टूटी सब आशाऐं अब तो
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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टूटी सब आशाऐं अब तो,
कुंठाएँ बलवान रही हैं
मंजिल की क्या करें शिकायत,
राहें भी अनजान रही हैं।।
दुर्गम पथ हैं जीवन के सब,
धूल-धूसरित भी राह़े हैं।
ग्रहण लगा है सूरज को अब,
छलती अपनो की बाहें हैं।।
सासें नित्य हलाहल पीत़ी,
घातें भी तूफान रही हैं।
टूटी सब आशाऐं अब तो,
कुंठाएँ बलवान रही हैं।
आहत गीत छंद हैं आहत,
हृदय-कुंज में पतझड़ छाया।
संकट में माँ का आँचल है,
कैसी कलियुग की है माया।।
अमावस्य की कालरात्रि है,
राहें भी सुनसान रही हैं।
टूटी सब आशाऐं अब तो,
कुंठाएँ बलवान रही हैं।
पश्चिम की इस आंधी में तो
नगर गाँव सारे खोये हैं।
रक्षक खुद भक्षक बनते हैं,
बीज बबूल नित्य बोये हैं।।
मर्यादा को भूल गए सब,
चालें ही संधान रही हैं।
टूटी सब आशाऐं अब तो,
कुंठाएँ बलवान रही हैं।।
परिचय :-...