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Tag: प्रिन्शु लोकेश तिवारी

ये हिन्दुस्तां हमारा है।
कविता

ये हिन्दुस्तां हमारा है।

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** जगत को सीख देता है प्रभू की अमर कहानी से। पतित तरु सींच देता है प्रभू की मधुभरी वानी से। शत्रु दल कांप जाता हैं यहां की अमित जवानी से। सत्य की जीत होती है औं धरमों का सहारा है। ये हिन्दुस्तां हमारा है ये हिन्दुस्तां हमारा है। यहां की गोद में गंगा जी प्रतिदिन वास करती हैं। पतित नर का पतन वो क्षण भर में नाश करती हैं। यहां के राज धरमों में प्रजा विश्वास करती है। यहां का हर शहर हर गांव लगता कितना प्यारा है। ये हिन्दुस्तां हमारा है ये हिन्दुस्तां हमारा है। मां के सिर-मुकुट में बर्फ़ कि मणियां चमकती हैं। यहां हर पुत्र के हर रोग कि जड़ियां लटकती हैं। यहां हर एक औषधि डाल में चिड़िया चहकती हैं। हिमालय से भवानी ने रामेश्वर को निहारा है। ये हिन्दुस्तां हमारा है ये हिन्दुस्तां...
विश्व के महामारी
छंद

विश्व के महामारी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** शिव बंदना (वार्णिक छंद) नगर मा महेश के महामारी विकसित बासी नरनारि बहुतए भयभीत हैं। छिकरत खहरात हहरात मरि जात कौनो बैद अब तक ऐसे नहीं जीत है। भूमिचोर भूमिपाल भूलि गए हाल-चाल देश मा तेज से बढ़ गए पाप रीत हैं। महादेव भोरेनाथ भवत भवानीनाथ तेरो हि सहारो सब जंग जग जीत है। ____ २._____ ठाकुर महेश जहां गनपति- सेनापति हाल बेहाल नहि होत ओह शहर की। भूतनाथ दीनानाथ गौरीनाथ जहां बसे मारन कि शक्ति छिन जाति है जहर की लोकरीति राखि-नाथ महामारी दूर करौ नष्ट करो रोग सिन्धु पापनी ठहर की। आए दिन एक-एक जाए रहे यमपुरी बीज ही को नष्ट करो प्रभु ऐसो फर की। ____३._____ उमा जुके भरतार हर-तार देश कष्ट मंगल के दाता दास देशबासी तेरो हैं। बढत-दुखारि बाल-वृध्द परेशान सब गिरिनाथ गौरीनाथ हम सब चेरो हैं। घर को कंगाल कर मालिक करेगा क्या हे भूमिप...
हनुमानजी की वंदना
गीत

हनुमानजी की वंदना

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** लोग कहते तेरी पूजा होवे २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार। लोग कहते तोही शेदुर चढ़ता २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।१। तू ही मेरा करता धरता। तेरी पूजा आरति करता। बस यही मेरा कारोबार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।२। पवन पुत्र अंजनि के नंदन। तेरा प्रभु करता हूँ वंदन। तु ही मेरी सरकार । हमारे लिये हर दिन मंगलवार।३। हनुमानजी की महिमा रामचंन्द्र जब जनम लियो है। मिलने की इच्छा प्रगट कियो है। आप पहुँचे दशरथ द्वार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।४। असुर कहे तम्हें छोटा बंदर। मारा उनको घुस के अंदर। धरे देह विकराल। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।५। महाबली हो महा हो ज्ञानी। हारे सभी असुर अभिमानी। कलि का तुम ही हो आधार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।६। लंका मे जब आग लगाई। डर गए है राक्षस समुदाई। सब करे तेरी जय जयकार। ह...
पोथी
दोहा

पोथी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** नयी नयी पोथी मिलै मिलै नये कविराज। एक कविता के चार कवि अहो भाग्य कृतराज। कविता के कछु मूल नहि लुगदी बिचै बजार। पोथी मा कविता चढ़ी कविवर चढे़ कपार। दुइ भाषा कविता लिखिन बनिगे कवि के राज। दुइ पोथी का बाचि के बनिगे बड़ महराज। सब कविअन के एक मती हमरो पोथी होय। केउ पढै़ या ना पढै़ बल-भर मोटी होय। पोथी मा गुन बहुत है बाचि के फेंकए ज्ञान। कउने पोथी मा भरा तनिकौ नहिं है ध्यान। पढि पढि पोथी आजु सब फेंंकै ज्ञान अपार। बाप मरै पानी बिना लड़िका चढ़ा कपार। खिड़की मा पोथी चढ़ी कुर्सी चढ़ा बचैया। गऊ रक्षा पोथी लिहे बाचै गैया गैया। सूरदास तुलसी मरे मरिगें कबिरौ आजु। गूढ़भूत पोथी रची ऐ जड़मति अब जागु। . परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं...
धुरंधर कविवर
कविता

धुरंधर कविवर

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** बड़े धुरंधर जन्में कविवर नित नया काव्य रच देते हैं। हिय से नहीं कहा करते वो मुख देख आज कह देते हैं। काव्य संग्रह में वो कविता करमट ले ले कहती हैं। कष्ट हो रहा हमें सखी औ तु कैसे ये सहती है। मृत्यु सामने खड़ी देख कर आज बिलखती है कविता। व्हॉट्सएप विद्यालय में खूब मचलती जो कविता। हे! कविता के सृजनकार क्यों मार रहे हो कविता को। स्वयं सुतो का वध करना शोभित है क्या मात-पिता को। चीख- चीख कर कहती है वो क्यों नया रूप देते हो कविवर। निज उत्साह अर्जित के लाने क्यों भन्जन करते मेरा सर। माना की शब्द नहीं तुलसी के ना भाव भरा है सूर के जैसे। पर ऐसी भी ना करो अपाहिज की पड़ी रहूं मैं घूर के जैसे। . परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं,...
बाप की व्यथा
कविता

बाप की व्यथा

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** मैं क्या जानू वो व्यथा तात जो सहते हो तुम। ग्रीष्मकाले धूप में औ शीतकाले शीत से। हो रही गर तेज बारिश तंग होते कीच से। खेत कि खेतवाई में चुका दिये उम्र अपनी और कभी तंग होते इस प्रिन्शु नीच से। बहन की शादी की चिन्ता बोझ मेरे अज्ञान का शीश में ये भार रख बाप कैसे रहते हो तुम। मैं क्या जानू वो व्यथा तात जो सहते हो तुम। छत भी जर्जर हो गया टुटे हुए छप्पर के जैसे। मैं अभागा भी जीवन मे एक टुटे चप्पल के जैसे। माँ भी कर्मों में लगी दौड़ती है रोज कोशों नोन रोटी में खर्च होते बस उसी शिक्षक के पैसे। हर व्यथा को सह हमें शहर में पढ़ने को भेजा कष्ट में! मैं ठीक हूँ, बाप मेरे कहते हो तुम। मैं क्या जानू वो व्यथा तात जो सहते हो तुम। दिनढले भोजन का करना रात का कुछ ज्ञात नहीं। यूं पडे अकाल जो तो साल भर फिर भात नहीं। है तुम्हें पीड...
निंदाई में पनपा प्रेम
लघुकथा

निंदाई में पनपा प्रेम

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** खेतों में चल रही निदाई कि निगरानी के लिए हमें घर से दोपहर ११ के आस पास बजे खेदा गया आज एक अद्वितीय प्रेमी से भेट होगी हमने यह सोचा भी नहीं। घर से ५ सेर पानी और आधा सेर गुड़ लेकर चला और नदी पार खेतों तक पहुच कर निंदाई कर रही मजदूरनी को पानी और गुड़ थमाया फिर निंदाई से उखड़े खरपतवार उठा-उठा कर मेड़ पर रखने लगा मेघों कि कृपा विशेष रही उनके रिमझिम करने से काम में थकान नहीं हो रही । लगभग आधे घंटे के बाद कुछ खेतों आगे एक कृष्णवरण का जवान युवक लगभग ७-८ माह के बच्चे को सिर पर बिठाकर कुछ गीत गुनगुनाते हुए सीधे आ रहा। मैने पास निंदाई कर रही औरतों से उसके बार में पुछा तो एक अधेड़ औरत बोली मेरा लडका है और इसका पति (बगल खड़ी औरत को छू कर)। मैं झुक कर अपने काम में बारिश कि बूदें थोड़ी तेजी से और व्यक्ति छाता लगाकर खेत तक अलौकि...
सूखी रोटी खाने वाला
कविता

सूखी रोटी खाने वाला

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** छप्पर की कुटिया में सोता सूखी रोटी खाने वाला। पाषाणों को उठा हाथ में अद्भुत महल बनाने वाला। कर को सज्जित कर वो हल से वशुधे को सहलाता है। मेढ़े से बतिया बतिया कर थोड़ी फसल उगाता है। उसी में सुख से जीता है जीवन को सहज व्यतीत करें कभी शाम को दो रोटी कभी पानी पी उठ जाता है। सत्ताधीश छछूँदरों का इन पर भी नीति चले इन पर भी दया करे न टोपी औं चोटी खाने वाला। छप्पर की कुटिया में सोता सूखी रोटी खाने वाला। धरती तेरे पुत्रों से ही धर्मों का जीवन चलता है। धर्मों का लेख मिटाने वाला इन्हीं सुतों से पलता है। पर सत्ता वालों ने दोनों को ऐसा नाच नचाया है धर्मों मे इक धर्म नहीं भूखा पालक मरता है। स्नेह कलंकित होता है आजकल के बैनो से सरिता का आंसू न छोड़ा मानव को बोटी खाने वाला। छप्पर की कुटिया में सोता सूखी रोटी खाने वाला। . ...
स्नेह की ज्योति
कविता

स्नेह की ज्योति

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** प्रिये लेकर दिया यूं चले आओ तुम पिय के हिय को पावन बनाना तुम्हें। पिय के हिय से तिमिर कि छाया हटा हिय में स्नेह कि दीपक जलाना तुम्हें। यह दीपो का उत्सव अनोखा प्रिये आओ बाती सा हिय को नाजुक करें। मन में बैठे पतंगें जो द्वेशों के है। आओ मिलकर उन्हें भी भावुक करें। चक्षु दिपे जो डूबी हुई है घृत से बन बाती उजाला है करना प्रिये। इस बार दिवाली मे नये ढंग से हम दोनों को साथ है चलना प्रिये। चलो स्नेह कि ज्योति जलाते है अब तिमिर द्वेश कि छायी है सारे धरा पे। चलो पहले तो अपना ही द्वेश जलाए फिर स्नेह फैलाते है सारे धरा पे। . लेखक परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
मधुवर्षण
कविता

मधुवर्षण

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** अंबर में मेघों को देखो लिए हाथ में प्याले हैं। रवि,शशि दोनों दिखते छिपते सब पी कर मतवाले हैं। सभी देव पीकर लड़खाते देखो कैसी गर्जन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला तरु पतिका से मदिरा टपके। वर्षों से आश लगाऐ बैठा प्यासा चातक रस को झपके। उसी रसो में डूबी लतिका हरी भरी आकर्षक हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रवि के ताप से तपती वसुधा हिमरस पाते प्रमुदित हो गई। तिमिर गेह में पडीं जो बीजें मधुरस पाते हर्षित हो गई। पी कर खड़े हुए नवतरु नशे में डाली चरमर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। हुआ आगमन निज प्रियतम का एक बूंद अधरों में पड़ गई। कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम नशे में जाने क्या-क्या कह गई। नशे में नैन हुए अंगूरी काम दहन वो शंकर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रूप अप्सरा चली गई फिर पू...