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Tag: डॉ. सुलोचना शर्मा

आओ हम कुछ और बात करें
कविता

आओ हम कुछ और बात करें

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** इस निराशा, उबाऊ, एकाकीपन से बाहर निकल.. ‌आओ हम कुछ और बात करें... ‌उगते सूरज को देखें और भूल जाएं निराशा की उस कालिमा को ‌जिसने लील दिया है हमारी खुशियों को... ‌और खो जाएं उन असीम ऊर्जावान रंगों में... ‌हम ओजस्वी अरुणोदय की बात करें! आओ हम कुछ और बात करें!! ‌ ‌झांकें खिड़की से बाहर.. तिनका-तिनका कर एकत्र, ‌नाजुक सी डाल पर हर बार पुनः - पुनः घरौंदा बुनती.. ‌उस छोटी नन्हीं सी चिड़िया की बात करें... ‌आओ हम कुछ और बात करें!! ‌आंगन से डाली तक फुदक.. ‌सख्त अखरोट तोड़, अनंत उत्साह से अचंभित करती.. ‌बताती अपने बुलंद इरादे.... ‌उस सजग नाजुक सी गिलहरी की बात करें... ‌आओ हम कुछ और बात करें!! ‌ले क्षमता से अधिक भार... ‌सतत चढ़ती और उतरती.. ‌फिर फिर अपनों को राह दिखाती कर्म मार्ग पर बढ़ती, अपने शत्रुओं को ढके...
अभिनन्दन नये वर्ष का
कविता

अभिनन्दन नये वर्ष का

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** अभिनन्दन हो नये वर्ष का लेकर पूजा की थाली झूमें नाचें दीप जलायें मंगल गायें आओ आलि खलिहानों में सरसो फूले झूमें बाली गेहूंओं वाली कृषक झूमते अपने मद में और झूमे नारी नखराली वृक्ष वृक्ष पर नई कोंपलें लकदक अमुआ की डाली रंगोली भी एक बनाएं इंद्रधनुषी रंगों वाली नया गीत हो नई थाप हो नव्य नवेली हो ताली जले कपूर नेह प्रेम का हो सुवासित रातें काली माता आई नवदुर्गा बन घर घर छाए खुशहाली वंदन करें नव वर्ष का लेकर पूजा की थाली !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रका...
लेखनी राम लिखेगी
भजन, स्तुति

लेखनी राम लिखेगी

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** ‌ आज लेखनी राम लिखेगी ‌ है राम में चारों धाम लिखेगी... ‌ ‌ कुल पुरखों की रीत निभाने ‌ पितृ वचनबद्ध हो जिसने ‌ त्याग दिया सर्वस्व पलों में ‌ ऐसा अनुपम काम लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी ! ‌ ‌वानर, रिक्ष, केवट, शबरी के, ‌ रज लपेटती गिलहरी के ‌ भील निषाद, ऋषि, असुरों के .. ‌ हैं सभी के श्री राम लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌पाहन को भी मुक्त किया था ‌ छूकर उसको मोक्ष दिया था ‌ माता कहकर मान दिया था ‌ वो नारी का सम्मान लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌पूरब पश्चिम दक्षिण उत्तर ‌ निशा सांध्य और भोर दोपहर ‌ इस सृष्टि के रज कण कण पर ‌ स्वयं सिद्ध श्री राम लिखेगी.... ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌झूठ क्रोध और लोभ नहीं था ‌ प्रजा प्रमुख थी राज गौण था ‌ रीति नीति से ओतप्रोत था ‌ मर्यादा पर्याय लिखेगी....
सब कुछ बदला-बदला देखा
कविता

