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Tag: मीना भट्ट “सिद्धार्थ”

आहट
गीत

आहट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आहट सुनकर बौराती हूँ, तकती निशिदिन द्वार। तुझ बिन सूना घर आँगन है, लगता जीवन भार।। स्वप्न सजाए लाखों मैने, पुष्प बिछाये पाथ। प्यास बुझाने मेह बुलाए, लगा न कुछ भी हाथ।। बंधन सारे तोड़ चला तू, मानी मैंने हार।। कंचन थाली काम न आई, भूखा सोया लाल। यम ने बाहुपाश में बाँधा, बलशाली है काल।। नयनों से बस नीर बहे है, उर जलते अंगार।। तंत्र- मंत्र सब खाली जाते, आया है अवसाद। मुरझाई प्रेमिल बगिया है, शेष रही है याद।। फेंक मौत का जाल मौन अब, बैठ गया करतार। पीड़ा माँ की कौन जानता, जाने बस सिद्धार्थ। ममता ने दी बस आशीषें, भूलो मत तुम पार्थ।। मानव केवल दास नियति का, बात करो स्वीकार। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पा...
गुरुवर वंदना
गीत

गुरुवर वंदना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंतस में विश्वास भरो प्रभु, तामस को चीर। प्रेम भाव से जीवन बीते, दूर हो सब पीर।। मान प्रतिष्ठा मिले जगत में, उर यही है आस। शीतल पावन निर्मल तन हो, सुखद हो आभास।। कोई मैं विधा नहीं जानूँ, गुरु सुनो भगवान। भरदो शिक्षा से तुम झोली, दो ज्ञान वरदान।। शिष्य बना लो अर्जुन जैसा, धनुषधारी वीर। बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी, खोलो प्रभो द्वार। न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं, टूटे नहीं तार।। आप कृपा के हो सागर, प्रभो जीवन सार। रज चरणों की अपने देदो, गुरु सुनो आधार।। सेवा में दिनरात करूँ प्रभु, रहूँ नहीं अधीर। एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं, रचूँ फिर इतिहास। सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ, हो जग उजास।। ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो, कहें तीरथ धाम। रसधार बहादो अमरित की, जपूँ आठों याम।। दीपक ज्ञान का अब जला दो, ...
सृष्टि का आधार नारी
स्तुति

सृष्टि का आधार नारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नारी की पूजा करिए सब, वह परमेश्वर का वरदान। तन-मन करती सदा समर्पित, जननी प्रज्ञा को दो मान।। है आधार सृष्टि की नारी, करो सदा उसका सत्कार। दुर्गा काली है रणचंडी, नारी देवी का अवतार।। रानी लक्ष्मीबाई साहस, पराक्रमी दुर्गा पहचान। त्यागमूर्ति है वह करुणा की, बसती बच्चों में है जान।। जगजननी माता है नारी, पावन गंगा की है धार। प्रेम त्याग की वह है मूरत, जीवन का अनुपम शृंगार।। नारी धरती का है गौरव, देती सबको दुर्लभ ज्ञान। शत- शत नमन करो नारी को, नित करना उसका जयगान।। लक्ष्मी देवी नारी घर की, नहीं रही वह अबला आज। पुरुषों से भी वह है बढ़कर, उससे उन्नत लोक समाज।। जान देशरक्षा में देतीं , करती रहती हैं बलिदान। राह दिखाती है विकास की, सत्कर्मों की लौकिक खान।। चीर-हरण रोको नारी का, करते क्यों ह...
प्रीति गगरिया
गीत

प्रीति गगरिया

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीति गगरिया छलक रही है, भटक रहा हिय बंजारा। चातक मन निष्प्राण हुआ है, मरुथल है जीवन सारा।। प्रीत घरौंदा टूट गया है, करें चूड़ियाँ हैं क्रंदन। मौन पायलों की रुनझुन है, भूल गया है उर स्पंदन ।। कैद पड़ी पिंजरे में मैना, दूर करो अब अँधियारा। अवसादों में प्रीत घिरी अब, सहमी तो शहनाई है। कुंठित हुई रागिनी सरगम, प्रेम -वलय मुरझाई है।। अवगुंठन में छिपा चाँद है, पट खोलो हो उजियारा। जर्जर ये जीवन की नैया, हिचकोले पल -पल खाती। बहती हैं विपरीत हवाएं, भूले प्रिय लिखना पाती।। गूँगी बहरी दसों दिशाएँ, बहे आँसुओं की धारा। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
सवेरा
गीत

