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Tag: डॉ. सुभाष कुमार नौहवार

सड़क के किनारे
कविता

सड़क के किनारे

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** सड़क के किनारे बैठी वह जीण-शीर्ण आधे घूंघट में, हाथों में पके-अधपके चावलों का कटोरा लिए। पेट के गड्डे को भर रही थी कुछ इस तरह कि मानो फिर कभी खाली न होगा। लेकर कुदाल उन नाजुक हाथों में, फिर से एक नाली को खोदना होगा। अकेली नहीं थी वह! दामपत्य जीवन के सुबूत उसके दो कर्मवीर सुपु‍त्र, कुदाल के हत्थे को अधिकार स्वरूप छीनने का प्रयत्न कर रहे थे। क्योंकि यही तो मिलेगा उन्हें कुछ संभलने पर! शुक्र है कि उन्होंने कागज कलम नहीं माँगी। वर्ना कहाँ से लाकर देती वो इन निरक्षरों को अक्षर? सुघढ़ थी पर पढ़ी-लिखी नहीं थी वह। पेट की आग में झुलस गया था उस रूपवती का रूप। वर्ना आधुनिकता के अधनंगे लिबास में, सड़क के किनारे किसी रेस्तराँ में वेटर को कुछ इठलाती ऑर्डर लिखवाती। पर वह तो सूँत-सूँतकर खाए...
‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी
कहानी

‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** यू हेव अराइव्ड। योर डेस्टीनेशन इस ओन राइट। गाड़ी पार्क की और इधर-उधर देखा। सुभम मन-ही- मन बहुत खुश था कि जहाँ पर वह जगह खरीदने जा रहा है, यहाँ की लोकेशन तो अच्छी है। पार्क है, मंदिर है। चौड़ी सड़कें हैं और मुख्य मार्ग के पास में ही है। अभी तो पाँच बजे हैं। छह बजे के लिए बोला था। प्रोपर्टी वाला या उसका कोई दलाल आएगा। कोई बात नहीं जगह अच्छी है। आज मंगलवार भी है तो क्यों न मंदिर में जाकर हनुमान जी के दर्श्न कर लिए जाएँ और मन्नत भी माँग ली जाए कि सौदा ठीक-ठीक पट जाए क्योंकि आजकल जमीन के मामलों में बड़ी धोखेवाजी चल रही है। सुभम ने मंदिर में प्रवेश किया, हाथ जोड़े प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए। लेकिन अचानक किसी आवाज ने उसकी धड़कनें बढ़ा दीं। कुछ भ्रमित-सा हुआ लेकिन जल्दी ही वो आवाज मंदिर के प्रांगण से बाहर निकल गई लेकिन सुभम...
करवा चौथ का व्रत
कविता

करवा चौथ का व्रत

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज करवा चौथ का व्रत था, भुला दिया हो उसने सब कुछ, पर मुझे वो क्षण याद था। वो उसका फोन- “हेलो ! कैसे हो तुम? मैं बिलकुल ठीक हूँ। मेरी आवाज को सुनकर तुम दुखी मत होना, याद करके मेरी, अपने आप को मत खोना, आज करवा चौथ का व्रत है! तुम्हारी आवाज सुनानी थी, माँग कर मन्नत माँ से, अपनी तक़दीर बुननी थी। किसी को कुछ नहीं पता ! सुबह से पानी भी नहीं पिया है। तुम्हें पाने का सुरूर मेरी आत्मा में घुल गया है। अच्छा ! मम्मी आती है फोन रखती हूँ, बसाकर मनमंदिर में तुम्हारे लिए दुआ करती हूँ। पर अब!!!! फोन की घंटी नहीं बजती !! और तुम्हारी कोई उम्मीद अब मेरे लिए नहीं जगती। लेकिन मेरे कानों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है, तुमने न सही, मैंने छलनी से चाँद देखा था। कहीं नहीं था चाँद! छलनी के हर छेड़ से तुम्हें द...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में’
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में’

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें....... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में........... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में.......... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है...
सफेद बाल का साक्षात्कार
हास्य

सफेद बाल का साक्षात्कार

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक पत्रकार ने सफेद बाल से पूछा, तुम क्यों उखड़े-उख़ड़े रहते हो? काले बालों के साथ मिलकर क्यों नहीं रहते हो? उसने कहा कि आप कैसे हो पत्रकार? सही सवाल गलत जगह पर पूछ रहे सरकार!! अरे संख्या उनकी ज्यादा है। अ‍पनी तो एक सीमित-सी मर्यादा है। और हम पर आरोप है कि हम मिलकर नहीं रहते!! उन्हें घमंड है कि हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं, वो हमसे सीधे मुंह बात तक नहीं करते। ममतामयी माँ को मोम और ज़िंदे पिता को डैड बना दिया! और हमारा रंग क्या सफेद हो गया, दादा जी की जगह खुजली वाला दाद यानी दादू बना दिया? उनका कहना है कि आपको साथ में लाने की, बहुत कोशिश की रंग में रंग मिलाने की। लेकिन आप हैं कि कुछ दिनों में अपना रंग दिखाने लगते हैं, अकड़कर फिर से तूर की तरह तनकर खड़े हो जाते हैं । ...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है! ऐसा हर घर वो खाल...
मेरी आधुनिकता
कविता

मेरी आधुनिकता

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज मेरे पास मोबाइल फोन है और रंगीन टीवी भी है। आधुनिक ज़माने को परिभाषित करती एक सुशिक्षित बीवी भी है। ज़रूरी नहीं है आधुनिकता के लिए बंगले और बड़ी कार का होना, दुमंज़िला मकान और एक अच्छी-सी नौकरी भी है। सोफे पर बैठकर बड़ा इतरा के दबाता हूँ रिमोट टी.वी का, और ए.एक्स.एन चैनल की गौरांगनाएँ घेर लेती हैं मुझे। उनके सफेद बालों को देखकर पिता जी के सन जैसे सफेद बाल तैर जाते हैं मेरी आँखों में। धरी रह जाती है मेरी आधुनिकता। कुछ लिपटने के अंदाज में पत्नी कहती है:- जानू, तुम फिर क्यों उदास हो गए? ले आइए ना पिता जी को यहाँ, रख लेंगे किसी वृद्धाश्रम में! तुम्हारी चिंता भी जाती रहेगी और मिल भी लिया करना एक-दो महीने में। मुझसे तुम्हारी ये उदासी देखी नहीं जाती, कम-से-कम अपना नहीं तो मेरा तो खयाल किया करो! और मनान...
आने की आहट का डर
कविता

आने की आहट का डर

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब डॉ. ने गर्भवती महिला को बताया कि आने वाला शिशु एक लड़की है, तब बेटे की चाह रखने वाली माँ का चेहरा उतर गया और वह उदास हो गई। इसका शिशु पर क्या असर पड़ा होगा? सुनिए उसकी व्यथा कथा... हे माँ! मेरे आने की आहट से तू उदास हो गई! क्या हो गया तुझे? तू किन ख्यालों में खो गई? अभी तो एक अनकही कहानी हूँ मैं, तुम दोनों के प्यार की निशानी हूँ मैं । सोचा था कि मैं तुम्हारी तमन्ना की तान हूँ ममता से भरी तुम्हारी लोरी का गान हूँ। पर तुम्हारी उदासी ने मुझे आहत किया है, रूढिवादिता का मेरे दिल पर आघात किया है। मैं तो तुम्हारी माँ बनने की पूर्ण हुई अर्जी हूँ, स्वयं तो कुछ नहीं मैं, ईश्वर की मर्जी हूँ। पर माँ अब ऐसा लगता है कि तेरी कोख भी मेरे लिए पराई है, लोग तो क्या कहेंगे तूने तो खुद ही पूछ लिया मुझसे कि तू इ...