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Tag: मुकेश सिंह

तुम फिर एक दिन मिलने आना
कविता

तुम फिर एक दिन मिलने आना

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** चाँद का चमकीला उजास, जगा रहा इस दिल की प्यास, फैला है ऐसा प्रकाश, जैसे मोती जड़े हों टिमटिमाते तारों पर, मन आज फिर खड़ा है़ यादों के चौराहे पर। मुझे न ये चाँद चाहिए न ये फलक चाहिए, मुझे तो बस तेरी एक झलक चाहिए, आज भींगी है पलकें फिर तुम्हारी याद में, काश! कुछ ऐसा होता की हम तुम होते साथ में। याद है जब आँखों में सजा के सपने, हम तुमसे मिलने आए थे, याद है क्या वो पल जब देख तुम्हें मुस्कुराए थे, वो पहली बार छुअन से मेरी तुम छुईमुई से शरमाए थे, धड़कनों में तुम्हारी बस हम ही हम समाए थे । याद है़ वो हाथों में हाथ लेकर, हम साथ-साथ थे टहले, पर अब तो ये कमबख्त दिल ए बहलाने से न बहले, तेरी लहराती जुल्फों ने मेरे मन को भरमाया था, पाया था सर्वस्व प्रेम का जब तुमने गले लगाया था। तुम्हारे बदन की खुशबू मेरी सांसों मैं समाई है, सपनों में तो जाने कित...
कोरोना से कर्मयुद्ध
कविता

कोरोना से कर्मयुद्ध

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** माना हालात अभी प्रतिकूल है, रास्तों पर बिछे महामारी के शूल हैं, घर पर बैठे-बैठे रिश्तों पर जम गई धूल है, पर ये युद्धकाल है, तू इसमें अवरोध न डाल, तू योद्धा है, चिंता न कर, होगी जीत न होंगे विफल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। माना आशाओं का सूरज डूबा, अंधकार का रेला है, ना डर अँधेरी रात से तू, आने वाली प्रभात की बेला है, तुझसे बँधी हैं उम्मीदें सबकी, सोच मत तू अकेला है, तू खुद अपना विहान बन, कर दे दस अँधेरे को विफल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। इस विपदा से जीत बस एकमात्र तेरा लक्ष्य हो, संकल्प कर, अपने मन का धीरज तू कभी न खो, रण छोड़ने वाले होते हैं कायर, तू तो परमवीर है, मास्क, सेनिटाइजर, हाथों की धुलाई और सामाजिक दूरी, ये तुम्हारे तरकश के चार तीर हैं, युद्ध कर तू है सबल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। हम...