सवेरा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाग सखी री!उतर क्षितिज से आया सुखकर भोर। उदयाचल से झाँक रहा है, देखो शुभदे दिनकर। बादल अभिनंदन करते हैं, सूर्यदेव का हँसकर।। तुहिन कणों के अगणित मोती, बिखरे चारों ओर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर ।। देखो महकी सुभग वाटिका, लदी सुमन से डाली। पंचम स्वर में कूक रही है, कोयलिया मतवाली।। मन को आनंदित करता सखि! मधुप वृंद का शोर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। सरिता के तट चकवा चकवी, गीत प्रणय के गाते। बड़े सवेरे उठे बटोही, अपने पथ पर जाते।। नभ में ओझल हुआ सुधाकर, दिखता व्यथित चकोर। जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मो...
सुशोभित नभ
गीत

सुशोभित नभ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दिनकर सुशोभित नभ, धरा मोहित बड़ी हर्षित। ऊर्जा नई आई, हुए जलजात-सी सुरभित।। सुषमा निराली है छुअन अधरों रसीली भी। परिणय पलों की ये, तरणि -रति है छबीली भी।। अभिसार दृग करते, युगों से देख अनुबंधित। शृंगार लिखता कवि, सुमन कचनार-सा न्यारा। ये शिल्प लतिकाएँ, प्रणय विस्तार मधुधारा।। पिक गीत अनुगुंजित, हुए हिय भाव अनुरंजित। मन-मेघ कहते हैं, प्रगल्भित प्रीति पावन है। अबुंज नयन मंजुल, लगे प्रतिबिंब सावन है।। कलियाँ महकती-सी, खिला यौवन हुआ पुलकित। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
दीन-दुखी के अधरों पर अब
कविता

दीन-दुखी के अधरों पर अब

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दीन-दुखी के अधरों पर अब, सुख की मुसकानें रख आएँ। करें प्रेम की बरसातें हम, पावन धरती स्वर्ग बनाएँ।। जाति-धर्म का भेद मिटे सब, महके जीवन की फुलवारी। सद्कर्मों के मधुर बोध से, गुंफित हो ये दुनिया सारी।। छल-प्रपंच से नाता तोड़ें, मानवता की ज्योति जलाएँ। शील-त्याग की ध्वजा थामकर, मर्यादा की अलख जगा दें। सदाचार की गंग बहाकर, पथ-कंटक को दूर भगा दें।। नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, राग-द्वेष को दूर भगाएँ। संस्कार हो अंदर जीवित, कलुष विचारों को भी मारें। संतापों से पार लगाएँ, सत्य - अहिंसा की पतवारें।। आशाओं के दीप जलाकर, संकट से हर प्राण बचाएँ। बंजर धरती उगले सोना, यौवन फसल प्रेम की बोए। सकल विश्व में हो उजियारा, नींद चैन की दुनिया सोए।। मित्र भाव का शंख बजाकर, गुंजित कर दें दसों दिशाएँ। पर...
क्यों उजड़ा प्यारा कुंज
गीत

क्यों उजड़ा प्यारा कुंज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों उजड़ा प्यारा कुंज यह, रोती बैठी हीर अब। नैनों के निर्झर छलकते, कैसे रखते धीर अब।। चुभती गुंजारें भ्रमर की, बौरानी यह प्रीत भी। बागों की बुलबुल विकल अब, रूठे पावस गीत भी।। मायावी चलते चाल हैं, विश्वासों को चीर अब। मंजरियाँ सब मुरझा गयीं, काँपे कोमल गात भी। गिरगिट सा रंग बदल रही चादर ताने रात भी।। रूप बदल छलता चाँद यह, आँखों देखो नीर अब। ढाई आखर इस प्रेम से, चोटिल हर पल साँस है। करता क्रंदन मन मोर ये, टूटी जीवन आस है।। पगली हुई बंजारन भी, बिलखे अंतस पीर अब। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : से...
बनी पाँव में बेड़ी पायल
गीत

