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रंगों का त्यौहार
कविता

रंगों का त्यौहार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** रंगों का त्यौहार है, तरंगो का त्यौहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है रंगे रंग एक-दूजे को मिट जाये मलाल रंग दे प्रेम के रंग से, नीला,पीला,ग़ुलाल रंगों की फुलवारी में स्वागत बार-बार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है आत्मा से परमात्मा रंगे, मिल जाये कृष्णा रंगे जीवन को रंगों से मिट जाये हर तृष्णा परमात्मा से मिलन की अब तो मनुहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है पाप की होली जला भस्म से ले संकल्प धर्म पथ पर चले दूजा ना कोई विकल्प कर्म कर अब बदलना निज व्यवहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है होली सदा ही सदभावना का त्यौहार है मानव से मानवता का बनेगा व्यवहार है श्याम रंग में रंग जाये, यही सदव्यवहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है रंगों और तरंगो संग आओ खेले होली जाति ...
कैसी ये प्रीत है
कविता

कैसी ये प्रीत है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** प्रीत की बड़ी अनोखी बंधन है रब की बनाई कैसी आबंधन है जग से निराली कैसे ये रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है क्या अहसास और इम्तिहान है रब से की दुआ की पहचान है दिलों मे बजती कैसी संगीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है जाति, धर्म से भी ऊँचा नाम है स्व बंधन, जग से क्या काम है मर मिटे एक दूजे पर ये रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है दूर रहकर भी आसपास लगे हर पल दिल को जो खास लगे प्यासे दिलो मे अनबुझी प्रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है सबसे ऊपर है मुहब्बत का नाम जिसकी लगा ना सके कोई दाम मुहब्बत तो पूर्व जन्म की प्रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति...
संग तु और नदी का किनारा है
कविता

संग तु और नदी का किनारा है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ये दिल कैसे प्यार में आवारा है तेरे बिन जिंदगी कैसे गुजारा है क्या हंसी ये रुत और नजारा है संग तु और नदी का किनारा है रेत पर हम आशियाना बना लेंगे फूल पौधो से इसको सजा लेंगे बचपन की यादों का सहारा है संग तु और नदी का किनारा है उंगलिया अटखेलीया करते रहे नाम को आगे पीछे उकरते रहे रेत का घर ये कितना सुहाना है संग तु और नदी का किनारा है हम नाम लिखते और मिटाते रहे एक दूजे को जैसे आजमाते रहे एक दूजे की यादें ही सहारा है संग तु और नदी का किनारा है आओ मिलकर के घरौंदा बनाये सजिले सपनो से उसको सजाये कितना सुन्दर ये सब नजारा है संग तु और नदी का किनारा है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक...
दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं
कविता

दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अब जिंदगी मे कुछ भाता नहीं रात ऐसी, जैसे सुबह आता नहीं कोइ आता नहीं कोइ जाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं मखमली बिस्तर, पर नींद नहीं प्यार है उनका, पर साथ नहीं संघर्ष मे कोई साथ आता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं जीवन की अनोखी सौगात है पल मे बदलती जैसे हालात है ख़्यालात यूँही तो बदलता नही दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं उम्र दराज मे ही हम तुम मिले है अरमानों के दिल में फूल खिले है उसके सिवा अब कुछ भाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं हमको मिलाना उसकी मेहर है याद आना अब आठों पहर है दिल में कसक यूँही उठाता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शि...
नया सवेरा आने को है…
कविता

नया सवेरा आने को है…

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जनम मरण के बीच जो लकीर है जीवन तो पूर्व जन्म की ताबीर है लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी-मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ यादो और वादों संग कुछ जीवन से जो रीता है कुछ ने सपनो को जीता है जीना है हमें अब उन सपनो के संग-संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जो बिता उसे भुला भी दो गम को सारे भूला भी दो वर्तमान को बेहतर कर, भर दो जीवन मे रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग आना जाना जग मे जैसे कोई पहेली हो जन्म-मरण जैसे एक दूजे की सहेली हो मिला है जीवन, भरेंगे उसमे नित नव-नव रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग नया सवेरा, नया उम्मीद आने को है अपने अपनों के साथ निभाने को है समय की दरकार है रहना अब अपनों के संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ या...
मैं तुझे भुला ना पाउँगा
कविता

