Friday, January 17राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे

कर्मठता का गीत
गीत

कर्मठता का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं। नहीं अनमनापन हम में है, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है। वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। शीश कटा, सर्वस्व गंवाकर, जिनने वतन बनाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। नहीं अनमनापन उन में था, जिनने फर्ज़ निभाया। वतनपरस्ती का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण गँवाते हैं।...
जीवन हो गतिमान … सरोठा
सरोठा

जीवन हो गतिमान … सरोठा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन हो गतिमान, यही कामना मैं करूँ। बढ़े सभी की शान, सुख को जियरा में भरूँ।। हर पल में आनंद, अच्छाई को यदि वरूँ। बुरे काम कर बंद, अपना सारा दुख हरूं।। मैं-मैं करना छोड़, हम के पथ पर हम चलें। अहंकार को तोड़, मृदु बन जाएँ, क्यों खलें।। कितना कटु है आज, तज दें यह कहना अभी। सबके दिल पर राज, कर सकते हैं अब सभी।। कितना प्यारा रूप, संतों का लगने लगा। लगे खिली हो धूप, हर गुण लगता है सगा।। जीवन मंगल गान, खुशियों का मेला लगा। कर लो अनुसंधान, मन होता नित शुभ पगा।। फैल रहा अँधियार, साधें हम आलोक अब। अवसादों को मार, बन जाएँ खुशहाल सब।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक...
नया काल है… नया साल है…
गीत

नया काल है… नया साल है…

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे। जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे।। गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें। लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें।। गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें। बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें।। सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। अंधकार को मिटना होगा, दूर भग रहा है ग़म। नहीं व्यथा-बेचैनी होगी, मंगलमय है मौसम...
सर्दी का मौसम
कविता

सर्दी का मौसम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** धुंध छाई, लुप्त सूरज, शीत का वातावरण, आदमी का ठंड का बदला हुआ है आचरण। बर्फ में भी खेल है, बच्चों में दिखतीं मस्तियाँ, मौसमों ने कर लिया है पर्यटन का आहरण।। बर्फ का अधिराज्य है, चाँदी का ज्यों भंडार हो, शीत ने मानो किया उन्मुक्तता अन-आवरण।। रेल धीमी, मंद जीवन, सुस्त हर इक जीव है, है ढके इंसान को ऊनी लबादा आवरण। धुंध ने कब्जा किया, सड़कों पे, नापे रास्ते, ज़िन्दगी कम्बल में लिपटी लड़खड़ाया है चरण। पास जिनके है रईसी, उनको ना कोई फिकर, जो पड़े फुटपाथ पर, उनका तो होना है मरण। जो ठिठुरते रात सारी राह देखें भोर की, बैठ सूरज धूप में गर्मी का वे करते वरण। धुंध ने मजदूरी खाली, खा लिया है चैन को, ये कहाँ से आ गया जाड़ा, करे जीवन-क्षरण। ज़िन्दगी में धुंध है, बाहर भी छाई धुंध है, ठंड बन रावण करे सुख ...
हमसफ़र
कविता

हमसफ़र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी खुशियाँ हो तुम्हीं, हो मेरा उल्लास। तुमसे ही जीवन सुखद, लब पर खेले हास।। जीवन का आनंद तुम, शुभ-मंगल का गान। सच, तुमने रक्खी सदा, मेरी हरदम आन।। ऐ मेरे प्रिय हमसफ़र! तुम लगते सौगात। तुमसे दिन लगते मुझे, चोखी लगतीं रात।। हर मुश्किल में साथ तुम, लेते हो कर थाम। तुमसे ही हर पर्व है, और ललित आयाम।। संग तुम्हारा चेतना, देता मुझे विवेक। मेरे हर पल हो रहे, तुमसे प्रियवर नेक।। तुमको पाकर हो गया, मैं सचमुच बड़भाग। तुम सुर, लय तुम गीत हो, हो मेरा अनुराग।। तुम ही जीवन-सार हो, हो मेरा अहसास। और नहीं आता मुझे, किंचित भी तो रास।। तुमने आकर हे ! प्रिये, जीवन दिया सँवार। तुम तो प्रियवर, प्रियतमा, प्यार-प्यार बस प्यार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
माँग का सिंदूर
गीत

माँग का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक निकट रहें हरदम ही प्रियवर, जायें भले सुदूर।। नग़मे ...
पत्थर की महिमा
दोहा

पत्थर की महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम। मानवता को धारकर, पुलकित कर हर रोम।। पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव। उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।। पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर। करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।। पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून। दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।। पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़। पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।। पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार। बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।। सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज। करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।। पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान। पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (म...
प्रेम मधुर अहसास है
दोहा

प्रेम मधुर अहसास है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम मधुर अहसास है, प्रेम प्रखर विश्वास। प्रेम मधुर इक भावना, प्रेम लबों पर हास।। प्रेम ह्रदय की चेतना, प्रेम लगे आलोक। प्रेम रचे नित हर्ष को, बना प्रेम से लोक।। प्रेम राधिका-कृष्ण है, राँझा है,अरु हीर। प्रेम मिलन है, प्रीति है, प्रेम हरे सब पीर।। प्रेम गीत, लय, ताल है, प्रेम सदा अनुराग। प्रेम नहीं हो एक का, प्रेम सदा सहभाग।। खिली धूप है प्रेम तो, प्रेम सुहानी छाँव। पावन करता प्रेम नित, नगर, बस्तियाँ,गाँव।। प्रेम दिलों का भाव है, प्रेम खिलाते फूल। मिले प्रेम तो राह के, हट जाते सब शूल।। प्रेम साँस है, आस है, प्रेम लगे आलोक। प्रेम बिना सूना सदा, सचमुच में यह लोक।। प्रेम खुशी है, हर्ष है, प्रेम सदा शुभगान। प्रेम बिना नीरस लगे, निश्चित आज जहान।। प्रेम ईश, अल्लाह है, गीता और कुरान। प्रेम बिना...
अँधियारे की हार है
कुण्डलियाँ

अँधियारे की हार है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) दीवाली का आगमन, छाया है उल्लास। सकल निराशा दूर अब, पले नया विश्वास।। पले नया विश्वास, उजाला मंगल गाता। दीपक बनकर दिव्य, आज तो है मुस्काता।। नया हुआ परिवेश, दमकती रजनी काली। करे धर्म का गान, विहँसती है दीवाली।। (२) अँधियारे की हार है, जीवन अब खुशहाल। उजियारे ने कर दिया, सबको आज निहाल।। सबको आज निहाल, ज़िन्दगी में नव लय है। सब कुछ हुआ नवीन, नहीं थोड़ा भी क्षय है।। जो करते संघर्ष, नहीं वे किंचित हारे। आलोकित घर-द्वार, बिलखते हैं अँधियारे।। (३) दीवाली का पर्व है, चलते ख़ूब अनार। खुशियों से परिपूर्ण है, देखो अब संसार।। देखो अब संसार, महकता है हर कोना। अधरों पर अब हास, नहीं है बाक़ी सोना।। दिन हो गये हसीन, रात लगती मतवाली। बेहद शुभ, गतिशील, आज तो है दीवाली।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५...
दीप-अभिवंदना
गीत

दीप-अभिवंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** लघु दीपक है दिव्य आज तो, उससे अब तम हारा है।। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है। माटी की नन्हीं काया ने, गीत सुपावन गाया है। उसका लड़ना तूफानों से, सबके मन को भाया है।। कुम्हारों के कुशल सृजन पर,आज जगत सब वारा है। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है। घर-आँगन,हर छत-मुँडेर पर, बैठा नूर सिपाही है। जो हरदम ही,निर्भय होकर, देता सत्य गवाही है।। दीपक तो हर मुश्किल में भी, रहा कर्म को प्यारा है। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।। अवसादों को दूर हटाया, खुशियों का दामन थामा। आज भावना हर्षाती है, दीप बालती है वामा।। लघु दीपों ने प्रबल वेग से, अँधियारे को मारा है। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।। दीर्घ निशा निज ताप दिखाती, तिमिर बहुत गहराया है। पर सूरज के लघु वंशज ...
दीप जलाओ
गीत

