ओस की बूँदें
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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हरी घास पर ओस की बूँदें, भाती हैं।
नया सबेरा, नया सँदेशा, लाती हैं।।
सूरज निकले, नवल एक इतिहास रचे,
ओस की बूँदें टाटा करके जाती हैं।
प्रकृति लुभाती, दृश्य सजाती रोज़ नये,
ओस की बूँदें नवल ज्ञान दे जाती हैं।
कितनी मोहक, नेहिल लगती भोर नई,
ओस की बूँदें आँगन नित्य सजाती हैं।
सुबह धुँधलका फैले, जागे ओस तभी,
ओस की बूँदें राग नया सहलाती हैं।
जीवन के हर पन्ने पर, है कथा नई,
ओस की बूँदें प्यार ख़ूब बरसाती हैं।
परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुच...