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स्त्री भी एक इंसान है
कविता

स्त्री भी एक इंसान है

डॉ. सोनल मेहता भोपाल म.प्र. ******************** अच्छा लगता है जब अपने लिए कुछ अच्छा सुनती हूँ. कानों में संगीत सा बजता है. झूठ होगा कहना कि मुझे तारीफ़ से फ़र्क़ नहीं पढ़ता, ये फ़र्क़ तब महसूस होता है जब अपनों से अपनी ख़्वाहिशों पर ताना मिलता है जब महसूस कराया जाता है कि घर की ज़रूरतें पूरी करना मेरा शौक़ है मेरा वजूद सिर्फ़ किचन तक है . उफ़्फ़ ये क्या कह दिया. वजूद ! ये कब मेरा हुआ हुआ है मेरा तो वो है मेरा अकेलापन जो बर्तनों के शोर से कभी घबरा सा जाता है और खुद के लिए एक निवाला सुकून का चाहता है. परिचय :- डॉ. सोनल मेहता निवासी : भोपाल म.प्र. सम्प्रति : इंसान बनने की कोशिश शैक्षणिक योग्यता : पी.एचडी., एम.फ़िल, एल.एल.बी., एम.बीए, एम.एड, एम.ए, बीएससी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी र...