बनी पाँव में बेड़ी पायल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बनी पाँव में बेड़ी पायल, अब सिंदूर उदास। सभा मध्य रो रही द्रोपदी बस कान्हा ही आस।। पाँचों पति हो मौन देखते, चीर हरण का घात। दुष्ट दुशासन भूल चुका है, परिणामों की बात।। सभा मौन बैठी है सारी, टूटा है विश्वास। नारी को संपत्ति समझ कर, खेला चौसर दाँव। धर्मराज भी सबकुछ हारे, बचा नहीं हैं ठाँव।। बलि चढ़ती सब अधिकारों की, बस आँसू हैं पास। लक्ष्मण रेखा लाँघी सीता, हरण हुआ तत्काल। सदियों से है पीड़ा सहती, लिखा यही बस भाल।। देवी चंडी दुर्गा मानें, फिर क्यों देते त्रास। संस्कारों को भूल गये सब, खोयी है पहचान। लूट रहे हैं सतत उसे ही, करते नित अपमान।। सभी युगों की यही कहानी, बीते दिन अरु मास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सु...
धवल चाँदनी
गीत

धवल चाँदनी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धवल चाँदनी भी मुस्काती, रजनी भी इतराती है। मस्त मिलन की बेला आई, गोरी भी बलखाती है।। छेड़े जुगनूँ प्रीति रागिनी, दीपक आस जलाते भी। संदल खुशबू तन से आती, प्रियवर तुम्हें बुलाते भी।। अर्पित है ये जीवन सारा, साँस-साँस इठलाती है। कोण-कोण फैला उजियारा, झूम रही डाली-डाली। नभ में तारों की मालाएँ रात दिव्य प्रिय मतवाली।। तन-मन आकुल आलिंगन को, गोरी बात बनाती है। मधु-उत्सव की मदिर उमंगें, नेह नयन प्रिय बरसाते। प्रेम पालने उन्नत होते, रति जैसे हम मुस्काते।। चंदा भी अठखेली करता, निशा प्रेम की पाती है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री :...
चाल यम भी चल गया है
गीत

चाल यम भी चल गया है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाल यम भी चल गया है, वेदना की यह घड़ी, मोलतीं जो चूडियाँ हैं, आँसुओं की हैं झड़ी। प्रेम-पंछी उड़ गया है, रो रही है यामिनी, जाल मकड़ी ने बुना है, आह भरती मानिनी, नीम आहें भर रहा है, रो रहा बरगद छड़ा, ताल छाती पीटता है, हादसा है यह बड़ा, शब्द कुंठित हो गए हैं, लाश है घर पर पड़ी। चीखती हर साँस चिंतित, प्राण वह अनमोल था। माँग का सिंदूर चुप है, आस का भूगोल था।। चार कंधों का सहारा, और तन पर खोल था। मौत होनी है सचाई, जीवनी का मोल था।। क्यों गड़ी? कैसे गड़ी जो, कील आँखों में गड़ी। फिर विसर्जित पुष्प भी अब, देख गंगा धार में। बह गया है संग सब कुछ, हम खड़े मझधार में।। शेष कुछ यादें बचीं हैं, भीगते रूमाल में। चेतना सब खो गयी है, अंजुली के थाल में।। बोझ ये जीवन बना अब, है कठिन जुड़नी कड़ी। प...
अल्हड़ गोरी है शरमाई
गीत

अल्हड़ गोरी है शरमाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** काम-वाण मारे अनंग ने, अल्हड़ गोरी है शरमाई। गदराया यौवन कहता है, धरती पर पसरी फगुनाई।। मधुकर कर में रंग छुपाए, सुमन गाल पे छाई लाली। चंचल तितली झूम रही है, हँसती है गेहूँ की बाली।। प्रीति पलाशी ओढ़ चुनरिया, आई छत प्रणयी इठलाती। कजरारी आँखें फगुनारी, चले षोडशी भी बलखाती।। ढोल-मृदंग चंग बजते हैं,सुन कर बौराई अमराई। ठुमुक रही बागों में कोयल, हिरणी मस्त कुलाँचे भरती। प्रेम-गीत गुलमोहर गाता, तन-मन सरसों मोहित करती।। यौवन है छाया धरती पर, मधुमय चुम्बन देता महुआ। श्वासों में घुलता फागुन है, बहकी-बहकी सी है पछुआ।। अंतस् में खिलता सेमल है, हुई तरंगित है अँगनाई। फागुन की मस्ती में डूबे, जन-जन मार रहे पिचकारी। भीगी गोरी की चोली है, खिली प्रीति की अब फुलवारी।। ललचाता है काम देव भी, देख मदिर सतरंगी होली। भंग-व...
नटखट कान्हा बीच डगर
गीत

नटखट कान्हा बीच डगर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नटखट कान्हा बीच डगर, करता बरजोरी। डूब रही है श्याम रंग, ब्रज की भी छोरी।। शोर मचाती निकली है, मस्तों की टोली। कान्हा मारे पिचकारी, भीग गयी चोली। रंग की फुहारें चलतीं, जैसे हो गोली।। तन मन भी भीगा राधे, कैसी ये होरी। प्रेम रंग डालें कान्हा, छाईं है लाली। राधे मदहोश रंग में, मीरा मतवाली।। चुपके से आती ललिता, है भोली भाली। हँसी ठिठोली करतीं सब ब्रज की तो गोरी।। मनहर मूरत मोहन की, जादू है डाला। चंचल चितवन कान्हा के गले मणिक माला।। छैल छबीला रसिया है, गोकुल का ग्वाला। मोहित ब्रज की हैं बाला, पकड़ गई चोरी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
शिव शंकर भोले भंडारी
भजन, स्तुति

शिव शंकर भोले भंडारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शिव शंकर भोले भंडारी, भरते हैं भंडार । नीलकंठ कैलाश विराजे, देते वर उपहार।। हाथ रखें त्रिशूल हैं भोला, देते हैं सौगात। मोक्षदायिनी जटा जूट में, जैसे पुण्य-प्रभात।। शीश विराजत चंद्र प्रभो के, गल मुंडो की माल। तांडव जब करते शंकर हैं, काँपे फिर तो काल।। जीवन संगिनी पार्वती हैं, रहें नंदी सवार। प्रभु निष्कामी हैं अन्तर्यामी, त्रिलोकी महाकाल। सुखकारी हैं मंगलकारी, करते मालामाल।। बामदेव गंगाधर शंकर, त्रिपुरारी गिरिनाथ। भूतनाथ शशिशेखर देवा, रहें गणों के साथ।। व्योमकेश पशुपति पिंगल हैं, कर लो जयजयकार। ओम नमों का जाप करो सब, निराकार भगवान। सकल विश्व की रक्षा करते, ज्योति लिंग पहचान।। मोक्ष दिलाते भक्तो को प्रभु, हरते संकट नाथ। शिव महिमा गा रहे देवता, भस्म रखें सब माथ।। दुखभंजन हैं अलख निरंजन, प्रभु हैं ...
सोनिल है हर ग्राम
गीत

सोनिल है हर ग्राम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शस्य-श्यामला मात भारती, सोनिल है हर ग्राम। शत-शत नमन धरा को करते, कण-कण बसते राम।। शीश मुकुट काश्मीर सजता, हिमगिरि इसकी शान। मनमोहे हरियाली धरती, गांधी हैं पहचान।। सोने की चिड़िया कहते थे, जप लो आठों याम। पावन मातृभूमि है अपनी, रत्नों की है खान। सत्य अहिंसा की थाती ये, अपना देश महान।। धरती का शृंगार अनोखा, गंगा उद्गम धाम। मानवता का रक्षक न्यारा, समझे जग की पीर। प्रेम एकता पाठ पढ़ाते, तुलसी और कबीर।। नित्य नेह के दीपक जलते, लगता तिलक ललाम। तीर्थ हमारे पावन सारे, संविधान है ढाल। दिव्य-ऋचाएँ लगतीं प्यारी, तोड़े हर दीवाल।। गौरव गाथा इसकी गाओ, कर्म करो निष्काम। याद दिलाती है राणा की, वीरों की हर जंग। बुंदेलों की वसुंधरा का, देख वसंती रंग।। दिव्य ज्योति नित जले नेह की, जानो तो अविराम। सकल जगत् मे...
प्रेमिल मधुमास
कविता

प्रेमिल मधुमास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चंचल मन आह्लादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री। बहे पवन शीतल पावन भी, कुसुमित फूल पलास सखी री।। ऋतु बसंत मदमाती आयी, नव पल्लव पेड़ो पर छाए। झूम रहे भौरे मतवाले, अल्हड़ अमराई मुस्काए।। पीली चूनर ओढ़े धरती, हिय में रख उल्लास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। उन्मादित नभ धरती आकुल, यौवन का मौसम रसवंती। महुआ पुष्पित गदराया है, सरसों का रँग हुआ बसंती।। नाच रही है कंचन काया, हिय अनंग का वास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। हुआ सुवासित तन गोरी का अंग अंग लेता अँगड़ाई। हृदय कुंज में मधुऋतु आयी, भली लगे प्रिय की परछाई।। मधुर यामिनी देख मिलन की, सभी सुखद आभास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्ध...
नूतन किसलय खिलते उपवन
गीत

