंद अब्र वे अंबर पे छाने आ गए क़ह्र कम होता न *रजनी* पे कभी नैन से नैना लड़ाने आ गए परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मति...
थाती
लघुकथा

थाती

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** दीपावली हेतु सफाइयाँ जोर-शोर से चल रही थीं। पुराना सामान हटाते-हटाते अचानक सुधा के हाथ में एक मखमली लाल थैला लग गया। मानो उसके हाथ में यादों का पुलिंदा ही आ गया हो! नन्हें-नन्हें कपड़े, छोटे-छोटे कुछ टूटे-फूटे खिलौने, कुछ छिली-अधछिली पेंसिलें, रंग बिरंगी चौक के टुकड़े, कुछ ट्रॉफियाँ और न जाने कौन-कौन-सी "थाती" सहेज कर रखी थी अपने चारों चहेते बच्चों की, सब एक चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घूम गया और वह ममता के सागर में गोते लगाने लगी! परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट...
कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी
ग़ज़ल

कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२ कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी हँस के पहनो तो हँसी है जिंदगी तिश्नगी से ही भरी है ज़िंदगी पूछो मत कैसे कटी है ज़िंदगी मुफ़लिसी में तो खली है ज़िंदगी सबके क़दमों में गिरी है ज़िंदगी ख़ूबसूरत शेर हैं सब इसलिए मेरी ग़ज़लों में ढली है ज़िंदगी काम आए जो वतन के वास्ते सच कहूँ तो बस वही है ज़िंदगी शाम ढलती है न ढलती रात है बिन पिया के यूँ खली है ज़िंदगी प्यार से जग जीत लो "रजनी" कहे चार दिन ही तो मिली है ज़िंदगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन...
छप्पय छंद
छंद

छप्पय छंद

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** छप्पय छंद विधान - एक रोला छंद + एक उल्लाला छंद रोला छंद - ११, १३ की यति से चार पंक्तियाँ, दो-दो पंक्ति तुकांत, विषम चरणान्त गुरु लघु से, सम चरण आरंभ त्रिकल (लघु गुरु हो तो अति उत्तम) से तथा अंत चौकल से उल्लाला छंद - १३-१३ की यति से दो पंक्तियाँ, दोनों तुकांत, चार चरण प्रति चरण १३ मात्रा (दोहा का विषम चरण), ११ वीं मात्रा लघु अनिवार्य १ चलूँ पकड़ कर बाँह, चपल हैं बेटे प्यारे। ममता की है छाँव, नयन के मेरे तारे।। बेटी पर अभिमान, जलातीं दो कुल बाती। करूँ हृदय भर प्रेम, सहेजें मेरी थाती।। माँ दुर्गा रक्षा करें, पूरा यह वरदान हो। चाह रही रजनी यही, खिली सदा मुस्कान हो।। २ प्रतिपल देना साथ, सदा तुम दुर्गा माता। गणपति भी हों संग, रहें अनुकूल विधाता।। व्यक्त करे आभार, कहाँ तक रजनी कितना। सागर में है नीर, समझ लें सादर इतना।। ...
तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा
ग़ज़ल

तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ********************           २१२ २१२ २१२ २१२ तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा दिल तुझे ही न पाए तो क्या फायदा बाग़बाँ के लिए लाख कलियाँ खिलीं लूट भँवरा ले जाए तो क्या फायदा आपने प्रेम से मुझको देखा नहीं सारी दुनिया बुलाए तो क्या फायदा मैं तो .मसरूर तेरी मुहब्बत में हूँ तू न रग़बत दिखाए तो क्या फायदा देश बरबाद करते रहे लोग जो उन पे हीरे लुटाए तो क्या फायदा आज कातिब ही ग़ालिब हुआ है यहाँ सत्य लिखना न आए तो क्या फायदा ख़ूब साक़िब ने देखा मुझे ग़ौर से फिर भी रजनी न भाए तो क्या फायदा शब्दार्थ मसरूर- प्रसन्न रग़बत- दिलचस्पी कातिब- लिखने वाला ग़ालिब- छाया हुआ साक़िब- चमकता तारा परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व...
घिरी मझधार में नैया
ग़ज़ल

घिरी मझधार में नैया

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ घिरी मझधार में नैया मुसीबत ने भी मारा है सुनो हे मातु नवदुर्गा तुम्हें मैंने पुकारा है सजाऊँ माँग में बेंदी दमकती नाक में नथुनी चुनर है लाल तेरी माँ सितारों से सँवारा है गले में हार है शोभित लिए हो हाथ में खप्पर बजे जब पाँव में पायल लगे सुंदर नज़ारा है बड़ा हूँ पातकी बालक सदा करता हूँ नादानी करो उद्धार माँ अब आपका ही इक सहारा है तुम्हारे ही सहारे है भवानी अब मेरी कश्ती करो अब पार रजनी को नहीं दिखता किनारा है परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाश...
चंद्रमा की रोशनी में
ग़ज़ल

