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Tag: प्रीति धामा

सफ़लता का अंकुर
कविता

सफ़लता का अंकुर

प्रीति धामा दिल्ली ******************** न जाने कब मेरी असफलताओं की, बंजर भूमि से, वो एक सफ़लता का अंकुर फूटेगा! न जाने कब मेरी इन पथराई आंखों में, वो जागृत करने वाला ख़्वाब सजेगा! उदास हूँ,ग़मगीन भी, शिकायतों की ढ़ेरो तख्तियाँ, मन में समेटे मैं बस मौन हूँ! कब,कहाँ,और कैसे ये सवाल लिए, एकांत हूँ,अनेकांत हूँ, ख़ुद से पूछती,ख़ुद को टटोलती, न जाने मैं कौन हूँ? जब-जब शून्य हुई मैं, तब-तब आत्ममंथन किया है! ये कैसे संभव होगा,ये कैसा होना चाहिए, अब तो इस असफ़लता का भी, दंभ टूटना चाहिए! क्यूँ क़िसमत रूठी लगती है, क्यूँ मेहनत वो अधूरी लगती है। अब तो इसका अंत होना चाहिए, मेरी असफ़लताओं की बंजर भूमि में भी, वो सफलता का अंकुर पनपना चाहिए ! परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
एक कप समय
कविता

एक कप समय

प्रीति धामा दिल्ली ******************** एक कप का समय बस एक गरमा गरम प्याली का ख़्याल आया, उस वक़्त क्या-क्या किया ये सवाल आया। जैसे ही चाय प्याली में उड़ेली गई, प्याली ने भी लब खोल ठिठोली की, आधी चाय फर्श पे, तो आधी प्याली सँभाली गई। जब धीरे-धीरे प्याली से निकल रहीं थी भाँपें, उन भाँपों में बनने लगे, कुछ अक्स, कुछ सपने और कुछ तस्वीरें, जो लगने लगी थी प्यारी, लेकिन निरीह थी कल्पना सारी। धीरे-धीरे ठंडी हो रही थी चाय, और उसे पीने की जद्दोजहद में मैं, सुध-बुध भूल बुन रही कुछ सपने, कुछ किस्से, अब बस आखिरी घूँट बाकी थी, या यूं कहें मेरी कल्पनायें जो टूटने की आदी थी। लो अब आ गया बिल्कुल पास, वो समय था, लो हो गई आखिरी घूँट भी ख़त्म, सोचने, बोलने की बस रुकी वहीं वो उधेड़बुन, उस थोड़े से समय में, ज्यादा कुछ हुआ नहीं, हक़ीक़त ज्यों की त्यों रह गयी, बस मेर...
संविधान से दोस्ती
कविता

संविधान से दोस्ती

प्रीति धामा दिल्ली ******************** है बात ये पते की, है भी कुछ नई, करो तुम भी कभी, संविधान से दोस्ती! नियम, कानून, और व्यवस्था को जानोगे, फिर कभी नहीं, तुम कानूनों से भागोगे! संविधान बताता, देश की बानगी, संविधान बताता, अधिकारों की रवानगी! संविधान भारतीयों की ढ़ाल बना है, संविधान देश की आन लिए खड़ा है! जो खुद को तानाशाह कहलवाता, संविधान उन्हें है धूल चटाता! लोकतंत्र का परचम, धर्मनिरपेक्षता की कहानी, संविधान बताता अपने अनुच्छेदों की जुबानी, अपने अधिकारों का मोल तुम भी जानोगे, तब सरकारों से भी अपना हक़ तुम माँगोगे! एक यही तो वो आधार है, इसके बिना क्या ही जनाधार है, इसलिए है ये बात पते की, है भी कुछ नई, करो तुम भी कभी, संविधान से दोस्ती! परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्व...
सबसे मुश्किल होता है
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सबसे मुश्किल होता है

प्रीति धामा दिल्ली ******************** सबसे मुश्किल होता है, हाँ बहुत मुश्किल होता है, उस सफलता को बस छूते-छूते रह जाना, जिसके लिए आपने जी तोड़ मेहनत की हो, जिसके सपने देखने के लिए, नींदों से बगावत की हो। जिसको पाने के न जाने कितने ख़्वाब देखे हो, जिसकी उम्मीद आपने अपने से, आपके अपनो ने तुमसे बांधी हो, सच में बड़ा मुश्किल होता है, सफलता के आखिरी पायदान पर जाकर नीचे लुढ़कना फिर से नई शुरुआत जब मैंने जीरो से सीखा था, सच में बहुत मुश्किल है, फिर से हिम्मत को बांधे रखना, कि अब फिर से कमर कस कर उस सफलता को एक बार फिर हासिल करना। बस इसी ज़द्दोज़हद में अब कट रही ज़िन्दगी है, कि आखिर कहां रह गयी वो कमी है। परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
स्कूल का ताला
कविता

स्कूल का ताला

प्रीति धामा दिल्ली ******************** आज स्कूल से गुजरते वक़्त ताले ने आवाज़ लगाई,सुनों! मैं भी ठिठक कर रुक गई। कहने लगा कहो कब तक मुझें यहां से आज़ाद करवाओगे? कब से फिर बच्चों की चहलक़दमी से स्कूल सज़वाओगे। बड़ा दुःखी मेरा स्कूल पड़ा है, अब ये व्यथा कही नहीं जाती। रोते-बिलखते दोस्तों की पीड़ा सही नहीं जाती। आश्चर्य से देखकर मैं बोली दोस्त? कौन से भई? मेरा दोस्त "ग्राउंड" उसका वो सूनापन मुझसे देखा नहीं जाता, क्यों कोई बच्चा उसपे अब खेलने नहीं आता मेरा दोस्त "ढ़ोल" कब से मौन बैठा है कब से न कोई मीठी तान बजी, न बच्चों की प्रार्थनाओं की लाइनें ही सजी। मेरा दोस्त डेस्क न जाने क्यों उदास है, कह रहा था नींद आने पर बच्चा संजू कब मुझ पे फ़िर सिर टेक कर सोयेगा? "टंकी" का तो हाल बुरा है, रोते-रोते मंजू को याद बहुत वो करती है, टीचर की डांट डपट सुन वो यहाँ जब मुँह ध...