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अनिश्चित हूं
कविता

अनिश्चित हूं

मानसी भाटी राजगढ (चुरू) ******************** अनिश्चित हूं अपरिमित हूं.. कभी शून्य सी कभी गर्वित हूं.. कभी व्याकुल हूं कभी पुलकित हूं.. कभी विस्तृत हूं कभी सीमित हूं.. किन्तु फिर भी क्या जीवित हूं? कभी कुण्ठित मैं कभी विलगित हूं.. कभी तृप्ति कभी पिपासित हूं.. कभी यौवन हूं कभी बचपन हूं.. कभी शीतल सुखद सुगंधित हूं.. यूँ सब के लिए समर्पित हूं.. किन्तु फिर भी क्या जीवित हूं? कभी वंचित मैं कभी सिंचित हूं.. हूं वर्णन फिर भी किंचित हूं.. कभी समुचित कभी विभाजित हूं.. कभी नैतिक कभी दुस्साहित हूं.. हूं जटिल ज़रा पर सरल भी हूं.. किन्तु फिर भी क्या जीवित हूं? है जीजिविषाएं मेरी भी.. कुछ अभिलाषाएं मेरी भी.. परिकल्पित हूं आकारित हूं.. मेरे स्वप्न हैं जिनसे उद्धृत हूं.. कुछ चिंतित हूं.. हाँ विचलित हूं.. किन्तु फिर भी यूँ जीवित हूं.. किन्तु फिर भी यूँ जीवित हूं.. परिचय...