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Tag: निधि गुप्ता (निधि भारतीय)

जीवन का सफर
कविता

जीवन का सफर

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** जिंदगी का सफर जहां है, रहस्यमई, वहीं है रोमांचकारी भी, कभी है गम, इसमें तो, कभी है असीम खुशी... एक गुत्थी है यह, जो कभी किसी से ना सुलझी, किस पल में क्या होगा? है पहेली उलझी उलझी... जिंदगी का सफर, अनवरत चलता रहता है, क्या है?, उद्देश्य इसका, कभी पता नहीं चलता है... अनुभव जीवन के सफर में, कुछ खट्टे, कुछ मीठे होते हैं, सुख-दुख, लाभ-हानि, आशा-निराशा सभी साथ होते हैं... किसी के लिए, बुरा होना कर्मफल है, किसी के लिए, बुरा करना राजनीति.... किसी के लिए, क्षमा करना मानव धर्म है, किसी के लिए, अपराध करना, अपनी नीति.... कोई पैसे के लालच में ईमान बेच दे, कोई सेवाभाव में समर्पण कर दे, किसी के लिए सबका, भला सोचना मानव धर्म है, किसी के लिए, सबको नीचा दिखाना राजधर्म है.... कभी-कभी, सफर में जीवन के, अ...
सजगता ही सुरक्षा
कविता

सजगता ही सुरक्षा

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** एक तरफ़ माता-पिता के मन में अपनी बेटियों को पढ़ाने की चाह, उन्हें आगे बढ़ाने की चाह, उन्हें ‌आत्मनिर्भर बनाने की चाह होती है, वहीं दूसरी ओर उनके समक्ष अपनी बेटियों की सुरक्षा का बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह होता है। मुझे लगता है कि वर्तमान परिवेश में बेटियों के कैरियर बनाने में, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में, सबसे बड़ी बाधा महिला सुरक्षा ही है, तो क्यों ना बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंप दी जाए, उन्हें समझा कर, उन्हें समझदार बनाकर, उन्हें विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराकर, जिससे कि प्रतिकूल परिस्थितियों को पहले ही भांप कर, वे अपनी सुरक्षा स्वयं कर पाने में सक्षम हों। इस विषय पर परामर्श सत्र के दौरान मेरा, मेरी छात्राओं के साथ वार्तालाप होता है, मैं उन्हें, उन्हीं की‌ गलतियों से उत्पन्न कुछ परिस्थितियों क...
तो क्या शान्त हो जायेगी?
कविता

तो क्या शान्त हो जायेगी?

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** कर दुर्योधन कर, अपमान कुलवधू का.... तिरस्कार कुलगुरु का.... तो क्या शान्त हो जायेगी? मन में धधकती , काम की ज्वाला, ले दुर्योधन ले, हस्तिनापुर भी ले... इन्द्रप्रस्थ भी ले…... तो क्या शान्त हो जायेगी? मन में धधकती, क्रोध की ज्वाला, ना दे दुर्योधन ना दे, पांच गांव भी ना दे.... सुईनोंक बराबर धरा भी ना दे.... तो क्या शान्त हो जायेगी? मन में धधकती, लोभ की ज्वाला, बना दुर्योधन बना, श्री कृष्ण को बन्दी.... पांडवों को द्वन्दी...... तोक्या शान्त हो जायेगी? मन में धधकती, अहं की ज्वाला, बांध दुर्योधन बांध, पट्टी अंधेपन की नहीं.... अन्याय व छल-कपट की... तो क्या शान्त हो जायेगी? मन में धधकती, मोह की ज्वाला, सोच दुर्योधन सोच, मिला क्या?जलाकर ज्वाला काम,क्रोध,मद,लोभ,अहंकी निर्दोषों का ...
जीवन को फूलों सा महकाना है….
कविता

जीवन को फूलों सा महकाना है….

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** (यह मेरी प्रथम कविता है, जीवन के चालीस बसन्त पार कर लेने के पश्चात्, ससुराल में सभी का प्रेम, अपनापन, सम्मान, प्रशंसा पाने की आस में अपना सर्वस्व लुटाती महिला को जब यह महसूस होता है कि उसका भी तो अपना जीवन है, उसकी अपने प्रति भी कोई जिम्मेदारी है, तो वह कैसा अनुभव करती है? उन्हीं पलों को अभिव्यक्त करती है यह कविता…) यह मेरा जीवन है, मुझे इसको पार लगाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... उम्मीद से ज्यादा, उम्मीद करते हैं मुझसे, मुझे इससे ना मुरझाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... मायके के सब रिश्ते छूटे, दूजे के घर आने से, पीड़ा इसकी कोई ना समझे, किसी के समझाने से, इन रिश्तों से भी मुझको, कोई उम्मीद ना लगाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... ससुराल के सारे रिश्ते-नाते झूठे हैं,...