नारी हूँ अभिशाप नहीं
महेश चंद जैन 'ज्योति'
महोली रोड़, मथुरा
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चिड़ियों के बिन सूना आँगन,
कलियाँ बिन सूनी डाली।
कन्या के बिन सूना लगता,
पूरा घर आँगन खाली।।
जब ये किलकें खेलें चहकें,
तृप्त नयन हो जाते हैं।
जीवन में जब पुण्य फलें तो,
कन्या का फल पाते हैं।।
मुझे जन्म लेने दे माता,
मैं भी अंश तुम्हारी हूँ।
बड़ी लड़ोधर हूँ पापा की,
घर की राजदुलारी हूँ।।
बचा-खुचा खाकर जी लूंगी,
भैया गोद खिलाऊंगी।
एक दिवस तेरे आँगन से
चिड़िया सी उड़ जाऊंगी।।
पढ़ा लिखा कर मुझको भी माँ,
खड़ी पैर पर कर देना।
होकर बड़ी करूंगी सेवा,
अच्छा सा चुन वर देना।।
तू भी नारी मैं भी नारी,
नारी होना पाप नहीं।
सूना जग नारी बिन सारा,
नारी हूँ अभिशाप नहीं।।
परिचय :- महेश चंद जैन 'ज्योति'
निवासी : महोली रोड़, मथुरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...