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Tag: रंजना श्रीवास्तव

वज़न
कविता

वज़न

रंजना श्रीवास्तव नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की हिम्मत रखती हूँ, हवाओं के विपरीत चलने का जिगर रखती हूँ, इसलिए मैं भीड़ में अलग दिखती हूँ। खटकता है मेरा आत्मविश्वास और तड़पाती है मेरी ईमानदारी व सच्चाई, नहीं करने देती मनमानी। रोड़ा बन जाता है मेरा हुनर, परेशान करती है लोगों के बीच मेरी पहचान। हाँ !! अकेली ही स्वयं में पर्याप्त हूँ। भीतर बसा हुआ है मेरे भरा पूरा ज़माना। दिल से खिलखिलाती हूँ, बाँटती हूँ मुस्कुराहटें और खुशियाँ, पहचानते हैं कुछ काबिल लोग मेरी काबिलियत को। बस यही... बुरा लगता है कौरवों को और शकुनि के साथ मिलकर रचने लगते हैं चक्रव्यूह। स्वयं में कितने कमजोर हैं!! पैने झूठे वारों से खत्म कर देना चाहते हैं मिलकर मेरे आत्मविश्वास को, मेरे वजूद को। चतुरंगिणी सेना घेर लेती है चारों ओर से मुझे। अक्सर....
समाधान ढूँढने होंगे
कविता

समाधान ढूँढने होंगे

रंजना श्रीवास्तव नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** देश प्रेम स्वच्छता की आदत और एक स्वस्थ सोच, शिक्षा में क्रांति आवश्यक जो नैतिकता को दे ओज। सुविधासम्पन्न औलादें कर रहीं अनाज की बरबादी, वहीं गुज़र बसर मुश्किल हुई भूखी चौथाई आबादी। फोन से मन हटता नहीं दिन भर फोटो मैसेज कॉल, मुखिया भी न बच सके सपरिवार मानसिक फॉल। राजनीति के कूटनीतिक खेल में जातिवाद गहराया, सफलता क्यों न चूमें कदम मुफ्त अनाज बँटवाया। मानसिक स्वास्थ्य की किसे पड़ी कर्मसिद्धान्त छूटा, अस्मत को बर्बाद किया निर्भया को नोच-नोच लूटा। बस कार मोटर काला धुआँ बढ़ता जाए प्रदूषण, खाँस-खाँस अधमरे हुए सब घटता जाए जनजीवन। दिखावे का आवरण चढ़ा निज प्रशंसा बार-बार, संयमित जीवन जीने वाले सहज छोड़ते हैं घर बार। भौतिकतावादी संसार में क्यों बेवजह जश्न मनाना, शोर शराबा और भ्रम में जीना अच्...