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Tag: मालती खलतकर

समाज की धुरी
कविता

समाज की धुरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह झुकती है हरदम झुकती है कहीं कचरा विनती कहीं गोबर व टोरती कहीं लकड़ी छिलती कहीं लकड़ी उठाती कहीं घन चलाती कहीं शिशु पीठ पर बांध थी वह झुकती है तो सभी उसे और झुकाने अवसर ढूंढते हैं वह झुकती है क्योंकि वह नारी है उसे संज्ञा अबला की है वह अक्सर दिखती आंखों में आंसू लिए आंचल में शिशू ढाके सिर पर बोझ लिए वह जाती दिखाई देती है खेतों नदियों किनारे पगडंडी पर शराबियों से खुद को बचाती वह झुकती है झूला झूलते टोकनी उठाते उपले थापती वह झुकती कमान कि तरह ऊपर उठ पुनः तार-तार होने के लिए पुनः धरा पर जाने की हिम्मत जुटाने के लिए वह है झुकती है समाज परिवार के लिए क्योंकि वह जानती है वह झुकेगी तो परिवार समाज झुकेगा सुदृढ बनेगा कहीं सहारा कंधे का कहीं लकड़ी का कहीं चौखट पर चंडी बनकर खड़ी मैंने उसे देखा है आंखों में डर लिए अपने आप को छुपाते हुए दीवार दी...
नारी शक्ति
लघुकथा

नारी शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सुबह सवेरे बड़ा सा झोला लेकर निकल पड़ती है, बिना सन्देह के एक लक्ष्य लेकर कि आज दो-तीन किलो प्लास्टिक का कचरा मिल जावेगा तो पीहर आई बेटी को भरपेट खाना खिला सकूंगी। इसी उधेड़बुन में वह इस प्लाट से उस प्लाट तक कचरा खोजती हुई आगे बढ़ गई विचार मन में चालू थी कि अचानक पीछे से आवाज आई... इधर आओ वह घबरा गई पीछे मुड़कर देखा एक व्यक्ति खड़ा उसे आवाज लगा रहा था वह धीरे-धीरे पास गई वह बोला मैं सफाई कर्मचारी का अधिकारी हूं क्या तुम रोज कचरे के ढेर से पन्नी अलग छांटने का काम करोगी.... ४ घंटे काम करना होगा और तुम्हें ६० रु. मिलेंगे मंजूर हो तो मेरे साथ ऑफिस में चलकर नाम लिखवा दो। उसने मन में सोचा इतने पैसे से तो मैं अपने शराबी पति का इलाज भी अच्छी तरह से करा सकूंगी और बेटी को पेट भर खाना भी नसीब होगा यह सोच वह उस व्यक्ति के साथ आफीस गई और अपना न...
विडंबना
लघुकथा

विडंबना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिसंबर की कड़ाके की ठंड में वह अपने फटे कंबल से शरीर को ढकने की कोशिश करता हुआ सड़क के किनारे बैठा था। सड़क की दूसरी ओर एक चाय की गुमटी पर बहुत सारे लोग अपने शरीर को गरम करने के लिए चाय की चुस्कियां ले रहे थे, उसे लगा कोई उसे भी एक प्याला चाय पिला दे इस आशा से वह गुमटी पर खड़े लोगों की ओर तथा चाय की पत्ती ली से निकलती भाप की ओर अपलक देख रहा था कि कोई उसकी और देखें परंतु सब अपने मैं व्यस्त थे। किसी की नजर उस पर नहीं पढ़ रही थी, वह इसी आशा से बार-बार उधर देख रहा था की कोई तो देखें उसे परंतु किसी को उसकी ओर देखने की फुर्सत नहीं थी, सब अपने मैं मस्त हो चाय की चुस्की ले रहे थे, यह कैसी मानव की विडंबना है या उसकी नियति यह सब समझ से परे है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप...
गांधी
कविता

गांधी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीड़ फिर भी एक अकेला एक कारवां फिर भी एक अकेला एक आदर्श एक अकेला अहिंसा के लिए संघर्ष अकेला। वैष्णव भजन वह काहे अकेला बने कारवां चले अकेला अनशन कारी बने अकेला एक भजन वह गावेअकेला एकवसन वो पहने अकेला जगमे कुछ जी या नहीं पहचान अपनी दी नहीं हरिजन का उद्धारक अकेला अठारह घंटे काम अकेला प्रार्थना के लिए चल अकेला समूह साथ फिर भी अकेला किंतु कॉल कहां से आया हे राम वह कहे अकेला राष्ट्रपिता कहलायाहै गोरों ने शिल्प लगाया है। है आदर्श बना अकेला भारत के लिए चल अकेला। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पी...