मैं तुझे भुला ना पाउँगा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरी यादो के सहारे ये जिंदगी बसर कर लेंगे जहाँ की सारी दुष्वारियां नजरे करम कर लेंगे तेरी याद आने से पहले, मैं तुझे याद आऊंगा तुम भुला देना मुझे, मैं तुझे भुला ना पाउँगा हम तुम एक ना हुये तो क्या हुआ सनम चाहतो के भी अपने ही होंगे नजरें करम चाहतों के किस्से सारे जहाँ को बताऊंगा तुम भुला देना मुझे मैं तुझे भुला ना पाउँगा पत्थर के शहर में चाहत के शीशे बेच लेंगे सामने ना सही अक्स हम दिल में देख लेंगे दिल में तेरे लिए एक छोटा सा घर बनाऊंगा तुम भुला देना मुझे, मैं तुझे भुला ना पाउँगा जो मिल ना सके हम तुम कोई बात नहीं सवेरे उजाले भी तो होंगे हमेशा रात नहीं खुशियों की महफ़िल में तुमको बुलाऊंगा तुम भुला देना मुझे,मैं तुझे भुला ना पाउँगा हम वादों इरादों संग जीवन सफर कर लेंगे बिछुड़कर यादों संग जीवन बसर कर लेंग...
माँ के दर्द का अहसास है
कविता

माँ के दर्द का अहसास है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य सी दिखती लड़की, सब से खास है दर्द में पली लड़की, जिसे दर्द का अहसास है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी सोच सामान्य लड़कीयों से भिन्न है उसकी गम माँ के गम से सदैव अभिन्न है जिसे माँ मे ही करनी, बाप की भी तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है गम के, आंसू आँखों में अक्सर सोचती है क्या आयेगी कभी खुशी के अवसर कितने गम है मगर, अभी भी जीने की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब से सवाल उसके जहन में उठती है जवाब के तलाश में, अपने आप से रूठती है जवाब मिलने का, अब भी उसे आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है किसी के सब कुछ रहकर कुछ भी नहीं होता है ऐसा अजीब इत्तेफाक दुनिया में क्यूंकर होता है तब से अब तक हमें उसके उत्तर की...
बचपन मे लौट जाये
कविता

बचपन मे लौट जाये

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** निश्छल प्रेम की नित बहती हो धारा मोहक और हम सबका अति प्यारा दोस्तों के संग खेलखुद मे जुट जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये बच्चे सदा सब के मन को लुभाते है सपनों की सारी बातें सच हो जाते है आओ सपनो की नई दुनिया सजाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये पिता जिसमे खुशियों का खजाना है माँ की आँखों में ममता का तराना है माँ के आँचल मे छुप, गम भुला जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये ना फिक्र कोई,ना जिम्मेदारी की बोझ खुशियों की बारातें जीवन मे हर रोज पापा के कांधे बैठ सपने सजा जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये खुशियों का समंदर हरपल पास हो जीवन का यह पल हमेशा खास हो आओ बचपन में फिर से घूम आये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भो...
जगत मे कोई नहीं अब अपना
कविता

जगत मे कोई नहीं अब अपना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अपना-अपना जिसको है कहा जिसके बिन नहीं जाता है रहा निकला वह सब झूठा सपना जगत मे कोई नहीं अब अपना स्वार्थ के साथी बोले मीठे बोल स्वार्थ सिधते ही बोली अनमोल वो ही रुलाये माना जिसे अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना पुत्र-पुत्री, भगनी और नर-नारी आपतकाल मे कीजिये बिचारी धन दौलत के रहते सब अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना झूठा है जग झूठी इसकी माया खिलौना है यह माटी की काया हाड़-मांस मे प्राण तभी अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना बेमोल बिकते, ईमान और धरम मानवता नहीं हैवानियत है धरम रिश्तेदार मतलब तक ही अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी...
दशहरा
कविता

दशहरा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दस विकारो को जीत बढ़ चले प्रगति पथ पर जीत सार्थक तब, जब अछून्न रह सके जीत पर जब मरे विचारों का रावण तब दशहरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा संकल्प लेंगे नहीं हटेंगे अच्छाई की राह से दूर ही रहेंगे काम, क्रोध व लालच की चाह से पवित्र हो विचार तो स्वाभिमान जाग जायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा सत्कर्म की राह पर चलकर पायेंगे लक्ष्य को कर्म करके बताएँगे, जीवन के सब साक्ष्य को कर्मो से ही जीवन मे नित नया सवेरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा मन के गलियारे मे सज्जनता का होगा बसेरा अरमानो का नित होता हो जहाँ सुखद सवेरा ऐसे नर ही जग मे लक्ष्मी नारायण बन पायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा राम बनना है तो राम सा चरित्र बनाना होगा भीतर के रावण को खुद ही हमें मिटाना हो...
यादो की परछाई
कविता

यादो की परछाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** यादो की परछाई बार-बार आती रही धुंधली तस्वीर बचपन की दिखाती रही वो स्कूल के दिन वो बचपन की बाते दोस्तों का साथ दुनिया के रिश्ते नाते बचपन के खेल माँ की फटकार याद है लाड़ प्यार और दुलार आज भी याद है बचपन के खेल, राजा रानी की कहानी बचपन की बातें, लड़कपन की शैतानी सितारों की गिनती, गुड्डे गुड़िया के खेल उमंग की उड़ान, मस्ती से भरा हर खेल अब यादें बन गई है सारी पिछली बातें अब केवल जेहन तक ही रहती है बातें फिर से बचपन मे जाने का मन करता है माँ के आँचल मे छुपने का मन करता है यादो की परछाई अक्सर मुझे घर लेती है तन्हाई मे आकर अक्सर झकझोर देती है काश फिर से वही बचपना मिल जाये पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ...
यही तो है हिन्दी
कविता

यही तो है हिन्दी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** हिंदुस्तान की पहचान जो जन गण का अभिमान जो भावो की है जो आरती यही तो है हिन्दी ग्रंथो का आधार जो सुरसरी की धार जो भारत माता की बिन्दी यही तो है हिन्दी गीत, गजल और कविता पर्वत, सागर और सरिता समृद्धि की पहचान जो यही तो है हिन्दी भारतीयो की अस्मिता भाव से सदा सुपुनीता आवाम की आवाज जो यही तो है हिन्दी आन, बान, शान है सबका स्वाभिमान है संस्कृति की करे आरती यही तो है हिन्दी मन के सभी भावो मे कंही चंचल कंही ठहराव मे समृद्ध जो है समुद्र सा यही तो है हिन्दी व्याकरण से प्रबुद्ध जो सात्विक और शुद्ध जो सुवासित है जो अलंकार से यही तो है हिन्दी भिन्न-भिन्न राग रंग मे जीवन के प्रत्येक रंग मे संस्कार की झलक जिसमे यही तो है हिन्दी भारत की मातृभाषा बने देश एकता के रंग मे सने बने देश का अब शान...
किसी का हमदर्द बने
कविता

किसी का हमदर्द बने

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दर्द बढ़ जाता है तो सीने मे हूक सी उठती है | तन्हाई का आलम भी तब नागिन सी डसती है || दर्द की अहसास भी अजीब सुकून देता है | जो पास ना हो उसका भी अहसास देता है || दर्द को महसूस कर उसे बाँटने से घटती है | दुख के बादल फिर तो धीरे-धीरे छटकती है || आओ दर्द बाँट कर एक दूजे का सहारा बने | दर्द संग जीने मरने के नये नये अफ़साने बने || एक दूजे को सम्बल दे जीने का अधिकार दे | दर्द मिटा कर एक दूजे को आदर एवं प्यार दे || दर्द का नाम अमर है इश्क के हर इम्तिहान मे | दर्द तो मिलेगा ही दिल जला हो अगर प्यार मे || दर्द मे जीना,दर्द मे मरना,दर्द भी अहसास है | दर्द का जीवन से रिश्ता गहरा और खास है || दर्द मे किसी का हमदर्द बने भुलाकर क्लेश | अब दर्द मे जीवन जीना सीखना पड़ेगा प्रमेश || परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पित...
चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें …
कविता

चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें ... कलियाँ ही खिल कर बनती है सुमन सुवासित होता है जिससे सदा चमन चलो फिर से कलियों को नया बाग दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे गुल मे खिलते ही रहेंगे सुमन सदा बादलो की बदलती रहे नित अदा अब हर मौसम को नया सुर साज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे बहारो मे कलरव करती है पंछीया गूंजती है जिससे प्रतिदिन वादिया चलो वादियों को नया आगाज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे अब तो हर दिन एक नई बात हो अंधेरों के शहर मे कभी प्रभात हो हर सुबह को एक नया आज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे अब हर शहर मे अमन का हो बसर खुशियो का जहाँ मे होता रहे असर अमन का सदा जग को पैगाम दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस...
लोगो की दिलो में रहना सीखे
कविता

लोगो की दिलो में रहना सीखे

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** लोगो की सोच में नहीं दिलो में रहना सीखे मुहब्बत अपनों से नहीं जँहा से करना सीखे धन दौलतआनी जानी पुरुषार्थ कमाना सीखे लोगो की सोच में नहीं दिलो में रहना सीखे जब लेखन को बैठे दिल की कलम से ही लिखें लेखनी चले तो जीवन संघर्ष की कहानी लिखें मुक़ददर का लिखा मिलेगा कर्म करना सीखे लोगो की सोच में नहीं दिलो में रहना सीखे मधुर संबंधों की प्रति पल जग में जीत लिखें मधुर मुस्कान के साथ जीवन के गीत लिखें सीखने को जीवन कम है,हर पल नया सीखे लोगो की सोच में नहीं दिलो में रहना सीखे आओ सब मिलकर जीवन को मधुर बनाये मिला जितना जीवन खुशियों से उसे सजाये निशदिन जीवन मे एक नई इबारात सीखे लोगो की सोच में नहीं दिलो में रहना सीखे जीवन मे बढ़ते बढ़ते मंजिल तक जाना है राह कठिन है मगर मंजिल तो पहचाना है मिलेगी मंजिल तय है कर्म कर...
आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है
कविता

आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** उनींदे आँखों से सपने संजोने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। मिलेगी मंजिल हमें भी कभी ना कभी। इसी विश्वास से उम्मीद जगाने लगे है।। कर्म करेंगे निश्चित ही सफलता मिलेगी। बढ़ते बढ़ते जीवन मे तरलता मिलेगी।। इसी चाहत मे नित सपने संजोने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। सफलता के होंगे बेशक़ मायने कई-कई। हर पल करते रहेंगे हम उद्यम नई-नई।। उद्यम से अब मंजिल करीब आने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। दृढ़ संकल्प ले लक्ष्य की ओर जो बढ़ता है। सफलता के इतिहास निश्चित वही गढ़ता है।। रास्ते के रोड़े भी अपनी जगह बदलने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। आज निश्चित ही खुशियो का दिन सुहावन है। ये मंजिल भी कितनी भली और मनभावन है।। आज तो सपने हकीकत मे बदलने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने ल...
शोषण और महंगाई
कविता

शोषण और महंगाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिधर देखो उधर शोषण और महंगाई भुखमरी और गरीबी में जीते हर बहन भाई कैसे सच हो सपना गांधी के ग्राम स्वराज का न जाने क्या होगा इस समाज का भ्रष्ट नेता भ्रष्ट सिस्टम भ्रस्ट पॉलिसी सारी भ्रष्टाचार की अगन में जलती भारती प्यारी जैसे बज रहा हो यहां हर स्वर बिना साज का न जाने क्या होगा इस समाज का बेरोजगारी की कगार पर खड़ा हर युवक चाहत नौकरी की या बने नेता का सेवक चिंता कल कि नहीं उसे फिक्र है आज का न जाने क्या होगा इस समाज का निजी स्वार्थ में जुटे जब देश के ही रक्षक कैसे हो विकास जब बने रक्षक ही भक्षक ऐसे बेईमान कर रहे हैं सौदा मां की लाज का जाने क्या होगा इस समाज का जवानों सुनो पुकार भारत भारत मां की रक्षा करनी है बलि देकर अपने जां की संकल्प ले करेंगे, रक्षा भारत मां की लाज का तभी सुधार होगा इस समाज का पर...
बादल ने ली अंगड़ाई
कविता

बादल ने ली अंगड़ाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** उमड घुमड के उड़ते बादल ने ली अंगड़ाई। बरखा बहार आई धरती मे हरियाली छाई ।। बुझ गई प्यास इस धरा धाम की। अब की बरखा आई बड़े काम की॥ किसानो के होंठो पर मुस्कान आई। उमड़-घुमड़ के उड़ते बादल ने ली अंगड़ाई I मधुबन मे जैसे उमंग हे बहार है। लग रही अब निस दिन त्यौहार है।। प्रकृति ने ओढ़ ली हो जैसी हरितिम रजाई॥ उमड़-घुमड़ के उड़ते बादल ने ली अंगड़ाईII कल-कल करते झरने करते हो जैसे गान। प्राकृतिक सुंदरता देश का हो जैसे मान॥ रज-कण से धरा के सोंधी सोंधी खुशबु आई। उमड़- घूमड़ के उड़ते बादल ने ली अंगड़ाई II आओ इस मिट्टी की मादकता में खो जायें। चंदन तुल्य माटी का माथे तिलक लगाये॥ आओ बरखा का करें स्वागत जैसे पहुना आई। उमड़-घूमड़ के उड़ते बादल ने ली अंगड़ाईII बरखा बहार आई, धरती पर हरियाली छाई॥ परिच...
आईना
कविता

