आत्मवंचना
माधवी तारे
लंदन
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पंचतत्व में विलीन मनमोहन
मत सुनो जनता की वलगना
आयु सागर में डुबकी लगा कर
प्रशंसा के स्तुति मौतिक लाए ये जन
बंधवा दिए इन्होंने स्तुति के पुल।
दुनिया की है यह रीति पुरानी
जीते जी तो करे मनमानी
श्मशानभूमि पर करे वंदना
स्तुतिसुमनों की उछाले रचना।
विपक्ष जब खोले शब्द खजाना
उम्र और पद का रखे न पैमाना
संविधान की करे अवमानना
जब सत्तांध का मद चढ़े सातवें आसमाना।
तुष्टिकरण का चुनावी बाणा
मुक्त हस्त से बांटे जन मेहनताना
अर्थनीति के दम को तोड़ना
देशभक्ति का पहन कर जामा।
लाए उबार आप राष्ट्र कोष
मौन की बहुत उड़ाई खिल्ली
काम किए पर मिली न प्रशंसा
जाने पर दौड़ी वाहवाही को दिल्ली।
इसलिए कहते हैं कवि
दुनिया की सबसे बड़ी सेवा
खुद को संतुष्ट कर खुश रहना
दे श्रद्धा सुमन जो दिल से
उन्हें ही आप सच्चा मानना।
परिचय :- माधवी तारे
वर्तमा...