सुख का सपना सब रीत गया
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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सुख का सपना सब रीत गया,
ऐसे ही जीवन बीत गया।।
सुबह की सुषमा से विभोरित,
सँग तेरी यादों के पथपर...
चला किया मधु की आशा में,
सूरज की लाली को पाकर...
जानें किरणें प्रखर हुईं कब,
मन हार गया, दुख जीत गया।
सुख का सपना सब रीत गया।
ऐसे ही जीवन बीत गया।।
कभी नहीं हँस पाया मैंने,
आहत समय गंँवाया मैंने।
चेहरे पर मुस्कान लिया कब,
कोई भी अरमान जिया कब?
कब 'मुर्छित-मौसम' दे पाया...
सोये फूलों पे गीत नया।।
सुख का सपना सब रीत गया,
ऐसे ही जीवन बीत गया।।
पर्वत के ऊपर ठहरे थे,
पानी के अन्दर गहरे थे।
सभी जगह मेरी आँखों में,
उनकी छवि के ही पहरे थे।
फिर भी कब मैं जान सका हूँ;
निष्फल हो कैसे प्रीत गया।
सुख का सपना सब रीत गया ,
ऐसे ही जीवन बीत गया।।
गहन कुहासा धरा पे आए,
वारिद नहीं गगन में गाए।
फीकी पड़तीं...