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Tag: मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’

गाँव में
कविता

गाँव में

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** झेलता हूँ गाँव को। खेलता हूँ गाँव को। खेलना सरल नहीं। गाँव है तरल नहीं। उलझनों की बाढ़ है। संकट बड़ा ही गाढ़ है। मित्र शत्रु बन रहे। षड़्यंत्र में मगन रहे। रहा न गाँव गाँव है। स्नेहहीन छाँव है। चलता रहा मैं धूप में। जलता रहा मैं धूप में। छाले पड़े हैं पाँव में। रहना कठिन है गाँव में। रहना कठिन है गाँव में। परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन अप्रकाशित रचनाएं - यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना) आप भी ...
वंशीधर
कविता

वंशीधर

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** माना मान लिया कि आज वंशीधर का पैदा होना मुश्किल है पर असंभव तो नहीं कठिनाइयाँ हो सकती हैं हो सकती हैं क्या हैं पर इससे वंशीधर का पैदा होना तो नहीं रुक सकता सारा संसार पंडित अलोपीदीन के चरणों में तो नहीं झुक सकता कहीं-न-कहीं पंडित को हारना ही है अंत में उसे स्नेह से वंशीधर को गले लगाना ही है और 'नमक का दारोगा' के पिता के मन से ग्लानि का भाव भगाना ही है 'सच का सूरज' उगता है पर उसके उगने के पहले वंशीधरों की इतनी परीक्षा हो जाती है कि कई वंशीधर वंशीधर रह ही नहीं पाते हैं झूठ के अंधेरे में वे इस तरह खो जाते हैं कि कभी वे वंशीधर थे कहना वंशीधर का अपमान है उस वंशीधर का जिसका अपना स्वाभिमान है और जिसके सामने दुनिया की सारी दौलत व्यर्थ है क्योंकि वंशीधर अपने स्वाभिमान की कीमत चाहे वह कितनी ही क्यों न हो चुकाने में समर्थ है समर्थ है। . ...
गांधी हैं एक बहाना
कविता

गांधी हैं एक बहाना

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** उत्सव देता हमें न रोटी, देता गेहूँ दाना। प्रचार स्वयं का करते हो, गांधी हैं एक बहाना। "भूखे भजन न होहिं गोपाला", कह गए हैं पहले पुरखे। कैसे उत्सव देखें (?), जब हैं पेट हमारे भूखे। पहले गेहूँ , तब गुलाब, यह बात है एकदम सच्ची। पहले दो तुम रोटी हमको, फिर कहना बातें अच्छी। गांधी-पथ है कठिन बहुत, बस स्वांग ही रच सकते हो। समझ रहे हैं तुम्हें खूब, हमसे ना बच सकते हो। छोड़ो बाकी बातें, बस तुम कृषकों को ही ले लो। उनकी उपजायी फसलों का उचित मूल्य तो दे दो। 'भितिहरवा' में जाकर देखो कृषकों की बदहाली। जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में करते फसलों की रखवाली। शीत घाम दोनों सहते हैं बिना निकाले आह। देख रहे हैं, करते कितना तुम उनकी परवाह। बड़ी-बड़ी बातें करते हो मंचों पर बस जाकर। जीयेंगे क्या कृषक तुम्हारी बातों को ही खाकर? गांधी ने जो कहा, उसे था जीव...
याज्ञसेनी २
कविता

याज्ञसेनी २

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** देख कृष्ण को बोली कृष्णा, आओ भइया, आओ। धर्मराज को मार्ग धर्म का तुम भी जरा दिखाओ। भइया, युद्ध को होने दो, तुम नहीं युद्ध को रोको। मैं तो कहती धर्मराज की कायरता को टोको। किया समर्थन धृष्टद्युम्न ने तत्क्षण महासमर का। किया निवारण भीमसेन ने किसी हार के डर का। बोला पबितन अटल प्रतिज्ञा याज्ञसेनी है मेरी। विश्वास रखो तुम, तेरी इच्छा होगी निश्चित पूरी। कहा पार्थ ने दंड कर्ण को मुझको भी देना है। कृष्णा के अपमान का बदला मुझको भी लेना है। 'युद्ध को तो होना ही है, पर पहल उन्हें करने दो।' कहा कृष्ण ने, 'कृष्णे ! जबतक टले युद्ध टलने दो।' हुआ सर्वसम्मति से निर्णय, 'शांतिदूत जाएगा।' बोली कृष्णा,'रिक्तहस्त ही वह वापस आएगा..... . परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास...
याज्ञसेनी १
कविता

याज्ञसेनी १

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** बोलो, आखिर कब तक सहते? थक गये थे कहते-कहते। विश्व बिरादरी मान रही थी। तुमने किया है, जान रही थी। किसके बल तुम तने हुए थे? क्यों यों भोले बने हुए थे? रोना है, तुझको रोना है। तेरे किए न कुछ होना है। प्रतिशोध की ज्वाला में हम कबतक दहते रहते- बोलो, आखिर कबतक सहते? सोचो, अब तुम कहाँ खड़े हो? चारो खाने चित्त पड़े हो। करनी का फल भोग रहे हो। दो-दो युद्ध की हार सहे हो। रे मूर्ख, मूर्खता छोड़ो अब तो। रे दुष्ट, दुष्टता छोड़ो अब तो। वीरों की है हुई शहादत, मौन भला हम कबतक रहते- बोलो, आखिर कबतक सहते? . परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प...