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Tag: बबली राठौर

उम्मीद का दामन
गीत

उम्मीद का दामन

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ३० मापी मेरा मन ये प्यासा है कोरे कागज की तरह से दिल ये प्यार में घायल है कोरे कागज की तरह से जीवन में मेरे कोई कमी नहीं उजली राहों की और तो और ना ही जिन्दगी में अरे बहरों की क्यों दिल कहता है तुम्हारे कि मेरे अफसानों की और ये दिल दिल खोया है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में अरे मैंने सपना देखा बनूँ दुल्हन की और खिलौना नहीं है ये दिल भी किसी से खेले की हमेशा रहा है उमंगे लिए अपने मन अन्तिस की दिल बसा तुममें है, मन है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में रोशनी मिली है हमें तो हाँ बहरों की और हमें जिन्दगी में कुछ उम्मीदें हैं तुमसे भी तुम तो सुनना कुछ हमारे इस सौगात भरे दिल की जो तुम्हें याद करता है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
कभी काश हमारे होते
ग़ज़ल

कभी काश हमारे होते

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** २८- मापी मेरे तुम कि जीवन में कभी काश हमारे होते और कभी सुख के साए भी काश हमारे होते ये आज मेरी जो जिन्दगी में गम, दर्द, घाव हैं ना होते ये जख्म आप जो काश हमारे होते ना साथ है ये किस्मत और तकदीर मेरी सजन जला तदबीर हाथों दिल तुम काश हमारे होते खुदा जाने है मेरी हर वो बात मुहोब्बत की करती हूँ इबादत की आप काश हमारे होते तुमसे जन्म-जन्म से की ख्वाईश थी हमारी ना अरमां बिखरते तुम अगर काश हमारे होते परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
रश्मियाँ भोर की
कविता

रश्मियाँ भोर की

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है सभी को साथ वो रश्मियाँ भोर की लोगों की चहल-पहल दिखने लगी है सड़क पर साथ चमकती ये रश्मियाँ भोर की कार्य शुरू होने लगे घरों के और जाने लगे दफ्तर, स्कूल को बच्चे सभी जीवन संघर्ष होनें लगा दिन भर की दिनचर्या लेकर साथ रश्मियाँ भोर की ये तो राज गहरा है जिन्दगी में दिनकर, आदित्य, रवि और इस धरती का सखि उजाला देकर अंधकार भू-माता संग लोगों की है हरती ये रश्मियाँ भोर की अस्त भी होते हैं सूर्य देव शाम को दूसरी भोर में उदय होने के लिए हे इंसा ताकि संसारिक बुने सपने, उठ सकें देखने को हँसती रश्मियाँ भोर की चलती है जीवन की डोर कुदरती सुंदरता से भी जो लुभाती है मन को ओस की बूँदें पत्तियों पर पड़ी खिलने लगतीं हैं देखकर रश्मियाँ भोर की परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं य...
नाईट लैम्प
लघुकथा

नाईट लैम्प

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जमाना प्राचीन काल और इस वर्तमान युग में अगर अंतर देखा जाए तो बहुत सुविधाएँ और इंसान को चीजो से.... जैसे जो हाथ से चीजें...बनाई जातीं थीं वर्तमान में ज्यादा तर खत्म हो चुकीं हैं। रानी अपनी सास से कहते-कहते काम कर रहीं थीं। लेकिन बीच रतनलाल.... रानी की बातें सुन कर कहने लगे..... तुम बहुत सही कह रही हो और कड़वी बात भी कह रही हो। जो हाथ की कलाकारी करते थे... दिखाते थे वो ही घाटे में जा रहे हैं क्योंकि कारीगर कम हैं तथा कीमत समान, साड़ियों, चित्रकला की जरूरत से ज्यादा है। आम आदमी खरीदे कैसे मन मार कर रह जाते हैं क्योंकि घर चलाना होता है, बच्चों की पढ़ाई के खर्च इत्यादि के कारण पीछे रह जाता है। आजकल हाथ की चीजें सिर्फ अमीरों के शौक हो कर रह गए हैं। अपने से ही रानी तुम देख लो.... तुम्हें ये सूती साड़ी तैयार करनी है दिन में तुम्हें वक्त नह...
उड़ान
कविता

उड़ान

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ये भी जीवन होता कठिन रास्तों का हमेशा सीढ़ियाँ फूँक-फूँक कर चलो तुम ऐसा ये कथ्य है मेरे पिता स्वर्गीय का हाँ ये कि अभी वक्त है उड़ान भर लो तुम समय का कोई अता-पता नहीं होता है कभी किसी गलत रास्ते में भटकना ना तुम ये जमाना बहुत खराब आज के दौर काहै ओ बिटिया बहुत सरल नादानियाँ करना ना तुम मेरी पगड़ी कभी उछलने तुम ना देना अपनी इज्जत अपने हाथों से संभालना तुम जब कभी जिन्दगी में तुम डगमगाओ भी तो अपने को कमजोर बनाना कभी ना तुम हमेशा तुम्हारे हौंसले बुलंद रहे जीवन के और कदम पे कदम बढ़ाते आगे बढ़ना तुम ये आशीर्वाद हमेशा मेरा तुम्हारे साथ है अपने को कर्तव्य मार्ग से कभी हटना ना तुम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
ठंडी-ठंडी हवा
कविता

ठंडी-ठंडी हवा

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ठंडी-ठंडी हवा चले तुम्हारे लेकर दिल का पैगाम मस्ती में झूमें लहरा तुम्हारे लेकर दिल का पैगाम समा और है सुहावना ये जो भा रहा है दिल को मेरे कुछ पलों के लिए दिलबर आज जागे हैं अरमान मेरे नाचूँ और झूमूँ नहीं हैं ये पैर आज जमीं पर मेरे देखती हूँ जब उड़ते बादलों को लेकर दिल का पैगाम ठंडी-ठंडी.... आज इस दिल के फूल खिले हैं सनम मुहोब्बत के मेरे छेड़े दिल के तान दिल ये यादों के फसाने लिए मेरे जो बीते लम्हों की भरते हैं इस तन्हा दिल को मेरे देखती हूँ भँवरों को गाते गीत लेकर दिल का पैगाम ठंडी-ठंडी.... ये प्यार मेरा ना कम होगा जीवन में महबूब मेरे नाम हम लेते रहेंगे जब तक साँसे दिल में हैं मेरे जज्बात दिल ये समझेगा जब तक दिल में आशा है मेरे देखती हु मन अंतिष में जब कभी लेकर दिल का पैगाम ठंडी-ठंडी.... परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपु...
मृतक पिता और बेटे संग संवाद
कविता

मृतक पिता और बेटे संग संवाद

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मृतक- ये छूटी है अब तो मोह माया। हमने तिनका-तिनका जोड़ घर है बनाया। पर आज अब हम भए है वीराने बरात खड़ी है अपने लिए आँसू बहाने। कल जोड़ा था जो हमने था अब साथ नहीं मेरे। बेटे अब है मेरी ये धरोहर नाम तेरे। काम ना आवेगी हमारी कीर्ती। चाहे कितने थे मशहूर हम नामी। अरे हाँ छूटा है अब तो सबका साथ। ना रखना अव कोई गिला-शिकवा साथ। मेरा आखिरी वक्त है अब मेरा तुम्हारे साथ। बस अब होगी मेरी सीर्थ ही तुम्हारे साथ। हम आज चले कि कल चले, चले साँसें त्याग। क्यों मृतक हो के हम आज चलेंगे मेरे बाल जलेंगे जैसे घास जले और हाड़ जलेंगे जैसे लकड़ी जले । मेरा अब माटी होगा शरीर ये। तुम भूल पल भर में जाओगे हमें। मैं कितना दर्द सहूँगा। क्या तुम्हें जलाने में मुझे पल भर भी दया नहीं आएगी। बेटा- पापा दुनियाँ का दस्तूर यही है। जो मरा उसे जलाया गया या फिर उसे दफ्नाया ...
सपने सजने लगे
कविता

सपने सजने लगे

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** धीरे-धीरे हौले-हौले हवा के झोके चलते रहे खुशी के पैगाम दिल में लिए हम मन के दामन समेटने लगे सपने सजने लगे। चाँद तारो की चादर ओढ़कर उनकी बातें अमल करने लगे खुशी के पैगाम लिए हम तकदीर पढ़ने लगे सपने सजने लगे शाम ढली रात आई लम्हों की ख्वाब सजे थे दिल में मेरे खुशी अपनी पहलू में लिए हम हाथ की लकीरें पढ़ने लगे सपने सजने लगे। जिन्दगी की जब सुबह आई हम अपनी धुन में मग्न रहे खुशी का सावन लिए हम अरमान ले बरसने लगे सपने सजने लगे दिन गुजरे साल गए गुलिशता में फूल खिले खुशी का एहसास लिए हम जिन्दगी के मायने पढ़ने लगे सपने सजने लगे परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक...
सैनिक की कुर्बानी
कविता

सैनिक की कुर्बानी

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ये फैलाई गई है चीनों की आतंकित जाल माया डराने को भारत पर क्यों चीन ने डाली है कू छाया कह दो उनसे हाँ नहीं किसी से है भारत भी कम बुलंद जज्बा रखते हैं बाजुओं में है लड़ने का भी दम अब तो डट चुकी सेना हमारी इन्डियन चायना बॉर्डर पर ले तिरंगा हाथ लगा जय हिंद नारा, बाँध कफन सर बेवजह के जुल्म ढाने वालों से हम कभी भी नहीं डरेंगे हर आतंक फैलाने वालों को गोली से भून कुचल डालेंगे हमनें नहीं की शुरूवात कभी किसी पर भी भारत ने पहले अब बगावत और भ्रष्टाचार नहीं सहेगे हम भी बिल्कुल उनके इतनी सस्ती नहीं है जान भारत के हमारे वीर जवानों की अब जंग मैदान में दिखा देगें सैनिकों कीमत बन बहादुरों की ऐसी संख्या माया की आज तक बनी ही नहीं देश प्रेमों की जो अपना लहू बहाते हैं देश भक्ति पर, हँसते-हँसते जानें देते कभी मिट जातें हैं माँ के वीर जन्में वो जब भ...
मेरी बूढ़ी माँ
कविता

मेरी बूढ़ी माँ

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** कभी हँसता खेलता बचपन था उनका भी सखि हर विपता से दूर बिन चिंता के उनके थे लम्हें सखि समय होता है बहुत ही बलवान कभी-कभी सखि वक्त ने ली करवट व्याह हुआ दुल्हन बनी मेरी बूढ़ी माँ ससुराल में पाई गईं सबसे बड़ी छोटे थे देवर और ननदें सखि फिर भी नहीं घबराई घर को लेकर सास संग वो चली सखि फिर वो दिन भी आया उन्हें माँ बनने का सौभाग्य मिला सखि जिसमें उन्होंने ढूँढ़ा अपना बालपन जब माँ बनी मेरी बूढ़ी माँ जीवन के पन्ने पलटे और वो बन गईं चार बच्चों की माँ सखि पालन-पोषण किया सबके व्याह भी रचाए उन्होंने सखि उस पर विधाता को भी दया ना आई उनपर सखि सुहाग छूटा और पिता का साथ छूटा विधवा बनी मेरी बूढ़ी माँ जिन्दगी अब भी वही है नाती, पोते हैं पर कभी-पिता की कमी भी खलती है सखि पिता की पेंशन है हर सुख से लदी है पर तन्हाई उनके साथ है सखि कभी वो (पिता) याद आए तो...
माता-पिता कहते हैं
कविता

माता-पिता कहते हैं

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** आज के जमाने में मैं सुखी हूँ कौन कहता है किसे गम ने नहीं सताया है क्या कोई ऐसा भी है जिसे दर्द कभी नहीं मिला है माता-पिता कहते हैं ऐसा इंसा खोजो तुम और नए सवेरे का इंतजार करना तुम आज मन में हरयाली है कल किसने देखा है आज तकदीर मेरी है कल तदबीर के हाथों दिल जला है छलक पड़े थे आँसूदेख यह कि किस्मत ये थी जो मेरी है माता-पिता कहते हैं ऐसा वक्त तराशो तुम और नए सवेरे का इंतजार करना तुम जिन्दगी की कहानी मुझ से कहती है रुकने का नाम क्यों लोग लेते हैं इक दिए की लव से सीखते सब हैं सपनों को साकार होते देखते हैं माता-पिता कहते हैं तकदीर से किस्मत तौलो तुम और नए सवेरे का इंतजार करना तुम कलियां खिली मुस्कराती देखी हैं क्या फूलों से खुशबू की ली है अपना दिल ये तराने गाता नजर आता है क्या ऐसी खुशी मिली है और दूर-दूर तक नाम तुम्हारा ऊँचा और जन्म...
इक अफसाने को याद कर
कविता

इक अफसाने को याद कर

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मेरी आज इक अफसाने को याद कर रात गुज़रेगी सनम जो कल मुझसे मिले थे उनकी याद कर रात गुजरेगी सनम दो पल ठहरे थे कि उनसे मुलाकात हुई थी हमसे बस लब्जो के बाण जो चले आज वो याद कर रात गुजरेगी सनम उन लम्हों में मुझे अपनापन सा मिला था जीवन का मुहोब्बत हो चली है मुझे वो बातें याद कर रात गुजरेगी सनम मेरे हर गम, जख्म, दर्द को तथा जज्बातों को समझा था उन्होंने मेरी आँखों से जो खुशी छलकी थी वो याद कर रात गुजरेगी समन जिन्दगी का वो हसीन महीना, दिन, तरीख आज ही तो है क्योंकि उन्होंने मेरा आज ही हाथ थामा है वक्त याद कर रात गगुजरेगी सनम कभी भी मुझ संग तुम दगा, दिल्लगी ना करना और बेवफाई क्योंकि आज तुम्हारी वो हर कसमें याद कर रात गुजरेगी सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार स...
वो देश के शहीद
कविता

वो देश के शहीद

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जब एक उम्र थी हमारी जोश था देश के लिए कुछ तो करने का सपना ऐसा कि कुछ मैं कर जाऊँ जैसे वो देश के शहीद कर गए हम घरों में बैठे होते हैं हर सुख लिए हो गर्मी, सर्दी, बरसात कि उमंग लिए मेरी भी दीवानगी देश प्रेम की है ऐसी जैसे वो देश के शहीद कर गए हम न कभी डरे ना कभी पीठ दे भागे हर दाँव का जवाब हम देते गए मौका मिला करने का तो कोशिश की जैसे वो देश के शहीद कर गए हिन्द को आजाद कराने में भूमि को नेताओं, क्रांतिकारियो की है रही देश भक्ति महिलाओं में भी हमनें देखी जैसे वो देश के शहीद कर गए जवानों के नाम गुमनाम नहीं हैं हर माँ, बहन, पत्नी, दोस्तों के दिल में हैं समाज को भी उनकी कुर्बानी याद है जैसे वो देश के शहीद कर गए हम तो उस घर की बेटी हैं जहाँ पिता, भाई, चाचा सेवा करते हैं पिता ने देश के लिए सुख छोड़े जैसे वो देश के शहीद कर गए परिचय ...
होते हैं बहुत रगं सनम
कविता

होते हैं बहुत रगं सनम

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जिन्दगी में तो वक्त के होते हैं बहुत रगं सनम कभी गम के, कभी खुशियों के होते हैं बहुत रगं सनम मेरे जख्मी दिल के घाव पढ़कर तुम कभी तो देखो कभी दर्द तो आँखों में टूटे ख्वाबों के होते हैं बहुत रगं सनम कैसे-कैसे तूफां को हमने थामा है जीवन में ओ खुदा कभी-कभी अपने अरमानों के पंखों के होते हैं बहुत रगं सनम जिन्दगी को कोई खिलौना समझे कैसे हैं नादान लोग कभी रंगीन फिजा उस तबाही के होते हैं बहुत रगं सनम रात पहरों में बदलती है शमा, परवानों तुम तो कुछ समझो कभी जिन्दगी के भी हसीन लम्हों के होते हैं बहुत रगं सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
इक अफसाने को याद कर
कविता

इक अफसाने को याद कर

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मेरी आज इक अफसाने को याद कर रात गुज़रेगी सनम जो कल मुझसे मिले थे उनकी याद कर रात गुजरेगी सनम दो पल ठहरे थे कि उनसे मुलाकात हुई थी हमसे बस लब्जो के बाण जो चले आज वो याद कर रात गुजरेगी सनम उन लम्हों में मुझे अपनापन सा मिला था जीवन का मुहोब्बत हो चली है मुझे वो बातें याद कर रात गुजरेगी सनम मेरे हर गम, जख्म, दर्द को तथा जज्बातों को समझा था उन्होंने मेरी आँखों से जो खुशी छलकी थी वो याद कर रात गुजरेगी समन जिन्दगी का वो हसीन महीना, दिन, तरीख आज ही तो है क्योंकि उन्होंने मेरा आज ही हाथ थामा है वक्त याद कर रात गगुजरेगी सनम कभी भी मुझ संग तुम दगा, दिल्लगी ना करना और बेवफाई क्योंकि आज तुम्हारी वो हर कसमें याद कर रात गुजरेगी सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
राम नाम में
दोहा

राम नाम में

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** होत है राम नाम में,  जग के सारे धाम। घबरा न तू तो बन्दे, जापो हरि का नाम॥ गौरा जब क्रोधित भई, मनावें हैं सब गण। जब वो चण्डी बन गईं, सभी पखारें चरण॥ खड़े ईश्वर के द्वार, जोड़े दोनों हाथ। काले धन जमा कारण, हुए कि फकीर आज॥ जब माँ की ज्योतें जलें, जगमग हो संसार। तब आशीर्वाद मिलते, मंगल होते द्वार॥ थाल सजाए सब खड़े, माँ होय तेरी जय। कि हाथ जोड़े सब खड़े, माँ टारो सबै भय॥ जो करते मेहनत हैं, होते सबके मीत। कि लिखना नहीं सरल है, दोहा गजलें गीत॥ लाज गहना औरत का, कि जिन्दगी ससुराल। बच्चे उसका खजाना, जीवन है खुशहाल॥ है चरणों में राम के, सारे चारो धाम। और मिट जाते दुख वो, जब वे थामे हाथ॥ कृष्ण का अपमान किया, दिया नहीं सम्मान। है दुर्योधन पछताया, जब लौट गए अमर (देव)॥ ठौर ठिकाने ना रहे, मइया खाओ तरस। सबै दर्शन को बैठे, मइया दे दो दरस॥ पर...
मन का परिवेश
कविता

मन का परिवेश

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** हमनें तो वक़्त से जाना और सीखा जीना आँखों के अश्कों को कौन अपना समझता कब कौन दुख में हमारे शामिल होता ये मन का परिवेश है जो इन्सानियत को पढ़ता यह जीवन तो और सुख अपनों से मिलता पर कभी-कभी वो अपना भी पराया दिखाता जब होतीं हैं मुश्किलों की घड़ियाँ जिन्दगी की ये मन का परिवेश है जो उनके दिल को पढ़ता जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं सब के लिए कहीं धूप होती है जीवन में तो कभी छाँव लिए और कठिन परीक्षा का दौर पास जो कर लेता है इन्सां ये मन का परिवेश है जो जिन्दगी के रंग को पढ़ता ये दर्द, गम कब कहाँ किसे नहीं डसते हैं जख्मों के घाव आदमी भरने की चेष्टा करते हैं फिर भी नहीं वो पीर भूल पाते हैं हद की ये मन का परिवेश है जो ढाए जुल्म को पढ़ता परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार...
नारी ही है
कविता

नारी ही है

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** कहीं-कहीं त्याग की नारी और मूर्ति महिमा है इसके रूप कई और वो माँ की छाँव ममता है सहनशील रखने वाली खुशलता की प्रतीक है घर परिवार को अपना जीवन देने वाली नारी ही है कहीं दुर्गा तो कहीं काली बनी पूजी जाने वाली भी नारी ही है आज कल तो ये सब एक सपना सा लगने लगा है प्राचीन काल की संस्कृति क्योंकि घिसने लगी है फिर भी इस जमाने में कई औरतें सभ्यता संभाले हैं पहचान, गरिमा को अपना वक्त देने वाली नारी ही है कहीं दुर्गा तो कहीं काली बनी पूजी जाने वाली भी नारी ही है औरत अगर चाहे तो अपने घर को स्वर्ग भी बना देती है मगर ना समझे अपने को, गलत राहें चल नरक जीवन कर लेतीं हैं ना समझी अपना कर अपनी जिन्दगी को खिलौना बनातीं हैं लालच, महत्वकांक्षा को अपना सतित्व खोने वाली नारी है कहीं दुर्गा तो कहीं काली बनी पूजी जाने वाली भी नारी ही है परिचय :- बबली...