सब कुछ बदला-बदला देखा

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** इक दिन... अपनों, सपनों और सफर से कुछ उकता कर कुछ घबराकर.. ‌ खुद ही खुद से मिलने पहुंची .. ‌ तो सब कुछ बदला-बदला देखा.. सोचा था सब सूना होगा, पर... ‌तनहाई को बातें करते ‌ खा़मोशी को गाते देखा! दम तोड़ते द्वेष देखा अवसादो को हंसते देखा! सब कुछ बदला-बदला देखा!! ‌ ‌लगा सिसकते होंगे घाव, ‌पर... ‌ज़ख्म तुरपते कांटे देखा, ‌ दुविधा को भरमाते देखा! व्यथा सुलाती नींदें देखी गम को लोरी गाते देखा सब कुछ बदला बदला देखा ‌ ‌लगी खोजने मैं क्या हूं? तो... बाधा की जड़ 'मैं'को देखा इस जीवन के मर्म को देखा परमेश्वर के रूप को देखा ‌परमशांति के चरम को देखा ! सब कुछ बदला-बदला देखा!! खुद ही से जब मिलकर आई.... ‌भ्रम नहीं सब यथार्थ देखा स्वार्थ नहीं परमार्थ देखा सब में मैं हूं सब मुझ में है ‌ सब जन में अपने को द...
निज उदर की सुवास खोजने
ग़ज़ल

निज उदर की सुवास खोजने

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** निज उदर की सुवास खोजने जाने कितने मृग तड़पे होंगे सुरीली सी ग़ज़ल कहने वाले दर्द से कितनी बार मरे होंगे जो चिराग हवाओं से ना डरे हैं निस्सन्देह उन्ही से दूर अंधेरे होंगे वो जो तूफानों में कश्ती डाले हैं या हैं मजबूर या सिरफिरे होंगे टिके हैं अंधेरों के सामने दीपक सूरज तलक उन्हीं के चर्चे होंगे तमस ने बेशक खुदकुशी की होगी जहां जुगनू चमकते दिखे होंगे!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
मेरा दामन मैला
दोहा

मेरा दामन मैला

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा दामन मैला लेकिन किसकी चुनरी धोरी बोल एक अंगुरिया मुझे दिखाई बाकी तीनों तेरी ओर! बीच राह कीच भरा हो बच कर निकलो दोनों छोर गर पंक बीच पत्थर मारोगे छींटा लागे चारों ओर! नहीं बेटियां रक्षित घर में नाते रिश्ते हो गए गौण बाड़ खेत खाने लगे तो फिर बोलो रखवाले कौन! बटी मनुजता जात धर्म में देश की बात करे ना कोय ना दादुर तुल सके तराजू ना मानुष का एका होय!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहा...
मन कैसे वश में करूं
कविता

मन कैसे वश में करूं

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा मन मेरा जन्म का बैरी.. क्यों मेरे बस में नहीं आए! गर ये मन घोड़ा होता तो.. ले चाबुक बस में कर लेती! गर ये मन हाथी होता तो.. ले अंकुश सवार हो जाती! गर ये मन सांप होता तो.. बजा बीन फण से धर लेती! गर ये मन बैल होता तो.. नथनी डाल नाक कस लेती! गर ये मन सुव्वा होता तो.. सोना गढ़ा चोंच मढ़ लेती! गर यह मन प्रेत होता तो झाड़-फूंक वश में कर लेती! गर ये मन बिच्छू होता तो बांध डंक गरल हर लेती! एक विधि है यही विधाता इस तन के भीतर सोए खोए अंतस को साधूं तो.. आकुल व्याकुल मन सध जाए!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
जो बीत गया वो बात न कर
कविता

जो बीत गया वो बात न कर

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** जो बीत गया वो बात न कर कल देखे जो सपने हमने कुछ थे टूटे, कुछ भूले से आधे सपनों की बात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! कुछ किस्से जो दंश दे गए कुछ पीड़ा कुछ टीस दे गए घायल अंशों की बात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! असली सूरत से हटा नकाब ना कर सवाल अब दे जवाब दिखा भरोसा घात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! कुछ ऊंची सी पैंग बढ़ा सूरज चंदा तक हाथ बढ़ा टूटे तारों की बात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! चीत्कारों वाली रात गई अब छेड़ सुरीली राग नई छूटे सुर का आलाप न कर जो बीत गया वह बात न कर! नई भोर की नए दिवस की नये राग और नई थाप की इससे पृथक तू बात न कर जो बीत गया वह बात न कर !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सु...
सब कुछ फिसलता जा रहा है
कविता

सब कुछ फिसलता जा रहा है

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** सब कुछ फिसलता जा रहा है बंद मुट्ठी से रेत की मानिंद.. हरा भरा जीवन हो चला है बिन मेड़ के खेत की मानिंद..!! खो गए हैं इंद्रधनुषी रंग सारे.. रह गया कैनवस श्वेत की मानिंद!! ये दिल तो धड़कता है मगर रह गया अंतस अचेत की मानिंद!! उड़ चला हंसा अकेला छोड़ काया अनिकेत की मानिंद!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hin...
वह जो….
कविता

वह जो….

