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Tag: बृजेश कुमार सिंह

अपनी धुन में जीलो
कविता

अपनी धुन में जीलो

बृजेश कुमार सिंह करण्डा, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कहते है सब लोग, समय बङा बलवान.. मन मे आया एकदिन विचार अति महान्.. क्यूँ न मै भी समय का साथी बनजाऊॅ.. उसके साथ-साथ चलकर बलवान क्यूँ न कहलाऊॅ.? फिर क्या था जीवन में..? उठना चलना 'समय' के संग मे.. 'समय' संग चलने के चक्कर मे, कितनी खुशियों को खोया मैं.. जीवन को गमों मे डुबोया मैं.. चलते-चलते थक हार गया.. व्यर्थ मे ये जीवन गुजार गया.. आगे बढता 'समय' यह ताङ गया.. मेरा हमराही अब तो हार गया.. 'समय' ने मुझको यह समझाया, "मेरे साथ-साथ क्यूँ चलता आया.. मेरी नियति तो चलना है .. पर तुमको तो एकदिन मरना है.. मेरा साथ पकङने से सोचो तुम क्या पा जाओगे ? जो कुछ कमाया तूने सब छोड़ यहीं पर जाओगे.. अपनी धुन में जीलो प्यारे.. ये जीवन न दुबारा पाओगे..!!" परिचय :-  बृजेश कुमार सिंह निवासी : करण्डा, गाजीपुर...
उपेक्षित उर्मिला
कविता

उपेक्षित उर्मिला

बृजेश कुमार सिंह करण्डा, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** साहित्य भरा पड़ा हुआ है बहुतों के व्यर्थ सम्मान से, आओ लेखनी को धन्य करें उपेक्षित उर्मिला के गान से..!! राम संग वन गमन हेतु तैयार हुए थे जब लक्ष्मण.. उर्मिला ने भी संग चलने का प्रस्ताव रखा था तत्क्षण.. माताओं-परिजनों को प्राणप्रिये तुम्हारी है बहुत जरूरत.. लक्ष्मण ने वन न जाने के लिए उर्मिला को कर लिया सहमत.. सुमित्रानंदन ने उर्मिला से यह ले लिया वचन.. भूलकर भी आंसू नहीं लाएंगे ये तेरे नयन.. अपने ही दुख में गर तुम डूबी रहोगी.. माताओं-परिजनों का ख्याल तब कैसे रखोगी.? बंध गया अगाध यौवन अशिथिलनीय प्रतिमान से.. आओ लेखनी को धन्य करें उपेक्षित उर्मिला के गान से..!! कितना शूलकारी रहा होगा नव विवाहिता के लिए वह छन, जब प्राणाधार जा रहे हो चौदह वर्षों के लिए वन.. वह महाविदाई का कठिन समय ...