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Tag: पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)

एकांतवास
लघुकथा

एकांतवास

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** वृद्धाश्रम में आज कोरोना की जांच करने के लिए सरकारी अस्पताल से डॉक्टर और नर्स आये हुए थे सभी वृद्धजन कतार में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे ... बाबा आपका नाम क्या है ... नर्स सभी के नाम पूछती जाती... व आधार कार्ड देखने के बाद उन्हें सुई (कोरोना का टीका) लगा देती... दिन भर यही क्रम चलता रहा शाम के ५ बज चुके थे डॉक्टर और नर्स जाने के लिए सामान समेटने लगे.... तभी कमर झुकाये लाठी के सहारे चलते हुए एक बूढी अम्मा आई और नर्स से पूछा- मैंने सूना है की एकांतवास (कोरेन्टाइन) में रहने से कोरोना पास नहीं आता है... ? नर्स बोली- जी सही कहा आपने ... बूढी अम्मा पलटकर जाने लगी तभी नर्स ने कहा अम्मा सुई (टीका) तो लगवाती जाओ ...!! अम्मा ने पलटकर देखा और धीरे से बुदबुदाई ... मुझे नहीं लगवाना टीका वीका २० बरस से मैं अपने परिवार स...
हाँ आग लग चुकी है
कविता

हाँ आग लग चुकी है

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** हाँ आग लग चुकी है इक अंधे कुंए में .... करो जल्दी, और निकाल लो रखा था/जो कुछ सहेजकर/इस कुंए में कुंआ जिसमे कुछ ना देता/है दिखाई थी जिंदगी भर की कमाई, कुछ दुःख जो बांटे थे कभी/दोस्तों से अपने कुछ पुण्य जो कमाया था/दया करके किसी पर कुछ सुख जो पाया था/बनाकर किसी को अपना कुछ ग़म जो दिए थे/किसी ने सहेजकर रखने को हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है .... और भी है बहुत कुछ इस अंधे कुंए में, अपनों का गुस्सा/माता की ममता/पिता का प्यार भाई बहनों का खार/दादी का दुलार जवानी का खुमार हाँ निकाल लो सब इससे पहले की सब ख़त्म हो जाए इस संसार के छल-कपट रूपी आग में मारा-मारी/जागीरदारी/और दमन में उन लोगों के जो किसी को पहचानते नहीं जिनका काम सिर्फ जान लेना/लूटना नोंचना है हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है .... बचा लो अपनी उजड़ी यादें और अपना संसार इसके प...
मेरे लिए माँ
कविता

मेरे लिए माँ

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे लिए माँ सदा अनूठी ही रही माँ तो बस माँ होती है यह बात सदा झूठी ही रही कहते हैं माँ के साये से बड़ा कुछ और नहीं इस संदर्भ में किस्मत मेरी फूटी थी, फूटी ही रही प्रतीक्षा थी मिलेगा माँ का प्यार मुझे पर माँ जो मुझसे रूठी थी रूठी ही रही मेरे लिए माँ सदा अनूठी ही रही.... . परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक : hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक : divyotthan.Com (DNN) सचिव : दिव्योत्थान एजुकेशन एन्ड वेलफेयर सोसाइटी सम्प्रति : स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छाया चित्रकार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
चन्द सांस लिए
कविता

चन्द सांस लिए

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (म.प्र.) ******************** ईश्वर तू क्यूँ है नाराज हमसे, क्यूँ मंदिर के दरवाजे बंद आज किये... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... बारिश की बूंदों से बता रहा, तू भी रोता है, बंद आँख किये... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... कर दे क्षमा तू दोष हमारा, कसूर जो हमने दिन-रात किये... सर पर रख दे हाथ हमारे हम बालक, तू पित-मात-प्रिये... तू प्रेम बहुत करता है हमसे, फिर क्यूँ ऐसे हालात किये... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... पत्ता नहीं हिलता बिन चाह से तेरी, तूने ही हमें दिन रात दिए... तेरा दिया जीवन तुझको अर्पण, यूँ घूँट-घूँट न जहर दिन रात पीयें... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पाद...
फिर इस बार होली पर वो
कविता

फिर इस बार होली पर वो

फिर इस बार होली पर वो ... पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर इस बार होली पर वो, सच कितना इठलाई होगी.. सत रंगों की बारिश में वो, छककर खूब नहाईं होगी….। भूले से भी मन में उसके, याद जो मेरी आई होगी.. होली में उसने नफरत अपनी, शायद आज जलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! ये क्या हुआ जो बहने लगी, मंद गति शीतल सी ‘पवन’.. याद में मेरी शायद उसने, फिर से ली अंगड़ाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! कैसी है ये अनजान महक, चारों तरफ फैली है जो.. मुझे रंगने को शायद उसने, कैसर हाथों से मिलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! पीले,लाल, गुलाबी रंग की, मेहँदी उसने रचाई होगी.. आएगा कोई मुझसे खेलने होली, उसने आस लगाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! डबडबाई आँखों से उसने, मेरी राह निहारी होगी..। पूर्णिमा के चाँद पे जैसे, आज चकोर बलिहारी होगी….। फ...