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Tag: प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे

बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुज़रा ज़माना नहीं, वर्तमान भी होता है बुढ़ापा, सचमुच में चाहतें, अरमान भी होता है बुढ़ापा। केवल पीड़ा, उपेक्षा, दर्द, ग़म ही नहीं, असीमित, अथाह सम्मान भी होता है बुढ़ापा। ज़िन्दगी भर के समेटे हुए क़ीमती अनुभव, गौरव से तना हुआ आसमान भी होता है बुढ़ापा। पद, हैसियत, दौलत, रुतबा नहीं अब भले ही, पर सरल, मधुर, आसान भी होता है बुढ़ापा। बेटा-बहू, बेटी-दामाद, नाती-पोतों के संग, समृध्द, उन्नत ख़ानदान भी होता है बुढ़ापा । मंगलभाव, शुभकामनाएं, आशीष, और दुआएं, सच में इक पूरा समुन्नत शुभगान भी होता है बुढ़ापा। घुटन, हताशा, एकाकीपन, अवसाद और मायूसी, गीली आँखें पतन, अवसान भी होता है बुढ़ापा । संगी-साथी, रिश्ते-नाते, अपने-पराये मिल जायें यदि, तो खुशियों से सराबोर महकता सहगान भी होता है बुढ़ाप...
हमारा लोकतंत्र
कविता

हमारा लोकतंत्र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते, तीन रंग हर्षाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।। सत्य,प्रेम और सद्भावों के, बादलतो नित छाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। ज्ञान और विज्ञान की गाथा, हमने अंतरिक्ष जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। कला और साहित्य प्रगतिके, पैमाने तो भाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदितहैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं, विश्व गुरू कहलाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। जीव...
बेटी कभी न बोझ
कुण्डलियाँ

बेटी कभी न बोझ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) करना मत तुम भेद अब, बेटा-बेटी एक। बेटी प्रति यदि हेयता, वह बंदा नहिं नेक।। वह बंदा नहिं नेक, करे दुर्गुण को पोषित। बेटी हो मायूस, व्यर्थ ही होती शोषित।। दूषित हो संसार, पड़ेगा हमको भरना। संतानों में भेद, बुरा होता है करना।। (२) बेटा कुल का नूर है, तो बेटी है लाज। बेटा है संगीत तो, बेटी लगती साज़।। बेटी कभी न बोझ, बढ़ाती दो कुल आगे। उससे डरकर दूर, सदा अँधियारा भागे।। जहाँ पल रहा भेद, वहाँ तो मौसम हेटा। नहिं किंचित उत्थान, जहाँ बस भाता बेटा।। (३) गाओ प्रियवर गीत तुम, समरसता के आज। सुता और सुत एक हैं, जाने सकल समाज।। जाने सकल समाज, बराबर दोनों मानो। बेटी कभी न बोझ, बात यह चोखी जानो।। संतानों से नेह, बराबर उर में लाओ। फिर सब कुछ जयकार, अमन के नग़मे गाओ।। (४) जाने कैसी भिन्नता, मान रहे हैं लोग।...
“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है
पुस्तक समीक्षा

“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कृति - संवेदना के स्वर कृतिकार - डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ पृष्ठ संख्या - ८० मूल्य - १०१ रू. प्रकाशन - पाथेय प्रकाशन, जबलपुर समीक्षक - प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे, (प्राचार्य) शा. जे. एम. सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.) वर्तमान की सुपरिचित लेखिका, कवयित्री, लघुकथाकार डॉ. संध्या शुक्ल ’मृदुल’ की ताजातरीन कृति लघुकथा संग्रह के रूप में जो पाठकों के हाथ में आयी है, वह है ‘संवेदना के स्वर’। इस उत्कृष्ट लघुकथा संग्रह में समसामयिक चेतना, परिपक्वता, चिंतन, मौलिकता, विशिष्टता, उत्कृष्टता व एक नवीन स्वरूप को लिए हुए उनसठ लघुकथाएं समाहित हैं। पाथेय प्रकाशन, जबलपुर से प्रकाशित यह लघुकथा संग्रह अस्सी पृष्ठीय है जिसमें वर्तमान के मूर्धन्य साहित्यकारों एवं स्वनामधन्य व्यक्तित्वों ने अपनी भूमिका, आशीर्वचन लिखा है जिनमें डॉ. क...
गणेश-वंदना
स्तुति

