बुढ़ापा
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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गुज़रा ज़माना नहीं,
वर्तमान भी होता है बुढ़ापा,
सचमुच में चाहतें,
अरमान भी होता है बुढ़ापा।
केवल पीड़ा, उपेक्षा,
दर्द, ग़म ही नहीं,
असीमित, अथाह सम्मान
भी होता है बुढ़ापा।
ज़िन्दगी भर के समेटे
हुए क़ीमती अनुभव,
गौरव से तना हुआ
आसमान भी होता है बुढ़ापा।
पद, हैसियत, दौलत,
रुतबा नहीं अब भले ही,
पर सरल, मधुर, आसान
भी होता है बुढ़ापा।
बेटा-बहू, बेटी-दामाद,
नाती-पोतों के संग,
समृध्द, उन्नत ख़ानदान
भी होता है बुढ़ापा ।
मंगलभाव, शुभकामनाएं,
आशीष, और दुआएं,
सच में इक पूरा समुन्नत
शुभगान भी होता है बुढ़ापा।
घुटन, हताशा, एकाकीपन,
अवसाद और मायूसी,
गीली आँखें पतन,
अवसान भी होता है बुढ़ापा ।
संगी-साथी, रिश्ते-नाते,
अपने-पराये मिल जायें यदि,
तो खुशियों से सराबोर
महकता सहगान भी होता है बुढ़ाप...