पुस्तकें सत्य की
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार।
सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।।
देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य।
पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।।
पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप।
पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।।
पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म।
पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।।
पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश।
पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।।
पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ।
पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।।
पुस्तक में दर्शन भरा, पुस्तक में विज्ञान।
पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।।
पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल।
पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।।
विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप।
पुस्तक को सब पूजते, रंक र...