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Tag: बृजेश आनन्द राय

ऐ वसन्त!
कविता

ऐ वसन्त!

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐ वसन्त! तुम मत लाना पानी संग पत्थर; सरसो खड़ी है हमारे खेत में! कुछ दिन रुक जाना, फिर बरसाना; पर केवल रसधार! पकने वाली है अरहर की फलियॉ, लगने वाली है गेहूं में बाली; अपनी सखी हवा से कहना, 'धीरे बहने को' ; लोट न जाने देना अलसी को, जी भर कभी निहारना; नाचते चने के ऊपर- लहराते लतरी को! चूक न करना कोई ! बहते रहना, फागुन से चैती तक... निर्बाध ... अनिन्दित... रसमय होकर!! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
कुछ भी स्थिर नहीं है जग में
कविता

कुछ भी स्थिर नहीं है जग में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ भी स्थिर नहीं है जग में 'रूप-रंग' झुठलाना होगा! ठुकरा कर 'प्रणय-निवेदन' मेरा प्रिय, इक दिन पछताना होगा...!! ज्यों-तेरा बचपन है बीता त्यों-बीतेंगे दिन यौवन के साँझ घिरी आती है देखो, 'इन्द्रजाल-जीवन-अम्बर-के!' ये 'गगन-सिन्दुरी' भी जाएगी... 'सब-स्याह-में-खो-जाना होगा!' ठुकरा-कर प्रणय-निवेदन मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। मैं मन्दिर में देख रहा हूँ, 'प्रत्युष का इक दीप बुझ रहा, जहाँ अगुरु-धूम सुवासित था, वहाँ उमस औ घुटन उठ रहा', 'मन-सुकून' था जिस दर्शन में- अब-लगे न फिर पाना होगा... ठुकरा-कर 'प्रणय निवेदन' मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। 'नव-मूरत' का मोह है केवल 'न-विग्रह-प्राण-प्रतिष्ठित' है अन्तर्मन में झाँक के देखो! 'सत-सुन्दर-छवि' स्थापित है 'नयन-यवनिका' फिर से खोलो 'चिर-सत्य-प्रेम-द...
हे मॉ, हे मॉ सरस्वती
भजन, स्तुति

हे मॉ, हे मॉ सरस्वती

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे माँ, हे माँ सरस्वती विद्या-दायिनी, माँ भगवती! नत-सिर, निमीलित नयन प्रणम्य शिरसा, करूँ निवेदन रुग्ण है आज, विश्व-जीवन उद्धार का कुछ करो चिन्तन हे माँ, हे माँ प्रज्ञावती विद्यादायिनी, माँ भगवती! संकट में है मनुज-जीवन नाश का है सर्वत्र-दर्शन अज्ञानता का है प्रवर्तन करो, करुणा का आवर्तन हे माँ, हे माँ विद्यावती विद्यादायिनी, माँ भगवती! वीणा की मधु-रागिनी से कमण्डल-प्रवाहिनी से दिव्य-ज्ञान-संजीवनी से सर्व-प्राण का संचार कर दो हे माँ, हे माँ जीवनदात्री विद्यादायिनी, माँ भगवती! अस्तित्व का सागर लहराए मन, जीवन-गीत गाए अमरता की ज्योतिपुंज फिर मनुजता में समा जाए हे माँ, हे माँ मनुष्यमती विद्यादायिनी, माँ भगवती! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
आओ खाएँ चूड़ा-लाई…
कविता

आओ खाएँ चूड़ा-लाई…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ खाएँ चूड़ा लाई 'चाऊ-माऊ', खिचड़ी आई मुन्ना आओ, मुन्नी आओ झुन्ना-टुन्ना, तुम भी आओ आओ सारे बच्चे आओ सब पुआल पर बैठें आओ गजहर पर सभी सज जाओ कुरई अदल-बदल कर खाओ बैठो, बोर-चटाई लेकर गुड़-तिल और चबैना लेकर देखो, धूप सुहानी निकली लगता निज-घर लौटी बदली बहु-दिनों से छायी हुई थी सबसे खार खाई हुई थी दादा जी को खूब सताया 'झुनझुन-मुनझुन' को रिसियाया सुन्दर बाछा-बाछी हैं ये द्वार-दौड़ के साझी हैं ये बारिश-मड़या में रहते थे टाटी से झाँका करते थे आज जब पगहा है निकला देखो, कैसे दौड़े अगला! श्वानों के शिशु खेल रहे हैं पटका-पटकी मेल रहे हैं कूँ-कूँ कभी काँय-काँय करते कभी ये-वो भारी पड़ते रानू-चीकू, पतंग उड़ाते एक दूजे से पेंच लड़ाते, जब 'कोई-जन' पतंग उड़ाए काट दिये पर क्यों पछताए पतंग खेल भैय्या लोगों का नहीं खेल छ...