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Tag: भीमराव झरबड़े ‘जीवन’

दोहाष्टक
दोहा

दोहाष्टक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन रस बरसा मगर, हुई न प्रीति प्रगाढ़।। मृदु चुंबन की आस में, दुर्बल हुआ असाढ़।।१ चितवन ने होकर मुखर, बिछा दिया है जाल। चुग्गा चुगने को प्रणय, खग सा भरे उछाल।।२ मदिर नैन झुकते गये, रक्तिम हुए कपोल। चुंबन का प्रतिसाद पा, थिरक उठे रमझोल।।३ हृदय पृष्ठ पर प्रीति के, उग आये जलजात। नैनो से झरने लगे, प्रियता युक्त प्रपात।।४ ले स्वरूप संकल्पना, जोड़ - जोड़ संदर्भ। शब्द-बीज का प्रस्फुटन, हो जब कवि के गर्भ।।५ धरा मेघ मिल रच रहे, प्रियता के अनुबंध। रोम-रोम से आ रही, मदिर पावसी गंध।।६ जला दिये तारीफ कर, हीरामन ने दीप। रत्नसेन मन जा बसा, प्रिय के सिंहल द्वीप।।७ सम्बन्धों के दुर्ग की, कवच बने प्राचीर। मोती रखे सहेज कर, पड़ी सीप ज्यों नीर।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र...
अवगुंठन के खोल पट
दोहा

अवगुंठन के खोल पट

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अवगुंठन के खोल पट, सुधियों की बारात। थिरकी मानस पृष्ठ पर, जैसे निविड़ प्रपात।।१ अधर शलाका से प्रिया, गई अधर रस घोल। गुलमोहर पी मत्त है, करता कलित किलोल।।२ आतप का अवदान पा, तन हो गया निहंग। मन का वृंदावन रँगा, गुलमोहर के रंग।।३ अनुरंजक अवसाद ने, किये स्वप्न चैतन्य। भिगो गया अंतस पटल, सुधियों का पर्जन्य।।४ आशाएँ बूढ़ी हुई, साँझ गई जब हार। नव प्रभात ने फिर किया, किरणों से शृंगार।।५ पुष्प प्रभाती प्रीति के, चुनकर लायी भोर। अवसंजन की कामना, मुखर हुई पुरजोर।।६ हुआ समर्पित भाव से, प्रणयन जो अनुमन्य। मरुथल मन महका गये, सुधियों के पर्जन्य।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
फागुन ने आलाप भर …
दोहा

फागुन ने आलाप भर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन ने आलाप भर, पढ़े प्रीति के छंद। बढ़ा समीरण में नशा, पुष्प-पुष्प मकरंद।।१ मन्मथ पर मधुमास का, ज्यों ही पड़ा प्रभाव। खारिज यौवन ने किया, पतझड़ का प्रस्ताव।।२ तन कान्हा की बाँसुरी, मन राधिका मृदंग। बजा स्वयं नित झूमता, 'जीवन'हुआ मलंग।।३ मन के गमले में खिला, दुर्लभ प्रीति गुलाब। झुककर स्वागत में खड़ा, इस तन का महताब।।४ देख रहा है स्वर्ग से, जब से मरा कबीर। भेदभाव की हो रही, गहरी और लकीर।।५ सड़कों पर आएँ निकल, घर के पूजन-पाठ। शिक्षित हो कर बन गया, हृदय हिन्द का काठ।।६ शकुनि चित्त जब-जब चले, छल चौसर के दाँव। दुख का आतप जीतता, हारे सुख की छाँव।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
भोर की ठंडी छुअन
गीतिका

