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Tag: मालती खलतकर

ऑगन
कविता

ऑगन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर का ऑगन प्यारा-प्यारा प्यारा-प्यारा न्यारा, न्यारा इस ऑगन में चिडिया चहके क्यारी-क्यारी फूल सजे गुन-गुन ध्वनी से इन पर मङराता भवरा लगे प्यारा। ऑगन मे सजी रंगोली स्वागत करती अतिथी का रवि किरणो से स्वर्णिम हौता ऑगन का कोना-कोना। इस ऑगन मे नाचे बिटिया बान्धे पायल पैरो मे रूण् झुन रूण् झुन ध्वनि गूंजती मा, बाबा के कानो मे। आगन में अमराई बौराती खटास भरी पवन झकौरो में। इस ऑगन मे बैठ बङे घर की शोभा है बढाते अतीत की यादो में गुम हो कभी खुशी कभी गम के आंसू छलक जाते। देखा है इस आँगन ने सुख-दुख का रैला कभी बिदाई बिटिया की कभी महापर्पाण का बोझा कभी विवाद कभी भाई मारत कभी-कभी देखा है कंही इस आँगन का बंटवारा। यह आँगन है सब देखता है जब संध्या समय तुलसी क्यारे में जलता है दीपक प्यारा आँगन को सजाने के लिए अत...
सम्भल जाओ
कविता

सम्भल जाओ

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अट्टालिका में खो गये खेत खलियान मेड, मुंडेर बिखर गई नहीं कहीं पेड़ों के चिन्ह, निशान। पक्षी निहारते शून्य आंखों से आकाश पगडंडी पक्की सड़क में बदली गलियां सकरी थी चौड़ी हुईं गांव बदल गये शहर में गांवों का बदला ऐसा मौसम ठन्डक थी अब तपन हुई व जलकूप कलपूर्जो से ढंक गये नहीं दिखाई देता अन्दर कितना जल अट्टालिकाएं पी गई नहरों का जल नदियों को उघाडते रेत खनन पहाड़ों को चोटिल कर राह बनाई जा रहीं है न, पृकृति का दोहन। स्वार्थी मानव के लिये धरा धैर्यवान हे, साहसी है, सहती हैं इसलिए चुप है। जब धरा की पराकाष्टा होगी । तब स्वार्थी सम्भल नहीं पाएंगे अभी थरा मौन रहकर सह रही है रुक जाओ सम्भल जाओ। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी...
आया बसंत
कविता

आया बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा के द्वार बजाता आया बसंत कोयल कुकी, कुन्ज-कुन्ज में बौराए हैं आमृवक्ष रविकिरण की कुनकुनी धूप में। बसन्त बयार बह रही पसर रही, गंध। हरित पर्णों की छाया में तितली गाती, मंडराती भौंरे गुंजन करतें पुष्पों पर पर्ण उन्हें झुलाते हैं वृक्ष वल्लरी मदमाती पवन संग पुष्प वर्षा कर बसंत का स्वागत करती। स्वागत में बसंत के पथ पर पड़े पत्ते पतझड़ के पवन झोंकों संग पथ संवारते। तड़ाग की स्थिर जल राशि में रवि प्रतिबिम्ब अपना स्वर्णिम प्रकाश फैलाकर धरा को स्वर्णिम आभास देता। झरना कलकल, नंदियों का कलकल स्वर, उपवन को आन्दोलित करता उपवन, उपवन बाग बग़ीचे झूम रहें हैं फल, फूलों से आथा उनका बसंत प्यारा आज उनके आंगन में।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी ...
कृपण
कविता

कृपण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पाकर भी कुछ देता नहीं कितना कृपण हैं इन्सान देकर भी कुछ लेता नही कितना एहसानी है भगवान। पाषाण भी देता है ठोकर। पत्ते भी करतें हैं आवाज़ पर, पर देते हैं, समीर देते हैं छाया। हर जड चेतन कुछ लुटाता है और देता है परन्तु, परन्तु स्वार्थ, स्वार्थ में इन्सान सब कुछ पाना चाहता है देना नहीं। यह उसकी तु,टी नही जमाने का कायदा है न चाह कर भी बेबस हैं इन्सान। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...
मजबूत इन्सान
कविता

मजबूत इन्सान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर, पगडंडी पर पड़े पतछड के कोलाहल में किसी की अस्पष्ट आवाज़ सुनाईं दी पिछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था। सोचा मेरा भृम होगा आगे चली, फिर दखा कोई नहीं था । फिर कोई बोला पिछे मत देखो आगे चलो, बढ़ो मंजिल अभी दूर है आत्म विश्वास, साहस, साथ, सामिप्य मैं तुम्हें दुंगा मैं मन हूं तुम्हारा। अकेलापन, सन्नाटे, तुफान से। लड़ना सिखों, बढ़ो आगे। पिछे मुड़ना कायरता हैं और तुम कायर नही मेरे साथी मजबूत इन्सान हों पथ चाहे कैसा भी हो उसे सुगम बनाओं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत ह...
वल्लरी
कविता

वल्लरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिपटी हुई वृक्ष वल्लरी वृक्ष से झुककर गहन कूप के जल में अपना प्रतिबिम्ब देखकर कुछ लजाई हरित परणमे। कोमल कांति कदम्ब तले वल्लरी सब के मन को भाई पर्ण, पर्ण संग पुष्प किले हैं मंडराते भंवरे, पांखी। मदमाती सुगन्ध दिख, दिगंत में बसती मन्द पवन के झोंकों ने वल्लरी को स्पर्श किया भय नहीं थावल्लरी को क्यों, क्योकि उसे था वृक्ष, धरा का सम्बल प्यारा। झूम, झूमकर नाजती वल्लरी गाती स्वर में सरगम। उपवन में कोयल गाती संग नदियों कल, कल स्वर में गाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय...
गगन
कविता

गगन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन भी नमन करता है उनको जो माटी से सोना उगाते हैं नमन करता है गगन उनको जो सीमा पर रक्षा करतें हैं सियाचिन का बर्फ हो या। रेगिस्तान की गर्मी का कहर दृढ़ है, डटे हैं, निर्भयता से खड़े हैं दुष्ट दलन के लियै। नमन करता है गगन ऊनको तो बोझा ढोकर गगन चुम्बी भवनों का निर्माण करतें हैं गगन भी नमन करता है उसको मानव सेवा के वृति है निस्वार्थ अनवरत लगे रहते हैं। नमन करता है गगन थरा को जो धैर्य से, अडिग खड़ी हैं खनन, उत्खनन, ज्वालामुखी का ताप सहती है। मानव समाज के लिए प्रकृति के रुप में खड़ी हे दृढ़ निश्यी होकर तभी तो, तभी तो गगन उत्सुक होता है धरा से मिलने के लिये सन्ध्या की प्रतीक्षा करता है क्षितिज पर धरा से मिलने के लिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श...
समय
कविता

समय

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहते हैं समय बदलता है करवट लेता है समय बहता है सरिता सा समय दौड़ता है रवि की भांति पल, क्षण समय की शाखाएं बांट जोहतीं हैं मानव की कि शायद मानव क्षण को पकड़ ले जकड़ ले और सोपानों पर चढ़ कर शिखर को छू लें पर, पर क्षण की भंगुरता ने मानव को पिछे छोड़ आगे चल दिया। हंसते हुए कि मानव को समय महत्व समझाना कठिन हैं क्यों कि उसकी उलझनों, झंझटों के जाल में छटपटा हैं समय बित जाने के बाद। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती...
सफर
कविता

सफर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मंज़िल तक पहुंचने में किसी के मोहताज नहीं कदम दर कदम कोई हमसफ़र मिलेगा सुकुन से कदम बढा ऐ दोस्त आगे तुझसे कारवां जुड़ेगा। सुकुने दिल को कचोटती है चुनौती अपनों की आंखों से अश्क नहीं बहते दिल रोता है कहने को हम सब हैं अपनों के बीच हर शख्स अपने सफर में अकेला होता हैं। ख्वाहिशों के दरख्तों के साये बहुत लम्बे हैं सायो के सहारे ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त पूरी नही होती ज़माने की नजरें ऐसी बदली कि हम देखते रह गए वक्त गुजरता रहा हम ख्वाब बुनते रहें। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेव...
दीपोत्सव
कविता