दीप जलाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मन में तुम यदि दीप जलाओ, तो मिट जाये उलझन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीप दिखाता मानवता-पथ, रीति-नीति सिखलाता। साँच-झूठ में भेद बताता, जीवन-सुमन खिलाता।। अंतर्मन जो दीप जलाते, उनका महके आँगन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक की तो महिमा न्यारी, चमत्कार करता है। पोषित होता जहाँ उजाला, वहाँ सुयश बहता है।। शुभ-मंगल के मेले लगते, जीवन बनता मधुवन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक में तो सत् रहता है, जो दिल पावन करता। अंतर को जो आनंदित कर, खुशियों से है भरता।। दीपक तो देवत्व दिलाता, कर दे समां सुहावन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक से तो नित्य दिवाली, नगर- बस्तियाँ शोभित। उजला आँगन बने देव दर, सब कुछ होता सुरभित।। अंत...
करवा चौथ
गीत

करवा चौथ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** करवा चौथ सुहाना व्रत है, जिसमें जीवन-नूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। करवा चौथ पे भाव समर्पित, व्रत सुहाग की खातिर। अंतर्मन में पावनता है, पातिव्रत जगजाहिर।। चंदा देखे से व्रत पूरा, पति-कर जल-दस्तूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, क...
सुहाग का सिंदूर
गीत

सुहाग का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही प्रिय...
अपनी माटी
लघुकथा

अपनी माटी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्यों कलुआ की माँ, शहर चलना है क्या?" "नहीं कलुआ के बापू हमें तो अपना गाँव ही भलौ है। क्या, करेंगे शहर जाकर?" "हां! दो-चार दिन जाकर रहने की बात और है, पर हमेशा को बिल्कुल नहीं, कलुआ की माँ।" "हाँ! आप ठीक कह रहे हो। कलुआ तो सरकारी नौकर हो गया है, अब वह तो गाँव लौटने से रहा, कलुआ के बापू।" "बिल्कुल सही! पर हमारे तो अपने गांव, अपनी ज़मीन-जायदाद, अपनी माटी, अपनी खेती-बाड़ी में जान बसती है, कलुआ की माँ।" "अच्छा ठीक है हम कहीं नहीं जा रहे, पर तुम खाना तो खा लो। गरमागरम रोटियाँ चूल्हे पर सिकी।" "हाँ सही बात है, पर उधर शहर में तो सब कुछ मशीनों से चलता है। चाहे रोटी हो चाहे ज़िन्दगी, यह देशी स्वाद कहाँ।" इस पर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदे...
देवी-वंदना
मुक्तक

देवी-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अम्बे मैया करूँ वंदना, शांति-सुखों का वर दे। भटक रहा मैं जाने कब से, मुझको अब तू दर दे। जीवन में अब खुशहाली हो, हरियाली हो, मंगल हो, मैं बन जाऊँ सच्चा मानव, मेरे सिर कर धर दे।। सद् विवेक अब रहे नित्य ही, जीवन सुमन खिलें। कभी न विपदा आये मुझ पर, कंटक नहीं मिलें। मैं तो तेरा लाल लाडला, अम्बे करो दया तुम, पर्वत जो भी हैं राहों में, वे सब आज हिलें।। सुखद चेतना के पल पाऊँ, कभी नहीं क्षय हो। हे अम्बे माँ ! सच तू देना, करुणा की लय हो। कभी कपट मैं ना लिपटूँ मैं, लोभ से दूरी पाऊँ, सदा मनुजता के पथ जाऊँ, माँ तेरी जय हो।। करूँ कामना शुभ की नित ही, मंगल को सहलाऊँ। गरिमा से माता में रह लूँ, सब पर प्यार लुटाऊँ। इस जग में अब तो हे माता!, तेरा ही शासन है, मन की पावनता से महकूँ, गंगा रोज़ नहाऊँ।। मानव दीन हो गया म...
साबरमती के संत
कविता

साबरमती के संत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साबरमती के संत वतन आज़ाद कराया तुमने। ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।। सत्य, अहिंसा के शस्त्रों से, रिपु पर धावा बोला। वंदे मातरम् के शब्दों से सबने था मुँह खोला।। बापू तुमने पूर्ण कर दिए आज़ादी के सपने। ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।। अंधकार में किया उजाला, सूरज नया उगाया। लाठी ने यूँ किया करिश्मा, हर गोरा थर्राया।। सारी दुनिया में यश गूँजा, सभी बन गये अपने। ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।। भारत माता बिलख रही थी, तुमने बंधन तोड़े। अंग्रेज़ी सत्ता के तुमने बढ़कर हाथ मरोड़े।। हे!बापू यह ताप आपका, सब ही खादी पहने। ऐसा किया कमाल तुम्हारा नाम लगे सब जपने।। साबरमती के संत, बने तुम सत्य-अहिंसा पोषक। घबराये वे सारे ही तो, जो थे पक्के शोषक।। दाँत तोड़, बिन ज़हर कर दिया, लगे हुये ज...
युवाओं का वंदन
गीत

