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कितनी उदास सुबह है
कविता

कितनी उदास सुबह है

प्रेक्षा सक्सेना भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कितनी उदास सुबह है क्या इसी की प्रतीक्षा में काटी थो वो स्याह रात नहीं देखा कोई स्वप्न क्या इसी यथार्थ के भोग हेतु? पूर्ण नहीं होते कुछ स्वप्न दुराग्रह होती हैं कुछ आकांक्षाएँ अभेद्य होता है मोह का चक्रव्यूह प्रतिक्षण अटल होता निर्मम सत्य क्यों फिर अपने निकृष्टतम रूप में भी जीवन होता है मृत्यु से श्रेष्ठ? नयनों की कोर पर बनाकर बाँध समुद्र को सीमित करने के प्रयास किंतु दुस्साहसी लहरों का कोलाहल हृदय की गहराईयों तक गूँजता है क्यों रुदन पीड़ा की अभिव्यक्ति है जब रुदन से ही होता है जीवन प्रारंभ ? अनकहे शब्दों के अनुभूत स्पंदन और हृदय पर लिखा शिलालेख सा प्रेम जीवित हैं समर्पण की पराकाष्ठा पर स्वार्थ नहीं सींच पाता कभी शुद्ध प्रेम क्यों सदैव होना है अभिव्यक्त स्पर्श से जबकि सीप में छुपा अनछुआ मोती है प्रेम? ...