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Tag: प्रवीण कुमार बहल

चिंगारी
कविता

चिंगारी

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** आग से उठने वाली चिंगारी-- कुछ पल में बुझ जाती है-- कौन जानता है चिंगारी कहां और कैसे लगती है--- चिंगारियां से उभर कर आने वाला इंसान बहुत मजबूत होता है-- हर बार कोशिश की जिंदगी की चिंगारी देर तक ना जले इन रास्तों पर चलना नहीं सकता था फिर भी भी मत बोल मुझे चिंगारियां में धकेला जाता था-- जिंदगी काहे बर्बाद कर रही थी-- सोचा था वह आएंगे जरूर-- जिन्हें हर वक्त सहयोग देता रहा सोचता रहा वह कहां है -- क्यों नहीं आते आज इंसान दोमुंहा क्यों हो गया है यहां कुछ वहां कुछ ---- कभी खुदा को धोखा देता है कभी खुद को धोखा देने में लगेरहता है गरीबी क्या है-- कैसे आती हैं यह स्वार्थ लोगों की उपज है जो सिर्फ अपने लिए सोचते हैं-- गरीबी का मजाक उड़ाते हैं हर वक्त अपने सम्मान -- दिखावे के लिए तो हर पल दान देना चाहते ...
दर्दे जख्म
कविता

दर्दे जख्म

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** कभी पूछा तो होता दर्द क्यों होता है मैं क्या बताऊं दर्द रिश्तो को तोड़ भी सकता है दर्द रिश्तो को जोड़ भी सकता और जोड़ता भी है समय-समय पर इससे पहले कि दर्द उठे वक्त-इज्जत-का ध्यान तो हर बार रखो चेहरा तो हंसता रहे-जब दिल में दर्द हो यह चेहरा ही है जो दर्द ओ गम दिखाता है रिश्ते टूट जाए तो दिल का परिंदा उड़ जाता है कांच का टुकड़ा गिरता है तो इंसानी जख्म बना देता है यह जख्म कभी कभी-नासूर बन जाते हैं जिंदगी के दर्दों से-बच के चलो हिम्मत से चलो-संभल के चलो देखो किसी को चोट ना लगे सामान को भी संभाल कर रखो तन मन को भी संभाल कर रखो देखो किसी के जख्मों पर चोट ना लगे आप अपना फर्ज निभाते चले जाओ इसका परिणाम मत लो जिंदगी की खुशबू है इस खुशबू को चारों ओर फैलने दो बस मुझसे मत पूछो दर्द क्या परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पित...
फरियाद
कविता

फरियाद

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** हम दास्तान फरमाते रखें... पर सुनने वाला कोई ना था शायद यही कारण रहा... कि हम जिंदगी जीत ना सके तनहाइयां हर तरफ घेरे रही और हम किसी के हो ना सके... फरियाद क्या करते किसी से हर गम दिल में छुपाते रहे... अपने दर्द किसी को- सुना ना सके दिल तो दर्द से भरा रहा... दिल के चिराग जला ना सके... मोहब्बत का इजहार कैसे करते हैं... दिल ने कभी करने ना दिया... फरियाद क्या करते सुनने वाला कोई ना था शौक बहुत है जिंदगी में कमबख्त वक्त नहीं कभी.. पूरे होने ना दिया-क्या करता जिंदगी की हसरतों को... कभी दिल का सहारा ना मिला दिल भी जलता तो रहा... पर खामोश आग की तरह जिंदगी के चिराग तो... हर पल बुझते रहे-दिल के घाव बढ़ते रहे हर पल चरागों के जलने की गर्मी... जिंदगी के चारों ओर सिमट कर रह गई इलाज ढूंढता रहा- इलाज हो ना सका पर सभी ने इसे लाइलाज कह दिया मेरी...
जिंदगी एक बार तो बता देती
कविता

जिंदगी एक बार तो बता देती

प्रवीण कुमार बहल ******************** वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है क्यों मेरे बगीचे में उसका हल्ला चलता रहता है उसे ना तो कयामत का डर को नफरत थी मुझसे मैं तो उसकी तमन्ना पूरी करता रहता तकल्लुफ.. क्यों करते मैं तो रोज ही आकर कह देता अपने दरबार में रोज बुला लेता ताकि तुम चंद लोगों के आगे मेरी हसरतों का जनाजा ना पीटते मुझे देखना था.. वह कौन है जो मेरे से नफरत करता है मेरे पास आता.. मैं तुम्हें खुद आंखों पर बिठा लेता मैं तो सामने आने वालों से प्यार करता हूं जिंदगी एक बार तो बता दे..वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पिता : डॉ. मदनलाल बहल व्यवसाय : सेवानिवृत- मैनेजर, इंडियन ओविसीज बैंक निवासी : गुरुग्राम (हरियाणा) उपन्मास : रिश्ता, ठुकराती राहें काव्य संकलन : खामोशी, दिशा, चिराग जलते रहें, आंसू बहते रहे, आदि १० पुस्तकों का प्रकाशन। पुरस्कार ...