मानवता के प्रहरी तुम हो
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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मानवता के प्रहरी तुम हो,
तीर्थंकर भगवान तुम।
सत्य, धर्म के संरक्षक हो,
न्याय, नीति का मान तुम।।
गहन तिमिर तो हर्षाता अब,
प्यार दिलों से गायब है।
दौर कह रहा झूठा-कपटी,
ही बनता अब नायब है।।
करुणा को फिर से गहरा दो,
महावीर तुम ताप हो।
पावनता के उच्च शिखर हो,
आप असीमित माप हो।।
काम, क्रोध के प्रखर विजेता,
अविवेकी को ज्ञान तुम।
सत्य, धर्म के संरक्षक हो,
न्याय, नीति का मान तुम।।
इंद्रियविजेता, सत्यपथिक हो,
दया-नेह के सागर हो।
उच्च चेतना, नव विचार हो,
मीठे जल की गागर हो।।
भटक रहा है मानव उसको,
तुम दिखला लो रास्ता।
नहीं रखे जिससे मानव अब,
अदम कार्य से वास्ता।।
पाप कर्म के हंता हो तुम,
युग को नवल विहान तुम।
सत्य, धर्म के संरक्षक हो,
न्याय, नीति का मान तुम।।
महावीर हे! वर्धमान तुम,
फिर से जगत जगा...