नूतन किसलय खिलते उपवन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नूतन किसलय खिलते उपवन, आह्लादित होता तन-मन है। नव उजास लाया है दिनकर, नवल वर्ष का अभिनंदन है। नवल शांति की सरगम गूँजे, विषधर आंतकी दम तोड़े। सुघड़ चाँदनी शशि की बिखरे, दूर तिमिर-घन हो कर जोड़े।। नव उमंग है नव तरंग भी, मस्तक लक्ष्यों का चंदन है। आत्म-शक्ति के पावन पथ में, नव चिंतन का गंगाजल भी। उर सुरभित है कुसुमाकर -सा, पुलकित ममता का आँचल भी।। सद्भावों की नवल ज्योति में, यश-वैभव का गठबंधन है। नवल सृजन मनभावन कवि का, सत्य-अहिंसा पथ दिखलाए। धर्म-वेद की प्रखर ऋचाएँ, अंतस में विश्वास जगाए।। हुए संगठित भेद त्याग कर, सौगात मिली अपनापन है। नव निखार जीवन में आए कर लो स्वागत आगत का। नव कीर्ति की फैले पताका, नाम विश्व में हो भारत का।। उत्कर्षों की ज्योति जली है, भोर सुखद आई आँगन है। परि...
सुधियों की कस्तूरी
कविता

सुधियों की कस्तूरी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन। मन-मृग वन-वन विचरण करता, नित पाने को कस्तूरी। हाय सुहाती नहीं हमें अब, प्रियतम से किंचित दूरी।। ज्यों सागर से मिलने आतुर, सरिता की धड़कन-धड़कन। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। मृग-मरीचिका में हम उलझे, मिली ठोकरें हुए विकल। अंतर्मन में है कस्तूरी, फिर भी आडम्बर का छल।। समझ न पाये हाय मर्म हम, तोड़ गुत्थियों के बंधन।। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। मुश्किल है कस्तूरी मिलना, उसकी चाहत को पाना। इच्छाएँ जब रहीं अधूरी, तब महत्व हमने जाना।। साँसें बनकर दिल में धड़कें, जीना दूभर दुखी नयन। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पु...
टूटी सब आशाऐं अब तो
गीत

टूटी सब आशाऐं अब तो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं मंजिल की क्या करें शिकायत, राहें भी अनजान रही हैं।। दुर्गम पथ हैं जीवन के सब, धूल-धूसरित भी राह़े हैं। ग्रहण लगा है सूरज को अब, छलती अपनो की बाहें हैं।। सासें नित्य हलाहल पीत़ी, घातें भी तूफान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं। आहत गीत छंद हैं आहत, हृदय-कुंज में पतझड़ छाया। संकट में माँ का आँचल है, कैसी कलियुग की है माया।। अमावस्य की कालरात्रि है, राहें भी सुनसान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं। पश्चिम की इस आंधी में तो नगर गाँव सारे खोये हैं। रक्षक खुद भक्षक बनते हैं, बीज बबूल नित्य बोये हैं।। मर्यादा को भूल गए सब, चालें ही संधान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं।। परिचय :-...
कोयल गीत
गीत

कोयल गीत

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है। रंग-बिरंगी तितली देखो, इठलाती इतराती है।। बूढ़े बरगद की हम सबको, शीतल-शीतल छाँव मिले। गाँवों के खेतों को देखें, मन में सुरभित पुष्प खिले।। मंद-मंद बहती पुरवैया, गीत प्रीति के गाती है। अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है।। अमराई मधुरस छलकाती, उपवन से सरगम निकले। निर्मल जल से प्यास बुझाते, हर दुख को हैं यों निगले।। प्रेम रत्न की खान वहाँ पर, मोती नेह लुटाती है। अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है।। इन्द्रधनुष की छटा निराली संध्या भी रहे सजीली। झिलमिल रात बड़ी प्यारी है, माटी होती गर्वीली।। सच्चाई की सौगातें हैं, सोंधी मिट्टी भाती है। अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है।। स्वाभिमान है दंभ नहीं है, मृदु ...
नेह-डोर
कविता

नेह-डोर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ। तुम ही तुम हो इस जीवन में, याद तुम्हें बस करता हूँ।। प्रिये सामने जब तुम रहती, मन पुलकित हो जाता है। लेता है यौवन अँगडाई, माधव फिर प्रिय आता है।। प्रेम सुमन पल-पल खिल जाते, भौरों-सा मैं ठगता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। नेह डोर तुमसे बाँधी है, जन्म-जन्म का बंधन है । साथ कभी छूटे ना अब ये, प्रेम ईश का वंदन है ।। मेरे हिय में तुम बसती हो, नाम सदा ही जपता हूँ । मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। रूप अनूप बड़ा मनमोहन, तन में आग लगाता है । आलिंगन को तरस रहा मन, हमें बहुत तडपाता है।। चंचल चितवन नैन देख कर, ठंडी आहें भरता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। परिचय :- मीना भट्ट "सि...
गूँज रहीं बूँदों की सरगम
गीत

गूँज रहीं बूँदों की सरगम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में। चलो सखी झूला झूलें हम, शीतल सी बौछारों में।। छोड़ घोंसलें भीगे-भीगे, पंछी आए आँगन में। नहीं मिला दाना चुगने को, अब के देखो सावन में।। चल झरनों से बात करें हम, झम-झम करें फुहारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। धरती मिलने चली गगन से, नयनों में काजल डाले। आलिंगन को व्याकुल सरिता, प्रीति समंदर-सी पाले।। सुधि-बुधि खो कलिकाएँ बैठी, भ्रमरों की गुंजारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। मादक अधर मिलन को व्याकुल, मोहे पुरवाई प्यारी। सुलगे देह प्रीत में साजन, काम-बाण से मैं हारी।। यौवन प्रेम मगन हो नाचे, चाहत की झंकारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। परिचय :- मीना भट्ट "स...
जय मध्यप्रदेश
कविता

जय मध्यप्रदेश

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की। चंदन जैसी सौंधी पावन, माटी मध्यप्रदेश की।। विक्रम नगरी यहाँ भोज की, बहे सुधा रस धार है। दुर्गावती अहिल्या की भी, फैली कीर्ति अपार है।। आल्हा ऊदल अमर कथाओं, और विजय संदेश की क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की बुन्देलों की इस धरती पर, गौरव है अभिमान है। रूपमती का मांडू सुंदर, अमर प्रेम पहिचान है।। खजुराहो, साँची स्तूप से, ख्याति बढ़े निज देश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। विंध्य सतपुड़ा पर्वत माला, जबलपुर धुँआधार है। तालों का भोपाल शहर है, कृषि उन्नत व्यापार है।। पशुपति नाथ सदा शिव शम्भू,नगरी है सोमेश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। पुरातत्व की अमिट धरोहर, तानसेन की तान है। करता है जयगान सकल जग, अमिट निराली ...
अनुपम आभा
गीत

अनुपम आभा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। भेदभाव, झगड़े-झंझट जब, सारे मिट जाएँगे। फैलेगा नूतन प्रकाश तब, भोर नयी पाएँगे।। जब लेंगे संकल्प नए हम, होगी रात न काली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। अमन-चैन के फूल खिलेंगे, सतरंगी बगिया में। सबको रोटी-कपडे़ होंगे, अपनी इस दुनिया में।। मानवता की जोत जलेगी आएगी खुशहाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। सच्चाई की पूजा होगी, सत्कर्मों की माला। होंगे कृष्ण कर्मयोगी-से, राधा जैसी बाला।। रामराज्य होगा इस जग में, बिखरेगी सुख-लाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। नेह-प्यार के संबंधों से, महकेगा जग सारा। सींचेगी रसधार सुधा की, घर-घर भाईचारा।। देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका, पुलकित होगा माली...
जब सजन देख फिर शृंगार होगा
गीत

जब सजन देख फिर शृंगार होगा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ चाँद निकलेगा सजन जब देख फिर शृंगार होगा। व्रत रखे साजन सुहागन साथ तो भरतार होगा।। उम्र लंबी हो सजन की नित्य करती कामना है। माँगती वरदान प्रभु से वामिनी सुख साधना है।। देख करवाचौथ को पूजा करूँ मन मीत आजा। गंग सी बहती चलूँ अब संग गाती गीत राजा।। ओट चलनी देखती जिसको वही तो प्यार होगा। सात जन्मों का निराला संग अपना मान प्रियतम। है खनक चूड़ी झनक पायल सुनाती नित्य सरगम।। नाक की नथनी कहे साजन सदा ही ध्यान देगा। आज करवा चौथ को चंदा कहे प्रिय मान देगा राम सिय जोड़ी रहे सुंदर सजन संसार होगा। बन चकोरी राह तकती ये सुहागन देख तेरा। प्रीत का हिय है बसेरा चाँद सीमा पार मेरा।। अर्ध्य देती चाँद को वंदन करूँ प्रिय प्रेम पलता। चन्द्र ले जा आज पाती दिव्य दीपक प्रेम जलता।। डोर पावन प्रेम की पनप...