भोर की ठंडी छुअन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भोर की ठंडी छुअन-सी, प्रीति का अहसास हो तुम। चंद्र मुख पर खिलखिलाता पूर्णमासी हास हो तुम।।१ रूपसी हो देख कर, शृंगार भी तुमको लजाता, रत्नगर्भा पर सजा, सौंदर्य का मधुमास हो तुम।।२ बिन तुम्हारे सब तिमिर घन, आ खड़े हैं क्लेश लेकर, जिन्दगी का हो उजाला, हर्ष का आभास हो तुम।।३ शील संयम ज्ञान साहस, उर दया भरपूर लेकिन, भूख तन की प्यास मन की, प्राण का वातास हो तुम।।४ बन पपीहा मन पुकारे, मैं यहाँ पिय तुम कहाँ हो, द्वार सजती अल्पना हो, पर्व का उल्लास हो तुम।।५ रागिनी हो राग हो सुर ताल लय का तुम निलय हो, धड़कनों से छंद गाती, गीत का विश्वास हो तुम।।६ कुंज 'जीवन' का सुवासित आ करो मधुमालती बन, मोगरा, चम्पा, चमेली, कौमुदी से खास हो तुम।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा ...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने...
सामाजिक कारा
गीतिका

सामाजिक कारा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुई प्रस्फुटित ज्यों ही उर में, सहज प्रणय धारा। लगा तोड़ने मन का मधुकर, सामाजिक कारा।।१ स्वाभिमान का ध्वज ले हाथों, खड़ा प्रपंचक भी, भेदभाव की तपिश बढ़ा कर, नाप रहा पारा।।२ अनुरंजन से फलित धरा पर, सत्ता का लालच, सींच घृणा का जल बो देता, विष वर्धक चारा।।३ पिछड़ों के घर आग लगाकर, हाथ सेंकता जो, जोर-शोर से लगा रहा अब, समता का नारा।।४ प्रतिभा का सपना जब छीना, जालिम रिश्वत ने, पल भर में मीठी सुधियों का, स्वाद हुआ खारा।।५ अवसादों की गझिन तमिस्रा, में डूबा जब मन, छिटक खड़ा दिल अवलंबन से, 'जीवन' का हारा।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
भव्य स्वप्न जागकर
गीतिका

भव्य स्वप्न जागकर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भव्य स्वप्न जागकर निहारते चलो सखे। मूर्त रूप भूमि पर उतारते चलो सखे।।१ शीश मातृभूमि का तना रहे सदैव ही, भाव राष्ट्रप्रेम का निखारते चलो सखे।।२ सृष्टि हो समृद्ध प्राण तत्व हो यथेष्ट सब, लोभ, मोह, राग ,द्वेष मारते चलो सखे।।३ हो न भेदभाव के निशान सुक्ष्म भी कहीं, साम्य भाव का स्वभाव धारते चलो सखे।।४ पंख जो विकास का न छू सके अभी गगन, धैर्य, प्रीति से उन्हें सँवारते चलो सखे।।५ दासता न दीनता सकें पसार पाँव अब, हो समर्थ जन सभी पुकारते चलो सखे।।६ प्रेम तत्त्व ज्ञान तत्त्व से सजे मनुष्यता, बुद्ध मार्ग शुद्ध है विचारते चलो सखे।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका
गीतिका

पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** जल ही जीवन, तत्त्व प्रमुख है, जलमय है सारा संसार। उठ जाता है दाना-पानी, बिन जल मचता हाहाकार।।१ जल में रहकर बैर मगर से, करता कभी नहीं विद्वान, पानी फिर जाता है श्रम पर, मत पानी पर लाठी मार।।२ कच्चे घट में पानी भरना, अर्थ और श्रम का नुकसान, आग लगा देता पानी में, जिसने खुद को लिया निखार।।३ अधजल गगरी चले छलकते, जाने कब पानी का मोल, पानी भरना, पानी देना, पानी सा रखना व्यवहार।।४ चुल्लू भर पानी में मरना, नहीं चाहता है गुणवान, तलवे धोकर पानी पीना, सीख गया मन का मक्कार।।५ दूध-दूध पानी को पानी, करता सच्चे मन का हंस, हुक्का-पानी बंद न करना, कभी किसी का पानी मार।।६ घाट-घाट का पानी पीना, नहीं सभी के वश की बात, पानी पीकर कोस न 'जीवन', पानी की सबको दरकार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतू...
तुहिन कणों से
दोहा

तुहिन कणों से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तुहिन कणों से ज्यों भरा, प्रत्यूषा ने अंक। कांतियुक्त आदित्य की, काया हुई मयंक।। ठिठुरे हुए निसर्ग को, काया के अनुरूप। खोल पिटारी बाँटता, अर्क मखमली धूप।। सिंदूरी सा ज्यों हुआ,प्राची का मुख म्लान। गीत प्रभाती गा विहग, भरने लगे उड़ान।। गाये सुख की छाँव ने, गीत मंगलाचार। मिला धूप के पाँव को, छालों का संसार।। द्वेष जलाकर प्रीति का,उपजाते सद्भाव। बने सहारा शीत में, आदिम हुए अलाव।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
तुम्हारी बातों में
गीतिका

तुम्हारी बातों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मधुरिम सी मनुहार, तुम्हारी बातों में। है अनुपम शृंगार, तुम्हारी बातों में।।१ शब्द-शब्द है स्रोत,अपरिमित ऊर्जा का, भरे सरस उद्गार, तुम्हारी बातों में।।२ संदर्भों के अर्थ, निकलते बहुतेरे, भावों का विस्तार, तुम्हारी बातों में।।३ खिलें हर्ष के पुष्प, महकता कुसुमित मन, मधु ऋतु सरिस बहार, तुम्हारी बातों में।।४ घायल हुए अनेक, समर में नैनों के, चले तीर-तलवार, तुम्हारी बातों में।।५ आशाओं के बाग, उजड़ते देखे जब, सुलगे स्वप्न हजार, तुम्हारी बातों में।।६ रहे बाँचते मौन, हृदय के पन्ने पर, खबरों का बाजार, तुम्हारी बातों में।।७ 'जीवन' के अनुबंध, हुए जिसके कारण, मिला न वह सुख सार, तुम्हारी बातों में।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...
धूप
दोहा

धूप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुआ देह का धूप से, मनभावन सत्संग। खिलें कुमुदिनी की तरह, शीतल सिकुड़े अंग।।१ भोर अगहनी दे गई, भू पर छटा अनूप। आँगन में आ खेलती, कोमलांग सी धूप।।२ बालकनी में भोर से, ठिठक खड़ी है धूप। सेंक रही है पीठ को, बचा-बचाकर रूप।।३ गिरफ्तार कर धूप को, ठोक रहे घन ताल। उजड़ गई जो आजकल, सूरज की चौपाल।।४ मतदाता के नैन पर, पट्टी बाँधे भूप। बाँट रहा है छीनकर, मुट्ठी-मुट्ठी धूप।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
चले धार पर
गीत

चले धार पर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चले धार पर, रही हमेशा साँसें साँसत में। एक कुल्हाड़ी और दराती, मिली विरासत में।। रोज उज्ज्वला ढोती सिर पर, लकड़ी का गट्ठर। पथ पर भूखे देख भेड़िये, देह स्वेद से तर।। भूख प्यास लेकर बैठी है, देह हिरासत में।।१ कानी-खोटी सुनकर पाया, दाम इकाई में। नमक मिर्च भी लाना मुश्किल, इस महँगाई में।। है गरीब सस्ता सब कुछ, यहाँ रियासत में।।२ पाँच बरस में एक बार ही, मंडी खुलती है। जिसमें अपने जीवन भर की, किस्मत तुलती है।। वोट तलक अपनापन मिलता, हमें सियासत में।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
बापूजी
गीतिका

बापूजी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बदल लिया है चोला सब ने, बदल गए ढब बापूजी। दिखा रहे दल झूठे सारे, अपने करतब बापूजी।।१ बुरा न बोलो, सुनो, न देखो, बदली सबकी परिभाषा, इन राहों पर चलता कोई, दिखा नहीं अब बापूजी।।२ सत्य अहिंसा दया प्रेम के, अर्थ हुए सब बेमानी, स्वार्थ साधना में रम जाना, सबका मतलब बापूजी।।३ सम्मानों के ओढ़ दुशालें, कलमें भूली बल अपना, शर्मिंदा है नजरें उनकी, बंद पड़े लब बापूजी।।४ चाहा तुमने यहाँ रोपना, भाईचारे के उपवन, भेदभाव के उग आए पर, सारे मजहब बापूजी।।५ टाँग खींचना और गिराना, फिर चढ़ना है ऊपर को, ताड़ रही नजरें सबकी, ऊँचे मनसब बापूजी।।६ आड़ तुम्हारे तस्वीरों की, कब तक इन्हें बचाएगी। तुम्हें बनाने लगे हुए जो, अपना ही रब बापूजी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
जाग, अब मत सो चिरैया
गीत

