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हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्यिक

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...
कृपया प्रतीक्षा करे, आप कतार में  हैं….???
संपादकीय

कृपया प्रतीक्षा करे, आप कतार में हैं….???

प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज सुबह जब किसी के स्टेट्स पर ये लाइन पढ़ी, पहले तो थोड़ी हँसी आई, फिर एकदम हँसी और मन दोनों सहम गए। हम हर रोज मन को सकारात्मक सोचने और खुद को खुश रखने की कोशिश करते हैं। रोज सुबह एक प्रेरणा, प्रार्थना, उत्साह, जोश, जुनून, सकारात्मकता, खुशी, भविष्य की तैयारी की एक पोटली बनाकर दिन की शुरूआत करते है, और चाहे अनचाहे ऐसी खबरों और मौत की खबरों को सुनना पड़ता हैं, हम सुनना भी नही चाहते है, और हमारी तैयार खुशियों की पोटली में प्रेरणा, प्रार्थना, उत्साह, जोश, जुनून, सकारात्मकता, खुशी, भविष्य की सोच, एक मिनट में डर, परिवर्तित होकर इन सब सकरात्मक शब्दो और भावो को कोने में बिठा देते है, और हम महामारी के संकट की सोच को दिमाग से बाहर ही नही निकाल पाते। अब समय हैं, अपने परिवार को समय देने का, वर्चुअल दुनिया से बाहर आने का और वास्तविक दुन...
यह रात कब खत्म होगी….??
संपादकीय

यह रात कब खत्म होगी….??

प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर निकलता दिन कोरोनाकाल की निर्ममता को बढ़ाता जा रहा हैं।सभी सुबह का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन लोग कह रहे हैं कि पीक आना अभी बाकी है ,अभी आलम यह है तो आगे की तो कल्पना करना भी मुश्किल है, मानवीय भाव और संसाधन खत्म होते जा रहे हैं, इंसानियत, मानवता, हॉस्पिटल, बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन, दवाइयां, रिश्ते, प्रकृति, ये सब खत्म होते जा रहे हैं। क्या-क्या देखना बाकी है, यह तो नहीं पता लेकिन आसपास के लोग पुराने परिचित रिश्तेदारों को जाते देख मन दिल दिमाग बैठा जा रहा हैं। और ऐसा लगता है जैसे प्रकृति गुस्से में तांडव कर रही है और सभी को अपने कोप का भाजन बना रही है, मुसीबत में आम आदमी सरकार, सिस्टम डॉक्टर और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहरा रहा है, लोगों की मन:स्थिति बिगड़ रही है, अपनों के सहारे के समय, अपनों से दूरी बनानी पड़ रही है। प्रकृ...
संपादकीय

ऐसा तो सोचा न था

प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता इंदौर (म .प्र.) ******************** सोशल मीडिया पर दूरी से रिश्ते निभाते-निभाते आज की परिस्थितियों ने सच में भौतिक रूप से दूरी से रिश्ते निभाने के लिए मजबूर कर दिया है। हम खुद ही लोगों को सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर ही निपटा देते हैं, ऐसे में इन परिस्थितियों में दिल दिमाग में बेचैनी होना लाजमी है। हम सभी से जुड़े रहना चाहते हैं, लेकिन दूरी से हमारी यह सोच एक दिन ऐसे साकार रूप ले लेगी हमने सोचा भी न था हमने परिवार की इकाई को खुद छोटा बनाया जिसमें माता-पिता और सिर्फ उनके बच्चे आते हैं, दादा-दादी, नाना-नानी यह तो परिवार में शामिल ही नहीं माने जाते अगर हम आकर्षण के नियम की बात करें तो यह हमारी सोच का ही परिणाम है कि हम घर के बाहर पड़ोसी से भी दिल से नहीं जुड़ पा रहे हैं और आज स्थिति यह है कि १ मीटर की दूरी पर ही बात कर रहे हैं, ना अब रिश्तेदार और ना ही पड़ोसी घर ...