चंद्रमा की रोशनी में

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२ काफिया- 'आ' स्वर वाले शब्द रदीफ़- रुक जाएगी चंद्रमा की रोशनी में हर अमा रुक जाएगी शब भी ये सब देखने को बाख़ुदा रुक जाएगी इश्क़ में रुकते नहीं आशिक़ क़यामत तक यहाँ साथ साजन का मिले तो हर क़ज़ा रुक जाएगी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतना ही है ये जान लो फ़ासले रिश्तों में हों तो हर दुआ रुक जाएगी ग़र करोगे बंदगी माँ चरणों की ईमान से तो यकीनन ज़िंदगी की हर बला रुक जाएगी है बहुत ही नेक यह फ़रमान इस सरकार का जो सफ़ाई से रहोगे तो वबा रुक जाएगी यदि सनातन सभ्यता की सीख पर तुम ध्यान दो फिर तो सारी पश्चिमी ये बद हवा रुक जाएगी कह रही 'रजनी' इसे तुम अब गिरह में बाँध लो ईश के आगे झुकोगे तो सज़ा रुक जाएगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्त...
हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे
ग़ज़ल

हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुनहरी शोख़ियों की हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे तुम्हें जाने-जिगर दे दे के हम आवाज़ ढूँढ़ेंगे दिए हमने जलाए हैं किसी के इश्क़ में अक़्सर उन्हीं में रोशनी का हम सनम आग़ाज़ ढूँढेंगे ये नादाँ दिल कभी सुनता नहीं मेरी सदा अब तो मेरे दिलदार तुममें ही सदा हमराज़ ढूँढ़ेंगे चले आओ सनम तुम अब हमारे पास होली पर कि रँगने का तुम्हें बेहद नया अंदाज़ ढूँढ़ेंगे तुम्हारे इश्क़ में कितनी हुई 'रजनी' ये दीवानी बताने को तुम्हें हम यह नये अल्फ़ाज़ ढूँढ़ेंगे परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहण...
प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा
चौपाई, छंद

प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा। सर्वप्रथम हो उनकी सेवा।। संकट टालो अतिशय भारी। हनुमत आई शरण तिहारी।। सबका मंगल करने वाले। मुझको अपने चरण बिठा ले।। तुलसी कृत मानस है भाती भक्ति-सुभाव हृदय में लाती।। मानस में वर्णित चौपाई। उर में श्रद्धा बहु उपजाई।। मातु पिता की महिमा गाई। गुरु के चरण बहुत सुखदाई।। प्रेम करें सब भाई-भाई। सकल विश्व पूजित रघुराई।। कैकेई ने प्रभु को माना। राह सुगम की वन को जाना।। तज महलों को सीता माता। संग पिया का अति मन भाता।। उर्मिल सहती थी दुख भारी। रहें कर्म-पथ लखन सुखारी।। निज इच्छा से प्रभु की सेवा। राम सकल जग के हैं देवा।। सीख भरत से यह हम लेते। प्रभु के चरण परम सुख देते।। प्रातः वेला अति मनभायी। पुण्य प्रताप मधुर रसदायी।। राम नाम अति मंगलकारी। प्रमुदित हो लेते नर-नारी।। धन्य-ध...
दीपावली पर्व पर
दोहा

दीपावली पर्व पर

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** धन की सुखवर्षा सदा, करना आप कुबेर। प्रभु मेरी विनती सुनो, लगा रही हूँ टेर।। पूज रहे सब संग में, लक्ष्मी और गणेश। हो वर्षा सौभाग्य की, करें कुबेर प्रवेश।। नरक चतुर्दश पर रहें, दुख कोसों ही दूर। माँ लक्ष्मी की हो कृपा, हम सब पर भरपूर।। हनुमत का है अवतरण, नरक चतुर्दश- वार। बल विद्या अरु बुद्धि के, भरते हनु भण्डार।। दुःख सहें कन्या बहुत, थीं षोडशः हजार। नरकासुर को मार कर, दिया कृष्ण ने तार।। शिव चतुर्दशी पर मनुज, शिव को करो प्रणाम। पंचामृत अर्पण करो, गौरा का लो नाम।। मना रहे दीपावली, गणपति का ले नाम। नारायण के संग में, रमा विराजें धाम।। महामयी ममतामयी, माँ की कृपा महान। आओ घर में आप माँ, देने को वरदान।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती र...
बेटी की विदाई
गीत

बेटी की विदाई

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** रोता है घर का हर कोना, ध्वनि मद्धम है धड़कन की। खाली पिंजड़ा छोड़ गई है, सोन चिरैया उपवन की।। कोमल-कोमल उन हाथों में, स्वप्न सुनहरे सजते थे। नन्हें- नन्हें पग में घुँघरू, कितने सुंदर लगते थे। छम छम छम छम जब चलती थी, अतुलित शोभा लटकन की। खाली पिंजड़ा...... मेरी बेटी माँ जब कहती, टूटी-फूटी भाषा में। कथा कहानी लोरी सुनती, गढ़ती निज अभिलाषा में। खेल रसोई का जब खेले, खटपट करती बरतन की। खाली पिंजड़ा...... लाडो मेरी बड़ी दुलारी, मेरे मन की रानी है। आज विदाई की वेला में, इन आँखों में पानी है। सदा नहाओ दूधों-पूतों, वर्षा होए अति धन की। खाली पिंजड़ा...... खड़ा किनारे बाबुल अपनी, आँखें कहीं भिगोता है। और कहीं भीगी पलकों से, भाई मुखड़ा धोता है। सखी सहेली बहने सारी, खनखन करतीं कंगन की। खाली पिंजड़ा...... गले लगाकर दादा रोएँ, द...
बाज कनखियों से है झाँके
गीत

बाज कनखियों से है झाँके

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** बाज कनखियों से है झाँके, सोन चिरैया उपवन की। भोर हुई तब चिंतातुर हो, कली बिखरती यौवन की।। दौड़ रहे सूरज के घोड़े, लू की वर्षा करते हैं। नीम निहारे बेचैनी से, झर-झर पत्ते झरते हैं।। पैनी हैं ये गर्म हवाएँ, काल बनी जो जीवन की। भोर हुई तब... भीगे हैं सोंधी मिट्टी सम, नैन बहाते मोती हैं। दूर कहीं चातक की आहें, नहीं चैन से सोती हैं। सूना है आँगन का कोना, आहट तो हो बर्तन की। भोर हुई तब... कहीं अमीरी इतराती है, कहीं गरीबी रोती है। सूखी अंतड़ियों में जाने, क्यों यह पीड़ा होती है। माँग रही है बेटी रोटी, आज कहीं पर निर्धन की।। भोर हुई तब... बाज कनखियों... परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवा...
जब मैं हुई बीमार
ग़ज़ल

जब मैं हुई बीमार

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ कभी जब मैं हुई बीमार बेटे काम आते हैं न होना माँ परेशाँ तुम यही कहकर लुभाते हैं बिना मेरे कहाँ ये सब कहीं आराम पाते हैं नहीं होते मगर नाराज़ चाहे हाँफ़ जाते हैं बनाते रोटियाँ बेडौल टेढ़ी या कभी मोटी न रहने दें मुझे भूखा क्षुधा मेरी मिटाते हैं निहारूँ जब कभी भी मैं बड़ा ही प्यार आता है निवाले तोड़कर मुझको वे ही खाना खिलाते हैं दवा खाओ चलो मम्मी सदा आवाज़ देकर वे समय अब हो गया हर पल यही मुझको बताते हैं न ख़ुद का होश है उनको न चिंता है उन्हें अपनी लगें चलने मेरी मम्मी इसी में दिन बिताते हैं ज़रा सी खाँस दूँ तो वे चले आते तुरत दौड़े कहो क्या हो गया मम्मी बड़ी चिंता जताते हैं तरस जाती है ये 'रजनी' बिठा लूँ गोद में उनको शिफ़ा मिल जाए अब मुझको यही बेटे मनाते हैं परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रि...
हुस्न देखा तेरा
ग़ज़ल

हुस्न देखा तेरा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** बहर - २१२ २१२ २१२ २१२ हुस्न देखा तेरा तो ठगा रह गया चाँद अपनी जगह पर खड़ा रह गया क़ह्र अँगड़ाइयाँ ख़ूब ढाती रहीं पास मेरे न कुछ भी बचा रह गया ज़ुल्फ़ तेरी घटा बन गई रात को दिल का आँगन यहाँ भीगता रह गया गिरह अनकही सी अधर ने कही बात जब आपको देखकर देखता रह गया कर रही आँख से जो इशारे सनम मैं तो तेरी अदा पर लुटा रह गया खिल रही है ये 'रजनी' सितारे लिए आसमां का भी दामन भरा रह गया परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindi...
आल्हा/ वीर छंद
छंद

आल्हा/ वीर छंद

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** वीर छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है, छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या लघु लघु गुरु (।।ऽ) या गुरु लघु लघु (ऽ ।।) से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है, इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं, कथ्य प्रायः ओज भरे होते हैं। सादर समीक्षार्थ प्रस्तुत है आल्हा छंद सर्जन में मेरा प्रयास :- भारत में व्यापार करेंगे, अंग्रेजों की थी यह चाह। सन सोलह सौ आठ रहा जब, पहुँचे सूरत बंदरगाह।। कूटनीति का लिया सहारा, भेद- भाव का बोया बीज। राजाओं के राज्य छीनकर, भूले अपनी सभी तमीज।। जुल्मों की आँधी बरपाई, करते रहते अत्याचार। अट्ठारह सौ सन सत्तावन, गूँजी भारत में ललकार।। खदेड़ना है फिरंगियों को, जन-जन की थी यही पुकार। आंदोलन को तेज करेंगे, किया देश ने तुरत विचार।। कफन ब...
हाथ में हाथ
ग़ज़ल

हाथ में हाथ

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** हाथ में हाथ का है सहारा मिला प्यार तेरा मुझे ख़ूब सारा मिला दर्द मेरे ज़ुदा हो गए हैं सभी जैसे डूबे को पल में किनारा मिला तू करे बेवफ़ाई या कोई सितम क्या कभी तुझको मैं ग़म से हारा मिला जो दग़ा तू करे ये भी अहसान है मान लो मैं मुक़द्दर का मारा मिला राज़ दिल में छुपाए ये पूनम खड़ी रात उसको भी जलता शरारा मिला परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों ...
बाल काव्य के अंतर्गत प्रस्तुत हैं कुण्डलियाँ छंद सर्जन
छंद, बाल कविताएं

बाल काव्य के अंतर्गत प्रस्तुत हैं कुण्डलियाँ छंद सर्जन

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** उठ कर देखो लाडले! आसमान की ओर। पक्षी कलरव कर रहे, खिली सुहानी भोर।। खिली सुहानी भोर, लालिमा नभ में छाई। अरुण रश्मियाँ साथ, उषा है लेकर आई।। अब तो रख दो पाँव, सहारे से वसुधा पर। रजनी बीती तात, लाडले देखो उठ कर।। होती है हर हाल में, मस्ती खूब धमाल। बाबा घोडा़ बन गए, चुन्नू करे कमाल।। चुन्नू करे कमाल, फटाफट चले सवारी। टिक-टिक की आवाज, कभी है चाबुक मारी।। मात- पिता को छोड़, खेलते दादा-पोती। दादी भी खुशहाल, देखकर उनको होती।। खाते हलुवा खीर जब, बचपन में हम साथ। रहे खुशी से झूमते, लिए हाथ में हाथ।। लिए हाथ में हाथ, दुलारें माता हमको। भर-भर कर आशीष, सदा देतीं वह सबको।। नाचें कूदें और, पिता से पैसे पाते। जाते फिर बाजार, वहाँ पर लड्डू खाते।। खाते हैं चुन्नू सदा, पूड़ी और पनीर। नहीं मिले उनको अगर, खो देते हैं धीर।। खो देते हैं धीर, धरा पर लोटे ज...
बड़ा आसान था गिरिधर
गीत

बड़ा आसान था गिरिधर

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बड़ा आसान था गिरिधर, बता दिल तोड़ कर जाना! मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? दर्द यमुना का तो सुनते, कदम के शूल तो चुनते। तजा पनघट तजी राधा, तजा सारा वो याराना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बजी वंशी बहुत प्यारी, लगे चितवन बड़ी न्यारी। उसे भी छोड़ बैठे तुम, किसे दूँगी मैं अब ताना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? तड़प कर गोपियाँ रहतीं, विरह कैसे भला सहतीं? चमन के पुष्प हैं सूखे, कहें तितली नहीं आना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? कुँआ भी प्यास का मारा, हृदय मेरा रहा खारा। नयन से मोतियाँ बिखरीं, धरा पहने तरल बाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बिछायी द्यूत की क्रीड़ा, सही जाये न यह पीड़ा। कहूँ कैसे बनी धीरा, यही तुमको है समझाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला ...
‘रजनी’ के सप्तवार के दोहे
दोहा