दीपोत्सव

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में दीपोत्सव की धुम मची हैं हर पथ वन्दन वार सजे। पवन सग केसरिया पताका लहराये गीत गाते राग मल्हार। आंगन, द्वारे, चौखट सजे रंग, रंगोली से करते मां लक्ष्मी का सत्कार। रंग रंगीली छटा बिखेरे दिपो की झिलमिल प्यारी ऐसे लगता मानों लक्ष्मीजी के पग पखारती। मिष्ठान्नों से पात्र भरे हैं। मां अन्नपूर्णा लगे न्यारी उत्साह, उमंग से भरी सजधज कर लगती नारी शक्ति गृह लक्ष्मी। सभी लेखक बंधु, भगिनी एवं सम्पादक महोदय को दिपावली पर्व की शुभकामनाएं स्वस्थ रहें, ख़ूब लेखनी चलाएं ...। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
वाचाल सफर
कविता

वाचाल सफर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौन रास्तो का वाचल सफर किनारे झाड़ियों के झुरमुट का अथकार ठिठुरती देह को न अलाव हैं न ठहराव खुली किताब है जिंदगी अपनों के लिये कारवां के ठहराव का प्रश्न नहीं उठता। चलते राहें कदम को रोकना, टोकना नामुमकिन है पर रास्तों के मोड़ चिर निद्रा से जगाकर अतीत की गहराईयों में ले जाते हैं कोई नहीं जानता, न जानना चाहता है न सोचना की सत्य क्या है पुनः समानांतर राह पर आकर झंझावावातो के चकृवातो में फंस जाता है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से ध...
सफ़र
कविता

सफ़र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती चलती हैं पतवार के सहारे सागर मचलता हैं लहरों के सहारे दर्दे दिल रोता हे अतीत के सहारे कहां खोजे हम किनारा समन्दर में पत्थरों की फिसलन के मारैं। दरख्तो के सायों का हुजुम चलता हैं साथ-साथ पगडंडी के सफ़र मे कांटे जो हैं साथ आसमां से झांकता आफ़ताब हंस रहा था हम पर कह रहा था मानों मुड़ हो अब निकले हों सफ़र पर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्री...
वक्त की दिवार
कविता

वक्त की दिवार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त की दिवार ने कुछ ऐसा रोका मानो आते-आते तुफान रुक गया हो वक्त का साथी कोई नहीं होता। बीच राह मे छोड़ जाने के लिए। अपना आत्म बल साथ होता हैं। वक्त की आवाज दब जाती हैं जीवन की आपाधापी में वक्त बढ़ता जा रहा है अपनी लीक पर इन्सान का मुंह चिढ़ाते हुए उसे मूढ़ कहते हुए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक ...
यादों की जंजीरें
कविता

यादों की जंजीरें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर एक बार याद आ गया कोई जहां मे हमसफ़र हजारों मिलते है बांटने दरदो गम कोई नहीं होता गुल ही गुल चाहतें है सब गुलिस्तां मे कांटों को कोई नहीं छुता। कहे किसे अपना इस ज़माने मे हर कोई शख्सा अपना नही होता। फिज़ा में खुशबु का ही डेरा हो ऐसा खुशनसीब हर कोई नहीं होता पल मे खड़े होतै हैं महल यादों के पतझड के पत्तों से बिखरते हे पल में यादों की जन्जीरे तोडना चाहा और अधिक जकड़ने का शुबहा होता है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों...
लहरें
कविता

लहरें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उतुंग उठतीं सागर की लहरें समीर संग कुछ गा रही लहरें, लहरें नाच रही यामिनी का स्वागत करने। देखो नभ मे रवि ने सिन्दुरी चोला ओढ़ लिया अपनी पृतिबिम्बित आभा से लहरों को सिन्दुरी कर डाला। लता झुकी थी तरु पल्लव पर तरु हो अडग खड़ा मगर कहीं दूर से आया कोई रौंद गया तरू पल्लव। पृहर तिसरा बित चला था सागर की लहरों में हलचल दामिनी भी दमक रहीं थी खग वृंद रहा था भाग मचल। लहरों ने छोड़ किनारा। तट को आन्दोलित कर डाला कलकल करती सरिता का स्वर रात के सन्नाटों ने खो डाला। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप...
दिग दिगंत में हिन्दी
कविता

