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गाड़ियां लौहार
कविता

गाड़ियां लौहार

निहाल सिंह झुन्झुनू (राजस्थान) ******************** पीटता रहता है लौह को दिन भर बिना रूके बिना थके ताकि अपने बच्चों के लिए रोटी का जुगाड़ कर सके स्वयं बुढ्ढी चमड़ी से उतार फेकता है वो पसीने को और बाॅंध लेता है गठरी में अनगिनत दु:ख के सम्रग पलो को मैला कदम कमीज़ जिसके अंत में सिलवटें पड़ी हुई इक धोती की टुकड़ी वो भी तले से पूरी फट्टी हुई तपती सड़क पर गॉंव-गॉंव ढाणी- ढाणी पैदल चलकर सायंकाल को वापस आता है चिमटा, फूकनी बेचकर चिल मिलाती धूॅंप की टुकड़ी बुढ्ढी देह को जलाती है पथरीली राह नंगे पॉंव में कंकर कोई चुभाती है थकी पुरानी ऑंखों से वो नित ही देखता है स्वप्न नये ताकि उसके बच्चें अति पढ़े बड़े होकर के अफसर बने परिचय : निहाल सिंह निवासी : झुन्झुनू (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...