जाग, अब मत सो चिरैया

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** है बड़ा निष्ठुर जमाना। जाँच के ही पग उठाना। सद्जनों में है अहेरी, जाल सब जाने बिछाना।। हाथ में तलवार रख ले, चाहती हक जो चिरैया।।१ छाँव के छाते तने हैं। बस दिखावे को बने हैं। तंत्र के साधक सिपाही, काम लिप्सा में सने हैं।। स्वप्न के उर्वर पटल पर, शूल तू मत बो चिरैया।।२ घाव रिश्तों ने दिए जो। खून के आँसू पिए जो। अब चुकाने का समय है, कर्ज वे मन पर लिए जो।। कीच जो तुझ पर उछाले, अब उन्हीं को धो चिरैया।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
सावन के घर
गीत

सावन के घर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** धरना देने सावन के घर, पहुँचा रिक्त घड़ा। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।। खेत धान के माँगे पानी, मक्का मुरझायी। उड़द मूँग मौजेक ग्रस्त हैं,अरहर अलसायी।। गिलकी लौकी कद्दू के तन, विष का शूल गड़ा।। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।।१ ज्वार बाजरा आरक्षण की, देख रहे राहें। मतदाता गन्ना भी चाहे, पकड़ो अब बाहें।। धमकी देता मूँगफली का, घायल हुआ धड़ा।। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।।२ कुल्थी सन जगनी ने पायी, राहत दो चुटकी। हुई अल्पसंख्यक श्रेणी में, जब कोदो-कुटकी।। मेघराज ने जल वितरण में, पहरा किया कड़ा।। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
प्रीति की रसधार हो तुम
गीतिका

प्रीति की रसधार हो तुम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यास जो दिल की बढ़ाए, प्रीति की रसधार हो तुम। छेड़ दे संगीत स्वर जो, कर्ण प्रिय झंकार हो तुम।।१ प्राण बनकर बस गई हो, श्वास में प्रश्वास में हर, शुष्क पतझड़ उर विपिन का मौसमी श्रृंगार हो तुम।।२ घोर तम में टिटहरी सी, आस की आवाज देकर, रश्मियों सी छू रही तन, भोर का उपहार हो तुम।।३ महमहाते बाग में तुम, चहचहाती पंछियों सी, जो न उजड़ेगा कभी, सौंदर्य का बाजार हो तुम।।४ उर समंदर में विचारों की भटकती नाव जब भी, दर्द देती उर्मियों को चीरती पतवार हो तुम।।५ हो गया साकार 'जीवन' जो किया गठजोड़ तुम से, स्वप्न देखे जिस भवन के, नींव का आधार हो तुम।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
नीर जैसी जिंदगी
गीतिका

नीर जैसी जिंदगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** स्वच्छ चंचल नत नदी के, नीर जैसी जिंदगी। मुक्त नम मारुत सरीखी, हीर जैसी जिंदगी।।१ पंछियों सी चहचहाती,नीड़ नभ तरु के शिखर, चुलबुली बन पर पसारे,चीर जैसी जिंदगी।।२ स्वाद के नौ रस समेटे, इस प्रकृति के थाल में, चटपटी नमकीन खारी, खीर जैसी जिंदगी।।३ दासताओं की सुदृढ़, दीवार मटियामेट कर, व्योम छूने को खड़ी, प्राचीर जैसी जिंदगी।।४ लहलहाते खेत जो, मरु सींचते है स्वेद से, मौसमी संताप सहती, धीर जैसी जिंदगी।।५ सज तिरंगे में विहँसती, सरहदों पर देश के, मातृ भू पर यह खनकती, वीर जैसी जिंदगी।।६ रातरानी सी गमकती, बाँटती खुश्बू फिरे, कामना से मुक्त यह तस्वीर जैसी जिंदगी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …
गीतिका

अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जिंदा रखने, अक्षर-अक्षर प्यार लिखें। कलम कसाई बनकर हम क्यों, दुखड़ों का अंबार लिखें।।१ बीज प्रीति के रोपित करने, मानव के बंजर उर पर, श्रम सीकर-सा सींच-सींच हम, करुणा के उद्गार लिखें।।२ छंदों के उद्यान उगा हम, महकाने वाले जग को, पंक्ति-पंक्ति में बस मानव के, सद्कर्मों का सार लिखें।।३ दिल के सम्यक् संयोजन कर, भरें मधुरिम काव्य के रस, कलुष भाव के भेद मिटा हम, प्रणय युक्त संसार लिखें।।४ विश्व शांति हो विश्व पटल पर, लहराएँ हम वह परचम, भाल भारती का हो उन्नत, ऐसा लोकाचार लिखें।।५ जला ज्ञान के दीप जगाएँ, हो जिनके घर अँधियारा, सत्पथ के राही हैं जितने, हम उनका आभार लिखें।।६ हो'जीवन'खुशियों से रोशन, मिट जाये अवसाद सभी, रोम-रोम में इस मिट्टी से, हम कुसुमित श्रंगार लिखें।।७ परिचय :- भीमराव...
इन तबेलों में
गीत

इन तबेलों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** इन तबेलों में हमारा घुट रहा है दम, कुछ पलों के ही लिए आजाद तो कर दो। कल तलक चरते रहे हम, खेत बीहड़ सब। हाथ से लिखते रहे सब, भाग के करतब। रोशनी जल वायु पर भी, हुक्म चलता था, ढोल अब इस तंत्र का तो, बज रहा बेढब। धर्म की इस खाल में उन्माद तो भर दो। कुछ पलों के ही लिए, आजाद तो कर दो।। जान फूँकी पत्थरों की देह में हमने। मेह रिश्वत की कभी हमने न दी थमने। तंत्र को थोड़ा मरोड़ा कुछ घसीटा बस, निर्धनों के पाँव हम देते नहीं जमने।। फिर हमारे स्वार्थ को आबाद तो कर दो। कुछ पलों के ही लिए आजाद तो कर दो।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
बंधक तन में टहल रही है
गीत, छंद

बंधक तन में टहल रही है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद- विष्णुपद बंधक तन में टहल रही है, श्वासें बन उलझन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।। डाल दिया आ खुशियों के घर, राहू ने डेरा। दुख की संगीनों ने तनकर, उजला दिन घेरा।। जगी आस का कर देता है, चाँद रोज खंडन।। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।१ अस्पताल के विक्षत तन में, श्वासों का टोटा। गरियाता पर अटल प्रबंधन, बिल देकर मोटा।। दैत्य वेंटिलेटर नित तोड़े, भव का अनुशासन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।२ एंबुलेंस की चीखें भरती, बेचैनी मन में। भूल गयी अब लाशें काँधे, चलती वाहन में।। बदल दिया है इस मौसम ने, मानस का चिंतन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
पीत पल्लव को बदल…
गीत

पीत पल्लव को बदल…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** पीत पल्लव को बदल मधुमास लायेंगे। भूलकर हम आज को, कल मुस्कुरायेंगे।। भर गयी है टीस उर में रात ये काली। उड़ गये पंछी घरों को छोड़कर खाली। मर्ज के सैलाब ने विश्वास तोड़ा पर, नवसृजन करने खड़ा है आज भी माली।। आँसुओं को पोंछ कर उल्लास लायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।१ मानते हम भूल अपनों की हुई सारी। जिस वजह से आज ये इंसानियत हारी। सीख लेंगे अब सबक जो कल हँसायेगा, फिर सुनेंगे कान मीठी बाल किलकारी।। रंग के उत्सव खुशी से जगमगायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।२ जख्म इस इतिहास का जब कल पढ़ायेंगे। नीड़ सूना कर गये सब याद आयेंगे।। गीत मंगल कामना के शेष है 'जीवन', जीत के हम फिर नये स्वर गुनगुनायेंगे।। जोड़ अंतस को नये पुल हम बनायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प...
उम्मीदों की भोर …
गीत

उम्मीदों की भोर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कष्टों की काली रजनी का, आया अंतिम छोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।। घूम रही है हवा विषैली, बन कर काला नाग। खुशियों के घर जला रही है, श्मशानों की आग।। कानों में घोला है दुख ने, त्राहि माम का शोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।१ डोल गया है बुरे वक्त में, लालच का ईमान। श्वासों का सौदा करते हैं, पग-पग पर शैतान।। काट रहे हैं चाँदी निर्मम, भूखे आदमखोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।२ एड़ी ऊँची कर पूरब में, झाँक रही सब बाम। कोई सूरज आकर बाँचे, खुशियों के पैगाम।। विरह वेदना की खबरें तो, बिखरी हैं चहुँओर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।३ हाथों थामे रखना 'जीवन', धीरज की पतवार। स्वागत करने बैठे तट पर, करुणा के उद्गार।। सरक रहा है धीरे-धीरे, अपने ओर अँजोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।...
नवनीत
कविता

नवनीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव। आसमान के कान काटते, लोहा रेत सीमेंट। थर्राया है मजदूरों का, पन्नी वाला टेंट।। मन यायावर खोज रहा है, शीतल तरु का ठाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।१ निगल लिए हैं अब सड़कों ने, पगडंडी के पाँव। पेटरोल डीजल के कीर्तन, करें कान में काँव।। खपरैलों ने भी साहस कर, लगा दिया है दाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।२ चकाचौंध के आसमान में, उठने लगा गुबार। फव्वारों के उन्नत मस्तक, जता रहे आभार।। स्वागत करने खड़े किनारे, बाँट जोहते गाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
प्रेम रंग ले खेले होली
गीतिका

प्रेम रंग ले खेले होली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीतिका आधार छंद - चौपाई विधान - कुल १६ मात्राएँ, आदि में द्विकल त्रिकल त्रिकल वर्जित, अंत में गाल वर्जित समांत - ओली, अपदांत हँसी, खुशी, मस्ती की टोली। प्रेम रंग ले खेले होली।।१ चुन्नू-मुन्नू के मुखड़े अब, लगे उकेरी है रंगोली।।२ लाल हुआ है किंशुक का तन, सुन बसंत की हँसी ठिठोली।।३ महुए पर चढ़ दाग रहा है, फागुन पिचकारी से गोली।।४ हरिया धनिया देख चहकते, अटी अन्न से खाली खोली।।५ हुए पड़ोसन के स्वर मीठे, कोकिल ने मुख मिश्री घोली।।६ सरस लेखनी कहती है बस, 'जीवन' के भावों की बोली।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
हुए बाग के भ्रमर मवाली
गीतिका

हुए बाग के भ्रमर मवाली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद- चौपाई (मापनी मुक्त मात्रिक) समांत- आली, अपदांत, कलियों से ले रहे दलाली। हुए बाग के भ्रमर मवाली।।१ आम्र बाग में छिप टहनी पर, सुना रही कोयल कव्वाली।।२ जब हिसाब माँगा बेटे ने, डूब गई माँ की हम्माली।।३ लाठी जब परदेश चली तो, टूट गई उम्मीदें पाली।।४ पके खेत तब बरसे ओले, उड़ी कृषक के मुख की लाली।।५ घिसी लकीरें श्रम के कर से, चमक न पाई किस्मत काली।।६ स्वप्न स्वार्थ के जागे जब भी, मुर्दों ने भी बदली पाली।।७ भाव प्रस्फुटित हुए न उर में, जब 'जीवन' ने कलम सँभाली।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष...