Saturday, September 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: प्रियंका पाराशर

हिन्दी की हस्ती
कविता

हिन्दी की हस्ती

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** हिन्दी की हस्ती में छुपी शब्दों की मस्ती वर्णमाला के स्वर व्यंजन परोसते शब्दों के व्यंजन शब्दों के जो जुडते संबंध तो सजते पत्र, कहानी और निबंध वाद-विवाद और संवाद में कहावते, मुहावरे बढाते स्वाद संधि, समास और अलंकार से वाक्य में लगते चांद चार गद्य और पद्य के दोहे लेखनी का स्वतः मन मोहे हिन्दी से बने हम होनहार हिन्दी से मिला ज्ञान रूपी सर्वोत्तम उपहार परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
हालत और हालात
कविता

हालत और हालात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** हालत और हालात करे मुक्का लात हालात ने बनायी ये हालत हालत से बने ये हालात दोनों मे छिड गयी ऐसी बात तू डाल-डाल मै पात-पात करे विरोधाभासी मुलाकात हालत से हालात परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ...
नई शुरूआत
कविता

नई शुरूआत

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** नई तमन्नाओ के प्रति कशिश को पूरा करने की नई कोशिश शुरू करते है नई शुरूआत बस समय देता रहे साथ नये संकल्पो का संचार है सफलता पाने का मजबूत आधार रिश्तों के लिए करे एक नया अर्पण जो है स्नेह और आत्मीयता का दर्पण फिर से रोशन करने को हुई नई भोर जो जागे है वो रोशनी रहे बटोर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
अपनी बस्ती में…
कविता

अपनी बस्ती में…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** रहते थे जब अपनी बस्ती में हर पल गुजरता था मस्ती में दिल खोल कर हँसने का शोर आत्मविश्वास की थी मजबूत ड़ोर रोके से भी न रूकना,थकना सबको खुश करने से न चूकना पहचान थी चमकता सितारा तारीफें लुटाता ज़माना सारा सबका भरोसा ही था सच्ची सुलझन तो रिश्तों में न थी कोई भी उलझन डाँट में भी होती थी एक प्यारी परवाह तो भटकने पर भी मिल जाती एक राह बेवजह खुशियाँ मिलती थी सस्ती में रहते थे जब अपनी बस्ती में....... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
हिंदी
कविता

हिंदी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** स्वर व्यंजन की वर्णमाला जिसने शब्दों का शिखर है ढ़ाला शब्दानुशासन का व्याकरण से है नम्रता भरा आचरण रस, छंद और अलंकार से सजा साहित्य का सर्वोत्तम श्रृंगार हृदय में समेटे विशाल शब्दकोष मुहावरे और लोकोक्तियाँ जगा दे जोश साहित्य की जान सभ्यता की शान और राष्ट्र की पहचान "हिंदी" से सुशोभित हिंदुस्तान परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
मेरे भारत का कमाल
कविता

मेरे भारत का कमाल

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** मेरे भारत का कमाल बढ़ा दिया मान संख्या का कर के सिर्फ शून्य का इस्तेमाल बतलाया दशमलव का ज्ञान गणना सिखाकर पूरा किया विज्ञान जन्मी यहाँ विश्व की पहली सभ्यता वसुधैव कुटुंबकम की है यहाँ मान्यता दिया विश्व को प्रथम धार्मिक ग्रंथ, ऋग्वेद सर्वप्रथम लोकतंत्र की अवधारणा, है भारत की देन सहिष्णुता का है मजबूत आधार यहाँ के मानव में बसता है अद्भुत कलाकार कला और ज्ञान का दिया अपार भंडार विश्व गुरू मानकर पूजता है इसे संसार जन्में यहाँ वीर सपूत जो देश रक्षा मे त्याग दे प्राण शत्रु को परास्त कर दे चला के शब्दभेदी बाण विविधता मे एकता को लिए चले संभाल करता हमें गौरवान्वित मेरे भारत का कमाल परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भ...
बेटी उन्मुक्त भारत की
कविता

बेटी उन्मुक्त भारत की

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बेटी उन्मुक्त भारत की इतिहास रचती जा रही जिद्दी होकर जीत की, दमखम से स्वयं की पहचान की नई रस्म है बना रही सपनो को वो कर साकार एक मिसाल है दे रही विचारधाराओ को दे नया आकार खरीद नहीं रही, अब सोना चाँदी कमा रही खिलौना नहीं समाज का खिलाड़ी बन उभर रही मंजिल हासिल करने को, न मिटने वाले पदचिन्हों की निर्माता हो बुलंद हौसलों से रास्ते नए बना रही परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
स्वयं का पुरूषार्थ
कविता

स्वयं का पुरूषार्थ

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** मत रख किसी से कोई आस सिर्फ पुरूषार्थ पर रख विश्वास हाथ फैलाने पर नहीं मिलती भीख मुफ्त में बँटती सलाह और सीख भाग्य को छोड़ लगा पुरूषार्थ से दौड़ विपत्ति में यही है सच्चा आश्रय भूलकर भी मत बैठ पराश्रय कर आत्म गौरव का अनुभव सफलता करेगी चहुँ ओर कलरव पुरूषार्थ से जो हुआ लगाव तो धन, यश, सम्मान का न होगा अभाव पुरूषार्थ बल से असाध्य भी हो जाता साध्य उन्नति के मार्ग पर चलने को यह कर दे बाध्य हर तरह की मदद के सहारे में तो छिपा है स्वार्थ पर सबसे मीठा फल देगा स्वयं का पुरूषार्थ .... स्वयं का पुरूषार्थ .... स्वयं का पुरूषार्थ .... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
शब्दों की गरिमा
कविता

शब्दों की गरिमा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** शब्दों के हाहाकार ने कहीं किया सत्कार तो कहीं तिरस्कार पर इन सब के बीच है दरकार कि शब्दों की गरिमा को बरकरार रखना भी है एक करिश्मा बस वाणी सँभाल ले यह अनिवार्य जिम्मा परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के ...
माँ की पहचान
कविता

माँ की पहचान

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** जिस से पूर्ण होती हर आशा वो है निस्वार्थ प्रेम की परिभाषा उसकी दुआ है अचूक दवा स्पर्श उसका गर्म मौसम में ठंडी हवा मुसीबतों में बन के रहती है ढाल गिरने से पहले लेती वो सँभाल दूर से भी लेती हर दर्द पहचान उसकी ममता से बड़ा नहीं कोई दान यह है सिर्फ एक माँ की पहचान जितना कहूँ उतना कम है माँ की हर एक बात में दम है परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
बेटी का घर टूटा है
कविता

बेटी का घर टूटा है

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** माना कि घर छूटा है पर रिश्ता नहीं टूटा है माँ से बेटी का घर टूटा है ये सरासर झूठा है हर बार उसकी बेटी से कोई रूठा है इस बात पर एक माँ का दिल कचोटा है फिर भी माँ का उस रूठे पर, उमड़ा आशीष अनूठा है बेटी के दर्द से माँ का मन घुटा है तो चलो मान लिया कि बेटी का घर तोड़ने की माँ के मन मे कुंठा है पर फिर घर टूटा तब वहाँ समक्ष खड़े सब लोगों की समझदारी को किसने लूटा है ? चिंगारी को आग में बदलने के लिए तो कितनों का कदम उठा है समझदारी के ठेकेदार मार रहे बस एक ही बात का जूता है कि बेटी की माँ से बेटी का घर टूटा है पर सोचो, जो लोग समझदार है वो बचाने के बजाय क्यों दिखा रहे अँगूठा है ? प्रत्यक्ष है कि घर तोड़ने में कौन-कौन जुटा है पर स्वदोष छुपाने के लिए उड़ा रहे बस झूठा है बेटी की माँ से बेटी का घर टूटा है ये सरासर झूठा है, ये सरासर झूठा है...
अंतिम विकल्प
कविता

अंतिम विकल्प

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** थम सा गया है हर तरफ शोरगुल जो बांधे कोरोना ने एक से अनेक पुल ये पुल है सबसे अनोखे कि मिलने पर है बिछड़ने के धोखे चारों ओर है बस भय व्याप्त न जाने जीवन कब हो जाए समाप्त खड़े हो रहे हैे शवों के शिखर जो अब तक समेटा, एकदम से जा रहा है बिखर अटल सत्य "अकेले आये सब, सबको जाना भी है अकेले" पर अब तो अनिवार्य हो गया, साथ छोड़ रहना भी है अकेले एकत्र होकर कही स्वयं ही स्वयं को लगा न दे आग तनहा रहे तो आगे ले सकेंगे जीवन के रंगमंच पर भाग वरना जरा जान लो उनसे जिन के घर के बुझ गए चिराग टूटे महामारी का पुल, जो ले हर एक से दूरी रखने का संकल्प न निभा सके संकल्प तो तालाबंदी का पहरा ही है अंतिम विकल्प परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घ...
औरत ही औरत की शिकारी
कविता

औरत ही औरत की शिकारी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** औरत ही औरत की शिकारी सबसे भयानक रूढिवादिता की बीमारी न दे उचित योग्यता को महत्व स्त्री ही स्त्री पर जमाए उच्च पद का प्रभुत्व स्वाधिकार मे अधीन स्त्री का क्षीण करे अस्तित्व कभी सास रूप में बंधिश बहु पर, हो जैसै बंधुआ मजदूर कुछ गलती होने पर ओरो से तुलना और कर दे मशहूर स्वैच्छिकता पर रोक, बस ताने सुनने को करे मजबूर पराए घर से आई सास, पराए घर से ही आई बहु स्वनिर्मित प्रथाओ को, सास की जैसे बहू निभाए हूबहू सास-बहू दोनो का ही है समान अधिकार उच्च पद के रौब में, उत्पन्न होता मानसिक विकार जरा सी सोच कि, स्वयं को मुझसे ज्यादा न समझ ले हमने जो जो सहा तो वही सब, ये क्यों ना सह ले मानसिक तौर पर वही औरत, दूसरी औरत का करती शिकार जिसमें अयोग्यता और आत्मविश्वास की कमी का हो विकार समान कार्यस्थल पर नए योग्य सहकर्मी से ऐसा विद्वेष जैसे स्त्री ही ...
पुरूष की व्यथा
कविता

पुरूष की व्यथा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** पुरूष की व्यथा विवाहोपरांत अपयश से भरा जीवन वृतांत आया मानसिकता में परिवर्तन पुत्र नहीं रहा पहले जैसा श्रवण बहनों के लिए अब बदल गया भाई जब से जीवन मे, आई उसके लड़की पराई जिन्होंने प्यार, संस्कार की परवरिश से किया बड़ा अब स्वयं के ही खून की स्नेह, भावनाओ पर संदेह खड़ा पुराने रिश्तों के साथ व्यतीत करने को कम हुई समय सीमा क्योंकि पुराने, नए दोनों रिश्तों की बनाए रखनी है उसे गरिमा अब, अंतर बस इतना-सा आया समझ के भी जिसे, कोई समझ न पाया रक्त संबंधों के लिए दिल में उसके सदैव स्नेह-सत्कार अपार पर अब अर्धांगिनी, फिर संतान में बँट गया उसका थोड़ा प्यार कभी भी जिम्मेदारियों से नहीं भागता वह दूर फिर भी अपनों से ही ताने सुनने को है मजबूर सबकी सेवा में तत्पर होने पर देते सब संस्कारवान का तकिया कलाम पर जीवनसंगिनी की परवाह करने पर, कहलाता क्यो...
रंगीला राजस्थान
कविता

रंगीला राजस्थान

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सभ्यता, संस्कृति, मान्यता, विश्वास है यहाँ विद्यमान भिन्न-भिन्न रंगों से सुशोभित मेरा रंगीला राजस्थान धरातल का एक भाग रेतीला तो दूसरा भाग हरा-भरा इतिहास यहाँ के लोगों की वीरता के किस्सों से भरा पद्मिनी का जौहर, मीरा की भक्ति, पन्ना का बलिदान प्रताप, चेतक, राणा सांगा के रण कौशल पर अभिमान महल, मंदिर, दुर्ग, हवेलियों की है अद्भुत शिल्पकारी घूमर, कालबेलिया जैसा लोकनृत्य, बणीठणी की चित्रकारी संत, सत्तियों, कवियों और भगतो की है आन-बान यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर पर देश को है अभिमान आकर्षक पर्यटन स्थल, मेले और हाट बाजार रंगीले राजस्थान का सजीला है श्रृंगार त्यौहारो का संगम, अतिथि का सम्मान लोकगीतो की गूँज संग तानपुरे की तान घूंघट की मर्यादा और पगड़ी की शान शौर्य, साहित्य, कला, संगीत की है यहाँ खान मेरे रंगीले राजस्थान का अनंत है गुणगान ...
होली का हुड़दंग
कविता

होली का हुड़दंग

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** फागुन का मास लाया गीतो और रंगों भरा उल्लास होलिका के संग दहन हो आलोचना, ईर्ष्या, अंतर्द्वंद आज न माने दिल कोई प्रतिबंध मन मे हिलोरे लेती तरंग पिया लगाये गौरी को प्रीत का पक्का रंग अनुबंध मे बहके, जैसे चढ़ी प्रेम की भांग परंपरागत व्यंजनों की सजी रंगोली फागुन के गीतों ने, कानों मे है मिश्री घोली जात्त-पात, ऊँच-नीच के भिन्न-भिन्न गुब्बारे एकता का रंग बरसाते हुए जैसे भाईचारे के चले फव्वारे बोल रहा हर एक इंसान, बस मस्ती की बोली हास्य रंग से भरी पिचकारी, छोड़े हँसी ठिठोली इन्द्रधनुष-सा मनमोहक समाँ, उड़ा जो महकता अबीर तन भीगा, अंग रंगीन, जो बरसा रंगोंं से सरोबार नीर गूँज रहे ढोल, मँजीरे और संग में बज रहा मृदंग हर दिल बचपने में रंगा, मचा रहा होली का हुडदंग परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : र...
बस इतनी सी बात
कविता

बस इतनी सी बात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान किसी को लगे रूचिकर या लगे किसी को नागवार पर मेरे स्वविचार रखने के अधिकार की रक्षा से नहीं करोगे अंगीकार सब के समक्ष रख लोगे थोड़ा मेरी बात का भी मान तो मन, वचन, कर्म से दूँगी तुम्हें सम्मान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान व्यस्त रहो चाहे तुम करने में सबकी सेवा-काज पर कभी एक पल के लिए सुन लेना मेरे भीे मन की आवाज़ चाहे किसी से भी करो अपने सुख-दुख का आदान-प्रदान पर पहले हक से मुझे कहो, अजनबी समझ के न रहो कोशिश कर निकालेंगे समस्या का निदान, समाधान अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी, नहीं हूँ मैं कोई अंजान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान स्वयं के घर में मिटने न दोगे कभी मेरा अस्तित्व जीवन सफर में कम न समझोगे मेरा महत्व तो रहेगा मेरे दिल पर हमेशा हमेशा तुम्हारा स्वामित्व बनोगे अगर मेरे लबों की मुस्कान तो हर जन्म...
ताना-बाना
कविता

ताना-बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो-जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
जिंदगी का ताना बाना
कविता

जिंदगी का ताना बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
मेरे प्यार का फ़लसफ़ा
कविता

मेरे प्यार का फ़लसफ़ा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** कुछ ऐसा है मेरे प्यार का फ़लसफ़ा खुश रहूँ तुझसे या खफ़ा हर पल तेरा इंतज़ार रहता है दिल का दरिया इक तेरे लिए ही तो बहता है लागी तुझ संग ऐसी प्रीत कि न हार सकूँ न जीत बस दिल निभाएँ प्यार की रीत गुनगुनाऊँ तुझ संग प्रणय गीत मन की बात जानने वाले ओ मेरे मन मीत तेरे साथ चलते-चलते यूँ ही जाएँ पूरी उम्र बीत तेरे आने की आहटे करती हूँ महसूस न आओ नजर के सामने तो रहूँ मायूस बनना चाहूँ तेरी हमराज़ ना कि जासूस रूठने पर तेरे मनाने का अथक प्रयास वादा रहा तुझसे, ना ना करते भी मान जाऊँगी हर दफ़ा कुछ ऐसा है मेरे प्यार का फ़लसफ़ा प्यार भरी है नोकझोंक वाद-विवाद में तेरे संग उलझने का है शौक मैं जब भी करूँ प्यार का इज़हार हमारे बीच बस यही तकरार दावा करते हो तुम हर बार करता हूँ प्यार, तू करे मुझसे प्यार जिससे ज्यादा जीवन हो तेरा सुकून भरा, खुद पर ले लू...
हिलोरे ले रहा हर्ष… आया नववर्ष…
कविता

हिलोरे ले रहा हर्ष… आया नववर्ष…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** आया नववर्ष हिलोरे ले रहा हर्ष जो बीत गया कुछ खास नहीं अब कुछ अच्छा होने की आस नई कुछ दूर हुए तो कुछ है पास बीता कल है यादों का एहसास कुछ बिगड़ा तो कुछ गया सँवर फिर से सुख दुःख का वही भँवर नए वर्ष के नए संकल्प योजनाओं के कई विकल्प आकांक्षाओं की तुलना में समय है अल्प नववर्ष की नई सुबह मन के सारे विवादों की सुलह नये साल के आगमन पर मुरझाया मन भी जाए खिल क्योंकि समय तो है परिवर्तनशील नववर्ष का प्रथम दिवस जैसे सूखी धरती पर पावस जीवन में भर आए मधुरस सी मिठास आगाज है नए साल का पाए फतह हर क्षेत्र मे कमाल का नववर्ष का प्रथम प्रभात लाए सर्व जन के लिए खुशियों की सौगात नववर्ष का है हार्दिक अभिनंदन स्वागत परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान)...
बस इतनी सी है जिंदगानी
कविता