आईना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिंदगी की हकीकत दिखाती हैं आईना। पल-पल बदलती जीवन सिखलाती आईना।। आईना के प्रतिबिम्ब से बदलती हैं जिंदगी। आईना सा पाक,निष्पक्ष हो हमारी जिंदगीII हकीकत से वास्ता कराती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना II१II आईना वही रहता है, चेहरे बदलते है I समय की हर जख्म दिखाती है आईना II कभी हंसाती, तो कभी रुलाती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना।।२।। हकीकत का अक्स दिखती है आईना । बदलते परिवेश मे बदलना सीखाती है आईना।। ये सच है, झूठ नही बोलता आईना- २ जिंदगी की ...................आईना ।।३।। मानव को मानवता का बोध कराती है आईना। कर्तव्य परायणता का बोध कराती है आईना।। मानव मे देवत्व जागाती है आईना- २ जिंदगी की ................आईना ।।४।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मा...
नारी तू नारायणी
कविता

नारी तू नारायणी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तूफा हो कितने जीवन मे सब सह लेती हो असहय वेदना सह नव सृजन कर देती हो जीवन भर सब पर केवल प्यार लुटाती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो कैसे हो सफर? हर सफर हंस कर लेती हो नया अंदाज दे सफर आसान कर देती हो जीवन के पड़ाव सहजता से अपना लेती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नवसृजन के कर्ता और खुद ही साक्षी भी नवविधान तुमसे ही, तुम ही कामाक्षी भी जाने कितने रूप मे जग कल्याण कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नारी तू नारायणी, तूझसे ही हर नार तू चम्पा, तू चमेली, तू ही है कचनार बागो को सुमन से सुवासित कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो किन-२ रूपों मे पूजन करू समझ नहीं आता है तेरा हर रूप प्रकृति सा सबका भाग्य विधाता है हर रूप मे तूम तो, जीवन का वर देती हो बदले मे कभी कुछ भी...
सच ही कहता है ये आईना सदा 
कविता

सच ही कहता है ये आईना सदा 

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सच ही कहता है ये आईना सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ याद करके तो देखो, वो बीते हुये दिन गुजरे हुए अपने, वो पल क्षिण -क्षिण याद आयेगी वो झूठी-मुठी अदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ ज़िन्दगी आईने का ही प्रतिरुप है प्रतिपल बदलती जिसका स्वरूप है दिखाती है हर पल, नई -२ ये फ़िज़ा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ ज़िन्दगी की ये सबसे बड़ी सत है ज़िन्दगी मौत की ही अमानत है कोई टिकता नहीं है यहाँ पर सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ याद आयेगी, तुमको उमर ढलने पर बोझ ढोयेंगे जब-जब, अपने कांधे पर सच ही कहता था प्रमेशदीप ही सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक...
अरे भेड़िये अब तो, बदल अपनी खाल
कविता

अरे भेड़िये अब तो, बदल अपनी खाल

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल। उड़ जाये हंस अकेला छूट जाये जंजाल।। आया है जग मे तो कर ले नेक काम। मुक्त हो जा भव से जीव पाये विश्राम।। नेक कर्म से ही काटिये भव के जाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। आया है जग मे उसे जाना ही पड़ेगा। किस्मत से अपनी तू कब तक लड़ेगा।। मन मे इस जग की, तू चाहत ना पाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। उसके दर पर लगेगी जिस दिन हाजिरी। वंहा ना चलेगी तब किसी की जी हुजूरी।। दर जाने से पहले, बदल ले अपनी हाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। चार दिन की चकाचौँध मे सब फंसे है। संसारिकता की कीचड़ मे सब धंसे है।। जग मे रहते-रहते, बना ले अपनी ढाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। तेरा मेरा, मेरा तेरा मे बीत गई जवानी। कर ले जतन कितनी बची है ज़िंदगानी।।...