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Tag: भारमल गर्ग

क्या बना दिया ?
कविता

क्या बना दिया ?

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** देख रहे हो ऐसे यह तुमको नहीं ख़बर यह आद'मी था कभी धुआं बन गया ।। जिस मांझी ने हमको बताया तू है कहां ? उस मांझी ने दिखाया मेरा हुनर बन गया ।। पल भर की खुशियां किसको नहीं पता उन रेशमी धागों ने जीवन बना दिया ।। मैं जा रहा था अकेला इक रस्ते से कहीं इक खिड़की ने देखा दिन बना दिया ।। सोच रहे हो जिसको वो नहीं आज कल मसअ'ला देखते ही वीराना बना दिया ।। नज़रों का तो हैं यह सारा खेल मेरे दोस्त मैं सोचने लगा कि तुझे क्या बना दिया ।। यह तुम्हारा सोचना हैं बड़ी सोचने की बात तू समझा नहीं तुझे आशिक़ बना दिया ।। उस साख से पत्ता टूटते ही लगी ख़बर इक घर के दीए को तारा बना दिया ।। आई हवाएं सुरीली जैसे कोई मीत संगीत विलक्षण तेरी यादों ने क्या-क्या बना दिया ।। परिचय :- भारमल गर्ग निवासी : सांचौर जालोर...
प्रीत में डूबी
कविता

प्रीत में डूबी

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** नटनी नटखट आज बनी, बंजारन रूप । राह चलते तकती, उसी गुलाब का फूल ।। जीवन पथ में मिलता, सदा सदा यह हुक । रातों में रचती सपने, प्रेम यह पहली भूख ।। मन मंदिर में यह पूजा प्रीत लगाई आज । कल्पना में बह कर, भूल गई राह काज ।। बात बातों से ही रातें, करती रंगीन भोर । इन यादों के राह में रोड़े पढ़ता बैठा मोर ।। उड़ान भरी मन ने, जा पहुंचा बाजार । प्रीत में डूबी बंजारन, खरीदे गले हार ।। राधा जैसा रूप उसका, मन की लाग । गाती चिड़िया देखो, उसी वन में राग ।। जान है पहचान की, यह मन डोले मीत । देकर पुष्प आया हूं, उसी तीर नदी नीर ।। चला हूं उस पथ पर चले ना राग विचार । बंजारन को सांसों की सौप दी पतवार ।। मिलना - मिलाना चाहिए जीवन की धार । कर्म करुणा के काज में उल्टा गर्ग अपार ।। परिचय :- भारमल गर्...
मन की विवेचना
कविता

मन की विवेचना

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** अनुराग अनुभूति मिला आज आनुषंगिक, निरूपम अद्वितीय शून्यता हुआ! देख अपकर्ष अपरिहार्य के साथ। यदा-कदा अनुकंपा, अनुकृति अहितकर असमयोचित इंद्रियबोध रहित! अक्षम अनभिज्ञ बता रहे पारायण ज्ञान। अदायगी अविराम ले रहा तंद्रालु बन गया में, क्लेश अग्रवर्ती पूर्वाभास से अचवना कर रहा में, अचल मन पर अज्ञ तन अशिष्ट बेतहाशा बढ़ रहा में। मीठा कथन सबसे बड़ा, होता भेषज प्रतीक हरती विपदा सब जहाँ, मनुज ये तू है तीक्ष्ण! मुकुर निरर्थक बन जा पहली बार, वृत्ति की मुक्ति अन्वेषण सुरभोग सुधा बन बैठा में। सिमरसी वैराग्य सर्वस्व अर्पण सारथी मन टूट रहा अपरिग्रह कर गया में! पुलकित आलोक अत्युच्च उत्सर्ग अनुग्रह आज, स्मरणीय दायित्व निर्वहन नवीन नवोन्मेष के संग। बड़भागी पुरईन बोरयौ परागी प्रीति में, बिहसी कालबस मंद करनी काज, विलम्ब विद्यमान जनावहीं आज घोरा मोहि लागे...
बादल रुक जा
कविता

बादल रुक जा

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** बादल रुक जा क्यों घटा छाई है, परवाने घूम रहे हैं, क्यों छाया दिखाई है। नवोद्भिद् एहसास कृशानु रोहिताश्व दिखाई है, संकेत प्रपंचरंध्रा होंगी छद्मी आवेश नहीं बना विवेक रह जा चरित्रता के संग पहचान होगी तेरी भी जब होगा तेरा अचल रंग बिखरे नहीं तू ढंग तेरा होगा अग्निशिखा के सम्मान रुख बदल दे अपना भी स्वयं पर आजमा सम्मान। दैवयोगा दैवयोगा हैं, परिणिता पार्थ को दिखाई है, सुरभोग कलयुग में अनर्ह के साथ सजी है, सहस्रार्जुन अब तिरस्कार हो रहा मेरा इस तमीचर ने विगत अदक्ष वल्कफल कि भांति शब्दों में ढाल सजाई है। सुखवनिता नहीं रह पाती सुजात बनकर, दर्प लोग अब मिथ्याभिमान आक्षेप लगाते हैं, पुनरावृत्ति अब कराने लगे धनाढ्य अनश्वर की प्रतीक्षा में अवबोधक का अनुदेशक अलग-अलग अन्तर्ध्यान भी अशुचि अशिष्ट पराश्रित प्रज्ञाचक्षु के बनकर बैठे हैं यह बादल यह कैसी ...
प्रीति चित्रण
कविता, डायरी

प्रीति चित्रण

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** मौन धारण कर वचन मेरे, लज्जा आए प्रीत मेरे। मगन प्रेम सांसे सत्य ही है, शब्द अनुराग है मेरे।। दुखद: प्रेम सदियों से चला आया। माया, लोभ ने विवश बनाया।। कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए, विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं। प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण मन को भाता यह बोध विधान।। बजता प्रेम का है यह अलौकिक संदर्भ जगत में। देखो सजना सजे हैं हम प्रेम इन जीवन अब हाट पे।। स्वर का विश्वास नहीं, देखो माया संसार में। वाणी के बाजे भी अब तो, टूट गए हैं आस में।। प्याला मदिरा का मनमोहक दृश्य लगे जीवन आधार में। बिखरे हैं यह सज्जन देखो, टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।। कलयुग में सजती है स्वर्ण कि यह लंका। ताम्र भाती प्रेम बना है, प्रेम यह संसार में।। मैं चला हूं उस पथ पर अग्रसर कटु सत्य वचन से। मिथ्य वाणी ना बोलता सदा करूं मनमोहक जीवन से।। एहसास है मेरे, ह...