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Tag: प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे

पुस्तकें सत्य की
दोहा

पुस्तकें सत्य की

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार। सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।। देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य। पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।। पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप। पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।। पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म। पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।। पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश। पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।। पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ। पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।। पुस्तक में दर्शन भरा, पुस्तक में विज्ञान। पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।। पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।। विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप। पुस्तक को सब पूजते, रंक र...
साहस भर लो अंतर्मन में
गीत

साहस भर लो अंतर्मन में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस भर लो अंतर्मन में, श्रम के पथ जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा। जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा। काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं। जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं।। मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, हाथ बढ़ाओ, बढ़ते ही जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है। सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है।। असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है। रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है।। चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियारा लाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है। एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है।। हार मिलेगी, तभी जीत की...
कहो कैसे हुआ
मुक्तक

कहो कैसे हुआ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कहो कैसे हुआ यह सब, मनुज का दिल ज़हर देखो। हुए हैं क्रूर वे कितने, ज़रा तो आचरण लेखो। बचाना अब तो हमको बेटियाँ, यह ही शपथ लें हम, करें सब काम अब चोखा व्यर्थ नारे नहीं फे़को।। गर्भ में मारते क्योंकर, जन्म लेने तो उनको। वे हैं जननी, बहन-पत्नी, शिकंजे में कसा जिनको। नहीं पर ज़ुल्म का यह दौर, आगे चल सकेगा अब, ज़रा समझाओ, अब बदलो, अपावनता भरे मन को।। सुनो हर हाल में, अब तो बचाना बेटियां हमको। पुत्र ही होता है बेहतर, बदलना आज मौसम को। उठो नामर्द सारे चेतना कुछ तो जगा लो अब, बदलना ही बदलना है, मलिनता, दर्द और ग़म को।। न मारो गर्भ में कोमल कली को, फूल बनने दो। महकने दो, चहकने दो, सुवासित होके खिलने दो। न शोषण बेटियों का हो, यही बस आज हो जाए, जहाँ की हर खुशी, आनंद, बेटी को तो मिलने दो।। परि...
नारी तू नारायणी
दोहा

नारी तू नारायणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तू नारायणी, है दुर्गा का रूप। रमा, उमा, माँ शारदे, में तेरी ही धूप।। नारी तू नारायणी, ज्ञान, चेतना, मान। जिस गृह रहती तू वहाँ, पलता नित उत्थान।। नारी तू नारायणी, जीवन का है सार। तेरे कारण ही मिला, जग को यह उजियार।। नारी तू नारायणी, है सुर, लय अरु ताल। गहन तिमिर हारा सदा, काटे तू सब जाल।। नारी तू नारायणी, तू हर पल अभिराम। तू धन, विद्या, नूर है, तू है मीठी शाम।। नारी तू नारायणी, गरिमा तेरे संग। खुशियों का उत्कर्ष तू, तेरे अनगिन रंग।। नारी तू नारायणी, रोते को है हास। मायूसी में तू रचे, जगमग करती आस।। नारी तू उर्जामयी, नारी तू तो ताप। तेरे गुण, देवत्व को, कौन सका है माप।। नारी तू नारायणी, ममतामय हर रोम। करुणामय, शालीन है, ऊँची जैसे व्योम।। नारी तू नारायणी, कभी न माने हार। साहस तेरा...
तुम होली पर आ जाओ
गीत

तुम होली पर आ जाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम होली पर आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। मक्कारों की बन आई है, फूहड़ता की महफिल। फेंक रहे सब नकली पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, मातम का है मेला। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला।। हे नटनागर ! रासरचैया, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इति...
कन्या भ्रूण हत्या – एक अभिशाप
कविता

कन्या भ्रूण हत्या – एक अभिशाप

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भ्रूण हत्या अब नहीं, बंद करो यह पाप। वक़्त दे रहा है हमें, तीखा-सा अभिशाप।। कन्या का है जन्म शुभ, सोचो-समझो आज। क्यों सोता है नींद में, दानव बना समाज।। कन्याएँ मिटती रहीं, तो सब कुछ हो नाश। जागे अब तो सभ्यता, लेकर चिंतन, काश।। भ्रूण हत्या मूर्खता, बहुत बड़ा अविवेक। अब जागे इंसानियत, ले विचार सत्,नेक।। नारी यूँ घटती रही, तो बिगड़े अनुपात। तब आना तय, साँच यह, गहन तिमिर की रात।। पुत्र और बेटी सदा, होते एक समान।। किस मूरख ने कह दिया, बेटा ही कुल-शान।। कन्याएँ जब जन्म लें, पढ़कर हो उत्थान। दोनों कुल की शान बन, पूर्ण करे अरमान।। कन्या को यूं मारना, हैवानों का काम।। होगी भाई इस तरह, असमय काली शाम।। अब सँभलो,जागो अभी, गाओ मंगलगीत। तभी उजाले को सभी, लेंगे हँसकर जीत।। यही कह रहा आज तो, 'शरद' क...
नव चेतना का गीत
कविता

नव चेतना का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जागो अब तो सारे लोगो, उजियारा वर लो। बीती बातें दूर करो अब, तिमिर सकल हर लो।। नए सोच को धारण कर लो, मन को अब मोड़ो। अंधी बातें, विश्वासों की, जंज़ीरें तोड़ो।। रुग्ण सोच से कुछ ना होगा, अच्छे को भर लो। बीती दूर करो अब, तिमिर सकल हर लो।। जाति, धर्म के बंधन तोड़ो, जागो सब जागो। नए सोच से नया सवेरा, सच से ना भागो।। सभी कुरीति तज दो अब तो, पावनता भीतर लो। बीती बातें दूर करो अब, तिमिर सकल हर लो।। पतन बहुत होता आया है, अब बढ़ना होगा। रूढ़ि हर अभिशाप बनी है, अब लड़ना होगा।। कर्मकांड, पाखंड सभी जो, तजकर सुख भर लो। बीती बातें दूर करो अब, तिमिर सकल हर लो।। थोथी बातें, परंपराएँ, सबको दूर हटाओ। झांसे बहुत मिले हैं हमको, अब धोखा ना खाओ। दूषित है परिवेश आज तो, उड़ने को पर लो। बीती बातें दूर क...
हे! औघड़दानी
भजन, स्तुति

हे! औघड़दानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम भगवन् स्वमेव। पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव।। तुम फलदायी, सबके स्वामी, तुम हो दयानिधान। जीवन महके हर पल मेरा, दो ऐसा वरदान।। आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव। नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव।। तुम हो स्वामी,अंतर्यामी, केशों में है गंगा। ध्यान धरा जिसने भी स्वामी, उसका मन हो चंगा।। तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव। भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव।। उमासंग तुम हर पल शोभित, अर्ध्दनारीश कहाते। हो फक्खड़ तुम, भूत-प्रेत सँग, नित शुभकर्म रचाते।। परम संत तुम, ज्ञानी, तपसी, नाव पार कर देव। महाप्रलय ना लाना स्वामी, हे देवों के देव।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...
तेरी-मेरी कहानी
लघुकथा

तेरी-मेरी कहानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "हैप्पी वेलेन्टाइन डे, माय डियर, एंड आय लव यू।" कहते हुए सुनील ने एक लाल गुलाब अपनी पत्नी रत्ना के हाथ में दे दिया। "आय लव यू टू, माय लाइफ।" कहते हुए रत्ना ने अपनी खुशी व्यक्त की। इस पर दोनों ठीक चार दशक पहले की कॉलेज की यादों में खो गए। "सुनील जी! क्या आपके पास यूरोपियन हिस्ट्री की बुक है?" "हां! जी है।" "मुझे कुछ दिन को देंगे, क्या....?" "जी अवश्य..." और सुनील ने यूरोपियन हिस्ट्री की किताब एमए प्रीवियस की उसकी क्लास में आई नवप्रवेशित सुंदर, आकर्षक और शालीन लड़की रत्ना को दे दी। फिर रत्ना ने नोट्स बनाने में सुनील की मदद की। सहपाठी तो वे थे ही, आपस में दोनों का मेलजोल बढ़ता गया। कक्षा में दोनों ही सबसे होशियार थे, इसलिए दोनों के बीच स्पर्धा भी थी, पर पूरी तरह स्वस्थ। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के दिल में समाते ग...
राष्ट्रीयता के मुक्तक
मुक्तक

राष्ट्रीयता के मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दू, मुस्लिम एक हैं, सभी एक इंसान। सिक्ख और ईसाईयत, सब में इक भगवान। जब सारे मिलकर रहें, तो गुलशन आबाद, देश प्रगति के पूर्ण तब, होंगे सब अरमान।। खेतों में जब श्रम करें, हलधर प्रखर किसान। सीमाओं पर हों डँटे, सारे वीर जवान। तभी देश आगे बढ़े, जीते हर इक जंग, तभी बनेगा वास्तव, भारत देश महान।। भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ...
मित्रता के दोहे
कविता

मित्रता के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मिले मित्रता निष्कलुष, मित्र निभाये साथ । मित्र वही जो मित्र का, कभी न छोडे़ हाथ ।। पथ दिखलाये सत्य का,आने नहिं दे आंच । रहता खुली किताब-सा, लो कितना भी बांच ।। मित्र सदा रवि-सा लगे, बिखराता आलोक । हर पल रहकर साथ जो, जगमग करता लोक ।। कभी न करने दे ग़लत, राहें ले जो रोक । सदा मित्र होता खरा, जो देता है टोक ।। बुरे काम से दूर रख, जो देता गुणधर्म । मित्र नाम ईमान का, नैतिकता का मर्म ।। नहीं मित्रता छल-कपट, ना ही कोई डाह । तत्पर करने को ‘शरद’, वाह-वाह बस वाह ।। खुशबू का झोंका बने, मीठी झिरिया नीर। मित्र रहे यदि संग तो, हो सकती ना पीर ।। मित्र मिले सौभाग्य से, बिखराता जो हर्ष । मिले मित्र का साथ तो, जीतोगे संघर्ष ।। भेदभाव को भूल जो, थामे रखता हाथ । कृष्ण-सुदामा सा ‘शरद’, बालसखा का साथ ।। ...
आज़ादी के मतवाले
गीत

आज़ादी के मतवाले

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारत माँ की आज़ादी को, बहुत यहाँ क़ुर्बान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। हमने रच डाली नव गाथा, लेकर खडग हाथ अपने नहीं हटाये बढ़े हुये पग, पूर्ण किए सारे सपने माटी को निज माथ लगाकर, सारे मंगलगान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। शत्रु नहीं बच पाया हमसे, पूतों ने हुंकार भरी भगतसिंह जैसे मतवाले, विजयघोष-जयकार भरी आज़ादी ने माँगी क़ीमत, वीर सभी बलिदान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। इंकलाब की लाज निभाने, तीन रंग का मान बने जन गण मन का नग़मा गाया, तीन रंग की शान बने भारत छोड़ो के नारे के, मतवाले सहगान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। बिस्मिल, आज़ादों के कारण, हमने आज़ादी पाई नेहरू-गांधी के नारों ने, तन पर तो खादी पाई ब्रिटिश हु...
नित प्रवाहिनी माँ नर्मदे
भजन, स्तुति

नित प्रवाहिनी माँ नर्मदे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नित प्रवाहिनी नर्मदे, तेरा ताप अपार। देती है तू जीव को, पुण्यों का उपहार।। रेवा मैया तू सदा, करती है उपकार। बनकर के वरदान तू, कर देती भवपार।। दर्शन तेरे उच्चतम, नीर सुधा का रूप। शिवतनया हे ! नर्मदे, तू नित खिलती धूप।। रेवा माता मेकला, पापहारिणी ख़ूब। नाश करे दुष्कर्म का, बन पूजा की दूब।। कंकर को शंकर करे, वंदनीय हे! मात। गहन तिमिर को मारने, लाती रोज़ प्रभात।। रेवा तेरी वंदना, करता सकल समाज। जीवनरेखा बन करे, जनजीवन का काज।। मेकल से उद्भूत हो, बहती सागर-ओर। तेरी महिमा का कभी, किंचित है नहिं छोर।। रेवा तू प्राचीनतम्, जग को दे आशीष। करुणामय तेरी दया, करता उन्नत शीश।। प्रकट हुई तू इस धरा, हरने हर संताप। तेरी महिमा को भला, कौन सकेगा माप।। चुनरी का अर्पण तुझे, करे पाप-संहार। सतत् बहे रेवा ...
संविधान गीत
गीत

संविधान गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** संविधान की शान निराली, हम निज गौरव पाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म-अभिनंदन है।। संविधान की छटा निराली, आकर्षण घिर आये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। संविधान में अधिकारों की, बातों ने हर दिल जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। संविधान की गति-मति के तो, पैमाने नित भाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदित हैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था,रक्षा,सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। संविधान की स्वर्णिमआभा, विश्व गुरू पद पाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। जीवन हुआ सुवासित ...
अलविदा
कविता

अलविदा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गया जो, बीत गया वह, आगत का सत्कार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। कहीं तिमिर, तो कहीं उजाला, सूरज है तो रातें हैं। सुख,विलास है, तो बेहद ही, दुक्खों की बरसातें हैं जीवन फूलों का गुलदस्ता, हर पल को उपहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। एक साल जो रहा साथ में, वह भी तो अपना ही था। हमने जो खुशहाली सोची, वह भी तो सपना ही था।। दुख, तकलीफें, व्यथा, वेदना, कांटों का संहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। यही हक़ीक़त यही ज़िन्दगी, है बहार तो वीराना। कभी लगे मौसम अपना-सा, कभी यही है अंजाना।। आशाओं का दामन थामो, अवसादों पर वार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मं...
स्वच्छता के दोहे
दोहा

स्वच्छता के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बिखरी हो जब गंदगी, तब विकास अवरुध्द। घट जाती संपन्नता, खुशियाँ होतीं क्रुध्द।। वे मानुष तो मूर्ख हैं, करें शौच मैदान। जो अंचल गंदा करें, पकड़ो उनके कान।। सुलभ केंद्र तो कर रहा, सचमुच पावन काम। सचमुच में वह बन गया, जैसे तीरथ धाम।। फलीभूत हो स्वच्छता, कर देती सम्पन्न। जहॉं फैलती गंदगी, नर हो वहाँ विपन्न।। बनो स्वच्छता दूत तुम, करो जागरण ख़ूब। नवल चेतना की "शरद", उगे निरंतर दूब।। अंधकार पलता वहाँ, जहाँ स्वच्छता लोप। जागे सारा देश अब, हो विलुप्त सब कोप।। मन स्वच्छ होगा तभी, जब स्वच्छ परिवेश। नव स्वच्छता रच रही, नव समाज, नव देश।। है स्वच्छता सोच इक, शौचालय-अभियान। शौचालय हर घर बने, तब बहुओं का मान।। शौचालय में सोच हो, कूड़ा कूड़ादान। तन-मन रखकर स्वच्छ हम, रच दें नवल जहान।। जीवन में आनंद त...
पितृ अभिव्यक्ति
दोहा

पितृ अभिव्यक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पिता कह रहा है सुनो, पीर, दर्द की बात। जीवन उसका फर्ज़ है, बस केवल जज़्बात।। संतति के प्रति कर्म कर, रचता नव परिवेश। धन-अर्जन का लक्ष्य ले, सहता अनगिन क्लेश।। चाहत यह ऊँची उठे, उसकी हर संतान। पिता त्याग का नाम है,भावुकता का मान।। निर्धन पितु भी चाहता, सुख पाए औलाद। वह ही घर की पौध को, हवा, नीर अरु खाद।। भूखा रह, दुख को सहे, तो भी नहिं है पीर। कष्ट, व्यथा की सह रहा, पिता नित्य शमशीर।। है निर्धन कैसे करे, निज बेटी का ब्याह। ताने सहता अनगिनत, पर निकले नहिं आह।। धनलोलुप रिश्ता मिले, तो बढ़ जाता दर्द। निज बेटी की ज़िन्दगी, हो जाती जब सर्द।। पिता कहे किससे व्यथा, यहाँ सुनेगा कौन। नहिं भावों का मान है, यहाँ सभी हैं मौन।। पिता ईश का रूप है, है ग़म का प्रतिरूप। दायित्वों की पूर्णता, संघर्षों की ...
सफलता की ज़िद
कविता

सफलता की ज़िद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ज़िद पर आओ,तभी विजय है, नित उजियार वरो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियार करो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है हार मिलेगी, तभी जीत की राहें मिल पाएँगी और सफलता की म...
मेरा है सम्मान तिरंगा
कविता

मेरा है सम्मान तिरंगा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आन लिए फहराता नित ही, मेरा है सम्मान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। बलिदानों ने रंग दिखाए, तब हमने आज़ादी पाई। जला-जलाकर वस्त्र विदेशी, सबके तन पर खादी आई। सम्प्रभुता को धारण करता, मेरा है अरमान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। शौर्य सिखाता रंग केसरी, श्वेत सादगी की बातें। हरा हमें देता हरियाली, वैभव की नित सौगातें।। चक्र भारती की जय करता, हरदम है गुणगान तिरंगा।। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। जय जवान का नारा लब पर, जय किसान का गान हो। लोकतंत्र का मान रहे नित, सद्भावों की आन हो।। तीन रंग की शोभा न्यारी, जाने सकल जहान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। सीमाओं की शान बढ़ाता, जन-गण-मन की आन निभाता...
हे! गिरिधर गोपाल
गीत

हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ। सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। जीवन तो अभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। अधरम का तो राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। गायों, ग्वालों, नदियों, गिरि की, रौनक फिर लौटाओ। सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। अंधकार की बन आई है, है अंधों की महफिल। फेंक रहा नित शकुनि पाँसे, व्याकुल है अब हर पल।। अर्जुन सहमा-डरा हुआ है, बंशी मधुर बजाओ। सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। मानव अपने पथ से भटका, कंस अनेकों दिखते। नाग कालिया जाने कितने, जो सबको हैं डँसते। ज़हर मारकर सुधा बाँट दो, चमत्कार दिखलाओ। सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास...
दर्द का गीत
गीत

दर्द का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रोदन करती आज दिशाएं, मौसम पर पहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। बढ़ता जाता दर्द नित्य ही, संतापों का मेला कहने को है भीड़,हक़ीक़त, में हर एक अकेला रौनक तो अब शेष रही ना, बादल भी ठहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। मायूसी है, बढ़ी हताशा, शुष्क हुआ हर मुखड़ा जिसका भी खींचा नक़ाब, वह क्रोधित होकर उखड़ा ग़म, पीड़ा सँग व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं ।। नए तंत्र ने हमको लूटा, कौन सुने फरियादें रोज़ाना हो रही खोखली, ईमां की बुनियादें कौन सुनेगा,किसे सुनाएं, यहां सभी बहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं ।। बदल रहीं नित परिभाषाएं, सबका नव चिंतन है हर इक की है पृथक मान्यता, पोषित हु...
गुरु-महिमा
दोहा

गुरु-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु सूरज है, चाँद है, गुरु तो है संवेग। अपने शिष्यों को सदा, देता जो शुभ नेग।। ज्ञान, मान, नव शान दे, दिखलाए जो राह। शिष्यों का निर्माण कर, पाता है गुरु वाह।। गुरु देता है शिष्य को, सत्य संग आलोक। बने शिष्य उल्लासमय, तजकर सारा शोक।। गुरु करके नित त्याग को, बनता सदा महान। गुरु से सदा समाज को, मिलती चोखी शान।। गुरु के प्रखर प्रताप से, रोशन होता देश। गुरु-वंदन नित ही करो, ले साधक का वेश।। गुुरु तो नित उजियार है, मारे जो अँधियार। गुरुकृपा से दिव्य हो, शिष्यों का संसार।। गुरु जीवन का सार है, गुरु जीवन का गीत। गुरु से तो हर शिष्य को, मिलती है नित जीत।। गुरु आशा, विश्वास है, गुरु है नव उत्साह। हर युग में गुरु को मिली, वाह-वाह अरु वाह।। गुरु ईश्वर का रूप है, गुरु विस्तृत आकाश। जो बिन गुरु रहता...
भारत माँ का वंदन
कविता

भारत माँ का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अंधकार में हम साहस के, दीप जलाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है राणाओं की शौर्यभूमि यह, पोरस का सम्मान है संविधान है मान हमारा, जन-जन का अरमान है भारत माँ का वंदन है यह, जन-गण-मन का गान है वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया अंग्रेज़ों से लोहा लेने, जिनने त्याग दिखाया अधरों पर माता की जय थी, नित जयगान सुनाया हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए जिनका वंदन, अभिनंदन है, जो अवतारी थे सच में थे जो आग...
हरिभक्ति
गीतिका, छंद

हरिभक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अँधियार चारों ओर बिखरा, सूझता कुछ भी नहीं। उजियार तरसा राह को अब, बूझता कुछ भी नहीं।। उत्थान लगता है पतन सा, काल कैसा आ गया। जीवन लगे अब बोझ हे प्रभु, यह अमंगल खा गया।। हे नाथ, दीनानाथ भगवन, पार अब कर दीजिए। जीवन बने सुंदर, मधुरतम, शान से नव कीजिए ।। भटकी बहुत ये ज़िन्दगी तो, नेह से वंचित रहा। प्रभुआप बिन मैं था अभागा, रोज़ कुछ तो कुछ सहा।। प्रभुनाम की माया अनोखी, शान लगती है भली सियराम की गाथा सुपावन, भा रही मंदिर-गली जीवन बने अभिराम सबका, आज हम सब खुश रहें। उत्साह से पूजन-भजनकर, भाव भरकर सब सहें। हरिगान में मंगल भरा है, बात यह सच जानिए। गुरुदेव ने हमसे कहा जो, आचरण में ठानिए।। आलोक जीवन में मिलेगा, सत्य को जो थाम लो। परमात्मा सबसे प्रबल है, आज उसका नाम लो।। भगवान का वंदन करूँ मैं, है यही बस कामना। प्र...
आँखों के दोहे
दोहा

आँखों के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** आँखों से जग देखते, हैं आँखें वरदान। आँखों में संवेदना, आँखों में अभिमान।। आँखें करुणामय दिखें, जबआँखों में नीर। आँखों में अभिव्यक्त हो, औरों के हित पीर।। आँखों में गंभीरता, और कुटिलता ख़ूब। आँखों में उगती सतत, पावन-नेहिल दूब।। आँखें आँखों से करें, चुपके से संवाद। उर हो जाते उस घड़ी, सचमुच में आबाद।। आँखें नित सच बोलतीं, दिखता नहीं असत्य। आँखों के आवेग में, छिपा एक आदित्य।। आँखों में रिश्ता दिखे, आँखों में अहसास। आँखों में ही आस हो, आँखों में विश्वास।। आँखों में संवेदना, आँखों में अनुबंध। आँखों-आँखों से बनें, नित नूतन संबंध।। आँखों से ही क्रूरता, आँखों से अनुराग। आँखों से अपनत्व के, गुंजित होते राग।। आँखें पीड़ा,दर्द के, गाती हैं जब गीत। अश्रु झलकते, तब रचे शोक भरा संगीत।। आँखें गढ़तीं मान को,...