‘रजनी’ के सप्तवार के दोहे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** रविवार असुरारी अमरेश हरि, दिनकर रवि आदित्य। अरुण सदृश ले सारथी, प्रातः आते नित्य।। सोमवार ध्यान करे शिव नाम का, सोम दिवस जो भक्त। ओंकारा के जाप में, रहे भाव अभिव्यक्त।। मंगलवार संकट काटो हे प्रभो, मंगल मति संधान। शरण तुम्हारे आ पड़ी, रामभक्त हनुमान।। बुधवार बुद्धिप्रवर बुधवासरः, पूजूँ गणपति देव। मंगलछवि शुभदायकः, जपता उर अतएव।। गुरुवार गुरुवासर की रीति यह, जप लो गुरु का नाम।। संग विराजें हर घड़ी, नारायण उरधाम ।। शुक्रवार ध्यान रहे माँ-शक्ति पर, बाँधो वंदनवार। शुक्रवार की शुभ घड़ी, आई चल कर द्वार।। शनिवार नीलवर्ण घनरूप शनि, सुंदर पावन भव्य। भानुपुत्र सर्वेश घन, दाता अतुलित द्रव्य।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पत...
भारतीय नववर्ष
दोहा

भारतीय नववर्ष

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** नवल किरण धारण किए, आया है नववर्ष। सदा सहायक हों प्रभो, बना रहे उत्कर्ष।। नवल वर्ष में माँ करो, हम सबका कल्याण। हरो सकल संताप-दुख, हों हर्षित मन-प्राण।। आई विपदा अब टले, भागें सारे रोग। हिल-मिल कर हम सब रहें, बना रहे संयोग।। संकट भारी आ पड़ा, सकल विश्व है त्रस्त। कोरोना की मार से, सभी हुए भय- ग्रस्त।। नवल वर्ष की माँ मिले, यह अनुपम सौगात। हम सब मिल कर दे सकें, कोरोना को मात।। करो दया हे मातु अब, सब जन हों खुशहाल। हाथ पसारे हैं खड़े, माता तेरे लाल।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- रा...
नववर्ष पर ‘रजनी’ के दोहे
दोहा

नववर्ष पर ‘रजनी’ के दोहे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १ स्वागत नूतन वर्ष का, भले विदेशी चाल। वसुधा ही परिवार है, रहें सभी खुशहाल।। २ बदल गया है साल फिर, मत बदलो तुम यार। संग तुम्हारे ही बँधी, जीवन की पतवार।। ३ देते रहना तुम पिया, साथ साल दर साल। मिले तुम्हारे संग में, खुशी मुझे हर हाल।। ४ नए साल में कर रही, प्रियतम यह मनुहार। बाँह तुम्हारी थाम कर, करूँ प्रेम विस्तार।। ५ नवल वर्ष में माँ करो, हम सबका कल्याण। हरो सकल संताप- दुख, हर्षित हों मन-प्राण।। ६ आई विपदा अब टले, भागें सारे रोग। हिल- मिल कर हम सब रहें, बना रहे संयोग।। ७ संकट भारी आ पड़ा, सकल विश्व है त्रस्त। कोरोना की मार से, सभी हुए भय-ग्रस्त।। ८ नवल वर्ष की अब मिले, यह अनुपम सौगात। हम सब मिल कर दे सकें, कोरोना को मात।। ९ करो दया अब मातु तुम, सब जन हों खुशहाल। हाथ पसारे हैं खड़े, माता तेरे लाल।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्र...
रजनी के दोहे
दोहा

रजनी के दोहे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १ तुमसे है माँ शारदे, बस इतना- सा काम। रचना मैं करती रहूँ, लेकर तेरा नाम।। २ रचना के भीतर बसें, सदा हमारे इष्ट। चले तीव्र जब लेखनी, कटें हमेशा क्लिष्ट।। ३ रचना के भीतर बसे, ऐसा सदा विचार। जनमंगल की भावना, उर में करे विहार।। ४ रचना रसना एक- सा, करतीं सदा प्रहार। इनसे बचना है कठिन, ऐसा इनका वार।। ५ रचना रसना बन कभी, करती जब ललकार। बड़े- बड़े जो सूरमा, गिरें पछाड़ी मार।। ६ रचना की माया महा, गाते सूर कबीर। इसमें मीरा की व्यथा, झाँके बनकर पीर।। ७ रचना के हित कर दिया, रत्ना ने दुत्कार। तुलसी से हमको मिला, मानस का उपहार।। ८ रचना रचना से जले, यही आज की रीति। रचना रचना से करे, कहाँ यहाँ पर प्रीति।। ९ बैठी रचना की सभा, कविवर हाँकें डींग। घूमें सब पण्डाल में, यथा गधे बिन सींग।। १० रचना तेरी चाकरी, करते सब विद्वान। तेरी महिमा से बनें, जग ...