Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: निरुपमा मेहरोत्रा

पापा
कविता

पापा

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** लड़खड़ा कर गिरा पहली बार जब मैं, तुमने बाहें बढ़ाकर संभाला मुझे; उंगली थामी थी तुमने मेरी ज़ोर से, फिर गिरने से पहले उठाया मुझे। लड़खड़ा ...... घोड़ा बनने को जब मैंने तुमसे कहा, तुमने पीठ पर अपनी मुझको चढ़ाया; हराया था मैंने दोस्त को दौड़ में, मेरे बस्ते को तब तुमने उठाया। लड़खड़ा ...... कंटक भरी राह पर चलना सिखाया, तुमने उड़ना सिखाया सपनों को मेरे; पहचान कराया स्वाभिमान से मेरा, मेरा अभिमान हो पापा तुम मेरे। लड़खड़ा ..... मैं खड़ा जब हुआ अपने पैर पर, सोचा बोझ तुम्हारा कुछ कम करूं; तुम बोले कि मैं हूं पापा तेरा, अब मित्र बनकर सदा हम रहें। लड़खड़ा ...... आयु ने पापा को कभी छेड़ा नहीं, कंधे उनके अभी भी झुके ही नहीं; मेरे बेटे के साथ लगाते ठहाका, मैं किनारे खड़ा मुस्कुराता रहा। लड़खड़ा .... ...
वीर का संदेश
कविता

वीर का संदेश

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जब तिरंगे में घर आऊं, ओ पापा धीरज मत खोना, आंसू जो आंखों में छलके, पलकों के भीतर में रखना। युद्ध भूमि में घायल हूं मैं, कुछ सांसों का साथ बचा है, पर तेरे बेटे से पापा, यहां पे हाहाकार मचा है। नहीं बचा सीमा पर दुश्मन, मां का आंचल स्वच्छ हुआ, अपने तिरंगे की रक्षा का, मेरा सपना पूर्ण हुआ। ओ पापा मैं फिर आऊंगा, जब जब देश पुकारेगा, सौगंध तुम्हे इस बेटे की, मैं अपना वचन निभाऊंगा। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत...
योगेश्वर श्रीकृष्ण
स्तुति

योगेश्वर श्रीकृष्ण

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हे परम ब्रह्म श्री कृष्ण! गोलोक त्याग धरा पर आए; जगत कल्याण हेतु, असुर विनाश हेतु, ज्ञान भक्ति कर्म का मार्ग दिखाने, एवं धर्म संस्थापना हेतु। अवतरित हुए तुम, कारागार के बंधन में; फिर अशेष संघर्ष यात्रा, कंटकपूर्ण रहा हर पग; और आसुरी शक्तियों का आतंक, जिससे आर्तनाद कर उठा जग। बाधाओं का अतिक्रमण कर, हे कृष्ण! सफल योद्धा बन तुम, जीत गए हर युद्ध, जाना विश्व ने तुम्हें अपराजेय, प्रबुद्ध। प्रेम की कोमलता तथा उसकी शक्ति को, कण-कण में फैलाकर, प्रेम भाव से सराबोर संसार किया; प्रेम के शाश्वत तत्व को, मानव मन का आधार दिया। ब्रह्म और जीव की एकात्मता को, राधा संग रास रचाकर, कण-कण में विस्तार दिया। सोलह कला संपूर्ण तुम, योगेश्वर, पुरुष पूर्ण तुम। दीन सुदामा के परम सखा, भक्त के भगवान हो, गीता ज्ञान सुना...
अमूल्य निधि
कविता

अमूल्य निधि

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है, स्वाभिमान का रूप संजोए, सनातन संस्कृति जीवन की विधि है। पेड़ पौधे,नदी और पर्वत, पशु पक्षी पूज्यनीय यहां हैं, ऋतुओं को सम्मान मिला है भारतीय संस्कृति अखंड यहां है l मात पिता, ज्येष्ठ का आदर, गुरु ईश्वर तुल्य यहां है, नारी देवी, अतिथि देवो भव, संस्कार की पहचान यहां है l अभिमान करें अपनी धरती पर, इंद्रधनुष से पर्व हमारे, उदारता, सदाचार, समर्पण, रग रग में शिष्टाचार यहां है l जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है l परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प...
कन्या
लघुकथा

कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई। उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, "आंटी, कन्या खिलाएंगी?" सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, "देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!" लड़की फिर से बोली, "आंटी कुछ खिला दो।" नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, "मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।" सलिला बेटी को डांटकर...
होली का रंग
कविता

होली का रंग

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** सोनू रंग भरी लंबी पिचकारी लिए घर के बाहर अकेला उतावला होकर खड़ा प्रतीक्षा कर रहा था कि कोई दोस्त या जान-पहचान वाला पास से निकले तो वह उन्हें रंग दे। उसी समय एक बुजुर्ग अंकल को आते देख उसने अपनी पिचकारी नीचे कर दी। अंकल ने प्यार से पूछा, "क्यों बेटा, अभी तक तुमने किसी के साथ रंग नहीं खेला?" "नहीं अंकल", सोनू ने मासूमियत से सिर को हिला दिया। "आओ बेटे, मेरे ऊपर रंग डाल दो," अंकल ने पुचकार कर कहा। "नहीं अंकल, मैं आपको जानता नहीं हूं, आपके ऊपर रंग डालूंगा तो आप बुरा मान जाएंगे," सोनू बोलकर दुविधा में पड़ गया। उसे परेशान देखकर अंकल बोले, "बेटा, होली है, आज कोई अजनबी नहीं होता है, तुम मेरे ऊपर जी भरकर रंग डाल दो।" सोनू ने खुश होकर, पिचकारी को तानकर अंकल के साफ कपड़ों को रंग से सराबोर कर दिया। अंकल सोनू के सिर पर आशीर्वाद का हाथ र...
मैं शिवा तुम्हारी
भजन, स्तुति

मैं शिवा तुम्हारी

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी, प्रेम संगिनी प्रेम रागिनी। तुम हो शिव..... जब तुम करते नृत्य मनोहर, पग थिरके डमरू के स्वर पर, भाव भंगिमा सुंदर चितवन, करे प्रफुल्लित देवों का मन, तब नर्तक नटराज की गौरी, समा जाए मुद्रा में तेरी। तुम हो शिव...... जब तुम करते जग का चिंतन, कष्ट देख व्यथित होता मन, जन कल्याण हेतु दुख भंजन, तज कर सर्प चन्द्र का बंधन, रत समाधि होते त्रिपुरारी, तब मैं बनती साधना तुम्हारी। तुम हो शिव........ जब होता सागर का मंथन, विष को देख करे जग क्रंदन, सब मिल करें प्रार्थना तुम्हारी, सुन लो शिव वंदना हमारी, नहीं रुके पल भर को शंकर, विषपान करें अंजुल भर कर, हुआ कंठ जब नील तुम्हारा, कर रखकर कर विष रोका सारा, तुम पीड़ा से मौन हो गए, तब मैं बन गई वेदना तुम्हारी। तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी।...
सुंदर
लघुकथा

सुंदर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** पार्टी में रंग बिरंगे परिधानों में गहरे श्रंगार करे दादी की सहेलियों को देख आशू ने अपनी साधारण सी दिख रही दादी से कहा, "दादी, आपकी सब सहेलियां कितनी सुंदर लग रही हैं, आप उतनी सुंदर नहीं हैं।" अपने आठ वर्षीय पोते की बात सुन कपिला मुस्कुरा दी, कैसे वह इस बच्चे को बताए कि ये सब गाढ़े श्रंगार करके अपनी असली उम्र को छिपाने का प्रयास कर रही हैं। उसी रात में आशू के साथ टहलते समय ठंड से ठिठुरती एक गरीब वृद्धा को देख कपिला ने अपना शॉल कंधे से उतारकर उसको उढ़ा दिया। वृद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर बोली, "बेटी, तू बहुत सुंदर है।" आशू ने अपनी दादी के चेहरे की ओर देखा, उसे अपनी दादी बहुत सुंदर लग रही थीं। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद वि...
डोर पतंग की
लघुकथा