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** वह जो सिकुड़ कर पैरों में सिर दिए बैठा है .. लगता है किसी छोटे गांव के गरीब का बेटा है ! वह जो निपट अकेला चेहरे पर ताब लिए बैठा है बेशक खाली हाथ है पर सीने में ईमान समेटा है ! वह जो चेहरे पर नकाबों पर नकाब लिए बैठा है मक्कारी और धोखे को उजले लिबास से लपेटा है! वह जो अन्न और खुशहाली बो,खुद भूख से सोता है टूटी खाट और फूटे छप्पर तले किसान का बेटा है! वह जो अपने हक के लिए दफ्तर के फेरे लेता है उसका इकलौता बेटा सरहद पर तिरंगे में लेटा है!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
बैरी मेरा मन
कविता

बैरी मेरा मन

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा मन मेरा जन्म का बैरी.. क्यों मेरे बस में नहीं आए! गर ये मन घोड़ा होता तो.. ले चाबुक बस में कर लेती! गर ये मन हाथी होता तो.. ले अंकुश सवार हो जाती! गर ये मन सांप होता तो.. बजा बीन फण से धर लेती! गर ये मन बैल होता तो.. नथनी डाल नाक कस लेती! गर ये मन सुव्वा होता तो.. सोना गढ़ा चोंच मढ़ लेती! गर यह मन प्रेत होता तो झाड़-फूंक वश में कर लेती! गर ये मन बिच्छू होता तो बांध डंक जहर हर लेती! एक विधि है यही विधाता इस तन के अंदर जो सोए खोए अंतस को साधूं तो.. आकुल व्याकुल मन सध जाए!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
करोना की विभीषिका
कविता

करोना की विभीषिका

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** डाल दो कानों में शीशा कि ‌ बस चीत्कारों का शोर है ‌घर-घर रुदाली घर-घर अंधेरा ‌ यह मातमों का दौर है... ‌ ‌ काल की फैली भुजाएं ‌ कैसे हन्सा जां बचाए ‌छीनने सांसों को व्याकुल ‌ यह वहशतों का दौर है... ‌ ‌ नित नए तरकश बदलकर ‌ तीर किस किस पर चलाएं ‌ मौत पर हो रही सियासत ‌ यह नफरतों का दौर है... ‌ ‌न टूटते को कांधा ‌ न सर पर कोई हाथ है ‌ हर नजर हो रही सशंकित ‌ यह दहशतों का दौर है... ‌ ‌ सब साथ मिल ग़म बटाना ‌ स्नेह सिक्त हो थपथपाना ‌ और आंसुओं की थाह पाना ‌ वह जमाना ओर था और ‌यह जमाना ओर है!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
तू नारी है तू भी जी ले…
कविता

तू नारी है तू भी जी ले…

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** खुले घाव को बखिया करले फटे जख्म पेबंद लगा ले रंजो गम को दरकिनार कर तकलीफों पर बाम लगा लें तू नारी है तू भी जी ले पल्लू के पहले कोने पर बांध समय अपने हिस्से का सखी सहेली संग साथ ले कुछ अपनी मर्ज़ी का कर ले तू नारी है तू भी जी ले... रिश्ते नाते बहुत सवांरे बिखरे कुंतल भी सवांरले सख्त इरादे रख मुट्ठी में तारे धरती पर उतार ले तू नारी है तू भी जी ले... देवी बनकर नहीं पुजाना नेह उड़ेल सबको समझादे तू है सृजना इस सृष्टि की कभी बोलकर भी बतला दे तू नारी है तू भी जी ले... तू इंसां है तू भी जी ले!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...