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Tag: भीष्म कुकरेती

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४
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ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** (चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं है) संकलनकर्ता - भीष्म कुकरेती ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा, उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ, बाड्यों, छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है), दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी, उत्तर में पाली गाँव हैं। ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है - लोक गायन व नृत्य - आम लोग, स्त्रियां गाती हैं, गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति...
भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६
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भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गुप्त कालीन आभूषण - गुप्त कला के शुरुवात कब हुयी पर अभी तक चर्चा होती ही रहती है व यह सत्य है कि सभी गुप्त युग को चौथी सदी के प्राम्भिक वर्षों से मध्य आठवीं सदी तक माना जाता है। वेशभूषा व आभूषण - बुध गुप्त के बुध गुप्त के अभिलेख पढने से गुप्त साम्राज्य के निम्न सम्राटों की सूचना मिलती हैं - महाराजा श्री गुप्त महाराजा श्री घटोंत कच्छ महाराजधिराज श्री चंद्र गुप्त प्रथम समुद्र गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय कुमार गुप्त प्रथम स्कन्द गुप्त पुरु गुप्त नरसिंघ गुप्त कुमार गुप्त द्वितीय बुद्ध गुप्त विनय गुप्त भानु गुप्त साक्ष्य - मुद्राएं, आदेश, अजंता, एलोरा उड़्यार, कई अभिलेख, यात्रियों की आत्मकथा, बाणभट्ट, कालिदास सरीखों के साहित्य आदि पुरुष वेशभूषा गुप्त सम्राटों ने कुषाण युग की शैली को अपनाया कि वेशभूषा पद व सम्मान के अनुसा...
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- ८
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राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- ८

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** एशिया में ढोल, ढोलक लोक संगीत का मुख्य अंग हैं। इसीलिए लोक ढोल या ढोलक विषयी गीत बहुतायत से मिलते हैं। यहाँ तक कि फिल्मों में भी ढोल/ढोल विषयी गीत मिलते हैं। राजस्थानी लोकगीतों में ढोलक विषय राजस्थानी लोक गीत तन और मन से सुन्दर नारी में सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति करने कला प्रति स्वाभाविक आकर्षण का उक सुन्दर उदाहरण है। राजस्थानी लोक गीत इंगित करता है कि गीत, संगीत और नृत्य का मानसिक प्रवृति के साथ घनिष्ठ संबंध है। एक सौन्दर्य उपासक नारी अपने प्रिय से ढोलक बजाने का आग्रह करती है। ढोलक बजाने के आग्रह में स्वाभाविक समर्थन भरा है। नारी कहती है कि हे प्रिय तू ढोलक ढमका और मै तरह के श्रृंगार कर साथ चलूंगी। थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो मै वारी जाऊं सा। मै वारी जाऊं सा। बलिहारी जाऊं सा। थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो बादल म्हारो लंहगा जी, किरण है ...
पशु मूत्र चिकित्सा पर्यटन
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पशु मूत्र चिकित्सा पर्यटन

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** पशु मूत्र चिकित्सा भारत में स्वमूत्र (५००० वर्ष प्राचीन) व पशु विशेषकर गौ मूत्र चिकित्सा ३००० व पहले से प्रसिद्ध चिकित्सा है। पंचगावय घृत व गौ मूत्र मंत्रणा तो प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। चरक संहिता सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश में मूत्र चिकित्सा हेतु विशेष अध्याय हैं। चरक संहिता के सूत्रस्थानम भाग के ९३ वे श्लोक से १०६ वे श्लोक तक मूत्र विवेचना है। इसी तरह सुश्रुत संहिता बागभट्ट संहिता में बे पशु मूत्र की विवेचना की गयी है। चरक संहिता ने निम्न पशु मूत्र से चिकत्सा पद्धति बतलायी है - १- भेड़ मूत्र २- बकरी मूत्र ३-गौ मूत्र ४-भैंस मूत्र ५- हस्ती मूत्र ६- गर्दभ मूत्र ७-ऊंट मूत्र ८-अश्व मूत्र चरक ने मूत्र के गुण इस प्रकार बताये हैं - गरम तीक्ष्ण कटु लवण युक्त पशु मूत्र निम्न रूप से औषधियों में उपयोग होते हैं - ...
गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
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गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या (गढ़वाली व राजस्थानी लोक गीत तुलना श्रृंखला) जल जीवन है। सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने परम्परा होती थी। राजस्थान हो या गढ़वाल-कुमाऊं का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य या परम्परा थी। भौगोलिक विशेषताओं के कारण दोनों क्षेत्रों में, जल सोत्र, पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग-अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग-अलग हैं। दोनों क्षेत्रों में जल भांड भी भिन्न होते हैं। देखें लोक गीतों में उत्तराखंड व राजनस्थान क्षेत्र की क्या क्या विशेषताएं होती हैं। राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या राजस्थान में पानी की कमी है, पानी भरने दूर कुँएँ तक जाना होता है और पानी लेन की क्या क्या समस्याएं हैं वह इस गीत म...
गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)
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गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती मनुष्य विकास के कारण मनुष्य में अन्य जानवरों के गुण पाए जाने से गंध, सुगंध का अति महत्व है। हमारे पांच इन्द्रियों में सबसे अधिक महत्व गंध का है। हम जो पढ़ते हैं या देखते हैं वह कुछ दिनों में भूल जाते हैं, जिसे छूते हैं उसका स्मरण कुछ माह तक होता है जो सुनते हैं कुछ समय तक याद रखा जा सकता है किन्तु जो सूंघते हैं (भोजन स्वाद भी सूंघने से पैदा होता है) व सबसे अधिक समय तक याद रहता है। हमारे कम्युनिकेशन में ४५% कार्य सुगंध या गंध का हाथ होता है। हमारी किसी के प्रति चाहत, प्रेम, उदासीनता, घृणा में गंध इन्द्रिय का सर्वाधिक हाथ होता है। हम अन्य इन्द्रिय प्रबह्व को परिभासित कर सकते हैं किन्तु गंध का विवरण देना नामुमकिन ही सा है। किड़ाण या खिकराण को परिभाषित करना कठिन है। गंध/सुगंध पर्यटन का मुख्यांग है ...
गढ़वाली और राजस्थानी लोकगीतों में देवी देवताओं का आम मानवीय आचरण
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गढ़वाली और राजस्थानी लोकगीतों में देवी देवताओं का आम मानवीय आचरण

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन : भाग- ५ भारत में सभी देवताओं को महानायक प्राप्त है। फिर भी लोक साहित्य में देवताओं को मानवीय व्यवहार करते दिखाया जाता है। राजस्थानी और गढवाली लोक गीतों में देवताओं को मानव भूमिका निभाते दिखाया जाता है। लोक गीतों में देवता अपनी अलौकिकता छोड़ में क्षेत्रीय भौगोलिक और सामाजिक हिसाब से में मिल गये हैं। लोक गीतों में शिवजी-पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु सभी देवगण साधारण मानव हो जाते है। लोक साहित्य विद्वान् श्री विद्या निवास मिश्र का कथन सटीक है कि "शिव, राम, कृष्ण, सीता, कौशल्या या देवकी जैसे चरित्र भी लोक साहित्य के चौरस उतरते ही अपनी गौरव गरिमा भूल कर लोक बाना धारण करके लोक में ही मिल जाते हैं। यहाँ तक कि लोक का सुख-दुःख भी वे अपने ऊपर ओढ़ने लगते हैं। उसी से लोक साहित्य की देव सृष्ठि भ...
बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग
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बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** साभार : डॉ. बलबीर सिंह रावत कंडली, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरिस्क्रित पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है। क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है, हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहाँ थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है। उत्तराखंड में इसकी बहुलता है, और इसे मनुष्य भी खाते हैं, दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायन तनों को गहथ झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते है। कन्डालि में जस्ता, ताम्बा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी१ , बी२, बी३, बी५, सी, और के, होते हैं, तथा ओमेगा ३ और ६ के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। इसकी फोरमिक ऐसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ा दायक, आसानी से चुभने वाले, सुईद...
दुख:द !! भारत में १४०० सालों से उत्पादक शीलता पर चर्चा ही नहीं होती !
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दुख:द !! भारत में १४०० सालों से उत्पादक शीलता पर चर्चा ही नहीं होती !

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ********************  भारत आज सब ओर से संघर्षरत है। प्रजातंत्र में पर खचांग लगाने नहीं प्रजातंत्र को समाप्त करवाने परिवारवाद का हर प्रदेश में नहीं हर पार्टी में बोलबाला है। जब चुनाव आते हैं, फिर से चुनाव में जीतने या विरोधी को लतपत चित्त करने हेतु विकास, मुफ्त, गरीबी हटाने आदि की चर्चा में अग्यो लग जाता है। मुफ्त, विकास व गरीबी हटाना आवश्यक है। होना भी चाहिए। किन्तु भारत पिछले १४०० सालों से एक विभीषिका से लड़ रहा है और सिरमौर (सर्वश्रेष्ठ, मुकुट) देश हर तरह से पिछड़ रहा है या मात खा रहा है। यह विभीषिका है भारत में उत्पादकशीलता याने प्रोडक्टिविटी पर चर्चा न होना। उत्पादकशीलता विचार गुप्त काल के पश्चात भारत से सर्वथा लुप्त हो गया है। प्रोडक्टिविटी ट्रेडिंग के पैर धो उसे चरणामृत समझ पी रही है। गुप्त काल के पश्चात राजकीय उठा पटक होते रहे और उत्पादनशीलता यान...
भारत में मृदा चिकित्सा पर्यटन से पर्यटन विकास
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भारत में मृदा चिकित्सा पर्यटन से पर्यटन विकास

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** भारत मेडिकल टूरिज्म में कई सकारात्मक तत्वों के कारण प्रगति कर रहा है। मेडिकल टूरिज्म में प्राकृतिक चिकित्सा का योगदान भी अब वृद्धि पर है जैसे केरल व उत्तराखंड। प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन विकास में में मृदा चिकित्सा या मड थेरेपी टूरिज्म का महत्वपूर्ण योगदान है। मृदा चिकित्सा पर्यटन के विकास हेतु कई बातों पर ध्यान देना होगा। वैकल्पिक पर्यटन अथवा प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन विकास में मृदा अथवा मड चिकित्सा सुविधा आवश्यक है। मृदा चिकित्सा में मिट्टी मुख्य माध्यम होता है। मृदा चिकित्सा से निम्न लाभ मिलते हैं- मिट्टी सूर्य की किरणों से रंग चुस्ती लाती है और शरीर को प्रदान करती है। गठिया व त्वचा सुधर हेतु मृदा चिकित्सा लाभकारी है मृदा स्नान से त्वचा में बसे सूक्ष्म जीवाणु निकल जाते हैं मृदा स्नान या मृदा लेप से त्वचा रंध्र खुल जाते हैं मृदा ...