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Tag: पूजा त्रिवेदी रावल ‘स्मित’

बस एक बात कहनी थी तुमसे
कविता

बस एक बात कहनी थी तुमसे

पूजा त्रिवेदी रावल 'स्मित' अहमदाबाद (गुजरात) ******************** बस एक बात कहनी थी तुमसे कहती हूं। तेरे सारे लेक्चर बेमन मैं बस सहती हूं। कितनी शिक्षा दोगे अब कबसे गिनती हूं। कैसे समझाऊं किस तरह मैं झेलती हूं। तुझसे तो अच्छी है वह गणित की टीचर, पहाड़ा याद कर उनसे चोकलेट तो पाती हूं! और अंग्रेज़ बने बगैर ही अंग्रेजी सिख पटर पटर बोल अंग्रेजी अब इतराती हूं। और क्या हाल था मेरी भूगोल का सोच, अब अमेरिका लंदन से अलग भांप पाती हूं। इतिहास के पन्नों पर मैं भी चमकूगी कभी, सोचकर आज भी मैं खूब मुस्कुराती हूं। गुजराती और हिन्दी की सारी कहानियां सुन अब मैं भी कहानी लिख जाती हूं। बस एक तू ही है जो एक्जाम पहले लेती है, वरना तैयारी करके अच्छा प्रदर्शन कर जाती हूं। लाड़ली बनती थी हर टीचर की मैं और टीचर अब मैं रोज़ खुद की ही बन जाती हूं। पर नहीं बनना लाड़ली तेरी सुन...
तेरी बांसुरी
कविता

तेरी बांसुरी

पूजा त्रिवेदी रावल 'स्मित' अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कान्हा तेरी बांसुरी की धुन सुनी पड़ रही है, आकर देख, राधा और द्रौपदी दोनों पीस रही है। कोई नहीं अब सुलझाने वाला यहां कोई, उलझनें सब और बढ़ रही है। भगवद्गीता के भी मतलब नीकलते इन्सानी मर्ज़ी से, हम सब की अर्जियां तेरे पास कबसे पड़ी है। जेहाद चल रही है पर कारण पता नहीं है, यहां सबकी खुद की अक्कल बिक रही है। ना उतरने दिया था सम्मान द्रौपदी का तुमने भरे दरबार में पर, हर मोड़ हर चौराहे पर द्रौपदी बिक रही है। भूल चुकी है वह ताकत अपनी और शस्त्र की, तुझे बुलाते हुए चूपचाप बैठी है। भरोसा नहीं इस पूरी दुनिया में किसी पर फिर भी, सिर्फ़ तुझपर भरोसा टिकाये बैठी है। एक बार आकर याद दिला दे मुरलीधर, 'स्मित' अपनी मुठ्ठी में बांधकर बैठी है। खोलना मुठ्ठी उसकी ताकत की सिखा जा बंसीधर, अपने सीने में हिम्मत बे...