इस बहती-बहती बस्ती में
प्रियंका सिंह
मिर्जापुर
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इस बहती-बहती बस्ती में,
थम पाँव ज़रा, रूक जाने दो,
सागर की बाँहें, थाम लू मैं,
मुझे अपनी लय में आने दो।
स्वप्निल आँखों का ख्वाब सही,
उड़ते-उड़ते ख्यालात सही,
विलय नहीं, अब नव विहान,
मुझे वो उम्मीद जगाने दो।
तम बेला है, राह कठिन,
लोगों के व्यवहार कठिन,
इन घुटती-चुभती राहों में,
एक सृजन मशाल जलाने दो।
वो प्रेम का मतलब क्या जाने,
जो लड़ते हैं, निज स्वार्थ सही,
ना जाति-धर्म, ना घृणा-द्वेष,
मुझे वो संसार बसाने दो।
हर एक दिशा है, दीवार नई,
मुझे उसमें द्वार बनाने दो,
सागर की बाँहें, थाम लू मैं,
मुझे अपनी लय में आने दो।
परिचय :- प्रियंका सिंह
जन्मतिथि : २८/०७/१९८३
निवासी : मिर्जापुर
सम्प्रति : शिक्षिका
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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