युवाओं का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार में युवा शौर्य के, दीप जलाते हैं। देशभक्ति के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है।। वतनपरस्ती के आभूषण को, युवा सजाते हैं। देेशभक्ति के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने वतन सजाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, शपथ निभाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। ख़ून बहा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया। राष् का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण ...
आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता
आलेख

आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ********************  अच्छा शिक्षक उत्साही, मिलनसार, सहज, शिक्षार्थियों के साथ तालमेल विकसित करने में सक्षम, अपने छात्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, मिलनसार, शिक्षार्थियों में लोकप्रिय और आदर्श प्रतिमान के रूप में अपनी स्थिति के प्रति हमेशा सचेत होता है। एक अच्छे शिक्षक में कई तरह के हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स भी होते हैं जिन्हें प्रभावी शिक्षकों को निखारना चाहिए, जैसे कि कक्षा प्रबंधन से लेकर भावनात्मक बुद्धिमत्ता तक। अपने सबसे अच्छे शिक्षक के बारे में सोचें। जब शिक्षकों के पास आवश्यक ज्ञान और कौशल होगा, तभी वे इतना बड़ा कार्य करने की स्थिति में होंगे। एक सफल या आदर्श शिक्षक वह शिक्षक होता है जिसे छात्र प्रसन्नता से याद करते हैं, अच्छी तरह से पढ़ाना जानते हैं कि प्रत्येक छात्र समझता है। यह वह शिक्षक है जो स्पष्ट रूप से, संक्षेप में और विषय पर ...
गणेश-वंदना
भजन

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल। आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल।। एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे। लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे।। रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ। नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ।। मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। भटक रहा मानव राहों में, गहन तिमिर का आलम। आया है पतझड़ जोरों पर, पीड़ा का है मौसम।। प्रथम पूज्य हे...
हे! गिरिधर गोपाल
गीत

हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम, प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। अंधकार की बन आई है, बेवफ़ाओं की महफिल। शकुनि फेंक रहा नित पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। अब राधाएँ डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, पीड़ा का मेला है। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला है।। प्रीति-नेह को अर्थ दिलाने, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। गौमाता की हुई दुर्दशा, भटक रहीं राहों में। दूध-दही, जंगल, नदियाँ, गिरि, बिलख रहे आहों में। आकर अब तो प्रक...
भाई के अरमान हैं
गीत

भाई के अरमान हैं

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नेह मंगलमय हुआ है, राखियाँ शुभगान हैं। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। हो गया मौसम सुनहरा, चेतना उल्लास में। आन रिश्तों को मिली है, पर्व है विश्वास में।। आ रहा है याद बचपन, आ रहा सब ध्यान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। प्रीति हर्षित हो रही है, रीति है नव आस में। नीतियाँ संदेश देतीँ, धर्म है अहसास में।। भावनाएंँ हैं चरम पर, दिव्यता सम्मान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। पल बड़े भावुक हैं आये, प्रेम पर अति वेग में। सूत के बदले सुरक्षा, मिल रही है नेग में।। बंध ऐसा बँध गया जो, जा बँधा है आन में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। डाक ने तो साथ देकर, मार दीं सब दूरियाँ। नेह पर हावी नहीं हैं, आज तो मजबूरियाँ।। है समर्पण और निष्ठा, आज हर अनुमान में। दे रहीं बहनें...
राखी में तो प्रीति है
दोहा

राखी में तो प्रीति है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो प्रीति है, सच्चाई का गीत। बहना-भाई हर्ष में, पावनता की जीत।। नेह निष्कपट भावना, मंगलमय सम्बंध। फैली है चहुँओर अब, मलयानिली सुगंध।। राखी तो सुधिगान है, बचपन की हर याद। कर रहता खाली अगर, भाई को अवसाद।। बहना-भाई दूर यदि, डाक निभाती साथ। शोभित होते हैं सदा, क़िस्मत वाले हाथ।। युगों-युगों से चल रहा, संस्कारों का पर्व। कौन नहीं जो चेतना, पर करता नहिं गर्व।। नहीं सहोदर देश में, पर आया संदेश। बहना के आशीष ने, दूर किया है क्लेश।। दुनिया की सब दौलतें, खो देतीं है मोल। जब भी राखी बोलती, अधर खोल दो बोल।। राखी रक्षा का वचन, प्रेम और विश्वास। दुआ, कामना, भावना, दृढ़ता वाली आस।। धर्म कहे रिश्ता सदा, रहे निभाता रीति। सूत कहे मैं हूँ लिए, शुभता की नव नीति।। सभी दिशाओं ने किया, राखी का यशगान...
हे औघड़दानी
दोहा

हे औघड़दानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम प्रामाणिक स्वमेव । पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव।। श्रावण में जिसने भी पूजा, उसने तुमको पाया। पूजन से यह मौसम भूषित, शुभ-मंगल है आया।। कार्तिके़य, गजानन आये, बनकर पुत्र तुम्हारे। संतों, देवों ने सुख पाया, भक्त करें जयकारे।। आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव। नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव ।। तुम फलदायी, सबके स्वामी, तुम हो दयानिधान। जीवन महके हर पल मेरा, दो ऐसा वरदान।। कष्ट निवारण सबके करते, तुम हो श्री गौरीश। देते हो भक्तों को हरदम, तुम तो नित आशीष।। तुम हो स्वामी, अंतर्यामी, केशों में है गंगा। ध्यान धरा जिसने भी स्वामी, उसका मन हो चंगा।। तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव। भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव।। तुम त्रिप...
सुरक्षा-संदेश
दोहा

सुरक्षा-संदेश

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बढ़ती जब जनसंख्या, बढ़ता है तब भार। हो जाती हर योजना, तब निश्चित बेकार।। बढ़ता है जन भार जब, दुख पाता परिवार। सभी तरह से देश में, फैले तब अँधियार।। दोपहिया पर बैठ जब, एक साथ परिवार। कहे सुरक्षा आ रहा, दुर्घटना का वार।। ध्यान रखें जो वे रहें, सड़कों पर अनुकूल। बिना कायदे जो रहें, चुभते उनको शूल।। सड़कों पर खिलवाड़ तो, लेती जीवन लील। बहुत कीमती ज़िन्दगी, करो ज़रा तुम फील।। लापरवाही त्याग दो, वरना तय है काल। होगा तुमको हर कदम, वरना "शरद" मलाल।। नियम सदा हित को रचें, उन्हें मान नहिं व्यर्थ। डरो रोड कानून से, समझो उसका अर्थ।। मन में धरकर जोश तुम, गँवा न देना होश। वरना विधि या मौत तो, भर लेंगी आगोश।। होगा जब सीमित यहाँ, हर इक का परिवार। तभी प्रखर प्रतिकूलता, का होगा संहार।। दोपहिया की नहिं अ...
जम के बरसो बदरा
दोहा

जम के बरसो बदरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जल की पहली बूँद ने, गाया मंगल गीत। कृषकों की तो बन गई, वर्षा अब मनमीत।। जमकर बरसो आज तुम, ऐ बदरा मनमीत। धरती के दिल को अभी, लो तुम प्रियवर जीत।। बचपन की बारिश सुखद, बेहद तब उल्लास। खुशबू मिट्टी की भली, सोंधेपन का वास।।। पहली बारिश जब हुई, हरियाली का दौर। आसमान के मेघ पर, किया सभी ने गौर।। खुशी दे रही है वृहद, हमको तो बरसात। मिट्टी को तो मिल गई, एक नवल सौगात।। बचपन की यादें घिरीं, मन हो गया अतीत। नहीं आज परिवेश वह, नहीं आज वे मीत।। पानी से जीवन मिला, बूँदें हैं वरदान। करता है यह नीर तो, खेतों का सम्मान।। नदी भरी,तालाब भी, मौसम है अनुकूल। दूर हो गए आज तो, गर्मी के सब शूल।। बारिश से ही गति मिले, पीने को है नीर। जल की बूँदों ने हरी, आज सभी की पीर।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २...