पर्यावरण
पूनम शर्मा
मेरठ
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आज पर्यावरण मुस्करा रहा है,
सिर हिलाता ठंडक उड़ेलता है,
पेड़ स्तंभ-वत खड़े हैं,
टहनियां झूम-झूम पंखा झलतीं,
जडों ने जकड़ रखा है
मज़बूती से,
सायरन बजाती एंबुलेंस
सरपट भागती सूनी सड़कों पर,
बेतहाशा दौड़ता मानव,
आक्सीजन दबोचने को,
कुटिल मुस्कान वृक्षों की,
"हमसे दुश्मनी?", काटते हो हमें !
हम तो मुफ्त उपहार देते रहे,
कतरा-कतरा बिखेरते रहे,
अपना अंश वातावरण में,
चेतावनी भी देते रहे गाहे-बगाहे,
लेकिन तुमने,
माहौल बिगाड़-बिगाड़ कर
खिल्ली उड़ाई और बढ़ गए आगे,
आज लौट रहे हो हमारे ही पास,
ये नदियां, पहाड़, झरने,
जंगल आदि और हम,
दोस्त हैं बिलकुल तुम्हारे एक
व्हाट्सएप ग्रुप की तरह
तुम काम पड़ने
पर हमें ही पुकारते हो
पीछे मुड़कर, आक्सीजन-आक्सीजन...
बचाओ-बचाओ,
जीव-जंतु, मानव,
सब हैं हमारे आसरे लेकिन,
कोई हमारा ख्याल भी रखेगा क...