Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: पवन जोशी

मुसाफिर
कविता

मुसाफिर

पवन जोशी रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.) ******************** राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा। मंजिल बाकी है रोड़ो को बस छलते जा।।१ धूप है दोपहर की तो क्या शाम भी तो आएगी। बेकार नहीं वो सीखें हर ठोकर काम ही तो आएगी।। कांटे भी होंगें जख्म चुभन तक सहते जा। राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा।।२ अपने साये सी परछाई को तू छांव बना। गहरा है दरिया तू चुन तिनका और नाव बना।। सुन जग के ताने उन तानो से अपनी तान बना। आते जाते है ढेरों हट कर अपनी पहचान बना।। आस जीत की लक्ष्य आँखों में बस जगते जा।। राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा।।३ थकान तो लगती है ठहर दम भर पर रुक मत जाना। बैठै है वो लेकर सांचे आकर झांसे में झुक मत जाना।। ऊंची कर उड़ान ये अपनी के कोई छू न पाए। बरसेंगें बादल तो छा एसा के छप्पर चू न पाए।। तेज भले हो दरिया मौके तक धारा सगं बहते जा। राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा।।४ ...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

पवन जोशी रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.) ******************** नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे। मोड़ है चढ़ाव है उतार है, बहाव है तो बहने दे।। आज जी, तु कल को कल पे छोड़ दे। जीतले अतित को, इक नया तु मोड़ दे।। शुन्य हो जरा हां ढीठ बन। तु खुद से खुद का मीत बन।। लोक लाज रहने दे लानते कह रही है कहने दे। नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे।। है तय जीत हार तो बस जूझना तो है। खुद जवाब है तु हर सवाल का फिर भी बूझना तो है।। व्यर्थ लगे भले, तु कुछ नियति की योजना तो है। दर्पणो सा हो घर तेरा क्या पर खुद मे खुद को खोजना तो है।। कुछ बची राख मे तपन अभी ढक रही है रहने दे। नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे।। क्या खुद बुना था तन नहीं। मिटा सकूं वो हक पवन नहीं।। स्थिति परिस्थिति सदा सब के संग एक सी रही। बस सुरतें सीरतों के सगं वक्त पे बदलती रही। हुआ सिकंदर वही जो उससा उसमे ढला। मनो जीत के रगंम...