दिग दिगंत में हिन्दी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हम हिन्दी हिन्दुस्तानी रखते हर क्षैत्र में अपना सानी खेल, संस्कृति, शिक्षा, गृह, नक्षत्र का अन्वेषण कर आगे बढ़ते नित नवीन पथ की ओर। ओर, छोर न पार देखते देहलीज लांघ कर पीछे मुड कर न देखते ऐसे सैनिक देश के बलिवेदी पर चढ़कर निकलें हिन्द देश के वासी। दिग दिगंत में क्षैत्र, क्षेत्र में फैली हिन्दी भाषा विभिन्न अलंकारों से सजी नव रसो से भरी मेरी मेरी हिन्दी भाषा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से...
झूले सावन के
कविता

झूले सावन के

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन के झूलों को देख फूहरो का मन मचला झूलने के लिए हिलते हुए झूले पर सवार फूहरो को बादल ने आकर झौंका दिया फूहारे मचल उठी झूला भीग गया। बेचारा बादल फूहारो को अठखेलियां करते देखता रहा झूले की डोर पकड़े। जल की बूंदें गा रही सावन गीत ठंडी बयार संग भाग रहीं फूहारे वृक्ष से लिपटी लताओं को भिगोतै मन ही मन मुस्कुरा रही थीं लताओं के भी मन भाया अन्दाज। मुस्कुराने का कोई युगल आया और बूंदों को धरा पर गिरा युगल भुले स्वयं को झूलते-झूलते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निम...
फुहारों के बीच
कविता

फुहारों के बीच

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम, रिमझिम फुहारों के बीच मदमाती, इठलाती बयार बह रही हरीतिमा धरा को सहलाती नजर आती। पाखी पौधों, पौधों पर मंडराती। उमड़ते-घुमड़ते कजरारे बादलों के बीच विद्युलता चमक, चमक अंधकार मिटातीं मानो वह चमक कर धरा की हरीतिमा निहारतीं पितृ, पृण पर पड़ी बूंदें धरा का अभिषेक करती। नदियां कलकल कर बहती तट बन्धन तोड़ उछल जाती आगे सागर में संगम की आतुरता नदी पर्वत चढ़ झरना बन बहती। चट्टानों से आहत होकर भी किसी रमणी के चरण धोती कहीं धरा की क्षुधा बुझाकर बीजाकुरण कर फसलें लहलहाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक सं...
किसी का बसेरा होगा
कविता

किसी का बसेरा होगा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चहकने दो मुझे आंगन में झुलती बेलो के साथ बहने दो मुझे निर्बाध गति के साथ मत बांधो हमें बन्धनों में घेर कर चहकने दो दौड़ने दो आंगन सजेंगे कल, कल करता जल पृथ्वी को सिंचता हरित करेगा श्यामल थरा को हरियाली नाचेगी टेसू फुलेगे रवितामृ वर्ण में बिखरेंगे बसन्त बयार में फूलों से आंगन सजेंगे काटो मत शाखाओं को कहीं पन्छी का ठौर होगा कपिल, किल का कलरव होगा चुग्गा चुगने मुंह खुलता होगा चहक कर चिड़िया गाती होगी कोयल कूक सुनाती होगी काटो मत उसे वह किसी का बसेरा होगा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जु...
बुजुर्ग खंडहर
कविता

बुजुर्ग खंडहर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ी इमारत के बुजुर्ग खंडहर की दृढ़ सोपान कहानी कहती हैं अतीत की मानों कह रही हो अरे नवयुवक तुम क्यों, तुम क्यों तन कर चलते हो बुजुर्गो के चरणों का स्पर्श तो मेरे तन पर है। वर्तमान की अटालिका में वह सुख कहां जो बुजुर्गो ने मुझपर बैठकर लुटा था। तुम्हारी हर पीढ़ी को इन आंखों ने देखा हैं इस अटालिका का ध्वस्त होना भी देखुगी मैं दृढ़ हूं, मजबूत हूं, नारी की भांति मूझे नहीं उकेरा तो मैं अटल हूं। क्योंकि मानव की नियति दुसरे को कुरेदना है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से ...
चंचल मन
कविता

