पद्मावत छंद
बलबीर सिंह वर्मा "वागीश"
सिरसा (हरियाणा)
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पद्मावती छ्न्द
१०, ८, १४ की यति से ३२ मात्रा का सम मात्रिक छ्न्द, अंत में दो गुरु मात्रा अनिवार्य, जगण नहीं आना चाहिए। दो-दो चरण तुकान्त।
(१)
कंचन सी काया, मन भरमाया,
बिखरी मुख पर ज्यों लाली।
हैं अधर गुलाबी, बनी नवाबी,
लगती कितनी मतवाली।
ये नैन नशीले, लगें सजीले,
सूरत नारी की प्यारी।
ईश्वर की माया, पार न पाया,
सम्मोहित दुनिया सारी।
(२)
नारी थी अबला, अब है सबला,
जग पालक है यह नारी।
आँगन की छाया, घर की माया,
फिर भी रहती दुखियारी।
नारी की पूजा, ईश्वर दूजा,
सबने महिमा है गाई।
दुर्गा ये काली, ममता वाली,
है यही भवानी माई।
(३)
हे नंद दुलारे, यशुमति प्यारे,
राधिका पुकारे आओ।
करो नहीं देरी, सुन लो मेरी,
मुरली की तान सुनाओ।
दर्शन की प्यासी, कान्हा दासी,
आकर अब गले लगाओ।
छोड़ों मनमानी, शाम सुह...