बस इतनी सी है जिंदगानी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** कभी हँसते गाते मौजों की रवानी कभी दर्द समेटे दिल और आँखो में पानी कभी सुकून तो कभी बैचेनी कभी मन गंभीर तो कभी शैतानी बस इतनी सी है जिंदगानी तैयार हर पल एक नया किस्सा कभी सुख तो कभी दुख का हिस्सा कठिन डगर पर कठिन संघर्ष मंजिल पाने पर अथाह हर्ष जीवन जीने की आपाधापी कभी ईमानदार तो कभी बनते पापी निभाने मे तत्पर अलग-अलग किरदार हैसियत बस इत्ती सी जैसे कोई किरायेदार कुछ वक्त का है बसेरा साँस है जब तक तेरा मेरा चिरनिद्रा लेते ही जग अँधेरा समय के आगे नहीं चलती कोई भी मनमानी जो आज है वो बन जाएगा कल एक कहानी रह जाएगी बस यादों की निशानी बस इतनी सी है जिंदगानी परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर...
इंसानियत
कविता

इंसानियत

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सब रिश्तो से ऊँचा हैं एक रिश्ता जिसकी पहचान है मानवता हर रिश्ते के अस्तित्व में जरूरी है इंसानियत अन्यथा, स्वार्थ के अंधेपन में हावी है हैवानियत स्वनिर्मित कायदे कानून के लिए देते हैं नामी रिश्तो के ओहदे का वास्ता अंधविश्वासी बन नियमों की पालना के लिए औरत ही औरत की शत्रु बन भूल जाती इंसानियत का रास्ता कुछ पाने की लालसा में तो खूब हो रहा दान धर्म परंतु अपनो के प्रति भेदभाव, अहंकार की भावना बड़े पद की आड में छोटो को दे प्रताड़ना नैतिक अनैतिक नजर अंदाज कर भूला रहे मानव धर्म हर घर में नाम है और नामो के साथ है पद परंतु इंसानियत के आगे सबका लगता है तुच्छ कद चाहे कितने ही संस्कारो का ओढ लो आवरण मानव है अगर तो मानवीय हो आचरण संबंध निभाने मे नहीं होगी जटिलता जब हर दिल में बसेगी मानवता परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सू...
मजबूरी या मंजूरी
कविता

मजबूरी या मंजूरी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** तुझसे मिलना मिल के बिछुड़ना तेरे मेरे बीच की दूरी मजबूरी या मंजूरी हाथ थामना साथ निभाना फिर यूँ अचानक अकेला करना अपनापन पाने की तेरी मेरी ख़्वाहिश अधूरी मजबूरी या मंजूरी विचारों के जब मतभेद पनपते एक - दूसरे को है हम खटकते फिर भी आँखों में एक आस भरी मजबूरी या मंजूरी तू वह चाहे जो मैं ना चाहूँ तू ना चाहे जो मैं चाहूँ जीवन के इस कठिन सफर में कैसे होगी चाहत पूरी क्या कहूँ इसे निज स्वार्थ हेतु स्वयंनिर्मित संस्कारो की मजबूरी या मंजूरी? परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी र...
करवाँ चौथ
कविता

करवाँ चौथ

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सिर्फ आपके लिए इबादत में मुहब्बत का इक विस्तार रह कर निराहार कर के सोलह श्रृंगार करूँ जमीं से उस चाँद का दीदार जो है इस पवित्र रिश्ते का आधार आया करवाँ चौथ का त्यौहार सिर्फ आपके लिए पूजा-थाल, करवाँ लिए हाथ में करूँ पूजन माँगू अखण्ड सौभाग्यवती का वरदान एक झलक पाने को पल-पल उत्सुक मन है प्रेम, श्रद्धा का यह उत्सव पावन सिर्फ आपके लिए ना करना कभी मेरे प्रेम का उपहास चाहे हो ना हो आपको मेरे प्रेम का आभास हर वर्ष आस्था से रखती हूँ आज के दिन उपवास सिर्फ आपके लिए चाहे कैसी भी रहे मजबूरी करूँ कामना कभी ना आए हमारे बीच दूरी माथे पर अपनी भरूँ माँग सिंदूरी सिर्फ आपके लिए करती हूँ इंतजार आपका हर क्षण-क्षण बसे इस रिश्ते में प्यार और विश्वास का कण-कण आपके जीवन में हो अपार खुशियाँ अर्पण सिर्फ उपवास नहीं, यह है मेरा एक समर्पण सिर्फ आपके लिए ...