सिसक रहे आज होली के रंग
आशा जाकड़
इंदौर म.प्र.
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सिसक रहे आज होली के रंग।
महंगाई ने करदिया रंग बदरंग।।
लाल रंग अब लहू बनके बह रहा
पीत वर्ण कायर बन छुपकर रोरहा
हरी-भरी वसुंधरा अब कहाँ रही?
ऊंची-ऊंची इमारतें आस्माँ छू रही।
रह गया बस अब होली का हुड़दंग
महंगाई ने कर दिया रंग बदरंग।।
बच्चों की पिचकारी औंधे मुंह पड़ी,
बिन पानी-रंग टंकी शुष्क सी पड़ी।
महंगाई-मार रंग फुहार फीकी पड़ी,
फागुनी बयार मन्द-शांत चल पड़ी।
बिन पानी कैसी होली पिया के संग।
महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग
पावन पर्व अस्त-व्यस्त हो रहे ,
पर्वों की गरिमा क्षत-विक्षत रो रहे।
वन-उपवन टेसू के फूल मुरझा रहे
खाद्य पदार्थ-भाव आस्माँ छू रहे।
मथुरा भी गाये बिन होली सूने अंग
महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग।।
परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका)
शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड.
जन्म स्थान - शिक...