चंचल मन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर अम्बर, अम्बर सागर सागर मे अम्बर प्रति बिम्बित कहीं कुछ जाना नहीं शून्य सा रिता अम्बर सागर में अथाह उत्साह। अम्बर के गहरे में मन्थन मन्थन को मन का सम्बल सम्बल पाने दौड़े तन मन। मन चंचल है पार दिवारे जाऊं कहां ढुंढे आंचल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित व वर्तमान में र...
प्रहार
कविता

प्रहार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भावना क्यों शून्य हुईं, शब्द कहां गुम हुए हे मनु मन भंवर तुम कहां खो गये खनक चूड़ियों की गुम हुईं इस लिप्त से संसार में हर जगह इज्जत लुटती है यहां बाज़ार में वजृ सा प्रहार होता शब्द झ झंझावातों का। वक्त की पुकार में गुम गये ख्याल सभी वक्त की धार में सुप्त हो गये ख्याल सभी यादों के झुरमुट से झांकती रवि किरण ख्यालों की चाल में दफन हुईं सहम, सहम। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाए...
प्रकृति ने खेली होली
कविता

प्रकृति ने खेली होली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां धरा से होली खेलने की प्रकृति ने ठानी मौन-मौन में सब पुष्पों ने दी अपनी हामी भुवन भास्कर ने चिश्रित रंगीन पुष्पों को रचा थरा पर इन पुष्पों ने मां धरा से होली खेलने की ठानी। फूलों का राजा गुलाब कहे मैं पिचकारी बन जाऊं केली, कामिनी, केतकी तुम रचो शुभ्र रंग। चम्पा तुम अपने चारों रंगों से बनों गहरे पीला केवड़ा, शेवन्ती, गेन्दा की सुगन्ध प्यारी-प्यारी पुष्प चांदनी, चांदनी बिखेरें, हो पूर्णिमा न्यारी। बोले बीच में अमलतास, टेसू पुष्प बिछाकर, मां थरा का आंगन सजाऊं पीली-पीली सरसों बोली में क्यों पीछे रह जाऊं पांखी बोली पुष्प रस से मैं मां को नहलाऊं रानी मक्षिका कहे मैं शहद से माँ का अभिषेक करु। मोगरा, चमेली, जुही बोली, हार बन माँ का स्वागत करु गेहूं की बाली बोलीं सुनहरा रंग में लाई आमृ मोहर की उठ...
वन्दन मातृ शक्ति
कविता

वन्दन मातृ शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ददृ पीकर मत जियो तुम, ज़हर पी रही हो। उठो आज, कोई कह रहा है स्वयंसिद्ध बनकर जियो। जानता नहीं कोई, व्यथा व्यक्त किए बिना कोई चुप रहकर सहना भी दुश्वार है उठो, कुछ कहो, कुछ सुनो जग की। जानता है जग, की तुम शक्ति हो दिव्य हो पर, दैदीप्यमान नहीं दैदीप्यमान बनकर पान्चजन्य फूंको। आओ, उठो निराश न हों। तुम शक्ति कहलाती हो। कुछ पाषाण खण्डों से तुम्हारी शक्ति क्षीण न होगी मै जानती हूं, तुम पाषाणों को पिघलाने का सामर्थ्य रखती हो मां धरा जैसी दृढ, सुदृढ़ साहसी बनों जग में तुम्हारी पहचान बनेगी, मातृ-शक्ति। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ ...
पुकार
कविता

पुकार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह आवाज कहां से आई सोने की चिड़िया से यहां बच्चें भुख से तड़प कर चिल्ला रहें हैं। या गगन चुम्बी प्रसादों ने अट्टहास हैं किया या मलय पवन ने झकझोर दिया। या यह इन्द्र देव का परिहास है। अरे, नहीं यह तो करुण हृदय की पुकार है। क्या, क्या कहा करुण हृदय की पुकार,। और सोने की चिड़िया में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़...