बूंद जल की
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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तुम रुक गए अविरल चलने वाले
क्या मोती सा दिखने के लिए
या सुमन सौरभ भा गई तूम्हे
यह सुमन पंखुड़ी का
आलिंगन भा गया तुम्हें
तुम तो अबाध गति हो विरल हो
अनवरत पाषाण को
खंड-खंड करते हो
खंड-खंड पाषाण पूछता है तुमसे
क्या तुम्हें कलि की
कमनियता भा गई
या रंग सुगंध मखमली पंखुड़ी की
सेज तुम्हें लुभा गई
या तुम स्वयं को मोती
समझने की होड़ में
चमक-चमक कर
चहेतों कामन लुभा रहे हो
दूर बहुत दूर की सोचते हो
पर जानते हो इतना
इतराना ठीक नहींं क्षणिक है
हां क्षणिक है क्योंकि
पंखुरी मुरझा कर गिर जावेगी
उसकी ही सजीली
नरम मखमली सतह पर
जिस पर तुम बैठे हो
तुम भी नीचे बह जाओगे
पुनः धरा पर अपने
अस्तित्व को लेकर
क्या फिर नहीं
जाओगे अवनी में
या सरिता में या
किसी प्यासे के कंठ में
उसकी प्यास बुझाने
उसे तृप्त करने
जो तुम्हारा ध्य...