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
स्वामी विवेकानंद
दोहा

स्वामी विवेकानंद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम। स्वामी जी तुम थे सदा, लिए विविध आयाम।। स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।। जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप। बिखराई नव रोशनी, दी मानव को धूप।। सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, गुरुवर थे तुम ताप। काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।। गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर। तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।। त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग। खिले संत तुमसे सदा, जीवन के नव रंग।। था सामाजिक जागरण, सरोकार, अनुबंध। कभी न टूटे आपसे, कर्मठता के बंध।। सुर, लय थे, तुम ताल थे, बने धर्म की तान। गुरुवर तुम तो शिष्य का, थे नित ही यशगान।। मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव। गुरुवर तुमने धर्म को, सौंपा पावन ताव।। वं...
हिंदी के दोहे
दोहा

हिंदी के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी में तो शान है, हिंदी में है आन। हिंदी का गायन करो, हिंदी का सम्मान।। हिंदी की फैले चमक, यही आज हो ताव, हिंदी पाकर श्रेष्ठता, रखे उच्चतर भाव।। हिंदी में है नम्रता, देती व्यापक छांव। नवल ताज़गी संग ले, पाये हर दिल ठांव।। दूजी भाषा है नहीं, हिंदी-सी अनमोल। है व्यापक नेहिल 'शरद', बेहद मीठे बोल।। हिंदी का बेहद प्रचुर, नित्य उच्च साहित्य। बढ़ता जाता हर दिवस, इसका तो लालित्य।। हिंदी प्राणों में बसे, यही भावना आज। हर दिल पर करती रहे, मेरी हिंदी राज।। हिंदी नित गतिमान हो, सदा करे आलोक। इसी तरह हरदम प्रथम, फिर मन कैसा शोक।। हिंदी मेरा ज्ञान है, यह मेरा अभिमान। रोक सकेगा कौन अब, इसका तो उत्थान।। हिंदी में संवेग है, हिंदी में जयगान। सारे मिल नित ही करें, हिंदी का गुणगान।। हिंदी पूजन-यज्ञ है,...
राखी पर दोहे
दोहा

राखी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो धर्म है, परंपरा का मर्म। लज्जा रखने का करें, सारे ही अब कर्म।। राखी धागा प्रीति का, भावों का संसार। राखी नेहिलता लिए, नित्य निष्कलुृष प्यार।। राखी बहना-प्रीति है, मंगलमय इक गान। राखी है इक चेतना, जीवन की मुस्कान।। राखी तो अनुराग है, अंतर का आलोक। हर्ष बिखेरे नित्य ही, परे हटाये शोक।। राखी इक अहसास है, राखी इक आवेग। भाई के बाजू बँधा, खुशियों का मृदु नेग।। राखी वेदों में सजी, महक रहा इतिहास। राखी हर्षित हो रही, लेकर मीठी आस।। राखी में जीवन भरा, बचपन का आधार। राखी में रौनक भरी, देती जो उजियार।। भाई हो यदि दूर तो, डाक निभाती साथ। नहीं रहे सूना कभी, वीरा का तो हाथ।। यही कह रहा है 'शरद’, राखी का कर मान। वरना होना तय समझ, मूल्यों का अवसान।। राखी में आवेश है, राखी में उल्लास। राखी...
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर
कविता

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
धागों का त्योहार
गीत

धागों का त्योहार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष। कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।। उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास। सावन के इस माह में, आया है विश्वास।। गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग। रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।। राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत। गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।। नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...
ऑनलाइन
लघुकथा

ऑनलाइन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "मित्र सुदेश! यह लॉकडाउन तो गज़ब का रहा? क्या अब फिर से लॉकडाउन नहीं लगेगा।" सरकारी स्कूल के टीचर आनंद ने अपने मित्र से कहा। "क्या मतलब? "सुदेश ने उत्सुकता दिखाई। "वह यह सुदेश ! कि पहले तो कई दिन स्कूल बंद रहे तो पढ़ाने से मुक्ति रही, और फिर बाद में मोबाइल से ऑनलाइन पढ़ाने का आदेश मिला, तो बस खानापूर्ति ही कर देता रहा। न सब बच्चों के घर मोबाइल है, न ही डाटा रहता था, तो कभी मैं इंटरनेट चालू न होने का बहाना कर देता रहा। बहुत मज़े रहे भाई ! "आनंद ने बड़ी बेशर्मी से कहा। "पर इससे तो बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुक़सान हुआ।" सुदेश ने कमेंट किया। "अरे छोड़ो यार! फालतू बात। फिर से लॉकडाउन लग जाए तो मज़ा आ जाए।" आनंद ने निर्लज्जता दोहराई। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...
माथे का सिंदूर
गीत

