बांके बिहारी की महिमा
प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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मेरे बांके बिहारी दयालु बहुत,
दर बुलाकर है दर्शन का अवसर दिया।
वो हैं करुणामई, भक्तवत्सल भी हैं,
जिसने जो कुछ भी मांगा, वही दे दिया।
मेरे बांके...
आप यों ही बुलाते रहोगे अगर,
मेरे पहले के सब पाप, कट जाएंगे।
दरस पाकर तो, निर्मल बनेगा ही मन,
पाप की राह पर,फिर नहीं जाएंगे।
तेरी औरा की डोरी से यदि बंध गए,
फिर कहीं भी लगेगा, न मेरा जिया।
मेरे बांके...
तुम बुलाते जिन्हें, वो ही आ पाते हैं,
पा के दर्शन, छवि मन को भा जाती है।
जाते घर को तो, मन छूट जाता यहां,
सोते जगते, तेरी याद ही आती है।
तुम सलोने हो, करुणामई हो बहुत,
खुद बतादो, कि क्यों ऐसा जादू किया।
मेरे बांके...
तेरे महिमा को, लिखने का मन कर रहा,
भाव दोगे तुम ही, तो ही लिख पाऊंगा।
तेरी वंशी की धुन है मधुर, कर्णप्रिय,
दोगे स्वर ज्ञान, तो ही तो गा पाऊं...