डोर पतंग की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई-न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र स्वभाव बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अभी तक वह यही सोचकर चुप रही कि शायद चेतन का व्यवहार बदल जाएगा, पर ऐसा कुछ न होने पर उसका धैर्य जवाब देने लगा। अंततः वीणा ने तय कर लिया कि अपनी मां को हर दिन की एक-एक बात बताएगी। वह चेतन को छोड़ने तक का मन बना चुकी थी। मकर संक्रान्ति का पावन पर्व था। वीणा ने देखा कि चेतन हाथ में कई रंगीन पतंगें और चरखी लेकर सीधे छत पर चला ग...
नई भोर
कविता

नई भोर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नई भोर को गीत सुनाने मेरा मन अब मचल रहा है। रात अंधेरी घिरी कालिमा, मन बुन रहा सुनहरे सपने; कुछ रातों-रात बिखर गए, कुछ गए दूर गगन में उड़ने। झड़ गए कुछ पत्ते शाखों से, नव पल्लव अब झूम रहे हैं; कुंजों में मदमाते भंवरे, नव पुष्पों को चूम रहे हैं। कश्ती चली रात भर जल में, ठहर गई है प्रिय से मिलकर; मुदित हुई सरिता की धारा, अतल सिंधु में स्वयं समाकर। नया सवेरा लाली रंगकर, प्रातः कितना दमक रहा है; कुछ खोया पर कुछ पाने को, मेरा मन अब तड़प रहा है। नई भोर को गीत सुनाने, मेरा मन अब मचल रहा है। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभि...
दीपोत्सव
कविता

दीपोत्सव

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** आओ मिलकर दीप जलाएं, पंक्ति बनाकर राह सजाएं; इस धरती से उस अंबर तक, ज्योत जलाकर तिमिर मिटाएं। आओ....... हर आंगन जगमग हो जाए, खुशियों की वर्षा हो जाए; जब एक दीपक जले दीप से, चहुं ओर झिलमिल हो जाए। आओ..... दीपोत्सव की शुभ बेला में, अंतर्मन में ज्योत जलाएं; प्रेम भरी कोमल बाती से, मन आंगन दीप्त हो जाय। आओ..... स्वयं जले पर रोशन कर गए, जाने कितने घर चौबारे; आओ इन बुझे दीपों का, आदर देकर मान बढ़ाएं। आओ..... परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित।...
योगेश्वर श्रीकृष्ण
स्तुति

योगेश्वर श्रीकृष्ण

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हे परम ब्रह्म श्री कृष्ण! गोलोक त्याग धरा पर आए; जगत कल्याण हेतु, असुर विनाश हेतु, ज्ञान भक्ति कर्म का मार्ग दिखाने, एवम् धर्म संस्थापना हेतु। अवतरित हुए तुम, कारागार के बंधन में; फिर अशेष संघर्ष यात्रा, कंटकपूर्ण रहा हर पग; और आसुरी शक्तियों का आतंक, जिससे आर्तनाद कर उठा जग। बाधाओं का अतिक्रमण कर, हे कृष्ण! सफल योद्धा बन तुम, जीत गए हर युद्ध, जाना विश्व ने तुम्हें अपराजेय, प्रबुद्ध। प्रेम की कोमलता तथा उसकी शक्ति को, कण-कण में फैलाकर, प्रेम भाव से सराबोर संसार किया; प्रेम के शाश्वत तत्व को, मानव मन का आधार दिया। ब्रह्म और जीव की एकात्मता को, राधा संग रास रचाकर, कण-कण में विस्तार दिया। सोलह कला संपूर्ण तुम, योगेश्वर, पुरुष पूर्ण तुम। दीन सुदामा के परम सखा, भक्त के भगवान हो; गीता ज्ञान सुनान...
मां भारती
कविता

मां भारती

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तेरी माटी में मां हम सब, खेल कूद कर बड़े हुए । तेरा पौष्टिक अन्न ग्रहण कर, हष्ट-पुष्ट बलवान हुए । अब मेरी बारी मां तेरा, कर्ज चुकाना बाकी है; कुछ कर्ज चुकाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है। स्वच्छ गगन हो, शुद्ध वायु हो, निर्मल जल की धारा हो; धानी आंचल लहराता हो, सोंधी सुगंध माटी की हो। इन विभूतियों को सहेजकर रखने की मेरी बारी है, क्योंकि कुछ कर्ज चुकाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है। शुद्ध आचरण का स्वामी, भारत का हर एक बालक हो; देश भक्ति से भरा हुआ, मां वंदन का मतवाला हो। सभ्य संस्कृति को संजोकर रखने की मेरी बारी है, क्योंकि कुछ कर्ज चुकाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है। विश्व गुरु की पदवी पाए, जग में तेरा मान बढ़े; धरा से अम्बर तक लहराए, 'जै भारती' हर लाल कहे। अपने तिरंगे को शिखर तक ल...
महिमा सावन की
कविता

महिमा सावन की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तप्त धरा है बाट जोहती, आओ बरसो सावन प्यारे; धधक रही मन की ज्वाला को, शांत करो घन मतवारे। रिमझिम रिमझिम बरखा बरसे, घिरे काली घटा गगन में; देख प्रकृति की छटा अनोखी, मयूर झूमे नाचे वन में। सूखी धरती सजी ओढ़कर, हरी चुनरिया मोती वाली; नदियां झरने बहते कल कल, तोड़ के बंधन चारदीवारी। वैभव प्रकृति का ठगी निहारें, चहुं दिशाएं और गगन; महिमा मंडित कर देवों ने, बना दिया सावन को पावन। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, क...
सुंदर प्रतिफल
कविता

सुंदर प्रतिफल

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** महा विभीषिका का संत्रास, कल इतिहास में अंकित होगा; जब मनुष्य हुआ था कैद घरों में, मुक्त विचरते थे पशु पक्षी। मानव असहाय मूक दर्शक बन, रहा देखता अजब नजारे; वृक्ष फलों से लदे हुए थे, कोई न उनकी ओर निहारे। धरा दोहन से मुक्त होकर, पुष्पों की चुनरी ओढ़ सजी थी; नदियां साफ सुथरी सी होकर, मदमाती मस्त कल कल बहती थीं। अदृश्य जीवाणु ने कुपित होकर, जग में हाहाकार मचाया था; अस्त्र शस्त्र बेकार हुए, जीवन गति पर विश्राम लगा था। दुनियां को छोटा कहने वाले, लक्ष्मण रेखा में सिमट गए थे; चांद तारों को छूने वाले, जीने को मोहताज हुए थे। मानव ने तब हिम्मत बांधी, लेकर धैर्य संयम का संबल; और अंततः विजयी हुआ वह, पाया संकल्पों का सुंदर प्रतिफल। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निव...
श्री ईशावास्योपनिषद्
कविता

श्री ईशावास्योपनिषद्

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** श्री ईशावास्योपनिषद् सरल काव्य प्रस्तुति ॐ ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते. पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते... प्रणव पूर्ण है, सम्पूर्ण है, उनसे उत्पन्न जगत पूर्ण है। उद्भूत इकाई लेने पर भी, ईश्वर रहता परिपूर्ण है।। ..१.. ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्. तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विध्दनम् सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का जड़ चेतन, सब सम्पदा प्रभु आपकी। मानव भोगे जो हो नियति में, त्याग करे जो नहीं है उसकी।। ..२.. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः. एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे निज कर्म हो उन्नत इस संसार में, शत वर्ष जीने की यही हो साधना। यदि देहधारी का पथ ईश हो, फिर नहीं बांधेगी फल की कामना।। ..३.. असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः. तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्...