माथे का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहे अमर श्रंगार नित्य ही, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर दे हर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही ...
प्रीति की रीति के दोहे
दोहा

प्रीति की रीति के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन दिखता है वहाँ, जहाँ प्रीति की रीति। अंतर्मन में चेतना, पले नेह की नीति।। नित्य प्रीति की रीति से, जीवन बने महान। ढाई आखर यदि रहें, दूर रहे अवसान।। संग प्रीति की रीति है, तो जीवन खुशहाल। कोमल भावों से सदा, इंसां मालामाल।। जियो प्रीति की रीति ले, तो सब कुछ आसान। मन की पावनता सदा, लाती है उत्थान।। जहाँ प्रीति की रीति है, वहाँ बिखरता नूर। सुख आ जाता साथ में, हो हर मुश्किल दूर।। ताप प्रीति की रीति है, जो हरती अवसाद। श्याम-राधिका हो गए, सदियों को आबाद।। अगर प्रीति की रीति है, तो होगा यशगान। दिल से दिल जुड़कर सदा, रचते नवल विधान।। आज प्रीति की रीति से, युग को दे दो ताप। जीवन तब अनमोल हो, दर्द उड़े बन भाप।। प्रीति रीति मंगल रचे, करे सदा आबाद। प्रीति बिना इंसान तो, हो जाता बरबाद।। रीति प...
कटु वाणी
लघुकथा

कटु वाणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्या हुआ?" "लक्ष्मी आई है।" "खाक लक्ष्मी आई है।तीसरी बार भी लड़की ही।" और, सासू मां ने अनीता को वहीं अस्पताल में ही कोसना शुरु कर दिया। शोर शराबा सुनकर अनीता का ऑपरेशन करके उसके बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर बाहर आई और सासू माँ पर गुर्राते हुए बोली- "माँ जी! क्या आप नहीं जानतीं, कि बच्चे को पहले नौ माह पेट में रखना, फिर जन्म देना, वह भी ऑपरेशन से, कितना कठिन होता है? आपने पोते की चाहत में अपनी बहू को तीसरी बार ख़तरे में डाल दिया। आज का ऑपरेशन तो बहुत ही जटिल था, और बड़ी मुश्किल से अनीता की जान बची है। वैसे तो हर बार ही बच्चे को जन्म देना माँ के लिए पुनर्जन्म होता है, पर आप यह समझिए कि आज तो आपकी बहू मौत के दरवाजे से ही वापस लौटी है। और-आप संतोष का अनुभव करने की जगह उसे कोस रही हैं। लानत है आप पर। इतने विषैले ब...
श्रमिकों की वंदना
कविता

श्रमिकों की वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मजदूरों का नित है वंदन, जिनसे उजियारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति-वाहक हैं। अन्न उगाते, स्वेद बहाते, सचमुच फलदायक हैं।। श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा । यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा ।। संघर्षों की आँधी खेले, साहस भी वारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। ऊँचे भवनों की नींवें जो, उत्पादन जिनसे है। हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिनंदन जिनसे है।। स्वेद बहा, लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। गर्मी, सर्दी, बरसातों में, श्रम करने की लगन लिए। करना है नित कर्म, यही ...
धरती करे पुकार
दोहा

धरती करे पुकार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भर गाते सभी, धरा मातु के गीत। हरियाली को रोपकर, बन जाएँ सद् मीत।। हरी-भरी धरती रहे, धरती करे पुकार। तभी हवा की जीत है, कभी न होगी हार।। हरियाली से सब सुखद, हो जीवन अभिराम। पेड़ों से साँसें मिलें, धरा बने अभिराम।। धरा सदा ही पालती, संतति हमको जान। रखो धरा के हित सदा, बेहद ही सम्मान।। धरा लुटाती नेह नित, वह करुणा का रूप। उसकी पावन गोद में, सूरज जैसी धूप।। धरा लिए संसार नित, बाँटे सुख हर हाल। हवा, नीर, भोजन, दुआ, पा हम मालामाल।। धरा-गोद में बैठकर, होते सभी निहाल। मैदां, गिरि, जंगल सघन, सुख को करें बहाल।। हरियाली के गीत नित, धरा गा रही ख़ूब। हम सबको आनंद है, बिछी हुई है दूब।। नित्य धरा-सौंदर्य लख, मन में जागे आस। अंतर में उल्लास है, नित नेहिल अहसास।। धरा सदा करुणामयी, बनी हुई वरदान।...
नीर से ही जीवन है
दोहा

नीर से ही जीवन है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नीर लिए आशा सदा, नीर लिए विश्वास । नीर से सांसें चल रही, देवों का आभास ।। अमृत जैसा है सदा, कहते जिसको नीर । एक बूँद भी कम मिले, तो बढ़ जाती पीर ।। नीर बिना जीवन नहीं, अकुला जाता जीव । नीर फसल औ' अन्न है, नीर "शरद" आजीव ।। नीर खुशी है, चैन है, नीर अधर मुस्कान । नीर सजाता सभ्यता, नीर बढ़ाता शान ।। जग की रौनक नीर से, नीर बुझाता प्यास । कुंये, नदी, तालाब में, है जीवन की आस ।। सूरज होता तीव्र जब, मर जाते जलस्रोत । घबराता इंसान तब, अनहोनी तब होत ।। नीर करे तर कंठ नित, दे जीवन को अर्थ । नीर रखे क्षमता बहुत, नीर रखे सामर्थ्य ।। नीर नहीं बरबाद हो, हो संरक्षित नित्य । नीर सृष्टि पर्याय है, नीर लगे आदित्य ।। नीर बादलों से मिले, कर दे धरती तृप्त । बिना नीर के प्रकृति यह, हो जाती है तप्त ।। नीर ...
चुनरी
कविता

चुनरी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी के श्रंगार में, चुनरी है अति ख़ूब। लज्जा है, सम्मान है, आकर्षण की दूब।। चुनरी में तो है सदा, शील और निज आन। चुनरी में तो हैं बसे, अनजाने अरमान।। चुनरी को मानो सदा, मर्यादा का रूप। जिससे मिलती सभ्यता, नित ही नेहिल धूप।। चुनरी तो वरदान है, चुनरी है अभिमान। चुनरी में तो शान है, चुनरी में सम्मान।। चुनरी तो नारीत्व का, करती है जयगान। चुनरी तो मृदुराग है, चुनरी है प्रतिमान।। चुनरी तो तलवार है, चुनरी तो है तीर। चुनरी ने जन्मे कई, शौर्यपुरुष, अतिवीर।। चुनरी में तो माँ रहे, बहना-पत्नी रूप। चुनरी में देवत्व है, सूरज की है धूप।। चुनरी दुर्बल है नहीं, नहिं चुनरी बलहीन। चुनरी कमतर नहिं कभी, और नहीं है दीन।। चुनरी में वह तेज है, कौन सकेगा माप। चुनरी शीतल है बहुत, चुनरी में है ताप।। चुनरी है म...
गाँव
दोहा

गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगें, लगतें नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ह...
हे ! महावीर
कविता

हे ! महावीर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** महावीर कल्याणक तुमने दिया अहिंसा-गीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। राजपाठ तुमने सब त्यागा, करने जग कल्याण। हिंसा और को मारा, अधरम को नित वाण।। जितीन्द्रिय तुम नीति-प्रणेता, तुम करुणा की जीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। कठिन साधना तुमने साधी, तुम पाया था ज्ञान। नवल चेतना, उजियारे से, किया पाप-अवसान।। तुमने चोखा साधक बनकर, दिया हमें नवनीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। नीति, रीति का मार्ग दिखाया, सत्य सार बतलाया। मानवता के तु हो प्रहरी, रूप हमें है भाया।। त्यागी तुम-सा और न देखा, खोजा बहुत अतीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। भटक रहा था मनुज निरंतर, तुमने उसको साधा, महावीर तुम, इंद्रिय-विजेता, परे भोग की बाधा।। कर्म सिखाया, सदाचार भी, तुम हो भावातीत। तुम हो म...
गाँव की बेटी-दोहों में
दोहा

गाँव की बेटी-दोहों में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी भाती गाँव की, जो गुण से भरपूर। जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।। बेटी प्यारी गाँव की, प्रतिभा का उत्कर्ष। मायूसी को दूरकर, जो लाती है हर्ष।। बेटी जो है गाँव की, करना जाने कर्म। हुनर संग ले जूझती, सतत् निभाती धर्म।। गाँवों की बेटी सुघड़, बढ़ती जाती नित्य। चंदा-सी शीतल लगे, दमके ज्यों आदित्य।। कुश्ती लड़ती, दौड़ती, पढ़ने का आवेग। गाँवों की बेटी लगे, जैसे हो शुभ नेग।। बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम। जिसके खाते काम के, हैं अनगिन आयाम।। खेतों से श्रम का सबक, बढ़ना जाने ख़ूब। गाँवों की बेटी प्रखर, होती पावन दूब।। करती बेटी गाँव की, अचरज वाले काम। मुश्किल में भी लक्ष्य पा, हासिल करती नाम।। गाँवों को देती खुशी, रचती है सम्मान। बेटी मिट्टी से बनी, रखती है निज आन।। राजनीति, सेना ...
राम नाम यशगान
भजन, स्तुति

राम नाम यशगान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राम नाम है वंदगी, राम नाम यशगान। राम नाम सुख-चैन है, नित्य धर्म का मान।। राम नाम तो ताप है, राम नाम में साँच। राम नाम यदि संग तो, कभी न आती आँच।। राम नाम सुख से भरा, राम नाम रसधार। राम नाम आराध्य तो, महके नित संसार।। राम मोक्ष हैं, दिव्य हैं, जग के पालनहार। राम शरण में जो गया, पाता वह उपहार।। राम नाम तो सूर्य है, राम नाम अभिराम। राम नाम आवेग है, नित ही तीरथधाम।। राम नाम तो श्रेष्ठ है, राम नाम आदर्श। तरे मनुज भव से सदा, मिले राम का स्पर्श।। राम नाम शुचिता लिए, राम नाम में सार। राम नाम वरदान है, राम नाम उपहार।। राम नाम उजियार है, हर ले जो अँधियार । राम नाम यशगान है, राम नाम जयकार।। राम नाम मधुरिम-सुखद, राम रहें आराध्य। राम नाम है वंदगी, राम प्रखर अध्याय।। राम नाम आशीष...
पुस्तकें सत्य की
दोहा

पुस्तकें सत्य की

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार। सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।। देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य। पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।। पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप। पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।। पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म। पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।। पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश। पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।। पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ। पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।। पुस्तक में दर्शन भरा, पुस्तक में विज्ञान। पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।। पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।। विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप। पुस्तक को सब पूजते, रंक र...
साहस भर लो अंतर्मन में
गीत

साहस भर लो अंतर्मन में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस भर लो अंतर्मन में, श्रम के पथ जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा। जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा। काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं। जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं।। मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, हाथ बढ़ाओ, बढ़ते ही जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है। सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है।। असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है। रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है।। चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियारा लाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है। एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है।। हार मिलेगी, तभी जीत की...
कहो कैसे हुआ
मुक्तक

कहो कैसे हुआ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कहो कैसे हुआ यह सब, मनुज का दिल ज़हर देखो। हुए हैं क्रूर वे कितने, ज़रा तो आचरण लेखो। बचाना अब तो हमको बेटियाँ, यह ही शपथ लें हम, करें सब काम अब चोखा व्यर्थ नारे नहीं फे़को।। गर्भ में मारते क्योंकर, जन्म लेने तो उनको। वे हैं जननी, बहन-पत्नी, शिकंजे में कसा जिनको। नहीं पर ज़ुल्म का यह दौर, आगे चल सकेगा अब, ज़रा समझाओ, अब बदलो, अपावनता भरे मन को।। सुनो हर हाल में, अब तो बचाना बेटियां हमको। पुत्र ही होता है बेहतर, बदलना आज मौसम को। उठो नामर्द सारे चेतना कुछ तो जगा लो अब, बदलना ही बदलना है, मलिनता, दर्द और ग़म को।। न मारो गर्भ में कोमल कली को, फूल बनने दो। महकने दो, चहकने दो, सुवासित होके खिलने दो। न शोषण बेटियों का हो, यही बस आज हो जाए, जहाँ की हर खुशी, आनंद, बेटी को तो मिलने दो।। परि...